जम्मू में एक जिला है कठुआ, जहां हाल ही में एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है. कठुआ के एक रसाना नाम के गांव में 17 जनवरी को 8 साल की नाबालिग़ लड़की की लाश पायी गयी. बाद में पता चला कि उस बच्ची बलात्कार किया गया था और बाद में उसकी हत्या कर दी गयी. आसिफ़ा नाम है उस बच्ची का. जिसके साथ बड़ी बर्बरता के साथ गैंगरैप किया गया.
पूरी घटना: 10 जनवरी को आसिफ़ा घोड़ों को चराने घर से निकली जिसके बाद घर लौटकर ही नहीं आई. इस पर उसके परिवार वालों ने पुलिसवालों से शिकायत की, जिसे पुलिस द्वारा पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया गया. मगर जब 17 जनवरी को आसिफ़ा की लाश मिली, तब उसकी मेडिकल जांच और छान बीन हुई जिससे मालूम चला कि आसिफ़ा को कई बार बेहोश करके उसका बलात्कार किया गया था. बलात्कार मंदिर में किया गया. फिर उसे पत्थर से मारकर उसकी हत्या कर दी गयी.
मामला सबके सामने आ जाने के बाद इसके खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन हुआ. 20 जनवरी को एचएसओ को निलंबित कर दिया गया. इसके बाद मुफ़्ती सरकार ने मार्च 23 ने पूरे मामले को क्राइम ब्रांच के हाथों में सौंप दिया और फिर मामले की विस्तार से जांच की गयी.
क्राइम ब्रांच ने अपनी जांच के दौरान सबसे पहले मामले के जांच अधिकारी आनंद दत्ता को गिरफ्तार किया, जांच में मालूम हुआ कि इस क्रूरता में जम्मू कश्मीर के स्पेशल पुलिस अधिकारी दीपक खजुरिया भी शामिल थे, तो उन्हें भी क्राइम ब्रांच ने 10 फ़रवरी को गिरफ्तार कर लिया. कुल 7 आरोपी हैं, जिन्हें अभी गिरफ्तार किया गया है, जिसमें से एक नाबालिग़ है. वहीं मुख्य आरोपी पहले ही गुनाह कुबूल करके आत्मसमर्पण कर चुके हैं.
मामले में सिर्फ दीपक खजुरिया और आनंद दत्ता ही नहीं, अन्य पुलिस वाले शामिल थे. पुलिस अधिकारी सुरेन्द्र कुमार, हेड कांस्टेबल तिलक राज, पूर्व राजस्व अधिकारी का बेटा और उसका चचेरा भाई (जो नाबालिग़ है) इसमें शामिल पाए गए.
यह मामला सिर्फ किसी की शारीरिक और मानसिक कुंठा के चलते नहीं हुआ है. यह मामला एक विशेष सम्प्रदाय के प्रति नफरत होने के चलते हुआ है और इस साम्प्रदायिक नफरत का शिकार बनी एक 8 साल की मासूम.
दरअसल गूजर बकरवाल समुदाय एक घुमंतु मुस्लिम समुदाय है जिन्हें हिन्दू बहुल समुदाय गांव से भगाना चाहता है. चार्जशीट में यह सामने आया है कि इस पूरे मामले का उद्देश्य ही बकरवाल समुदाय को गाँव से भगाना था. उन्हें भयभीत करने के लिए उस बच्ची का इस्तेमाल किया गया.
चार्जशीट के अनुसार, इस पूरे मामले के साज़िशकर्ता रिटायर हो चुके राजस्व अधिकारी सांजी राम है, जिसने कई बार आसिफ़ा को जंगल में देखा था और घात लगाय बैठा था. जिसके उपरान्त उसने समुदाय को दहशत में लाने ले लिए उसी लड़की के अपहरण, बलात्कार और हत्या की पूरी योजना बनाई. गैंगरेप करने से पहले उसे नशे की गोलियां दी गईं. उसे बेहोश किया गया, जिसके बाद उसे मंदिर में ले जाकर उसके साथ रेप किया गया. रेप के बाद, नाबालिग़ आरोपी ने अपने मेरठ में रहने वाले चचेरे भाई को फ़ोन किया और बताया कि उन्हें एक लड़की मिली है.
3 बार गैंगरेप करने के बाद उन्होंने 15 फ़रवरी को बच्ची का गला घोंटकर फिर उसके सिर पर पत्थर मारकर उसकी हत्या कर दी.
जब जंगल में उसका शव पाया गया तो खूब हंगामा और प्रदर्शन हुआ जिसके कारण पुलिस को सांजी राम के भतीजे को गिरफ्तार करना पड़ा, वर्ना ये मुद्दा किसी के सामने आ ही नहीं पाता और उसके आरोपी फिर किसी आसिफ़ा को अपना शिकार बनाते. आरोपी तब तक संरक्षण में थे जब तक मामला क्राइम ब्रांच को नहीं सौंपा गया था.
मामला यहीं ख़त्म नहीं हुआ. इस हैवानियत को अंजाम देने के बाद उसे हर तरीके से उचित ठहराये जाने की कोशिश की जा रही है. और तो और अब ऐसे क्रूर हैवानों को बचाने के लिए वहां के वकीलों ने 9 अप्रैल को क्राइम ब्रांच द्वारा दाखिल की गयी चार्जशीट का विरोध किया, जिसके कारण चार्जशीट 10 अप्रैल को दाखिल हो पायी. वह भी तब, जब जम्मू कश्मीर के क़ानून मंत्री ने मामले में दखल दिया. छह घंटे बाद उन वकीलों के खिलाफ केस दर्ज किया गया. वकीलों ने 11 और 12 अप्रैल को राज्य बंद रखने की चुनौती दी और वे कठुआ जिले में लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. वहाँ की बीजेपी की राज्य इकाई आरोपियों का बचाव कर रही है, क्योंकि सभी आरोपी हिन्दू हैं.
जम्मू के अलावा उत्तर प्रदेश के उन्नाव में, एक बेटी अपने परिवार सहित मुख्यमंत्री के घर न्याय की गुहार लगाने गई तो उन्हें पुलिस ने जबरन भगा दिया. इन्साफ मिलने के बजाय उसके पिता को इतना पीटा गया की उनकी मृत्यु हो गई.
जम्मू कश्मीर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, कहीं भी बच्चियां सुरक्षित नहीं है. अब तो लगता है सरकार का नारा “बेटी बचाओ” नारा नहीं, बल्कि चेतावनी थी.
पूरी घटना: 10 जनवरी को आसिफ़ा घोड़ों को चराने घर से निकली जिसके बाद घर लौटकर ही नहीं आई. इस पर उसके परिवार वालों ने पुलिसवालों से शिकायत की, जिसे पुलिस द्वारा पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया गया. मगर जब 17 जनवरी को आसिफ़ा की लाश मिली, तब उसकी मेडिकल जांच और छान बीन हुई जिससे मालूम चला कि आसिफ़ा को कई बार बेहोश करके उसका बलात्कार किया गया था. बलात्कार मंदिर में किया गया. फिर उसे पत्थर से मारकर उसकी हत्या कर दी गयी.
मामला सबके सामने आ जाने के बाद इसके खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन हुआ. 20 जनवरी को एचएसओ को निलंबित कर दिया गया. इसके बाद मुफ़्ती सरकार ने मार्च 23 ने पूरे मामले को क्राइम ब्रांच के हाथों में सौंप दिया और फिर मामले की विस्तार से जांच की गयी.
क्राइम ब्रांच ने अपनी जांच के दौरान सबसे पहले मामले के जांच अधिकारी आनंद दत्ता को गिरफ्तार किया, जांच में मालूम हुआ कि इस क्रूरता में जम्मू कश्मीर के स्पेशल पुलिस अधिकारी दीपक खजुरिया भी शामिल थे, तो उन्हें भी क्राइम ब्रांच ने 10 फ़रवरी को गिरफ्तार कर लिया. कुल 7 आरोपी हैं, जिन्हें अभी गिरफ्तार किया गया है, जिसमें से एक नाबालिग़ है. वहीं मुख्य आरोपी पहले ही गुनाह कुबूल करके आत्मसमर्पण कर चुके हैं.
मामले में सिर्फ दीपक खजुरिया और आनंद दत्ता ही नहीं, अन्य पुलिस वाले शामिल थे. पुलिस अधिकारी सुरेन्द्र कुमार, हेड कांस्टेबल तिलक राज, पूर्व राजस्व अधिकारी का बेटा और उसका चचेरा भाई (जो नाबालिग़ है) इसमें शामिल पाए गए.
यह मामला सिर्फ किसी की शारीरिक और मानसिक कुंठा के चलते नहीं हुआ है. यह मामला एक विशेष सम्प्रदाय के प्रति नफरत होने के चलते हुआ है और इस साम्प्रदायिक नफरत का शिकार बनी एक 8 साल की मासूम.
दरअसल गूजर बकरवाल समुदाय एक घुमंतु मुस्लिम समुदाय है जिन्हें हिन्दू बहुल समुदाय गांव से भगाना चाहता है. चार्जशीट में यह सामने आया है कि इस पूरे मामले का उद्देश्य ही बकरवाल समुदाय को गाँव से भगाना था. उन्हें भयभीत करने के लिए उस बच्ची का इस्तेमाल किया गया.
चार्जशीट के अनुसार, इस पूरे मामले के साज़िशकर्ता रिटायर हो चुके राजस्व अधिकारी सांजी राम है, जिसने कई बार आसिफ़ा को जंगल में देखा था और घात लगाय बैठा था. जिसके उपरान्त उसने समुदाय को दहशत में लाने ले लिए उसी लड़की के अपहरण, बलात्कार और हत्या की पूरी योजना बनाई. गैंगरेप करने से पहले उसे नशे की गोलियां दी गईं. उसे बेहोश किया गया, जिसके बाद उसे मंदिर में ले जाकर उसके साथ रेप किया गया. रेप के बाद, नाबालिग़ आरोपी ने अपने मेरठ में रहने वाले चचेरे भाई को फ़ोन किया और बताया कि उन्हें एक लड़की मिली है.
3 बार गैंगरेप करने के बाद उन्होंने 15 फ़रवरी को बच्ची का गला घोंटकर फिर उसके सिर पर पत्थर मारकर उसकी हत्या कर दी.
जब जंगल में उसका शव पाया गया तो खूब हंगामा और प्रदर्शन हुआ जिसके कारण पुलिस को सांजी राम के भतीजे को गिरफ्तार करना पड़ा, वर्ना ये मुद्दा किसी के सामने आ ही नहीं पाता और उसके आरोपी फिर किसी आसिफ़ा को अपना शिकार बनाते. आरोपी तब तक संरक्षण में थे जब तक मामला क्राइम ब्रांच को नहीं सौंपा गया था.
मामला यहीं ख़त्म नहीं हुआ. इस हैवानियत को अंजाम देने के बाद उसे हर तरीके से उचित ठहराये जाने की कोशिश की जा रही है. और तो और अब ऐसे क्रूर हैवानों को बचाने के लिए वहां के वकीलों ने 9 अप्रैल को क्राइम ब्रांच द्वारा दाखिल की गयी चार्जशीट का विरोध किया, जिसके कारण चार्जशीट 10 अप्रैल को दाखिल हो पायी. वह भी तब, जब जम्मू कश्मीर के क़ानून मंत्री ने मामले में दखल दिया. छह घंटे बाद उन वकीलों के खिलाफ केस दर्ज किया गया. वकीलों ने 11 और 12 अप्रैल को राज्य बंद रखने की चुनौती दी और वे कठुआ जिले में लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. वहाँ की बीजेपी की राज्य इकाई आरोपियों का बचाव कर रही है, क्योंकि सभी आरोपी हिन्दू हैं.
जम्मू के अलावा उत्तर प्रदेश के उन्नाव में, एक बेटी अपने परिवार सहित मुख्यमंत्री के घर न्याय की गुहार लगाने गई तो उन्हें पुलिस ने जबरन भगा दिया. इन्साफ मिलने के बजाय उसके पिता को इतना पीटा गया की उनकी मृत्यु हो गई.
जम्मू कश्मीर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, कहीं भी बच्चियां सुरक्षित नहीं है. अब तो लगता है सरकार का नारा “बेटी बचाओ” नारा नहीं, बल्कि चेतावनी थी.