नई दिल्ली। 2014 लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को हसीन सपने दिखाते हुए वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनी तो हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार दिया जाएगा। अब जबकि उनका कार्यकाल खत्म हो रहा है, तो सरकारी आंकड़े उनके दावों की पोल खोल रहे हैं। इतना ही नहीं, मोदी सरकार इन आंकड़ों को भी दबाने में लगी थी लेकिन ये लीक हो गए। ये आंकड़े बताते हैं कि देश में बेरोजगारी 45 साल के उच्चतम स्तर को छूते हुए 6.1 फीसदी पर पहुंच चुकी है।
यह आकंड़ा नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे से सामने आया है। बिज़नेस स्टैंडर्रड अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि यही वह रिपोर्ट जिसे लेकर विवाद है और जिसे लेकर नेशनल स्टेटिस्किल कमीशन यानी एनएससी के चेयरमैन समेत दो सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया था। इन लोगों का आरोप था कि सरकार ने इस रिपोर्ट को छिपाकर रखा है और सार्वजनिक करने में आनाकानी कर रही है।
बिजनेस स्टैंडर्ड ने कहा है कि इस रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि देश में बेरोजगारी का आंकड़ा 1972-73 के बाद के अधिकतम स्तर पर पहुंच चुका है। इसी वर्ष से एनएसएसओ ने आंकड़ों की तुलना की है। रिपोर्ट के मुताबिक 2011-12 में बेरोजगारी का आंकड़ा 2.2 फीसदी था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एनएसएसओ ने जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे किया था। यह सर्वे इस मायने में बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि नवंबर 2016 में नोटबंदी के ऐलान के बाद किसी सरकारी एजेंसी ने पहली बार बेरोजगारी के आंकड़े जुटाने का काम किया था।
सर्वे में सामने आया कि बेरोजगारी की दर गांवों के मुकाबले शहरों में कहीं अधिक है। शहरों में यह दर 7.8 फीसदी है, वहीं गांवों में बेरोजगारी की दर 5.3 फीसदी है। इतना ही नहीं बड़ी तादाद में लोग श्रम बल यानी लेबर फोर्स से बाहर जा रहे हैं क्योंकि लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन यानी श्रम बल की भागीदारी में पिछले सालों के मुकाबले बेहद कमी आई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बेरोजगारी की दर युवाओं में कहीं अधिक है। सभी उम्र के लोगों में से 2017-18 के बीच युवाओं में बेरोजगारी की दर में जबरदस्त इजाफा हुआ है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2017-18 में गांवों के 15-29 आयुवर्ग के पुरुषों में बेरोजगारी की दर 17.4 फीसदी है, जबकि 2011-12 में यह दर 4.8 फीसदी थी।
बिज़नेस स्टैंडर्ड ने एनएसएसओ की जिस रिपोर्ट को देखने का दावा किया है उसके मुताबिक ‘युवा अब कृषि क्षेत्र में काम से बाहर जा रहे हैं क्योंकि इससे उन्हें वाजिब मेहनताना नहीं मिल पा रहा है। यह युवा अब शहरों का रुख कर रहे हैं।’
बिजनेस स्टैंडर्ड ने इस सिलसिले में कुछ अर्थशास्त्रियों से भी बातचीत की है। केयर रेटिंग एजेंसी के चीफ इकोनॉमिस्ट मदन सबनविस के मुताबिक शहरी इलाकों में पहले निर्माण (कंस्ट्रक्शन) क्षेत्र में रोजगार के मौके थे, लेकिन 2017-18 में इस क्षेत्र में जबरदस्त उथल-पुथल हुई है जिसके कारण इस क्षेत्र में भी रोजगार कम हुआ है। उन्होंने बताया कि पहले इस क्षेत्र में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन 2011-12 में 39.5 फीसदी था जो 2017-18 में घटकर 36.9 फीसदी हो गया है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि शिक्षित लोगों में बेरोजगारी की दर भी तेजी से गिरी है। 2004-05 के मुकाबले 2017-18 में इस मामले में ग्राफ नीचे आया है। 2004-05 में शिक्षित महिलाओं में बेरोजगारी की दर 15.2 फीसदी थी जो 2017-18 में बढ़कर 17.3 फीसदी पहुंच गई है। इसी तरह शहरों के शिक्षित पुरुषों में भी बेरोजगारी की दर 2011-12 के 3.5-4.4 फीसदी से बढ़कर 2017-18 में 10.5 फीसदी पहुंच गई है।
यह आकंड़ा नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे से सामने आया है। बिज़नेस स्टैंडर्रड अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि यही वह रिपोर्ट जिसे लेकर विवाद है और जिसे लेकर नेशनल स्टेटिस्किल कमीशन यानी एनएससी के चेयरमैन समेत दो सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया था। इन लोगों का आरोप था कि सरकार ने इस रिपोर्ट को छिपाकर रखा है और सार्वजनिक करने में आनाकानी कर रही है।
बिजनेस स्टैंडर्ड ने कहा है कि इस रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि देश में बेरोजगारी का आंकड़ा 1972-73 के बाद के अधिकतम स्तर पर पहुंच चुका है। इसी वर्ष से एनएसएसओ ने आंकड़ों की तुलना की है। रिपोर्ट के मुताबिक 2011-12 में बेरोजगारी का आंकड़ा 2.2 फीसदी था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एनएसएसओ ने जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे किया था। यह सर्वे इस मायने में बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि नवंबर 2016 में नोटबंदी के ऐलान के बाद किसी सरकारी एजेंसी ने पहली बार बेरोजगारी के आंकड़े जुटाने का काम किया था।
सर्वे में सामने आया कि बेरोजगारी की दर गांवों के मुकाबले शहरों में कहीं अधिक है। शहरों में यह दर 7.8 फीसदी है, वहीं गांवों में बेरोजगारी की दर 5.3 फीसदी है। इतना ही नहीं बड़ी तादाद में लोग श्रम बल यानी लेबर फोर्स से बाहर जा रहे हैं क्योंकि लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन यानी श्रम बल की भागीदारी में पिछले सालों के मुकाबले बेहद कमी आई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बेरोजगारी की दर युवाओं में कहीं अधिक है। सभी उम्र के लोगों में से 2017-18 के बीच युवाओं में बेरोजगारी की दर में जबरदस्त इजाफा हुआ है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2017-18 में गांवों के 15-29 आयुवर्ग के पुरुषों में बेरोजगारी की दर 17.4 फीसदी है, जबकि 2011-12 में यह दर 4.8 फीसदी थी।
बिज़नेस स्टैंडर्ड ने एनएसएसओ की जिस रिपोर्ट को देखने का दावा किया है उसके मुताबिक ‘युवा अब कृषि क्षेत्र में काम से बाहर जा रहे हैं क्योंकि इससे उन्हें वाजिब मेहनताना नहीं मिल पा रहा है। यह युवा अब शहरों का रुख कर रहे हैं।’
बिजनेस स्टैंडर्ड ने इस सिलसिले में कुछ अर्थशास्त्रियों से भी बातचीत की है। केयर रेटिंग एजेंसी के चीफ इकोनॉमिस्ट मदन सबनविस के मुताबिक शहरी इलाकों में पहले निर्माण (कंस्ट्रक्शन) क्षेत्र में रोजगार के मौके थे, लेकिन 2017-18 में इस क्षेत्र में जबरदस्त उथल-पुथल हुई है जिसके कारण इस क्षेत्र में भी रोजगार कम हुआ है। उन्होंने बताया कि पहले इस क्षेत्र में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन 2011-12 में 39.5 फीसदी था जो 2017-18 में घटकर 36.9 फीसदी हो गया है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि शिक्षित लोगों में बेरोजगारी की दर भी तेजी से गिरी है। 2004-05 के मुकाबले 2017-18 में इस मामले में ग्राफ नीचे आया है। 2004-05 में शिक्षित महिलाओं में बेरोजगारी की दर 15.2 फीसदी थी जो 2017-18 में बढ़कर 17.3 फीसदी पहुंच गई है। इसी तरह शहरों के शिक्षित पुरुषों में भी बेरोजगारी की दर 2011-12 के 3.5-4.4 फीसदी से बढ़कर 2017-18 में 10.5 फीसदी पहुंच गई है।