सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने पूछा- SC अर्णब गोस्वामी पर इतनी मेहरबान क्यों है?

Written by Vijay Shankar Singh | Published on: November 11, 2020
सुप्रीम कोर्ट की इतनी मेहरबानी अर्नब गोस्वामी पर क्यों है ? यह सवाल उठाया है सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ एडवोकेट दुष्यंत दवे ने। उन्होंने एक दिन में ही मुक़दमे को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध किए जाने पर रजिस्ट्रार जनरल सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र लिखा है। 



4 नवम्बर को अर्नब गोस्वामी धारा 306 आइपीसी के एक मामले में महाराष्ट्र की रायगढ़ पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाते हैं। 5 नवम्बर को उन्हें न्यायिक मैजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस अभिरक्षा के रिमांड को इनकार कर 14 दिन के लिये न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया जाता हैं। 

अर्नब ने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए धारा 306 आइपीसी की एफआईआर रद्द करने और यदि यह सम्भव न हो तो कम से कम अंतरिम राहत के लिये जेल से रिहा करने की प्रार्थना के साथ मुंबई हाईकोर्ट पहुंचते है। तीन दिन की बहस के बाद हाईकोर्ट ने उनकी अर्जी रद्द कर के उनसे कहा कि वे सेशन कोर्ट में नियमित जमानत के लिये प्रार्थना पत्र दे। हाईकोर्ट ने यह राहत ज़रूर दी है कि उसने सेशन कोर्ट को यह निर्देश दिया है कि वे चार दिन में इस जमानती प्रार्थना पत्र अपना निर्णय दे। 

अर्नब गोस्वामी की जमानत की अर्जी सेशन कोर्ट में दायर है। अभी इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है। इसी बीच अर्नब गोस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दी और सुप्रीम कोर्ट ने उसकी सुनवाई के लिये कल यानी 11 नवम्बर को सुनवाई की तिथि दे दी। यह कोर्ट में दूसरे नम्बर पर सुनवाई के लिये लिस्टेड है। 

महाराष्ट्र सरकार को भी यह अंदेशा था कि, अर्णब सुप्रीम कोर्ट में ज़रूर अर्जी डालेंगे, इसलिए महाराष्ट्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दायर कर रखा है। यानी अर्नब के अर्जी पर कोई भी फैसला लेने के पहले महाराष्ट्र सरकार को भी सुन लिया जाय। 

इसी बीच एससीबीए के अध्यक्ष, दुष्यंत दवे ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को एक पत्र लिखा है कि "जिस तरह से रिपब्लिक टीवी के संपादक, अर्नब गोस्वामी की जमानत याचिका को दायर होते ही अगले दिन सूचीबद्ध कर दिया गया यह आपत्तिजनक है।" 

दुष्यंत दवे ने, रजिस्ट्रार जनरल से एक "कड़ा विरोध" दर्ज कराया है, जिसमें बताया गया है कि "शीर्ष अदालत के समक्ष गोस्वामी की याचिकाओं को तो तत्काल सुनवाई के लिये लिस्ट कर लिया गया है,  जबकि इसी प्रकार की, अन्य याचिकाओं की सुनवाई पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है और वे लंबित हैं।" 

दुष्यंत दवे ने सवाल किया है कि "क्या भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने इस पत्रकार द्वारा दायर याचिकाओं को शीघ्र सुनवाई के लिये तत्काल सूचीबद्ध करने हेतु कोई विशेष निर्देश दिया था ? जबकि हजारों नागरिक लंबे समय तक जेलों में रहते हैं, और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उनके मामलों को हफ्तों और महीनों तक सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया जा रहा है। यह  प्रवित्ति गम्भीर है और व्यथित करने वाली है कि, श्री गोस्वामी की याचिका हर बार कैसे और क्यों सुनवाई के लिये सूचीबद्ध कर दी जाती है। क्या भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा रजिस्ट्री को कोई विशेष आदेश या निर्देश है?" 

"अर्नब गोस्वामी ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 9 नवंबर के आदेश के खिलाफ आज यानी 10 नवम्बर की सुबह, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। जिसमें उन्हें इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां कुमुद नाइक द्वारा साल 2018 में की गयी आत्महत्या मामले में अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया है। यह  याचिका 11 नवम्बर को सुबह 10.30 बजे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और इंदिरा बनर्जी की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।" 

दुष्यंत दवे ने रजिस्ट्रार से यह भी सवाल किया कि "क्या वह सीजेआई की जानकारी के बिना अर्नब गोस्वामी को, लिस्टिंग में तरजीह दे रहे हैं।" पत्र में आगे लिखा है, "यह सर्वविदित है कि किसी भी मामले की ऐसी असाधारण तत्काल लिस्टिंग बिना माननीय मुख्य न्यायाधीश के विशिष्ट आदेशों के बिना नहीं हो सकती है ? या फिर हक़ीक़त यह है कि शीर्ष कोर्ट के प्रशासनिक प्रमुख के रूप में आप या रजिस्ट्रार मुकदमो की लिस्टिंग के बारे में श्री गोस्वामी को विशेष वरीयता दे रहे हैं?"
  
दुष्यंत दवे ने पी चिदंबरम की याचिकाओं का उल्लेख करते हुए कहा है कि, पी चिदंबरम के साथ गोस्वामी के मामले की तुलना करें, जिन्होंने आईएनएक्स मीडिया मामले में जमानत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। दवे कहते हैं कि "पी चिदंबरम, जो कि एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं, को भी इस तरह की त्वरित वरीयता भरी लिस्टिंग की सुविधा उन्हें मिल सकी थी और लंबे समय तक उन्हें जेल में बिताने पड़े थे। आखिरकार माननीय सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की थी कि उनका मामला जमानत के लायक है।हजारों नागरिक जो लंबे समय तक जेलों में बंद हैं, और जिनके मामले सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर किए गए "हफ्तों और महीनों से सुनवाई के लिये सूचीबद्ध नहीं किये जा हैं।"

"यह चयनात्मक लिस्टिंग क्यों हो रही है, जबकि कहा जाता है कि सिस्टम कम्प्यूटरीकृत और स्वचालित रूप से काम करना है? ऐसा क्यों है कि इसके बावजूद, मामलों को प्रसारित किया जा रहा है और वह भी केवल कुछ माननीय पीठों से पहले? क्यों कोई मूर्ख प्रणाली नहीं है?  सभी नागरिकों और सभी एओआर के लिए उचित और उचित?"

उन्होंने आभासी सुनवाई, एओआर द्वारा लिस्टिंग के लिये दायर याचिकाओं और लिस्टिंग की एक त्रुटिरहित और पक्षपातरहित प्रक्रिया बनाने की भी बात कही। 

(नोट: यह रिपोर्ट पूर्व में विजय शंकर सिंह की फेसबुक पोस्ट में प्रकाशित की जा चुकी है। विजय शंकर सिंह पूर्व आईपीएस हैं)

बाकी ख़बरें