अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में भारतीय दूतावास के बाहर सैकड़ों भारतीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और अलग-अलग संगठनों के द्वारा एक बड़ा विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया. ये विरोध प्रदर्शन मोदी सरकार की लगातार बढ़ती ज्यादतियों के ख़िलाफ़ किया गया.
विरोध प्रदर्शन में शामिल मनोज ने हमें इस विरोध प्रदर्शन की सूचना भेजी और इसके कारणों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि यदि हम मोदी सरकार के पिछले पाँच वर्षों के कार्यकाल पर नज़र डालें, तो ऐसी ढेरों घटनाएं मुंहबाए खड़ी हैं जिनमें मानवाधिकार को दरकिनार कर जघन्य हिंसा की जाती रही है. फिर चाहे वो गुजरात में दलितों को सरेआम पीटना हो, भीमा कोरेगांव की हिंसा के बाद सामजिक कार्यकर्ताओं की असंवैधानिक गिरफ़्तारी हो, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साम्प्रदायिक बयान हो, चंद्रशेखर की ज़बरदस्ती गिरफ़्तारी हो, मॉब लिंचिंग की अनेकों घटनाएं हों या महिलाओं के साथ बढ़ते यौनिक हिंसा के मामले हों, हर क्षेत्र में यह सरकार अपराधियों पर लगाम कसने के बजाय उनकी हौसलाफजाई करती नजर आई है.
उन्होंने कहा कि जानबूझकर देश का माहौल अब ऐसा बना दिया गया है कि सरकार के कामकाज पर सवाल करने वाला हर व्यक्ति देशद्रोही करार दिया जाता है. सरकार के ख़िलाफ़ लिखने-बोलने वालों को, या पूंजीपतियों के ग़ैरकानूनी काम के बारे में लिखने वालों को नक्सली घोषित कर दिया जाता है और झूठे मामलों में फंसाकर जेल में डाल दिया जाता है. ओडिशा, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी बाहुल्य इलाकों में देश के नामी उद्योग घरानों के द्वारा जल, जंगल, ज़मीन की अंधाधुंध लूट जारी है. और ये सब मोदी सरकार की सरपरस्ती में ही हो रहा है.
न्यूयॉर्क शहर में भारतीय दूतावास के बाहर प्रदर्शन के दौरान
"चौकीदार चोर नहीं दंगाई है"
"भाजपा हटाओ देश बचाओ"
"हम हिन्दू हैं पर नरेन्द्र मोदी के ख़िलाफ़ हैं"
"हिन्दू का मतलब मोदी नहीं है और न ही भाजपा है"
"हम मोदी और इस हिंदुत्व के ख़िलाफ़ हैं" जैसे नारे भी लगाए गए.
दिल्ली के प्रोफ़ेसर जी. एन. साईबाबा की रिहाई की मांग करते हुए लोगों ने कहा कि लाखों आदिवासियों को उनकी ज़मीन से बेदख़ल करने का आदेश दे दिया जाता है और सरकार मौन रहती है, आदिवासियों के हित के लिए कोई कदम नहीं उठाती, उल्टे आदिवासी हितों पर लिखने वाले प्रोफ़ेसर जी. एन. साईबाबा जैसे लोगों को ही जेल में डालकर उम्रकैद की सज़ा दे दी जाती है. ये कैसा लोकतंत्र है?
अमेरिका में रहने वाले सैकड़ों भारतीयों ने समस्त भारतवासियों से ये सवाल भी किया कि इन सब के ख़िलाफ़ आख़िर हम कब आवाज़ उठाएंगे? क्या हम ऐसे ही चुप रहेंगे? क्या यही वो देश है जिसमें हम रहना चाहते हैं? प्रदर्शन कर रहे लोगों ने कहा कि मोदी सरकार ने लोगों के मन में जो दहशत भर दी है, हम उससे डरने वाले नहीं हैं. उन्होंने कहा कि हम इस अव्यवस्था के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों के साथ खड़े हैं.
इस प्रदर्शन की ख़ास बात ये थी के अलग-अलग संगठनों के और अलग-अलग विचारधारा के लोग एक साथ आकर फासीवादी ताकतों का विरोध करते नज़र आए. मुस्लिम संगठन के लोग आंबेडकर की तस्वीर लिए हुए थे. एक पोस्टर पर लिखा था "हम गौरी लंकेश को नहीं भूलेंगे". एक महिला के पोस्टर पर लिखा हुआ था कि "मैं आज़ादी चाहती हूं, इस मनुवाद से, इस ब्राह्मणवाद से"
लोगों ने कहा कि 'भारत की सरकार को हम ये बता देना चाहते हैं कि उसकी इस बर्बरता के ख़िलाफ़ हम चुप रहने वाले नहीं हैं. इस देश ने पहले भी क्रांति की है, और जब भी ज़रुरत होगी हम फिर क्रांति के लिए सड़कों पर उतर आएंगे. ये देश सावित्रीबाई फुले, आंबेडकर, गुरुनानक जैसे सामाजिक न्याय के योद्धाओं का रहा है. हमारा ये आन्दोलन तब-तक लगातार चलता रहेगा जब तक सभी को न्याय न मिल जाएगा, जब तक हर कोई बराबर नहीं माना जाएगा और जब तक ये हिन्दुत्ववादी, फांसीवादी, ब्राह्मणवादी व्यवस्था ध्वस्त नहीं हो जाएगी.
सबरंग इंडिया के लिए अनुज श्रीवास्तव की रिपोर्ट
विरोध प्रदर्शन में शामिल मनोज ने हमें इस विरोध प्रदर्शन की सूचना भेजी और इसके कारणों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि यदि हम मोदी सरकार के पिछले पाँच वर्षों के कार्यकाल पर नज़र डालें, तो ऐसी ढेरों घटनाएं मुंहबाए खड़ी हैं जिनमें मानवाधिकार को दरकिनार कर जघन्य हिंसा की जाती रही है. फिर चाहे वो गुजरात में दलितों को सरेआम पीटना हो, भीमा कोरेगांव की हिंसा के बाद सामजिक कार्यकर्ताओं की असंवैधानिक गिरफ़्तारी हो, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साम्प्रदायिक बयान हो, चंद्रशेखर की ज़बरदस्ती गिरफ़्तारी हो, मॉब लिंचिंग की अनेकों घटनाएं हों या महिलाओं के साथ बढ़ते यौनिक हिंसा के मामले हों, हर क्षेत्र में यह सरकार अपराधियों पर लगाम कसने के बजाय उनकी हौसलाफजाई करती नजर आई है.
उन्होंने कहा कि जानबूझकर देश का माहौल अब ऐसा बना दिया गया है कि सरकार के कामकाज पर सवाल करने वाला हर व्यक्ति देशद्रोही करार दिया जाता है. सरकार के ख़िलाफ़ लिखने-बोलने वालों को, या पूंजीपतियों के ग़ैरकानूनी काम के बारे में लिखने वालों को नक्सली घोषित कर दिया जाता है और झूठे मामलों में फंसाकर जेल में डाल दिया जाता है. ओडिशा, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी बाहुल्य इलाकों में देश के नामी उद्योग घरानों के द्वारा जल, जंगल, ज़मीन की अंधाधुंध लूट जारी है. और ये सब मोदी सरकार की सरपरस्ती में ही हो रहा है.
न्यूयॉर्क शहर में भारतीय दूतावास के बाहर प्रदर्शन के दौरान
"चौकीदार चोर नहीं दंगाई है"
"भाजपा हटाओ देश बचाओ"
"हम हिन्दू हैं पर नरेन्द्र मोदी के ख़िलाफ़ हैं"
"हिन्दू का मतलब मोदी नहीं है और न ही भाजपा है"
"हम मोदी और इस हिंदुत्व के ख़िलाफ़ हैं" जैसे नारे भी लगाए गए.
दिल्ली के प्रोफ़ेसर जी. एन. साईबाबा की रिहाई की मांग करते हुए लोगों ने कहा कि लाखों आदिवासियों को उनकी ज़मीन से बेदख़ल करने का आदेश दे दिया जाता है और सरकार मौन रहती है, आदिवासियों के हित के लिए कोई कदम नहीं उठाती, उल्टे आदिवासी हितों पर लिखने वाले प्रोफ़ेसर जी. एन. साईबाबा जैसे लोगों को ही जेल में डालकर उम्रकैद की सज़ा दे दी जाती है. ये कैसा लोकतंत्र है?
अमेरिका में रहने वाले सैकड़ों भारतीयों ने समस्त भारतवासियों से ये सवाल भी किया कि इन सब के ख़िलाफ़ आख़िर हम कब आवाज़ उठाएंगे? क्या हम ऐसे ही चुप रहेंगे? क्या यही वो देश है जिसमें हम रहना चाहते हैं? प्रदर्शन कर रहे लोगों ने कहा कि मोदी सरकार ने लोगों के मन में जो दहशत भर दी है, हम उससे डरने वाले नहीं हैं. उन्होंने कहा कि हम इस अव्यवस्था के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों के साथ खड़े हैं.
इस प्रदर्शन की ख़ास बात ये थी के अलग-अलग संगठनों के और अलग-अलग विचारधारा के लोग एक साथ आकर फासीवादी ताकतों का विरोध करते नज़र आए. मुस्लिम संगठन के लोग आंबेडकर की तस्वीर लिए हुए थे. एक पोस्टर पर लिखा था "हम गौरी लंकेश को नहीं भूलेंगे". एक महिला के पोस्टर पर लिखा हुआ था कि "मैं आज़ादी चाहती हूं, इस मनुवाद से, इस ब्राह्मणवाद से"
लोगों ने कहा कि 'भारत की सरकार को हम ये बता देना चाहते हैं कि उसकी इस बर्बरता के ख़िलाफ़ हम चुप रहने वाले नहीं हैं. इस देश ने पहले भी क्रांति की है, और जब भी ज़रुरत होगी हम फिर क्रांति के लिए सड़कों पर उतर आएंगे. ये देश सावित्रीबाई फुले, आंबेडकर, गुरुनानक जैसे सामाजिक न्याय के योद्धाओं का रहा है. हमारा ये आन्दोलन तब-तक लगातार चलता रहेगा जब तक सभी को न्याय न मिल जाएगा, जब तक हर कोई बराबर नहीं माना जाएगा और जब तक ये हिन्दुत्ववादी, फांसीवादी, ब्राह्मणवादी व्यवस्था ध्वस्त नहीं हो जाएगी.
सबरंग इंडिया के लिए अनुज श्रीवास्तव की रिपोर्ट