नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद वैचारिक हमले तेज कर दिए हैं। शिक्षा, नौकरी व देश से भाग रहे उद्योगपतियों को रोकने में नाकाम रही मोदी सरकार ने लोगों को आँबेडकर जैसे महापुरुष की किताबों की छपाई भी बंद करा दी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर पर आधारित अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित ‘कलेक्टेड वर्क्स ऑफ बाबासाहेब डॉक्टर आंबेडकर’ का प्रकाशन रुक गया है। एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। बता दें कि पीएम नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में आंबेडकर का खास तौर पर जिक्र करते रहते हैं। इसके अलावा, वह कांग्रेस पर आंबेडकर को हाशिए पर ढकेलने का आरोप भी लगाते रहे हैं।
द टेलिग्राफ में प्रकाशित खबर के मुताबिक, आंबेडकरवादी लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे ‘वैचारिक हमला’ करार दिया है। उनका कहना है कि बीजेपी और आरएसएस आंबेडकर द्वारा ब्राह्मणवादी मानसिकता और जाति व्यवस्था पर सवाल उठाए जाने के खिलाफ रहे हैं।
हालांकि, एक आधिकारिक सूत्र ने इसकी वजह आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर की ओर से महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ दाखिल कॉपीराइट केस को बताया है। बता दें कि महाराष्ट्र सरकार ने ही आंबेडकर की कई रचनाओं को प्रकाशित किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, जब यूपीए के शासन में कुमारी शैलजा सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में थीं, तब केंद्र सरकार की संस्था डॉ आंबेडकर फाउंडेशन ने आंबेडकर के लेखों और भाषणों को इंग्लिश और सात अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने के प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी।
वहीं, महाराष्ट्र के शिक्षा विभाग ने पहले ही आंबेडकर के प्रकाशित रचनाओं को अंग्रेजी और मराठी में पेश किया था। राज्य सरकार ने फाउंडेशन को इस बात की इजाजत दी थी कि वे इनके अंग्रेजी वॉल्यूम को कलेक्टेड वर्क्स में शामिल करें। 2013 में फाउंडेशन ने आंबेडकर की रचनाओं को अंग्रेजी में 20 वॉल्यूम में प्रकाशित किया। फाउंडेशन इसे 7 अन्य भाषाओं में अनुवाद करने का काम भी कर रही है।
अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित आंबेडकर की रचनाएं कुछ ही महीनों में खत्म हो गईं। मांग के बावजूद फाउंडेशन ने इसके किसी वॉल्यूम को दोबारा प्रकाशित नहीं किया। आधिकारिक सूत्र के मुताबिक, महाराष्ट्र सरकार ने भी आंबेडकर की रचनाओं पर आधारित अंग्रेजी के 17 वॉल्यूम्स का प्रकाशन रोक दिया।
बता दें कि प्राइवेट प्रकाशकों की ओर से आंबेडर की किताबें अभी भी मौजूद हैं। हालांकि, आंबेडकरवादी लेखक दिलीप मंडल का कहना है कि फाउंडेशन की किताबें ज्यादा सस्ती होती थीं। उनके मुताबिक, ये किताबें दलितों के बीच बेहद मशहूर हो गई थीं। वे शादी या अन्य मौकों पर एक दूसरे को ये किताबें भेंट करते थे।
द टेलिग्राफ में प्रकाशित खबर के मुताबिक, आंबेडकरवादी लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे ‘वैचारिक हमला’ करार दिया है। उनका कहना है कि बीजेपी और आरएसएस आंबेडकर द्वारा ब्राह्मणवादी मानसिकता और जाति व्यवस्था पर सवाल उठाए जाने के खिलाफ रहे हैं।
हालांकि, एक आधिकारिक सूत्र ने इसकी वजह आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर की ओर से महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ दाखिल कॉपीराइट केस को बताया है। बता दें कि महाराष्ट्र सरकार ने ही आंबेडकर की कई रचनाओं को प्रकाशित किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, जब यूपीए के शासन में कुमारी शैलजा सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में थीं, तब केंद्र सरकार की संस्था डॉ आंबेडकर फाउंडेशन ने आंबेडकर के लेखों और भाषणों को इंग्लिश और सात अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने के प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी।
वहीं, महाराष्ट्र के शिक्षा विभाग ने पहले ही आंबेडकर के प्रकाशित रचनाओं को अंग्रेजी और मराठी में पेश किया था। राज्य सरकार ने फाउंडेशन को इस बात की इजाजत दी थी कि वे इनके अंग्रेजी वॉल्यूम को कलेक्टेड वर्क्स में शामिल करें। 2013 में फाउंडेशन ने आंबेडकर की रचनाओं को अंग्रेजी में 20 वॉल्यूम में प्रकाशित किया। फाउंडेशन इसे 7 अन्य भाषाओं में अनुवाद करने का काम भी कर रही है।
अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित आंबेडकर की रचनाएं कुछ ही महीनों में खत्म हो गईं। मांग के बावजूद फाउंडेशन ने इसके किसी वॉल्यूम को दोबारा प्रकाशित नहीं किया। आधिकारिक सूत्र के मुताबिक, महाराष्ट्र सरकार ने भी आंबेडकर की रचनाओं पर आधारित अंग्रेजी के 17 वॉल्यूम्स का प्रकाशन रोक दिया।
बता दें कि प्राइवेट प्रकाशकों की ओर से आंबेडर की किताबें अभी भी मौजूद हैं। हालांकि, आंबेडकरवादी लेखक दिलीप मंडल का कहना है कि फाउंडेशन की किताबें ज्यादा सस्ती होती थीं। उनके मुताबिक, ये किताबें दलितों के बीच बेहद मशहूर हो गई थीं। वे शादी या अन्य मौकों पर एक दूसरे को ये किताबें भेंट करते थे।