वीआईटी के सीहोर कैंपस में 25 नवंबर को हुई हिंसा पर तीन सदस्यीय जांच समिति द्वारा तैयार रिपोर्ट में बताया गया है कि घटनाओं की जड़ में प्रबंधन द्वारा पीलिया फैलने की बात को छिपाने की कोशिश, खराब भोजन और पानी से जुड़ी शिकायतों की अनदेखी, तथा छात्रों के साथ किया गया दुर्व्यवहार शामिल है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कैंपस में तानाशाही रवैया हावी है।

फोटो साभार : पीटीआई
मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में स्थित वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (वीआईटी) के भोपाल कैंपस में 25 नवंबर को हुई हिंसा को लेकर अधिकारियों के अनुसार, घटनाक्रम की वजह प्रबंधन द्वारा पीलिया (जॉन्डिस) के फैलाव को छिपाने की कोशिश, खराब भोजन और पानी से संबंधित शिकायतों की अनदेखी, तथा छात्रों के साथ हुआ दुर्व्यवहार बताया जा रहा है।
न्यूज़ एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, तीन सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट के निष्कर्षों को आधार बनाकर मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा विभाग ने संस्थान के चांसलर को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और सात दिनों के भीतर जवाब मांगा है।
विभाग के एक अधिकारी ने मंगलवार 2 दिसंबर को बताया कि यदि संस्थान निर्धारित समय में अपना जवाब प्रस्तुत नहीं करता, तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। वीआईटी भोपाल कैंपस के रजिस्ट्रार ने नोटिस प्राप्त होने की पुष्टि करते हुए कहा कि वे जल्द ही सरकार को अपना जवाब भेज देंगे।
ज्ञात हो कि 25 नवंबर को लगभग 4,000 छात्रों ने खराब भोजन और पानी की गुणवत्ता तथा अन्य समस्याओं के विरोध में वीआईटी कैंपस में हिंसक प्रदर्शन किया था। इस दौरान छात्रों पर संपत्ति और वाहनों को नुकसान पहुंचाने तथा आगज़नी के आरोप लगे हैं। जब प्रबंधन हालात पर काबू पाने में असफल रहा, तो 26 नवंबर की रात करीब 2 बजे पुलिस और प्रशासन को सूचना दी गई, जिसके बाद पुलिस दल तुरंत कैंपस पहुंचा।
1 दिसंबर को जारी नोटिस में जांच समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि वीआईटी कैंपस को ऐसे संचालित किया जाता है, जैसे वह किसी ‘किले’ की तरह हो, जहां प्रबंधन अपने स्वयं के नियम लागू करता है और उसका व्यवहार अत्यंत तानाशाहीपूर्ण है।
यह नोटिस मध्य प्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना और संचालन) अधिनियम, 2007 की धारा 41(1) के तहत जारी किया गया है। नोटिस में उल्लेख है कि यदि प्रबंधन सात दिनों के भीतर अपना जवाब प्रस्तुत नहीं करता, तो अधिनियम की धारा 41(2) के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी, जिसके तहत सरकार संस्थान का प्रशासन अपने नियंत्रण में ले सकती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कैंपस में लगभग 15,000 छात्र अध्ययनरत हैं, लेकिन मेस की सुविधाएं बेहद असंतोषजनक पाई गईं। मेस संचालन ठेकेदारों को सौंपा गया है, फिर भी प्रबंधन का उन पर प्रभावी नियंत्रण नहीं है। छात्रों ने भोजन और पानी की गुणवत्ता को लेकर भारी असंतोष व्यक्त किया है।
रिपोर्ट में यह तथ्य भी सामने आया कि 14 से 24 नवंबर के बीच कुल 35 छात्र — 23 लड़के और 12 लड़कियां — पीलिया से ग्रस्त पाए गए। समिति के समक्ष प्रबंधन ने भी इसे स्वीकार किया। हालांकि, 1 से 24 नवंबर के बीच पीलिया के मामलों का कोई समुचित रिकॉर्ड संस्थान द्वारा नहीं रखा गया।
रिपोर्ट में उल्लेख है कि कैंपस को एक किले की तरह संचालित किया जाता है, जहां प्रबंधन अपने बनाए नियमों को ही मान्यता देता है और उन पर चर्चा की अनुमति नहीं होती। रिपोर्ट के अनुसार, कैंपस में तानाशाहीपूर्ण व्यवस्था हावी है। इसका स्पष्ट उदाहरण यह है कि सीहोर जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) को भी संस्थान के गेट पर दो घंटे तक रोके रखा गया था।
छात्रों ने जांच समिति को बताया कि शिकायत दर्ज कराने की कोशिश करने पर उन्हें धमकाया जाता था। उनके अनुसार, प्रबंधन की ओर से कहा जाता था कि यदि वे आवाज उठाएंगे, तो अनुशासनहीनता के आरोप में उनके आई-कार्ड जब्त कर लिए जाएंगे, प्रैक्टिकल परीक्षाओं में कम अंक दिए जाएंगे और यहां तक कि उन्हें मुख्य परीक्षा में बैठने से भी रोका जा सकता है।
द वायर ने लिखा है कि नोटिस में कहा गया है कि जब छात्रों ने भोजन की खराब गुणवत्ता की शिकायत की, तब उन्हें कहा गया कि “जो पका है, वही बिना शिकायत के खाओ।”
रिपोर्ट के अनुसार, कैंपस में विश्वास का नहीं, बल्कि डर का माहौल है। प्रबंधन अपनी ‘आत्ममुग्धता और आत्मविश्वास’ पर गर्व करता है, और यही रवैया छात्रों में असंतोष फैलाने तथा अंततः हिंसा भड़कने का कारण बना।
जांच समिति ने यह भी पाया कि प्रबंधन ने पेयजल और अन्य जल स्रोतों की माइक्रोबायोलॉजिकल जांच कराने की कोई व्यवस्था नहीं की थी। छात्रों ने बताया कि जब उनके साथी बीमार पड़ने लगे, तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने के बजाय प्रबंधन ने घर लौट जाने को कहा।
रिपोर्ट में कहा गया है, “ऐसी स्थिति में छात्रों को संभालने के बजाय वार्डन और गार्ड्स ने उनसे बदसलूकी की, जिससे कैंपस में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया।”
समिति ने यह भी पाया कि कैंपस में पहचान पत्र जारी करने से लेकर प्रशासनिक कार्यों से जुड़े कई महत्वपूर्ण फैसले केवल दो–तीन अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में केंद्रित हैं, जबकि अन्य कर्मचारी मात्र औपचारिक भूमिकाएं निभाते हैं।
जांच समिति ने यह भी दर्ज किया कि जांच प्रक्रिया के दौरान प्रबंधन का रवैया असहयोगपूर्ण रहा। समिति के सदस्यों ने पाया कि प्रबंधन यह मानकर चल रहा था कि समिति कैंपस में उनके खिलाफ कार्रवाई करने के उद्देश्य से आई है।
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फोटो साभार : पीटीआई
मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में स्थित वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (वीआईटी) के भोपाल कैंपस में 25 नवंबर को हुई हिंसा को लेकर अधिकारियों के अनुसार, घटनाक्रम की वजह प्रबंधन द्वारा पीलिया (जॉन्डिस) के फैलाव को छिपाने की कोशिश, खराब भोजन और पानी से संबंधित शिकायतों की अनदेखी, तथा छात्रों के साथ हुआ दुर्व्यवहार बताया जा रहा है।
न्यूज़ एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, तीन सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट के निष्कर्षों को आधार बनाकर मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा विभाग ने संस्थान के चांसलर को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और सात दिनों के भीतर जवाब मांगा है।
विभाग के एक अधिकारी ने मंगलवार 2 दिसंबर को बताया कि यदि संस्थान निर्धारित समय में अपना जवाब प्रस्तुत नहीं करता, तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। वीआईटी भोपाल कैंपस के रजिस्ट्रार ने नोटिस प्राप्त होने की पुष्टि करते हुए कहा कि वे जल्द ही सरकार को अपना जवाब भेज देंगे।
ज्ञात हो कि 25 नवंबर को लगभग 4,000 छात्रों ने खराब भोजन और पानी की गुणवत्ता तथा अन्य समस्याओं के विरोध में वीआईटी कैंपस में हिंसक प्रदर्शन किया था। इस दौरान छात्रों पर संपत्ति और वाहनों को नुकसान पहुंचाने तथा आगज़नी के आरोप लगे हैं। जब प्रबंधन हालात पर काबू पाने में असफल रहा, तो 26 नवंबर की रात करीब 2 बजे पुलिस और प्रशासन को सूचना दी गई, जिसके बाद पुलिस दल तुरंत कैंपस पहुंचा।
1 दिसंबर को जारी नोटिस में जांच समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि वीआईटी कैंपस को ऐसे संचालित किया जाता है, जैसे वह किसी ‘किले’ की तरह हो, जहां प्रबंधन अपने स्वयं के नियम लागू करता है और उसका व्यवहार अत्यंत तानाशाहीपूर्ण है।
यह नोटिस मध्य प्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना और संचालन) अधिनियम, 2007 की धारा 41(1) के तहत जारी किया गया है। नोटिस में उल्लेख है कि यदि प्रबंधन सात दिनों के भीतर अपना जवाब प्रस्तुत नहीं करता, तो अधिनियम की धारा 41(2) के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी, जिसके तहत सरकार संस्थान का प्रशासन अपने नियंत्रण में ले सकती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कैंपस में लगभग 15,000 छात्र अध्ययनरत हैं, लेकिन मेस की सुविधाएं बेहद असंतोषजनक पाई गईं। मेस संचालन ठेकेदारों को सौंपा गया है, फिर भी प्रबंधन का उन पर प्रभावी नियंत्रण नहीं है। छात्रों ने भोजन और पानी की गुणवत्ता को लेकर भारी असंतोष व्यक्त किया है।
रिपोर्ट में यह तथ्य भी सामने आया कि 14 से 24 नवंबर के बीच कुल 35 छात्र — 23 लड़के और 12 लड़कियां — पीलिया से ग्रस्त पाए गए। समिति के समक्ष प्रबंधन ने भी इसे स्वीकार किया। हालांकि, 1 से 24 नवंबर के बीच पीलिया के मामलों का कोई समुचित रिकॉर्ड संस्थान द्वारा नहीं रखा गया।
रिपोर्ट में उल्लेख है कि कैंपस को एक किले की तरह संचालित किया जाता है, जहां प्रबंधन अपने बनाए नियमों को ही मान्यता देता है और उन पर चर्चा की अनुमति नहीं होती। रिपोर्ट के अनुसार, कैंपस में तानाशाहीपूर्ण व्यवस्था हावी है। इसका स्पष्ट उदाहरण यह है कि सीहोर जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) को भी संस्थान के गेट पर दो घंटे तक रोके रखा गया था।
छात्रों ने जांच समिति को बताया कि शिकायत दर्ज कराने की कोशिश करने पर उन्हें धमकाया जाता था। उनके अनुसार, प्रबंधन की ओर से कहा जाता था कि यदि वे आवाज उठाएंगे, तो अनुशासनहीनता के आरोप में उनके आई-कार्ड जब्त कर लिए जाएंगे, प्रैक्टिकल परीक्षाओं में कम अंक दिए जाएंगे और यहां तक कि उन्हें मुख्य परीक्षा में बैठने से भी रोका जा सकता है।
द वायर ने लिखा है कि नोटिस में कहा गया है कि जब छात्रों ने भोजन की खराब गुणवत्ता की शिकायत की, तब उन्हें कहा गया कि “जो पका है, वही बिना शिकायत के खाओ।”
रिपोर्ट के अनुसार, कैंपस में विश्वास का नहीं, बल्कि डर का माहौल है। प्रबंधन अपनी ‘आत्ममुग्धता और आत्मविश्वास’ पर गर्व करता है, और यही रवैया छात्रों में असंतोष फैलाने तथा अंततः हिंसा भड़कने का कारण बना।
जांच समिति ने यह भी पाया कि प्रबंधन ने पेयजल और अन्य जल स्रोतों की माइक्रोबायोलॉजिकल जांच कराने की कोई व्यवस्था नहीं की थी। छात्रों ने बताया कि जब उनके साथी बीमार पड़ने लगे, तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने के बजाय प्रबंधन ने घर लौट जाने को कहा।
रिपोर्ट में कहा गया है, “ऐसी स्थिति में छात्रों को संभालने के बजाय वार्डन और गार्ड्स ने उनसे बदसलूकी की, जिससे कैंपस में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया।”
समिति ने यह भी पाया कि कैंपस में पहचान पत्र जारी करने से लेकर प्रशासनिक कार्यों से जुड़े कई महत्वपूर्ण फैसले केवल दो–तीन अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में केंद्रित हैं, जबकि अन्य कर्मचारी मात्र औपचारिक भूमिकाएं निभाते हैं।
जांच समिति ने यह भी दर्ज किया कि जांच प्रक्रिया के दौरान प्रबंधन का रवैया असहयोगपूर्ण रहा। समिति के सदस्यों ने पाया कि प्रबंधन यह मानकर चल रहा था कि समिति कैंपस में उनके खिलाफ कार्रवाई करने के उद्देश्य से आई है।
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