"राजनीति का क ख ग़ जानने वाले जानते हैं कि यूपी बीजेपी में हार की समीक्षा नहीं बल्कि एक तरह से सत्ता संघर्ष चल रहा है। जी हां, उत्तर प्रदेश में बीजेपी नेताओं- योगी बनाम केशव- के मुद्दे ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है जिसकी शुरुआत साल 2017 में योगी आदित्यनाथ के पहली बार मुख्यमंत्री बनने के पहले शुरू हुई थी। खास बात यह है कि सहयोगी दलों के साथ साथ पार्टी के अंदर से भी आवाज मुखर हो रही है।"
लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में 62 सीटों से खिसक- कर सीधे 33 सीटों पर पहुंचने के बाद पार्टी की हार की समीक्षा हो रही है लेकिन इन समीक्षा बैठकों के दौरान जो कुछ भी हो रहा है, उसे देखते हुए बीजेपी के भविष्य को लेकर आशंकाएं सामने आने लगी हैं। बीजेपी को लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा झटका उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में लगा। यूपी में 62 सीटों से घटकर वो 33 पर आ गई तो हार की जिम्मेदारी किस पर डाली जाए, इसे लेकर सवाल उठने लगे। दबे स्वर में सीधे तौर पर केंद्रीय नेतृत्व को भी घेरे में लेने की कोशिश हो रही है क्योंकि चुनाव में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वाराणसी सीट से महज डेढ़ लाख वोटों के मार्जिन से जीते हैं और बनारस से लगी तमाम सीटों पर बीजेपी हार गई।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, तमाम लोग इसके पीछे यूपी सरकार की नीतियों को दोष दे रहे हैं, खासकर कथित तौर पर बढ़ते भ्रष्टाचार और राज्य में नौकरशाही के हावी होने और यहां तक कि बीजेपी के कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों के उत्पीड़न की वजह से। लखनऊ में बीजेपी कार्यसमिति की बैठक में ये आरोप-प्रत्यारोप सतह पर आ गए। यहां तक कि सहयोगी दलों के नेताओं ने भी सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। अपना दल अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने नौकरियों में ओबीसी आरक्षण को नजरअंदाज करने का सवाल उठाया। उनका कहना है कि सरकारी भर्ती में आरक्षित सीटें भी अंततः सामान्य वर्ग के पास पहुंच जाती हैं। ओम प्रकाश राजभर ने पिछले दिनों यह स्वीकार किया कि जातियों के नेता अब अपनी जाति का वोट नहीं दिलवा पा रहे। उन्होंने भी योगी पर हमला बोलते हुए कहा कि प्रशासन का रुख ठीक नहीं रहा। राजभर जिनके पुत्र भी चुनावी अखाड़े में खेत रहे, क्या कहना चाहते हैं उसे कोई राजनीति का अनाड़ी भी समझ सकता है तो राज्य सरकार में मंत्री और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने ‘बुलडोजर नीति' को हार का प्रमुख कारण बताया। यही नहीं, कार्यसमिति की बैठक के दौरान डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का यह बयान खूब छाया रहा कि ‘संगठन सरकार से बड़ा होता है।' लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह कहकर उनके इस बयान की हवा निकाल दी कि ‘सरकार है तभी सब का सम्मान है।'
दरअसल उप-मुख्यमंत्री केशव मौर्य ने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को मुद्दा बनाते हुए योगी को घेरा और तालियां बटोरीं। उन्होंने कहा कि संगठन सरकार से बड़ा है और हमेशा बड़ा रहेगा। उन्होंने कहा कि चाहे मंत्री हो या विधायक सांसद हों सबको कार्यकर्ताओं का सम्मान करना होगा। केशव मौर्य ने योगी पर सीधा हमला बोलते हुए कार्यकर्ताओं से तार जोड़ा, “आप का दर्द मेरा भी दर्द है। मेरा घर आपके लिए हमेशा खुला है।” यह स्पष्ट है कि किस दर्द की बात केशव मौर्य कर रहे हैं। वह दर्द यही है की योगी उनकी सुन नहीं रहे हैं और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर रहे हैं। इसमें आप योगी के खिलाफ बगावत की खुली आहट सुन सकते हैं जिसके लिए वे कार्यकर्ताओं की आड़ ले रहे हैं और उनकी मदद से तथा दिल्ली के समर्थन से वे अपने और केंद्रीय नेतृत्व के मिशन को अंजाम तक पहुंचाना चाहते हैं और योगी को रिप्लेस कर स्वयं सर्वेसर्वा बनना चाहते हैं। उधर, दूसरे पिछड़े नेता संजय निषाद ने जिनके सुपुत्र भी चुनाव हार गए गरीबों के खिलाफ योगी के बुलडोजर राज को घेरा। निषाद ने कहा गरीबों पर बुलडोजर चला कर हम उन्हें उजाड़ेंगे तो वे भी हमें उजाड़ देंगे।
केंद्र की शह पर सत्ता संघर्ष है रार के पीछे!
राजनीति का क-ख ग जानने वालों को भी यह अब स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के अंदर चुनाव समीक्षा नहीं, तीखा सत्ता संघर्ष चल रहा है जो दिल्ली की शह पर जोर पकड़ता जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अभी चुनाव समीक्षा की जो बैठक हुई उसमे योगी के खिलाफ एक गोलबंदी देखी जा सकती है। योगी ने अति आत्मविश्वास और वोटों की शिफ्टिंग को हार का कारण बताया। जाहिर है उनका निशाना भी एक तो 400 पार का नारा देने वाले मोदी-शाह पर केंद्रित था। दूसरे मौर्य जैसे पिछड़े नेताओं पर था जिनके समुदाय के वोटों की शिफ्टिंग हुई है।
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लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में 62 सीटों से खिसक- कर सीधे 33 सीटों पर पहुंचने के बाद पार्टी की हार की समीक्षा हो रही है लेकिन इन समीक्षा बैठकों के दौरान जो कुछ भी हो रहा है, उसे देखते हुए बीजेपी के भविष्य को लेकर आशंकाएं सामने आने लगी हैं। बीजेपी को लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा झटका उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में लगा। यूपी में 62 सीटों से घटकर वो 33 पर आ गई तो हार की जिम्मेदारी किस पर डाली जाए, इसे लेकर सवाल उठने लगे। दबे स्वर में सीधे तौर पर केंद्रीय नेतृत्व को भी घेरे में लेने की कोशिश हो रही है क्योंकि चुनाव में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वाराणसी सीट से महज डेढ़ लाख वोटों के मार्जिन से जीते हैं और बनारस से लगी तमाम सीटों पर बीजेपी हार गई।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, तमाम लोग इसके पीछे यूपी सरकार की नीतियों को दोष दे रहे हैं, खासकर कथित तौर पर बढ़ते भ्रष्टाचार और राज्य में नौकरशाही के हावी होने और यहां तक कि बीजेपी के कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों के उत्पीड़न की वजह से। लखनऊ में बीजेपी कार्यसमिति की बैठक में ये आरोप-प्रत्यारोप सतह पर आ गए। यहां तक कि सहयोगी दलों के नेताओं ने भी सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। अपना दल अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने नौकरियों में ओबीसी आरक्षण को नजरअंदाज करने का सवाल उठाया। उनका कहना है कि सरकारी भर्ती में आरक्षित सीटें भी अंततः सामान्य वर्ग के पास पहुंच जाती हैं। ओम प्रकाश राजभर ने पिछले दिनों यह स्वीकार किया कि जातियों के नेता अब अपनी जाति का वोट नहीं दिलवा पा रहे। उन्होंने भी योगी पर हमला बोलते हुए कहा कि प्रशासन का रुख ठीक नहीं रहा। राजभर जिनके पुत्र भी चुनावी अखाड़े में खेत रहे, क्या कहना चाहते हैं उसे कोई राजनीति का अनाड़ी भी समझ सकता है तो राज्य सरकार में मंत्री और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने ‘बुलडोजर नीति' को हार का प्रमुख कारण बताया। यही नहीं, कार्यसमिति की बैठक के दौरान डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का यह बयान खूब छाया रहा कि ‘संगठन सरकार से बड़ा होता है।' लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह कहकर उनके इस बयान की हवा निकाल दी कि ‘सरकार है तभी सब का सम्मान है।'
दरअसल उप-मुख्यमंत्री केशव मौर्य ने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को मुद्दा बनाते हुए योगी को घेरा और तालियां बटोरीं। उन्होंने कहा कि संगठन सरकार से बड़ा है और हमेशा बड़ा रहेगा। उन्होंने कहा कि चाहे मंत्री हो या विधायक सांसद हों सबको कार्यकर्ताओं का सम्मान करना होगा। केशव मौर्य ने योगी पर सीधा हमला बोलते हुए कार्यकर्ताओं से तार जोड़ा, “आप का दर्द मेरा भी दर्द है। मेरा घर आपके लिए हमेशा खुला है।” यह स्पष्ट है कि किस दर्द की बात केशव मौर्य कर रहे हैं। वह दर्द यही है की योगी उनकी सुन नहीं रहे हैं और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर रहे हैं। इसमें आप योगी के खिलाफ बगावत की खुली आहट सुन सकते हैं जिसके लिए वे कार्यकर्ताओं की आड़ ले रहे हैं और उनकी मदद से तथा दिल्ली के समर्थन से वे अपने और केंद्रीय नेतृत्व के मिशन को अंजाम तक पहुंचाना चाहते हैं और योगी को रिप्लेस कर स्वयं सर्वेसर्वा बनना चाहते हैं। उधर, दूसरे पिछड़े नेता संजय निषाद ने जिनके सुपुत्र भी चुनाव हार गए गरीबों के खिलाफ योगी के बुलडोजर राज को घेरा। निषाद ने कहा गरीबों पर बुलडोजर चला कर हम उन्हें उजाड़ेंगे तो वे भी हमें उजाड़ देंगे।
केंद्र की शह पर सत्ता संघर्ष है रार के पीछे!
राजनीति का क-ख ग जानने वालों को भी यह अब स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के अंदर चुनाव समीक्षा नहीं, तीखा सत्ता संघर्ष चल रहा है जो दिल्ली की शह पर जोर पकड़ता जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अभी चुनाव समीक्षा की जो बैठक हुई उसमे योगी के खिलाफ एक गोलबंदी देखी जा सकती है। योगी ने अति आत्मविश्वास और वोटों की शिफ्टिंग को हार का कारण बताया। जाहिर है उनका निशाना भी एक तो 400 पार का नारा देने वाले मोदी-शाह पर केंद्रित था। दूसरे मौर्य जैसे पिछड़े नेताओं पर था जिनके समुदाय के वोटों की शिफ्टिंग हुई है।
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