नई दिल्ली। अमरीका की एक संस्था की रिपोर्ट में सामने आया है कि वर्ष 2014 के बाद भारत में घृणा अपराधों, सामाजिक बहिष्कार और जबरन धर्मांतरण की घटनाएं असामान्य ढंग से बढ़ी हैं, जिससे धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों और दलितों को उत्पीडऩ और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। संस्था के अनुसार अमेरिका ने कारोबार और कूटनीतिक मामलों पर भारतीय अधिकारियों के साथ बैठकों में इन मामलों को उठाया भी है।
संस्था ने अपनी रिपोर्ट में यह दावा करते हुए अमरीका से कहा कि वह भारत के साथ व्यापार और कूटनीतिक बातचीत के समय मानवाधिकारों को प्रमुखता दें और अल्पसंख्यकों के प्रति इस व्यवहार को ध्यान में रखे। 'भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के सामने संवैधानिक और कानूनी चुनौतियां' शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है। 'खासतौर पर 2014 के बाद से घृणा अपराधों, सामाजिक बहिष्कारों, हमलों और जबरन धर्मांतरण में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है।'
अमेरिकी संस्था के चेयरमैन थॉमस जे रीज के अनुसार भारत धार्मिक रूप से विविधताओं वाला लोकतांत्रिक देश है। यहां पर संविधान सभी को बराबरी का अधिकार देता है। लेकिन वास्तविकता इससे बहुत अलग है। कई प्रदेशों में रुढि़वादी परंपराएं संवैधानिक व्यवस्थाओं पर हावी हैं।
इंग्लैंड के बर्मिंघम में इंस्टीट्यूट फार लीडरशिप एंड कम्युनिटी डिवैलपमेंट के निदेशक इक्तिदत करामत चीमा इस रिपोर्ट के लेखक हैं। दुनिया में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की निगरानी करने वाले अंतर्राष्ट्रीय धर्मिक स्वतंत्रता के लिए अमरीकी आयोग की जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है, भारत में कांग्रेस पार्टी और भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारों में अपरिभाषित कानूनी, अप्रभावी आपराधिक न्याय तंत्र और विधिशास्त्र में संगति के अभाव के कारण धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों और दलितों ने भेदभाव और उत्पीडऩ का सामना किया। वर्ष 2014 के बाद इस तरह की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हुई। ऐसा आपराधिक न्याय व्यवस्था में व्याप्त खामी के चलते हुआ।
Courtesy: National Dastak
संस्था ने अपनी रिपोर्ट में यह दावा करते हुए अमरीका से कहा कि वह भारत के साथ व्यापार और कूटनीतिक बातचीत के समय मानवाधिकारों को प्रमुखता दें और अल्पसंख्यकों के प्रति इस व्यवहार को ध्यान में रखे। 'भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के सामने संवैधानिक और कानूनी चुनौतियां' शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है। 'खासतौर पर 2014 के बाद से घृणा अपराधों, सामाजिक बहिष्कारों, हमलों और जबरन धर्मांतरण में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है।'
अमेरिकी संस्था के चेयरमैन थॉमस जे रीज के अनुसार भारत धार्मिक रूप से विविधताओं वाला लोकतांत्रिक देश है। यहां पर संविधान सभी को बराबरी का अधिकार देता है। लेकिन वास्तविकता इससे बहुत अलग है। कई प्रदेशों में रुढि़वादी परंपराएं संवैधानिक व्यवस्थाओं पर हावी हैं।
इंग्लैंड के बर्मिंघम में इंस्टीट्यूट फार लीडरशिप एंड कम्युनिटी डिवैलपमेंट के निदेशक इक्तिदत करामत चीमा इस रिपोर्ट के लेखक हैं। दुनिया में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की निगरानी करने वाले अंतर्राष्ट्रीय धर्मिक स्वतंत्रता के लिए अमरीकी आयोग की जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है, भारत में कांग्रेस पार्टी और भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारों में अपरिभाषित कानूनी, अप्रभावी आपराधिक न्याय तंत्र और विधिशास्त्र में संगति के अभाव के कारण धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों और दलितों ने भेदभाव और उत्पीडऩ का सामना किया। वर्ष 2014 के बाद इस तरह की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हुई। ऐसा आपराधिक न्याय व्यवस्था में व्याप्त खामी के चलते हुआ।
Courtesy: National Dastak