पुणे: जम्मू कश्मीर में लगी पाबंदियों को लेकर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) से इस्तीफा देने वाले केरल के कन्नन गोपीनाथन को सोमवार को सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय (एसपीपीयू) की जयकर नॉलेज रिसोर्स सेंटर (जेकेआरसी) लाइब्रेरी में जाने से रोक दिया गया।
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, गोपीनाथन ने कहा कि छात्र चाहते थे कि वे लाइब्रेरी में आएं लेकिन छात्रों और लाइब्रेरी प्रशासन के बीच विवाद होने के बाद उन्होंने खुद जाने का विचार छोड़ दिया। वहीं, जेकेआरसी की लाइब्रेरी प्रभारी अपर्णा राजेंद्र ने कहा कि वह केवल प्रक्रियाओं का पालन कर रही थीं जिसके तहत उन्होंने आधिकारिक दौरे के लिए आवेदन की मांग की थी।
राजेंद्र ने कहा, ‘उन्हें लाइब्रेरी दिखाने में हमें भी खुशी होती लेकिन लाइब्रेरी का इस्तेमाल अन्य छात्र भी पढ़ाई के लिए करते हैं इसलिए वहां पर सार्वजनिक भाषण जैसा कुछ संभव नहीं था। इससे अन्य छात्रों को परेशानी होती।’ उन्होंने आगे कहा कि विश्वविद्यालय को गोपीनाथन की यात्रा के बारे में पूर्व सूचना नहीं दी गई थी।
उन्होंने कहा, ‘उच्च पदों वाले अधिकारियों के दौरे के लिए रजिस्ट्रार के कार्यालय के माध्यम से आधिकारिक सूचना की आवश्यकता होती है। इसलिए मैंने छात्रों को इसके लिए एक आवेदन जमा करने की सलाह दी, जो हमारे रिकॉर्ड को बनाए रखने का हिस्सा है।’ लाइब्रेरी प्रशासन द्वारा आधिकारिक आवेदन मांगे जाने पर छात्रों ने आश्चर्य जताया और दावा किया कि उन्होंने बहुत बुरा बर्ताव किया।
एसपीपीयू के कॉमर्स के द्वितीय वर्ष के छात्र कमलाकर चंद्रकला ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘अधिकारियों ने हमें यह नहीं बताया कि आवेदन की आवश्यकता क्यों थी। हमें आधिकारिक प्रक्रिया की जानकारी नहीं थी लेकिन हम उसका पालन करते। लेकिन लाइब्रेरी अधिकारियों के बात करने के तरीके से हमें दुख पहुंचा।’
वहीं गोपीनाथन ने कहा, ‘मैं पुणे घूमने गया था जिसके तहत सोमवार को मैं एसपीपीयू के दौरे पर था। छात्र मुझे लाइब्रेरी दिखाना चाहते थे लेकिन छात्रों और लाइब्रेरी प्रशासन के बीच विवाद बढ़ने के बाद हमने मामले को आगे न बढ़ाने का फैसला करते हुए लाइब्रेरी जाने का विचार छोड़ दिया।’ इसके बाद छात्रों ने पुणे विश्वविद्यालय की कैंटीन में एक अनौपचारिक बैठक में चर्चा की।
बता दें कि, पिछले महीने कन्नन गोपीनाथ ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 के बाद लगे प्रतिबंधों पर यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया था कि वे ऐसी स्थिति में काम नहीं कर सकते हैं जहां लोगों के अधिकारों और स्वतंत्रता का दमन करने के लिए नौकरशाही मशीनरी का दुरुपयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह एक तरह से अघोषित अपातकाल है।
गोपीनाथन ने कहा था, ‘यह यमन नहीं है, यह 1970 के दशक का दौर नहीं है जिसमें आप पूरी जनता को मूल अधिकार देने से इनकार कर देंगे और कोई कुछ नहीं कहेगा।’ उन्होंने यह भी कहा था, ‘एक पूरे क्षेत्र में सभी तरह के प्रतिबंधों को लगाकर उसे पूरी तरह से बंद किए हुए पूरे 20 दिन हो चुके हैं। मैं इस पर चुप नहीं बैठ सकता हूं चाहे खुलकर बोलने की आजादी के लिए मुझे आईएएस से ही इस्तीफा क्यों न देना पड़े और मैं वही करने जा रहा हूं।’
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, गोपीनाथन ने कहा कि छात्र चाहते थे कि वे लाइब्रेरी में आएं लेकिन छात्रों और लाइब्रेरी प्रशासन के बीच विवाद होने के बाद उन्होंने खुद जाने का विचार छोड़ दिया। वहीं, जेकेआरसी की लाइब्रेरी प्रभारी अपर्णा राजेंद्र ने कहा कि वह केवल प्रक्रियाओं का पालन कर रही थीं जिसके तहत उन्होंने आधिकारिक दौरे के लिए आवेदन की मांग की थी।
राजेंद्र ने कहा, ‘उन्हें लाइब्रेरी दिखाने में हमें भी खुशी होती लेकिन लाइब्रेरी का इस्तेमाल अन्य छात्र भी पढ़ाई के लिए करते हैं इसलिए वहां पर सार्वजनिक भाषण जैसा कुछ संभव नहीं था। इससे अन्य छात्रों को परेशानी होती।’ उन्होंने आगे कहा कि विश्वविद्यालय को गोपीनाथन की यात्रा के बारे में पूर्व सूचना नहीं दी गई थी।
उन्होंने कहा, ‘उच्च पदों वाले अधिकारियों के दौरे के लिए रजिस्ट्रार के कार्यालय के माध्यम से आधिकारिक सूचना की आवश्यकता होती है। इसलिए मैंने छात्रों को इसके लिए एक आवेदन जमा करने की सलाह दी, जो हमारे रिकॉर्ड को बनाए रखने का हिस्सा है।’ लाइब्रेरी प्रशासन द्वारा आधिकारिक आवेदन मांगे जाने पर छात्रों ने आश्चर्य जताया और दावा किया कि उन्होंने बहुत बुरा बर्ताव किया।
एसपीपीयू के कॉमर्स के द्वितीय वर्ष के छात्र कमलाकर चंद्रकला ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘अधिकारियों ने हमें यह नहीं बताया कि आवेदन की आवश्यकता क्यों थी। हमें आधिकारिक प्रक्रिया की जानकारी नहीं थी लेकिन हम उसका पालन करते। लेकिन लाइब्रेरी अधिकारियों के बात करने के तरीके से हमें दुख पहुंचा।’
वहीं गोपीनाथन ने कहा, ‘मैं पुणे घूमने गया था जिसके तहत सोमवार को मैं एसपीपीयू के दौरे पर था। छात्र मुझे लाइब्रेरी दिखाना चाहते थे लेकिन छात्रों और लाइब्रेरी प्रशासन के बीच विवाद बढ़ने के बाद हमने मामले को आगे न बढ़ाने का फैसला करते हुए लाइब्रेरी जाने का विचार छोड़ दिया।’ इसके बाद छात्रों ने पुणे विश्वविद्यालय की कैंटीन में एक अनौपचारिक बैठक में चर्चा की।
बता दें कि, पिछले महीने कन्नन गोपीनाथ ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 के बाद लगे प्रतिबंधों पर यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया था कि वे ऐसी स्थिति में काम नहीं कर सकते हैं जहां लोगों के अधिकारों और स्वतंत्रता का दमन करने के लिए नौकरशाही मशीनरी का दुरुपयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह एक तरह से अघोषित अपातकाल है।
गोपीनाथन ने कहा था, ‘यह यमन नहीं है, यह 1970 के दशक का दौर नहीं है जिसमें आप पूरी जनता को मूल अधिकार देने से इनकार कर देंगे और कोई कुछ नहीं कहेगा।’ उन्होंने यह भी कहा था, ‘एक पूरे क्षेत्र में सभी तरह के प्रतिबंधों को लगाकर उसे पूरी तरह से बंद किए हुए पूरे 20 दिन हो चुके हैं। मैं इस पर चुप नहीं बैठ सकता हूं चाहे खुलकर बोलने की आजादी के लिए मुझे आईएएस से ही इस्तीफा क्यों न देना पड़े और मैं वही करने जा रहा हूं।’