उन्नाव के माखी कांड से लेकर हाथरस तक बार-बार पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठ चुके हैं। कई बार तो पीड़ित महिलाओं ने पुलिस की अनदेखी से परेशान होकर पुलिस चौकी, विधानसभा और सीएम आवास के सामने तक खुद को आग के हवाले करने की कोशिश की है।
फ़ोटो साभार: हिंदुस्तान
योगी सरकार के 'रामराज' वाले उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक नाबालिगों के साथ होते दुष्कर्म और फिर पर पुलिस प्रशासन पर प्रताड़ना के लगते गंभीर आरोपों के बीच ये सवाल फिर उठने लगा है कि ऐसी स्थिति में आम लोगों पर पुलिस का भरोसा कितना क़ायम रह सकेगा? ताज़ा मामला संभल जिले से सामने आया है, जहां एक रेप पीड़िता ने कथित तौर पर पुलिस के उदासीन रवैये के चलते आत्महताया कर ली है। परिवार का कहना है कि वो आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न होने से परेशान थी। वो पुलिस के सर्कल ऑफिसर से लेकर डीआईजी तक सबसे गुहार लगा चुकी थी, लेकिन आरोपियों के खिलाफ ऐक्शन नहीं लिया जा रहा था।
बता दें कि अभी एक दिन पहले 25 अगस्त को ही प्रयागराज के यमुनापार इलाके में एक नाबालिग लड़की का कथित तौर पर गैंगरेप होने की खबर सामने आई थी। जिसके बाद परिवारवालों ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने इस मामले में हादसे का मुकदमा लिख केस को रफा दफा करने की कोशिश की है। वहीं इसी हफ्ते सामने आए जालौन बलातकार मामले में भी पीड़िता के पिता का आरोप था कि घटना पर तुरंत कोई एक्शन लेने की बजाय पुलिस ने उन पर समझौता करने का दबाव बनाया। घटना के एक दिन बाद तक कोई एक्शन नहीं लिया गया।
इससे पहले भी उन्नाव के माखी कांड से लेकर हाथरस तक बार-बार पुलिस की कार्रावाई पर सवाल उठ चुके हैं। कई बार तो पीड़ित महिलाओं ने पुलिस की अनदेखी से परेशान होकर खुद को पुलिस चौकी, विधान सभा और सीएम आवास के सामने तक खुद को आग के हवाले करने की कोशिश की है।
क्या है पूरा मामला?
प्राप्त जानकारी के मुताबिक मामला संभल के कुधफतेहगढ़ थाना क्षेत्र का है। यहां आठवीं में पढ़ने वाली एक नाबालिग छात्रा ने 15 जुलाई को अपने साथ हुए दुष्कर्म की सूचना पुलिस को दी थी, और उसी गांव के पांच युवकों को उसने इस घटना का आरोपी बनाया था। लेकिन आरोप है कि पुलिस ने शुरुआत में सिर्फ एक ही आरोपी के खिलाफ रेप और पॉक्सो एक्ट की संबंधित धाराओं में केस दर्ज और किसी भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया। अब लगभग एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद जब लड़की की मौत की खबर आई तब पुलिस नींद से जागकर हरकत में आई है। पुलिस ने आनन फानन में बाकी चार आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया है।
परिवारवालों का आरोप है कि क्योंकि ये सभी गांव के दंबगों में आते हैं, इसलिए पुलिस इन सभी को बचाने की कोशिश कर रही थी। पीड़ित परिवार इस बात की शिकायत बड़े-बड़े अधिकारियों से कर चुका था लेकिन कहीं से भी कोई मदद उन्हें नहीं मिल रही थी। परिवार का आरोप है कि पुलिस लगातार उन पर समझौते का दबाव बना रही थी।
पीड़िता की मां ने मीडिया से बातचीत में आरोप लगाया है कि पुलिस ने आरोपियों से पैसे लेकर सांठ-गांठ कर ली थी। मां ने बताया कि पुलिस वाले छात्रा को ही गलत बताने में लगे थे। जिसके चलते उपीड़िता ने थाने से विवेचना ट्रांसफर कराने की भी गुहार की थी। पीड़िता की मां का कहना है कि किसी जगह से कोई उचित कार्रवाई न होने पर उनकी बेटी ने फांसी लगाकर अपनी जिंदगी खत्म कर ली। मां ने पुलिस पर घर आकर समझौते के लिए धमकाने जैसे तमाम गंभीर आरोप लगाए हैं।
पुलिस क्या कर रही है?
रेप पीड़िता की कथित आत्महत्या के बाद मौके पर पहुंची पुलिस को मृतका के परिवार और आस-पास के लोगों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। जैसे-तैसे पुलिस ने रेप पीड़िता के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा है, जिसका रिपोर्ट अभी आनी बाकी है।
पूरे मामले पर इलाके के एसपी ने मीडिया को जानकारी दी कि इस मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने की धारा, मुकदमे में जोड़ दी गई है। पुलिस की जांच जारी है। एसपी ने कहा कि, जो भी दोषी होंगे उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। फिलहाल इस मामले में रेप पीड़िता केस की जांच कर रहे दारोगा अनिल कुमार को भी निलंबित कर दिया गया है। लेकिन बड़ा सवाल ये कि, मृतका की मां जो गंभीर आरोप लगा रही है, उसकी जांच भी होगी या नहीं?
मालूम हो कि हाथरस गैंगरेप और हत्या के मामले को ‘अंतरराष्ट्रीय साजिश’ से जोड़ने वाली योगी सरकार और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पीड़िता से गैंगरेप नहीं होने का दावा करने वाली यूपी पुलिस के रवैए पर सीबीआई चार्जशीट के बाद सवाल उठे थे। सीबीआई के अधिकारियों ने चारों अभियुक्तों पर गैंगरेप और हत्या की धाराएं लगाई थीं, जबकि पी पुलिस ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर दावा किया था कि पीड़िता के साथ गैंगरेप नहीं हुआ है। यूपी पुलिस के इस बयान के बाद कोर्ट ने यूपी पुलिस को फटकार भी लगाई थी।
उन्नाव के माखी कांड मामले में भी सीबीआई ने बीजेपी के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के खिलाफ बलात्कार के आरोप में एफआईआर दर्ज न करने के लिए उन्नाव की पूर्व जिलाधिकारी और तीन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने को कहा था। इस मामले में पुलिस ने एफआईआर लगभग 9 महीने बाद दर्ज की थी, जब पीड़िता द्वारा लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास के पास आत्महत्या करने का प्रयास किया गया था।
यूपी पुलिस की दबिश भी अक्सर सवालों के घेरे में रही है। इसी साल मई महीने में एक के बाद एक करीब आधा दर्जन महिलाओं की यूपी पुलिस की दबिश के दौरान कथित तौर पर मौत की खबर सामने आई थी। एक मामले में तो पुलिस उपनिरीक्षक समेत छह लोगों के खिलाफ उत्पीड़न और उत्पीड़न के कारण आत्महत्या का मामला भी दर्ज किया गया था।
यूपी पुलिस की गिरती साख और अपराध का बढ़ता ग्राफ़
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश पुलिस आए दिन अपने कारनामों को लेकर सुर्खियों में बनी रहती है। कभी गाड़ी पलटने के बाद एनकाउंटर हो, या पीड़ित को और प्रताड़ित करने का मामला। कभी पिस्तौल की जगह मुंह से ठांय-ठांय बोलकर हीरो बनते दारोगा हों या फिर कथित लव जिहाद के केस में सुपर एक्टिव अंदाज़ में प्रेमी जोड़ों को पकड़ कर केस करना हो, इन सब मामलों में यूपी पुलिस ‘सदैव तत्पर’ रहती है।
अपराध, विवाद में कानून का सही ढ़ंग से पालन हो रहा है या नहीं इससे यूपी पुलिस को शायद कोई फर्क नहीं पड़ता। तभी तो इलाहाबाद हाईकोर्ट की कई बार फटकार के बाद दिल्ली हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट से भी यूपी पुलिस को तगड़ी झाड़ लग चुकी है बावजूद इसके पुलिस के काम करने के तरीके में कोई बदलाव नज़र नहीं आता। ‘सुरक्षा आपकी, संकल्प हमारा' मोटो के साथ इनदिनों यूपी पुलिस आम लोगों की छोड़िए कानून की रक्षा भी नहीं कर पा रही। आए दिन इसकी साख गिरती ही जा रही है और यूपी पुलिस खुद अपनी छवि रोज बद से बदतर करवाती जा रही है।
वैसे अपराध की बात करें तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की मानें तो महिलाओं के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा क्राइम में भी उत्तर प्रदेश टॉप पर है। यहां साल 2020 में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराध के 49,385 मामले दर्ज कराये गये थे। बलात्कार के मामले में भी उत्तर प्रदेश पूरे देश में दूसरे स्थान पर है। यानी राजस्थान के बाद उत्तर प्रदेश ही वो राज्य है जहां महिलाएं सबसे अधिक बलात्कार का शिकार हो रही हैं। साल 2020 में देश भर में बलात्कार के कुल 28046 मामले दर्ज किए गए, जिसमें से अकेले उत्तर प्रदेश में कुल 2,769 मामले दर्ज हुए।
दलित उत्पीड़न मामले में उत्तर प्रदेश पूरे देश में अव्वल पर है। देश में दलितों पर हर चौथा अपराध उत्तर प्रदेश में होता है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में साल 2017 में दलितों के खिलाफ अपराध का आंकड़ा 11,444 था, जो 2019 में बढ़कर 11,829 हो गया। यानी देश में दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 25.8% है। वहीं साल 2020 के आंकड़ें देखें तो, देश में दलितों के खिलाफ अपराध के कुल 50,291 मामले दर्ज हुए, जिसमें से अकेले सिर्फ उत्तर प्रदेश में 12,714 मामले दर्ज हुए।
2022 की यूपी विधानसभा चुनाव की रैलियों में सीएम योगी के साथ-साथ पीएम नरेंद्र मोदी भी महिला सुरक्षा के कसीदे पढ़ते नज़र आ रहे थे। हालांकि सरकारी संस्था राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक़ साल 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के सबसे ज़्यादा मामले उत्तर प्रदेश से रिपोर्ट हुए, जो कुल शिकायतों का आधे से ज़्यादा का आंकड़ा है। आयोग की हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के 30 हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आए। जिसमें सबसे अधिक 15,828 शिकायत यूपी से थीं।
सीएम योगी आदित्यनाथ की 'ठोक दो' की नीति, 'न्यूनतम अपराध' और उत्तम प्रदेश के दावों से इतर प्रदेश की जमीनी सच्चाई ये है कि उत्तर प्रदेश में हर तरह के अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। वंचित, शोषित लोग न्याय की आस में दर-बदर भटक रहे हैं तो वहीं पुलिस पीड़ित को और प्रताड़ित कर रही है। कुल मिलाकर देखें तो सत्ता में वापसी के बाद भी बीजेपी की योगी सरकार कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा के मोर्चे पर विफल ही नज़र आती है।
फ़ोटो साभार: हिंदुस्तान
योगी सरकार के 'रामराज' वाले उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक नाबालिगों के साथ होते दुष्कर्म और फिर पर पुलिस प्रशासन पर प्रताड़ना के लगते गंभीर आरोपों के बीच ये सवाल फिर उठने लगा है कि ऐसी स्थिति में आम लोगों पर पुलिस का भरोसा कितना क़ायम रह सकेगा? ताज़ा मामला संभल जिले से सामने आया है, जहां एक रेप पीड़िता ने कथित तौर पर पुलिस के उदासीन रवैये के चलते आत्महताया कर ली है। परिवार का कहना है कि वो आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न होने से परेशान थी। वो पुलिस के सर्कल ऑफिसर से लेकर डीआईजी तक सबसे गुहार लगा चुकी थी, लेकिन आरोपियों के खिलाफ ऐक्शन नहीं लिया जा रहा था।
बता दें कि अभी एक दिन पहले 25 अगस्त को ही प्रयागराज के यमुनापार इलाके में एक नाबालिग लड़की का कथित तौर पर गैंगरेप होने की खबर सामने आई थी। जिसके बाद परिवारवालों ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने इस मामले में हादसे का मुकदमा लिख केस को रफा दफा करने की कोशिश की है। वहीं इसी हफ्ते सामने आए जालौन बलातकार मामले में भी पीड़िता के पिता का आरोप था कि घटना पर तुरंत कोई एक्शन लेने की बजाय पुलिस ने उन पर समझौता करने का दबाव बनाया। घटना के एक दिन बाद तक कोई एक्शन नहीं लिया गया।
इससे पहले भी उन्नाव के माखी कांड से लेकर हाथरस तक बार-बार पुलिस की कार्रावाई पर सवाल उठ चुके हैं। कई बार तो पीड़ित महिलाओं ने पुलिस की अनदेखी से परेशान होकर खुद को पुलिस चौकी, विधान सभा और सीएम आवास के सामने तक खुद को आग के हवाले करने की कोशिश की है।
क्या है पूरा मामला?
प्राप्त जानकारी के मुताबिक मामला संभल के कुधफतेहगढ़ थाना क्षेत्र का है। यहां आठवीं में पढ़ने वाली एक नाबालिग छात्रा ने 15 जुलाई को अपने साथ हुए दुष्कर्म की सूचना पुलिस को दी थी, और उसी गांव के पांच युवकों को उसने इस घटना का आरोपी बनाया था। लेकिन आरोप है कि पुलिस ने शुरुआत में सिर्फ एक ही आरोपी के खिलाफ रेप और पॉक्सो एक्ट की संबंधित धाराओं में केस दर्ज और किसी भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया। अब लगभग एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद जब लड़की की मौत की खबर आई तब पुलिस नींद से जागकर हरकत में आई है। पुलिस ने आनन फानन में बाकी चार आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया है।
परिवारवालों का आरोप है कि क्योंकि ये सभी गांव के दंबगों में आते हैं, इसलिए पुलिस इन सभी को बचाने की कोशिश कर रही थी। पीड़ित परिवार इस बात की शिकायत बड़े-बड़े अधिकारियों से कर चुका था लेकिन कहीं से भी कोई मदद उन्हें नहीं मिल रही थी। परिवार का आरोप है कि पुलिस लगातार उन पर समझौते का दबाव बना रही थी।
पीड़िता की मां ने मीडिया से बातचीत में आरोप लगाया है कि पुलिस ने आरोपियों से पैसे लेकर सांठ-गांठ कर ली थी। मां ने बताया कि पुलिस वाले छात्रा को ही गलत बताने में लगे थे। जिसके चलते उपीड़िता ने थाने से विवेचना ट्रांसफर कराने की भी गुहार की थी। पीड़िता की मां का कहना है कि किसी जगह से कोई उचित कार्रवाई न होने पर उनकी बेटी ने फांसी लगाकर अपनी जिंदगी खत्म कर ली। मां ने पुलिस पर घर आकर समझौते के लिए धमकाने जैसे तमाम गंभीर आरोप लगाए हैं।
पुलिस क्या कर रही है?
रेप पीड़िता की कथित आत्महत्या के बाद मौके पर पहुंची पुलिस को मृतका के परिवार और आस-पास के लोगों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। जैसे-तैसे पुलिस ने रेप पीड़िता के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा है, जिसका रिपोर्ट अभी आनी बाकी है।
पूरे मामले पर इलाके के एसपी ने मीडिया को जानकारी दी कि इस मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने की धारा, मुकदमे में जोड़ दी गई है। पुलिस की जांच जारी है। एसपी ने कहा कि, जो भी दोषी होंगे उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। फिलहाल इस मामले में रेप पीड़िता केस की जांच कर रहे दारोगा अनिल कुमार को भी निलंबित कर दिया गया है। लेकिन बड़ा सवाल ये कि, मृतका की मां जो गंभीर आरोप लगा रही है, उसकी जांच भी होगी या नहीं?
मालूम हो कि हाथरस गैंगरेप और हत्या के मामले को ‘अंतरराष्ट्रीय साजिश’ से जोड़ने वाली योगी सरकार और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पीड़िता से गैंगरेप नहीं होने का दावा करने वाली यूपी पुलिस के रवैए पर सीबीआई चार्जशीट के बाद सवाल उठे थे। सीबीआई के अधिकारियों ने चारों अभियुक्तों पर गैंगरेप और हत्या की धाराएं लगाई थीं, जबकि पी पुलिस ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर दावा किया था कि पीड़िता के साथ गैंगरेप नहीं हुआ है। यूपी पुलिस के इस बयान के बाद कोर्ट ने यूपी पुलिस को फटकार भी लगाई थी।
उन्नाव के माखी कांड मामले में भी सीबीआई ने बीजेपी के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के खिलाफ बलात्कार के आरोप में एफआईआर दर्ज न करने के लिए उन्नाव की पूर्व जिलाधिकारी और तीन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने को कहा था। इस मामले में पुलिस ने एफआईआर लगभग 9 महीने बाद दर्ज की थी, जब पीड़िता द्वारा लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास के पास आत्महत्या करने का प्रयास किया गया था।
यूपी पुलिस की दबिश भी अक्सर सवालों के घेरे में रही है। इसी साल मई महीने में एक के बाद एक करीब आधा दर्जन महिलाओं की यूपी पुलिस की दबिश के दौरान कथित तौर पर मौत की खबर सामने आई थी। एक मामले में तो पुलिस उपनिरीक्षक समेत छह लोगों के खिलाफ उत्पीड़न और उत्पीड़न के कारण आत्महत्या का मामला भी दर्ज किया गया था।
यूपी पुलिस की गिरती साख और अपराध का बढ़ता ग्राफ़
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश पुलिस आए दिन अपने कारनामों को लेकर सुर्खियों में बनी रहती है। कभी गाड़ी पलटने के बाद एनकाउंटर हो, या पीड़ित को और प्रताड़ित करने का मामला। कभी पिस्तौल की जगह मुंह से ठांय-ठांय बोलकर हीरो बनते दारोगा हों या फिर कथित लव जिहाद के केस में सुपर एक्टिव अंदाज़ में प्रेमी जोड़ों को पकड़ कर केस करना हो, इन सब मामलों में यूपी पुलिस ‘सदैव तत्पर’ रहती है।
अपराध, विवाद में कानून का सही ढ़ंग से पालन हो रहा है या नहीं इससे यूपी पुलिस को शायद कोई फर्क नहीं पड़ता। तभी तो इलाहाबाद हाईकोर्ट की कई बार फटकार के बाद दिल्ली हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट से भी यूपी पुलिस को तगड़ी झाड़ लग चुकी है बावजूद इसके पुलिस के काम करने के तरीके में कोई बदलाव नज़र नहीं आता। ‘सुरक्षा आपकी, संकल्प हमारा' मोटो के साथ इनदिनों यूपी पुलिस आम लोगों की छोड़िए कानून की रक्षा भी नहीं कर पा रही। आए दिन इसकी साख गिरती ही जा रही है और यूपी पुलिस खुद अपनी छवि रोज बद से बदतर करवाती जा रही है।
वैसे अपराध की बात करें तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की मानें तो महिलाओं के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा क्राइम में भी उत्तर प्रदेश टॉप पर है। यहां साल 2020 में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराध के 49,385 मामले दर्ज कराये गये थे। बलात्कार के मामले में भी उत्तर प्रदेश पूरे देश में दूसरे स्थान पर है। यानी राजस्थान के बाद उत्तर प्रदेश ही वो राज्य है जहां महिलाएं सबसे अधिक बलात्कार का शिकार हो रही हैं। साल 2020 में देश भर में बलात्कार के कुल 28046 मामले दर्ज किए गए, जिसमें से अकेले उत्तर प्रदेश में कुल 2,769 मामले दर्ज हुए।
दलित उत्पीड़न मामले में उत्तर प्रदेश पूरे देश में अव्वल पर है। देश में दलितों पर हर चौथा अपराध उत्तर प्रदेश में होता है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में साल 2017 में दलितों के खिलाफ अपराध का आंकड़ा 11,444 था, जो 2019 में बढ़कर 11,829 हो गया। यानी देश में दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 25.8% है। वहीं साल 2020 के आंकड़ें देखें तो, देश में दलितों के खिलाफ अपराध के कुल 50,291 मामले दर्ज हुए, जिसमें से अकेले सिर्फ उत्तर प्रदेश में 12,714 मामले दर्ज हुए।
2022 की यूपी विधानसभा चुनाव की रैलियों में सीएम योगी के साथ-साथ पीएम नरेंद्र मोदी भी महिला सुरक्षा के कसीदे पढ़ते नज़र आ रहे थे। हालांकि सरकारी संस्था राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक़ साल 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के सबसे ज़्यादा मामले उत्तर प्रदेश से रिपोर्ट हुए, जो कुल शिकायतों का आधे से ज़्यादा का आंकड़ा है। आयोग की हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के 30 हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आए। जिसमें सबसे अधिक 15,828 शिकायत यूपी से थीं।
सीएम योगी आदित्यनाथ की 'ठोक दो' की नीति, 'न्यूनतम अपराध' और उत्तम प्रदेश के दावों से इतर प्रदेश की जमीनी सच्चाई ये है कि उत्तर प्रदेश में हर तरह के अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। वंचित, शोषित लोग न्याय की आस में दर-बदर भटक रहे हैं तो वहीं पुलिस पीड़ित को और प्रताड़ित कर रही है। कुल मिलाकर देखें तो सत्ता में वापसी के बाद भी बीजेपी की योगी सरकार कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा के मोर्चे पर विफल ही नज़र आती है।