अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के लिये समर्पित रहे अम्बेड्करवादी

Written by विद्या भूषण रावत | Published on: April 15, 2020
बाबा साहेब अम्बेड्कर के 129वे जन्म दिन पर आपका हार्दिक स्वागत और सभी को ढेर सारी शुभकामनायें!!
इतने वर्षों में ये पहली बार है कि जब दिल्ली के संसद मार्ग पर अम्बेडरवादियों की भीड नहीं रही और लोग संसद भवन के अंदर बाबा साहेब अम्बेड्कर की प्रतिमा पर माल्यार्पण नहीं कर पाये. देश भर में बाबा साहेब की जयंती बडी ही धूम धाम से मनाई जाती है. 14 अप्रैल भारत के अंदर सही मायनों में एक जनोत्सव है जिसमें लोगों की भागीदारी स्वत: होती है और उनको ‘किराया’देकर नही बुलाना पड़ता. आज दुनिया कोरोना जैसी महामारी से जूझ रही है और वैज्ञानिक, डाक्टर, स्वास्थ्य कर्मी, सफाई कर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता सभी इससे जनता को बचाने के लिये अपनी जान हथेली पर लेकर काम कर रहे हैं. सभी विशेषज्ञ ये कह रहे हैं कि जितना प्रयास करें घर पर रहें ताकि कोरोना की चेन को तोडा जा सके. इसलिये आवशयक है कि हम घरों से बाहर न निकलें.


 
आज क्योंकि तकनीक का समय है इसलिये हम इसका प्रयोग करते हुए भी नजदीक बने रह सकते हैं. सभी ने शारिरिक दूरी बनाने के लिये कहा है लेकिन कोशिश करें हम मन से दूरी न बनायें. वैसे सामाजिक दूरी तो हमारे वर्णवादी समाज ने हमेशा बना के रखी थी अपनी जातीय सर्वोच्चता को दिखाने के लिये, इसलिये वे अपनी बातों को आगे करने के लिये जान बूझकर ‘सामाजिक दूरी’शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं. कोरोना को खत्म करने के लिये सामाजिक दूरी नहीं, शारीरिक दूरी की जरुरत है. एक दूसरे से कुछ फीट दूर खडे रहें. हम लोग सोशल मीडिया के जरिये भी एक दूसरे का हाल चाल पूछ सकते हैं और अच्छी बात यह है के लोग अब बातों को समझ गये हैं और तकनीक के नये नये प्रयोग कर रहे हैं.

कोरोना ने एक बात तो साफ कर दी कि ये मानव निर्मित है और प्रकृति के गुस्से के आगे इंसान असहाय है. बड़ी बड़ी ताकतें और उनकी सारी सैन्य शक्ति भी प्रकृति की मार के आगे बौनी हैं. दुनिया के सभी धर्मस्थलों पर ताले पडे हुए हैं और जिन्होंने ये बताने की कोशिश की कि उनके भगवान में बहुत ताकत है, उनके लोगों की तो और भी हालत खराब हो गयी और लोग न केवल कोरोना ग्रस्त हुए वे फैलाने में भी आरोपित हो गये. लेकिन ये किसी एक धर्म विशेष की बात नहीं अपितु सभी की है. मतलब ये कि बौधिकता, विचारशीलता और वैज्ञानिक चिंतन ही दुनिया को बचा सकता है. आज दुनिया में सबसे ज्यादा जय जयकार स्वास्थ्य कर्मचारियों की हो रही है और उसके साथ ही सफाई कर्मियों की भी जो दिन रात मेहनत कर हमारे लिये एक बेहतर माहौल तैयार कर रहे हैं और हमें सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं. अब ये बात साफ हो चुकी है कि विज्ञान की हमें बचा सकता है और उसमें यदि सभी वैज्ञानिक सोच वाले हो जाये तो हम प्रबुद्ध भारत की ओर अग्रसर होंगे.
 
बाबा साहेब अम्बेडकर का जीवन अपने आपमें उनका संदेश है. आज उनकी बातें और जीवन यात्रा हमारे लिये और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गये हैं.

दुनिया भर में संकट के दौरान लोग अपने गिले शिकवे भुलाकर एकता का परिचय देते हैं. कई बार समाज में हुई गलतफहमियां हमारे सामूहिक संघर्षों के जरिये खत्म हो जाती है लेकिन हमारे देश में मनुवादी मीडिया तंत्र ने इस महामारी में भी जाति धर्म को देखकर बातें की हैं. आज इंग्लैंड को देखिये जहां पिछ्ले कुछ वर्षों से समाज मे बिख्रराव सा आ गया क्योंकि सभी लोग माईग्रेंटस के खिलाफ हो गये जैसे सारी समस्याओं की जड़ में वही है. इस वर्ष के आम चुनावों से पहले कंजर्वेटिव पार्टी ने वहां की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (नैशंनल हैल्थ सर्विसेज़ या साधारण रुप में एनएचएस) का निजीकरण करने की योजना बनाई और बहुत सी अमेरिकी कम्पनियां इसमें दिलचस्पी ले रही थीं. आज कोरोना के बाद के ब्रिटेन में जो एकता बनी है उसमें एनएचएस का बहुत बडा योगदान है और सभी लोग उस पर गर्व कर रहे हैं. क्या आप जानते हैं कि एनएचएस में 40% से अधिक लोग भारत, पाकिस्तन, बांग्लादेश, मिश्र और अन्य अफ्रीकी देशों से हैं. कोरोना से लड़ते हैं बड़े बड़े सीनियर डाक्टर भी चल बसे जिनमें बहुत सारे मुस्लिम भी हैं जो अपने देशों से इंग्लैंड आकर बस गये. प्रधानमंत्री बोरिस जोह्न्सन की जिंदगी भी बच गई और उन्होंने अपनी दो नर्सों जो न्युजीलैन्ड और पुर्तगाल से थीं, का बेहद शुक्रिया अदा किया. अमेरिका में भी यही हालत है जहां अल्पसंख्यकों ने बहुत काम किया है. जैसे बाबा साहेब की जिंदगी के सफर से साबित होता है कि योग्यता किसी एक समुदाय, जाति, धर्म या देश की बपौती नही है और लोगों को यदि ईमानदारी से अवसर मिले तो वो सिद्ध कर सकते हैं और आज लोग अपने जान की बाज़ी लगाकर साबित भी कर रहे हैं कि मेरिट अवसर का नाम है.

ऐसे संकट में भी हमारे मीडिया ने इस पूरे घटनाक्रम को मुसलमानों से जोड़कर बना दिया जैसे कि कोरोना को उन्होंने फैलाया. इसमें कोई दो राय नहीं कि तबलीगी जमात की भयंकर भूल या गलती के कारण बहुत से लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ गयी लेकिन उसके लिये पूरे देश में मुसलमानों को गुनहगार साबित करने के प्रयास करना बहुत ही निंदनीय है. तबलीगी जमात देश के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करता. ये दुखद है क्योंकि ब्रिटेन में अभी इस्कॉन के एक कार्यक्रम में जिसमे 1000 से अधिक लोगों ने भाग लिया 100 से अधिक लोगों को कोरोना वायरस के संक्रमण की सम्भावना थी और 5 की आधिकारिक तौर पर मृत्यु हो चुकी है. क्या इस्कॉन के इस कार्य के लिये हिंदुओं को दोषी ठहराया जा सकता है. ये एक वायरस है जो दुनिया भर में फैल चुका है और इसे केवल शारीरिक दूरियां बनाकर और अपने घरों में रहकर खत्म किया जा सकता है. हाँ, यदि यह किसी को हुआ है तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह व्यक्ति अपराधी हो गया है अपितु उसे पूरे प्रोटोकॉल के तहत इलाज करवाना चाहिये ताकि वह दूसरों को संक्रमित न करे. इसीलिये मैंने कहा हमारे समाज का अच्छा और बुरा सबसे मुश्किल हालातों में दिखाई देता है.

बाबा साहेब ने समानता और भ्रातृत्व की बात कही लेकिन समाज में अन्याय के चलते वो नही आ सकती. यदि लोगों को उनकी बीमारियों के आधार पर भी भेदभाव होने लगा तो फिर तो हमारे समाज में भेदभाव की नयी प्रवृत्तियां पैदा होंगी जो हमारे समाज को तोड देंगी क्योंकि बीमारी तो किसी को भी लग सकती है. ये कोई जात, देश और धर्म देख कर नहीं आती. ये पैसे वाले से भी नहीं डरती. इसलिये कोरोना से लडते समय हम अपनी मानवीयता न खोयें तो समाज और विश्व के लिये अच्छा होगा. ये आवश्यक है कि संक्रमण वाली बीमारियों से बचने के लिये सफाई, शारीरिक दूरी और नाक मुंह ढकना जरुरी है और जिनको इनका लक्षण दिखाई दे उन्हें भी आईसोलेशन या अलग करके रखना जरुरी है ताकि यह ना फैले लेकिन अभी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से ये खबर है कि दिल्ली से जो लोग आ कर आईसोलेशन में रह रहे थे उनके लिये बनाये जा रहे खाने को कई स्थानों पर लोगों ने खाने से इन्कार कर दिया क्योंकि खाना बनाने वाली महिला दलित समुदाय से आती है. इस प्रकार की खबरें दिखाती हैं कि हमारे समाज में जाति का भेदभाव कोरोना से भी बड़ा है और अगर समाज को आगे बढना है या भारत को आगे बढाना है तो सामाजिक एकता बनानी पडेगी और वो जाति की सडी गली गंदली दीवारों को सम्पूर्ण रूप से तोड़ने के बिना सम्भव नहीं है. नफरत की संस्कृति को जड़ से उखाड़ने की आवश्यकता है.
 
आज की युवा पीढ़ी को बाबा साहेब के जीवन से सीखना होगा कि अन्याय का विरोध करे और संवैधानिक मूल्यों की बात कहे, एक दूसरे से बात करे और एक दूसरे को सुने. कोई आवश्यक नहीं कि हमारे हर बिंदु पर विचार एक हों लेकिन जब तक हम लोकतांत्रिक हैं और संविधान की मर्यादाओं के अनुसार हैं, हम एक दूसरे के दुश्मन नही बन जाते. बाबा साहेब ने कहा हमारे समाज में वोल्टायर जैसे लोग होने चाहिये. वोल्टायर फ्रांस की क्रांति के अग्रदूत थे और उन्होंने कहा ये आवश्यक नहीं कि मैं आपकी हर बात से सहमत हूं लेकिन मैं आपकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करता हूं और उसको बचाने के लिये पूर्ण प्रयास करूंगा.
 
आज भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा है. अभिव्यक्ति मतलब एक दूसरे को सोशल मीडिया मे गाली गलौज नहीं लेकिन एक वैचारिक बहस. स्वस्थ राष्ट्र के लिये ऐसी बहसों की आवश्यकता होगी. समाज में ऐसे लोगों की बहुत जरुरत होती है जो खरी खरी बोलने की शक्ति रखते हों ताकि समाज गलत दिशा में न जाये. ऐसे ही सत्ता को उसकी शक्ति में मदहोश होने से रोकने और गलत दिशा से जाने वाले लोग भी चाहिये ताकि देश बच सके और हम सब सही दिशा में जायें. इसलिये ही हमारे संविधान में हमे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है. जो लोग भी बाबा साहेब को मानते हैं या जानते हैं उन्हे ये पता होना चाहिये कि बाबा साहेब ने बहुत कुछ लिखा और जिस समय गांधी जी के बोले को कोई टोक नही सकता था उस समय उन्होंने उन्हे चुनौती दी. उन्होंने मनुस्मृति की सर्वोच्च्ता को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. भगवानों की पूरी कहानियों का उन्होंने पर्दाफाश कर दिया. आप उनकी बात से असहमत हो सकते हैं लेकिन उसके लिये आपके पास वैचारिक ताकत की जरुरत होगी और बाबा साहेब ने कोई भी बात बिना तर्क के नहीं की. 
इसलिये मुख्य धारा की आलोचना करने से हम राष्ट्र द्रोही या समाज विरोधी नही होते. दरअसल ऐसी आलोचनाओं से समाज को सुधरने और आगे बढ्ने का मौका मिलता है. आज से 70 वर्ष पूर्व हमारे समाज में ऐसी हिम्मत नहीं थी इसलिये बाबा साहेब के साथ अन्याय हुआ, उनके साहित्य को छिपाया गया लेकिन आज दुनिया बाबा साहेब की बौधिकता का लोहा मान रही है, उनको पढ रही है. उनके पढने और उनके रास्ते में चलने से किसी का भी नुकसान नही है अपितु ह्म सबको अपने आप पर भरोसा होता है. इसलिये जो व्यक्ति बाबा साहेब को ईमानदारी से मानता है वो एक मानववादी ही होगा और उसके लिये वैचारिक दर्शन व्यक्ति के हित के लिये काम करेगा ना के किसी तीसरी अदृश्य शक्ति के लिये क्योंकि उन्होने ये साफ कर दिया के धर्म का दर्शन बहुजन हिताय वाला होना चाहिये और किसी के लिये नही.

आज 14 अप्रैल को जब ह्म बाबा साहेब को याद कर रहे हैं, उन्हीं के परिवार के एक सदस्य और इस देश के एक मूर्धन्य विद्वान डा. आनंद तेलतुम्ब्डे को जेल भेजने की तैयारी चल रही है. आनंद देश विदेश में एक बहुत बडा वैचारिक नाम है और महाराष्ट्र में देवेंद्र फड्नविश की सरकार ने उन्हे भीमा कोरेगांव मामले मे फंसा कर एक माओवादी बताने की कोशिश की है जो अति निंदनीय है. ह्म उम्मीद करते हैं कि आनंद तेलतुम्ब्डे को न्याय मिलेगा और सरकार अपनी गलती स्वीकार करेगी. 

आज देश का अधिकांश मीडिया बिकाऊ हो चुका है और वह न केवल झूठ परोस रहा है अपितु समाज को विभाजित भी कर रहा है. वह हर महत्वपूर्ण प्रश्न पर सरकार से सवाल करने के बजाय बहस को हिंदू मुस्लिम में बदलने का आदी हो चुका है. इसलिये हम कोई भी ऐसी खबरें आगे ना बढायें जो आपको नहीं पता कहां से आयी. घृणा और हिंसा फैलाने वाली किसी भी पोस्ट को बिल्कुल बढावा न दें. हमेशा दूसरों के सवालों पर ही न उलझे रहे, अपने समाज का भी सोचें. कुछ सकारत्मक सोचें. छुआछूत, जातिवाद, साम्प्रदायिकता, महिला हिंसा, महिलाओ पर अत्याचार, किसानो के प्रश्न, छोटे व्यवसायो पर खतरा, जलवायु परिवर्तन, आदि के प्रश्न बहुत महत्व्पूर्ण हैं और हमें उनपर अपना चिंतन जारी रखना है और उनके सवालों को उठाते रहना है. एक दूसरे के साथ बहस को दुश्मनी में मत बदलें और जब भी संशय की स्थिति हो तो भारत के सविधान की प्रस्तावना को जरुर पढ़ लीजिये और यदि समय निकाल पाओ तो बाबा साहेब की ''जातियों का खात्मा कैसे हो'' और ''स्टेट और माइनारिटीज़'' नामक पुस्तकें जरुर पढें. आज के दिन उनकी बाइस प्रतिज्ञाओं को भी याद करने का है. अम्बेड्करवादियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवधिकारों के लिये सबसे आगे खडे रहना होगा क्योंकि जीवन पर्यंत बाबा साहेब का संघर्ष इन्हीं मूल्यों के लिये था और यही उनके जीवन का सबसे बडा संदेश है. 

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