केंद्र की मोदी सरकार द्वारा उठाए गए नोटबंदी के कदम को बेहद कठोर बताकर उसकी आलोचना करने वाले पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने रविवार को अर्थव्यवस्था से जुड़े कई मुद्दों पर बेबाक राय रखी।

अपनी किताब 'ऑफ काउंसिलः द चैलेंजेस ऑफ द मोदी-जेटली इकनॉमी' के विमोचन के लिए भारत दौरे पर आए सुब्रमण्यन ने नोटबंदी से लेकर केंद्र सरकार और RBI के बीच के टकराव पर अपनी राय के अलावा, नए मुख्य आर्थिक सलाहकार को उन्होंने कुछ नसीहतें भी दी हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा है कि राजकोषीय घाटा कम करने के लिए आरबीआई के रिजर्व का इस्तेमाल केंद्रीय बैंक के खजाने की लूट होगी।
नोटबंदी के लिए काफी 'कठोर' और 'अर्थव्यवस्था को झटका' देने वाला कदम जैसे शब्दों के इस्तेमाल पर एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि 86 फीसदी नकदी को चलन से बाहर कर देने को आप क्या कहेंगे? कठोर शब्द गंभीरता के लिए एक संकेतमात्र है, जिसका मतलब साहसिक और गंभीर है। अगर आप सिस्टम से 86 फीसदी नकदी निकाल लेंगे, तो क्या कोई आपको मृदुल या नरम कहेगा? उन्होंने कहा, 'सबसे अहम बात यह है कि जो मैं कहना चाहता था, लोग उसका उल्टा कह रहे हैं और यह एक पहेली बन गई है। आप इसे चाहे जो कहें, लेकिन इसका जीडीपी पर असर तो पड़ा है।'
नोटबंदी के बारे में अपनी व्यक्तिगत राय देते हुए उन्होंने कहा, 'मैं आर्थिक नीति और कदम उठाने की राजनीति के रूप में नोटबंदी के बारे में इससे भी अधिक महत्वपूर्ण सवाल पूछना चाहता हूं। हमें नोटबंदी से क्या सीख लेनी चाहिए? मेरे लिए यह एक विश्वव्यापी घटना का एक हिस्सा है। लोग अपने हितों के खिलाफ जाकर वोट क्यों करते हैं? गोरे अमेरिकी रिपब्लिकंस और ट्रंप को वोट क्यों करते हैं? जबकि उन्हें पता होता है कि इससे उनका नुकसान होने वाला है। नोटबंदी के बावजूद वे यूपी में चुनाव क्यों जीत जाते हैं? यह एक राजनीतिक पहेली है। इसकी आर्थिक पहेली यह है कि नकदी काम कैसे करता है, यह हम नहीं समझते हैं।'
सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के बीच जारी टकराव के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि आरबीआई ने काफी बढ़िया काम किया है, लेकिन पिछले सात-आठ सालों में वित्तीय प्रणाली की सतर्कता चिंता का सबब बन गई है। इसके परिणामस्वरूप आईएलऐंडएफएस जैसा मुद्दा सामने आया है। उन्होंने कहा, 'अचानक से 90 हजार करोड़ रुपये छू मंतर हो गया और किसी को पता भी नहीं चला। हमें बैंकों के सुधार पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है और यह सुधार उसका निजीकरण है। मेरे हिसाब से एनबीएफसी के एसेट क्वालिटी का रिव्यू करना चाहिए।'

अपनी किताब 'ऑफ काउंसिलः द चैलेंजेस ऑफ द मोदी-जेटली इकनॉमी' के विमोचन के लिए भारत दौरे पर आए सुब्रमण्यन ने नोटबंदी से लेकर केंद्र सरकार और RBI के बीच के टकराव पर अपनी राय के अलावा, नए मुख्य आर्थिक सलाहकार को उन्होंने कुछ नसीहतें भी दी हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा है कि राजकोषीय घाटा कम करने के लिए आरबीआई के रिजर्व का इस्तेमाल केंद्रीय बैंक के खजाने की लूट होगी।
नोटबंदी के लिए काफी 'कठोर' और 'अर्थव्यवस्था को झटका' देने वाला कदम जैसे शब्दों के इस्तेमाल पर एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि 86 फीसदी नकदी को चलन से बाहर कर देने को आप क्या कहेंगे? कठोर शब्द गंभीरता के लिए एक संकेतमात्र है, जिसका मतलब साहसिक और गंभीर है। अगर आप सिस्टम से 86 फीसदी नकदी निकाल लेंगे, तो क्या कोई आपको मृदुल या नरम कहेगा? उन्होंने कहा, 'सबसे अहम बात यह है कि जो मैं कहना चाहता था, लोग उसका उल्टा कह रहे हैं और यह एक पहेली बन गई है। आप इसे चाहे जो कहें, लेकिन इसका जीडीपी पर असर तो पड़ा है।'
नोटबंदी के बारे में अपनी व्यक्तिगत राय देते हुए उन्होंने कहा, 'मैं आर्थिक नीति और कदम उठाने की राजनीति के रूप में नोटबंदी के बारे में इससे भी अधिक महत्वपूर्ण सवाल पूछना चाहता हूं। हमें नोटबंदी से क्या सीख लेनी चाहिए? मेरे लिए यह एक विश्वव्यापी घटना का एक हिस्सा है। लोग अपने हितों के खिलाफ जाकर वोट क्यों करते हैं? गोरे अमेरिकी रिपब्लिकंस और ट्रंप को वोट क्यों करते हैं? जबकि उन्हें पता होता है कि इससे उनका नुकसान होने वाला है। नोटबंदी के बावजूद वे यूपी में चुनाव क्यों जीत जाते हैं? यह एक राजनीतिक पहेली है। इसकी आर्थिक पहेली यह है कि नकदी काम कैसे करता है, यह हम नहीं समझते हैं।'
सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के बीच जारी टकराव के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि आरबीआई ने काफी बढ़िया काम किया है, लेकिन पिछले सात-आठ सालों में वित्तीय प्रणाली की सतर्कता चिंता का सबब बन गई है। इसके परिणामस्वरूप आईएलऐंडएफएस जैसा मुद्दा सामने आया है। उन्होंने कहा, 'अचानक से 90 हजार करोड़ रुपये छू मंतर हो गया और किसी को पता भी नहीं चला। हमें बैंकों के सुधार पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है और यह सुधार उसका निजीकरण है। मेरे हिसाब से एनबीएफसी के एसेट क्वालिटी का रिव्यू करना चाहिए।'