कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा में कर्नाटक की कांग्रेस-जेडीएस सरकार गिराने का मुद्दा उठाया था और कहा था कि ये (भाजपा) हमारे विधायकों को चार्टेड प्लेन से मुंबई लेकर गए। सरकार तोड़ने के लिए दल-बदल की कोशिश की जा रही है और इसके लिए केंद्र सरकार साजिश रच रही है। चौधरी ने कहा था कि यह सरकार लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा रही है और इसमें आपकी पार्टी के नेताओं का हाथ है। इसके जवाब में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में 8 जुलाई को कहा था - "कर्नाटक में इस्तीफों से हमारा कोई लेना-देना नहीं है।" यही नहीं, राहुल गांधी पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा था कि इस्तीफे देने की प्रवृत्ति कांग्रेस में राहुल गांधी द्वारा शुरू की गई थी, यह हमारे द्वारा शुरू नहीं किया गया था। उन्होंने खुद लोगों से इस्तीफे जमा करने के लिए कहा, यहां तक कि वरिष्ठ नेता भी इस्तीफे सौंप रहे हैं।
इसके बाद क्या हुआ - आप जानते हैं। इस्तीफा देने वाले विधायक जल्दी में थे। सुप्रीम कोर्ट आए। राज्यपाल ने डेडलाइन तय किया, विधायकों को मुंबई के होटल में ठहराया गया और कांग्रेस नेता को उनसे मिलने नहीं दिया गया आदि आदि। आखिरकार सरकार गिर गई। क्या आपको अखबारों से पता चला कि किन विधायकों ने इस्तीफा दिया। किन लोगों ने दल बदल की और दल बदल कानून का क्या हुआ। विधायकों के इस्तीफे मंजूर हुए कि नहीं, क्या फिर चुनाव होंगे। वही चुनाव लड़ेंगे या दूसरे भी लड़ सकते हैं। चुनाव कब तक होना या कराया जाना चाहिए। उसके बाद क्या हो सकता है आदि। ये सब सामान्य सवाल हैं जिसकी चर्चा अखबारों में होती रहनी चाहिए। नए पाठक इन नियमों और इन स्थितियों से तभी वाकिफ होंगे। कर्नाटक की सरकार गिर गई और भाजपा बहुमत में आ गई। सरकार पांच साल के लिए चुनी गई थी। बीच में ऐसा क्यों हुआ - नए पाठकों को कैसे पता चलेगा। यह सब जानना - बताना उनके सामान्य और राजनीतिक ज्ञान के लिए जरूरी है।
मैं जो हिन्दी अखबार देखता हूं उनमें कर्नाटक में क्या हो रहा है इस बारे में आज पहले पन्ने पर कुछ खास नहीं है। ना सूचना ना विश्लेषण ना ताजा स्थिति। अंग्रेजी अखबारों में हि्दुस्तान टाइम्स ने पहले पन्ने पर टॉप में छापा है कि (प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीएस) येदुरप्पा सरकार बनाने का दावा करने के लिए (दिल्ली से) हरी झंडी के इंतजार में हैं। खबर तो यह भी है कि भाजपा अध्यक्ष येदुरप्पा ने कहा कि वे दिल्ली से निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे किसी भी वक्त विधायक दल की बैठक बुलाकर दावा पेश करने के लिए राजभवन जा सकते हैं (जनसत्ता)। हिन्दुस्तान टाइम्स ने लिखा है कि भाजपा बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने की अपील पर विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय का इंतजार करती लगती है। यह अलग बात है कि इसके बावजूद, भाजपा की सरकार बनने की खुशी में पार्टी के नेता और कार्यकर्ता बेंगलुरू के भाजपा कार्यालय में इकट्ठे हो गए थे।
अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ ने (अंदर के पन्ने पर) कर्नाटक प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीएस येदुरप्पा द्वारा केक काटे जाने और पार्टी सहयोगियों के साथ केक खाने-खिलाने की तस्वीर छापी है और संसद में राजनाथ सिंह के कहे को याद किया है। इसके साथ ही राहुल गांधी के ट्वीट के हवाले से खबर दी है (राहुल विदेश में हैं) कि कर्नाटक सरकार गिरने के लिए राहुल ने अंदर और बाहर की ताकतों पर उंगली उठाई है। पर हिन्दी अखबारों में ऐसा कुछ है क्या? और पहले पन्ने पर क्यों नहीं है। अगर आप यह जानना चाहते हैं कि टेलीग्राफ में यह पहले पन्ने पर क्यों नहीं है, तो अखबार देखें। टाइम्स ऑफ इंडिया में आज पहले पन्ने पर कर्नाटक नहीं है। और इंटरनेट पर पहले पन्न से पहले के अधपन्ने भी नहीं हैं। विज्ञापन संकट? पता नहीं।
इंडियन एक्सप्रेस में, "कर्नाटक सरकार गठन" फ्लैग शीर्षक के साथ कर्नाटक की खबर लीड है और बताया गया है कि पार्टी गुरुवार या शुक्रवार को सरकार बनाने का दावा करेगी। अखबार ने अपनी इस लीड के साथ बताया है कि मध्यप्रदेश में भाजपा के दो विधायकों ने एक विधेयक पर कांग्रेस के साथ वोट दिया। दो विधायक - नारायण त्रिपाठी और शरद कोल हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स ने कर्नाटक की खबर के साथ इस खबर को बॉक्स बनाया है और पीटीआई की इस खबर के अनुसार एक विधायक ने कहा कि उनका समर्थन घर वापसी है। हिन्दी अखबारों में यह खबर छोटी बड़ी कुछेक अखबारों को छोड़कर सब में है।नवभारत टाइम्स में तो पहले पन्ने पर लीड है और दैनिक भास्कर में पहले पन्ने पर बॉटम स्प्रेड के बगल में दो कॉलम में है। नवोदय टाइम्स में पन्ने के बीच में है। हिन्दुस्तान में पहले पन्ने पर सूचना है कि दो विधायकों के झटके की यह खबर अंदर के पन्ने पर है। लेकिन कर्नाटक गायब है, पूरी तरह।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)
इसके बाद क्या हुआ - आप जानते हैं। इस्तीफा देने वाले विधायक जल्दी में थे। सुप्रीम कोर्ट आए। राज्यपाल ने डेडलाइन तय किया, विधायकों को मुंबई के होटल में ठहराया गया और कांग्रेस नेता को उनसे मिलने नहीं दिया गया आदि आदि। आखिरकार सरकार गिर गई। क्या आपको अखबारों से पता चला कि किन विधायकों ने इस्तीफा दिया। किन लोगों ने दल बदल की और दल बदल कानून का क्या हुआ। विधायकों के इस्तीफे मंजूर हुए कि नहीं, क्या फिर चुनाव होंगे। वही चुनाव लड़ेंगे या दूसरे भी लड़ सकते हैं। चुनाव कब तक होना या कराया जाना चाहिए। उसके बाद क्या हो सकता है आदि। ये सब सामान्य सवाल हैं जिसकी चर्चा अखबारों में होती रहनी चाहिए। नए पाठक इन नियमों और इन स्थितियों से तभी वाकिफ होंगे। कर्नाटक की सरकार गिर गई और भाजपा बहुमत में आ गई। सरकार पांच साल के लिए चुनी गई थी। बीच में ऐसा क्यों हुआ - नए पाठकों को कैसे पता चलेगा। यह सब जानना - बताना उनके सामान्य और राजनीतिक ज्ञान के लिए जरूरी है।
मैं जो हिन्दी अखबार देखता हूं उनमें कर्नाटक में क्या हो रहा है इस बारे में आज पहले पन्ने पर कुछ खास नहीं है। ना सूचना ना विश्लेषण ना ताजा स्थिति। अंग्रेजी अखबारों में हि्दुस्तान टाइम्स ने पहले पन्ने पर टॉप में छापा है कि (प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीएस) येदुरप्पा सरकार बनाने का दावा करने के लिए (दिल्ली से) हरी झंडी के इंतजार में हैं। खबर तो यह भी है कि भाजपा अध्यक्ष येदुरप्पा ने कहा कि वे दिल्ली से निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे किसी भी वक्त विधायक दल की बैठक बुलाकर दावा पेश करने के लिए राजभवन जा सकते हैं (जनसत्ता)। हिन्दुस्तान टाइम्स ने लिखा है कि भाजपा बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने की अपील पर विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय का इंतजार करती लगती है। यह अलग बात है कि इसके बावजूद, भाजपा की सरकार बनने की खुशी में पार्टी के नेता और कार्यकर्ता बेंगलुरू के भाजपा कार्यालय में इकट्ठे हो गए थे।
अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ ने (अंदर के पन्ने पर) कर्नाटक प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीएस येदुरप्पा द्वारा केक काटे जाने और पार्टी सहयोगियों के साथ केक खाने-खिलाने की तस्वीर छापी है और संसद में राजनाथ सिंह के कहे को याद किया है। इसके साथ ही राहुल गांधी के ट्वीट के हवाले से खबर दी है (राहुल विदेश में हैं) कि कर्नाटक सरकार गिरने के लिए राहुल ने अंदर और बाहर की ताकतों पर उंगली उठाई है। पर हिन्दी अखबारों में ऐसा कुछ है क्या? और पहले पन्ने पर क्यों नहीं है। अगर आप यह जानना चाहते हैं कि टेलीग्राफ में यह पहले पन्ने पर क्यों नहीं है, तो अखबार देखें। टाइम्स ऑफ इंडिया में आज पहले पन्ने पर कर्नाटक नहीं है। और इंटरनेट पर पहले पन्न से पहले के अधपन्ने भी नहीं हैं। विज्ञापन संकट? पता नहीं।
इंडियन एक्सप्रेस में, "कर्नाटक सरकार गठन" फ्लैग शीर्षक के साथ कर्नाटक की खबर लीड है और बताया गया है कि पार्टी गुरुवार या शुक्रवार को सरकार बनाने का दावा करेगी। अखबार ने अपनी इस लीड के साथ बताया है कि मध्यप्रदेश में भाजपा के दो विधायकों ने एक विधेयक पर कांग्रेस के साथ वोट दिया। दो विधायक - नारायण त्रिपाठी और शरद कोल हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स ने कर्नाटक की खबर के साथ इस खबर को बॉक्स बनाया है और पीटीआई की इस खबर के अनुसार एक विधायक ने कहा कि उनका समर्थन घर वापसी है। हिन्दी अखबारों में यह खबर छोटी बड़ी कुछेक अखबारों को छोड़कर सब में है।नवभारत टाइम्स में तो पहले पन्ने पर लीड है और दैनिक भास्कर में पहले पन्ने पर बॉटम स्प्रेड के बगल में दो कॉलम में है। नवोदय टाइम्स में पन्ने के बीच में है। हिन्दुस्तान में पहले पन्ने पर सूचना है कि दो विधायकों के झटके की यह खबर अंदर के पन्ने पर है। लेकिन कर्नाटक गायब है, पूरी तरह।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)