चंबल इलाके में भाजपा की बढ़ती मुश्किलें

Written by Mahendra Narayan Singh Yadav | Published on: September 18, 2018
एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ आंदोलन की सबसे ज्यादा चपेट में आए ग्वालियर-चंबल इलाके में भाजपा गहरे संकट में फंस गई है।

सवर्ण नेता और जनता जिस तरह से भाजपा नेताओं का विरोध कर रही है
, उससे लगता है कि भाजपा इस बार कम से कम ग्वालियर-चंबल में सवर्ण मतों के बड़े हिस्से से वंचित होने जा रही है।

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(Courtesy: Uniquetimes.in)

चंबल संभाग की 13 विधानसभा सीटें अगर भाजपा के हाथ से जाती हैं तो उसके फिर से सत्ता में आने की संभावना क्षीण हो सकती है। सपाक्स, करणी सेना और सर्व ब्राह्मण समाज अगर अलग से उम्मीदवार उतारते हैं और वो कुछ हजार वोट भी खींचने में सफल हो जाते हैं तो ये भाजपा का सीधा नुकसान होगा।

ये कुछ हजार वोटों का अंतर इसलिए भी अहम है क्योंकि इन सीटों पर वैसे भी त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय मुकाबला होता है और हार-जीत का अंतर कम ही रहता है। इन सीटों पर बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का भी असर रहता है, इसलिए भाजपा को यहां पर कड़ा मुकाबला झेलना पड़ता है।

नईदुनिया की रिपोर्ट के अनुसार, भिंड-मुरैना और श्योपुर जिले सवर्ण आंदोलन के सबसे ज्यादा प्रभाव में हैं, और इन इलाकों में स्थानीय नेता तो दूर की बात केंद्रीय मंत्री और प्रदेश के मंत्री तक दौरा नहीं कर पा रहे हैं। अगर कोई नेता किसी दौरे पर निकलता भी है तो उसे विरोध के कारण वापस लौटना पड़ता है। उन्हें काले झंडे और नारेबाजी का सामना करना पड़ रहा है। 

चंबल अंचल में दुकानों के आगे 'यह सामान्य वर्ग की दुकान है वोट मांगकर शर्मिंदा न करें, वोट फॉर नोटा" लिखे बोर्ड दिख रहे हैं। 

चंबल संभाग में मुरैना में 6, भिंड में 5 और श्योपुर में 2 विधानसभा सीटें हैं। 2013 इनमें से 8 सीटों पर भाजपा, 3 पर कांग्रेस और 2 सीटों पर बसपा के विधायक चुने गए थे। सबसे बड़े जिले मुरैना में 4 सीटों पर भाजपा और 2 सीटों पर बसपा जीती थी, जबकि कांग्रेस का खाता नहीं खुल सका था। भिंड में 3 पर भाजपा और 2 सीटों पर कांग्रेस जीती थी। श्योपुर में कांग्रेस और भाजपा एक-एक सीट पर जीती थीं।
 

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