आजकल जब समाचार देखते हैं तो विश्वास ही नहीं होता कि ये इक्कीसवीं सदी के भारत में हो रही घटनाओं का समाचार है!
आजकल राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कोने कोने में अफवाह फैल गई कि कोई अनजान साया, प्रेतात्मा, डायन या दैविक शक्ति, सोती हुई औरतों की चोटियाँ काट रही हैं, कहीं कहीं तो ये अफवाह भी फैल रही है, कि जिनकी चोटी काटी जा रही है उनकी मृत्यु भी हो जाती है.हद तो ये है कि उत्तर प्रदेश के गाँव में लोगों ने एक बूढ़ी विधवा कोई डायन समझ कर मार डाला... लोगों ने किसी जगह एक बिल्ली को भी मार डाला ये सोच कर कि इच्छाधारी डायन ने बिल्ली का रूप धारण कर लिया है...
और भीड़ द्वारा इन सब हत्याओं का विडियो भी सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल रहा है!
इस प्रकार के जानलेवा अंधविश्वास केवल एक दिन में नहीं फैलते हैं, साम्प्रदायिकता की तरह अन्धविश्वास भी अलग-अलग माध्यम से समाज में फैलाया जाता है, जिस से समाज इतना पिछड़ जाता है कि समाज को सत्य-असत्य, विवेक-अविवेक, विज्ञान-आडम्बर इत्यादि में अंतर करना मुश्किल हो जाता है.
भारतीय संविधान (अनुच्छेद 51क) में मौलिक कर्तव्यों के अंतर्गत "वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करने की बात कही गई है." और पूरे देश में धड़ल्ले से इस मौलिक कर्तव्य का पालन तो दूर, उसके विपरीत देश को अंधकारमय दिशा की ओर ले जाने वाले अंधविश्वास को बढ़ावा दिया जा रहा है.
पिछले एक दशक के भारतीय टेलीविज़न के सबसे लोकप्रिय कार्यक्रमों को देखा जाय तो साफ़ दिखाई देता है कि, किस प्रकार अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले इन सीरियलों ने समाज में ज़हर घोलने का काम किया है, और कर रहे हैं.
आज के सबसे अधिक टीआरपी (टारगेट रेटिंग प्वाइंट कुल दर्शकों में से लक्ष्यित दर्शकों के घटक के अनुमान का मापदंड) वाले सीरियल पर एक नज़र डालते हैं.
कुमकुम भाग्या (ज़ी टीवी): सरला गलती से प्रज्ञा और अभी की शादी वाली फोटो का फ्रेम गिरा देती है, फ्रेम टूट जाता है, ठीक उसी समय प्रज्ञा और अभी के जीवन में दुर्घटना घटती है...
ससुराल सिमर का (कलर टीवी): सिमर और माताजी रिद्धिमा के साथ मिलकर काल को वश में करना चाहते हैं. इसलिए वे पियूष को ज़ंजीर से बाँध देते हैं, परन्तु पियूष के शरीर में काल नामक प्रेत किसी के वश में नहीं आता. काल बहुत शक्तिशाली है और ज़ंजीर तोड़ कर काल सिमर को मारने के लिए बढ़ता है... इस सीरियल में पहले भी काफी डायन वाला चक्कर रहा है!
ये रिश्ता क्या कहलाता है (स्टार टीवी): नायरा, गोयंका परिवार के घर में गलती से प्रवेश कर लेती है, उस समय तिलक के रसम वाली पूजा हो रही है, ऐसे में नायरा का उपस्थित हो जाना इतना मनहूस है, कि कार्तिक की दादीजी कहती हैं अब केवल नायरा का नाम बदल कर ही इस मनहूसियत से बचा जा सकता है...
शक्ति-अस्तित्व के एहसास की (कलर टीवी): लोगों की भीड़ एक औरत को दौड़ा दौड़ा कर मार रही है, सीरियल का हीरो वहां पहुँच कर उसे बचाना चाहता है, परन्तु जानलेवा भीड़, लाठी, पत्थर और पिस्तौल से उस औरत को मार डालते हैं, हीरो पूछता है क्यों मारा? तो भीड़ जवाब देती है वो औरत नहीं किन्नर है किन्नर, उसे मारना आवश्यक है, चलो धरती पर से एक बोझ हट गया... भीड़ आराम से चली जाती है, जैसे ये एक मामूली सी घटना हो.
साथ निभाना साथिया (स्टार प्लस): ये सीरियल तो एक सबसे आदर्श और संस्कारी गुजराती परिवार के बारे में है, सोचिये सबसे आदर्श गुजराती परिवार किनका होगा? बिलकुल सही अंदाज़ा "मोदीजी" का परिवार!
राजकोट वाले मोदी परिवार में शांति पूजा हो रही है और उसी समय पटाखे विस्फोट कर के बच्चे का अपहरण कर लिया जाता है. और आदर्श मोदी परिवार की आदर्श नारी, गोपी एक त्रिशूल लेकर राधा की हत्या कर के बच्चे को बचा लेती है. बिलकुल दुर्गाजी की मूर्ती में महिषासुर को मारने वाले पोज़ में दर्शाया गया खून से लथपथ सीन एक आदर्श परिवार के आदर्श धर्म का प्रतीक बन जाता है!
ये तो अभी चल रहे सीरियल की बातें हैं, चलिए एक नज़र डालते हैं इनसे पहले वाले लोकप्रिय सीरियलों पर, जो एक से बढ़कर एक अंधविश्वास, डर, हत्या, हिंसा को बढ़ावा देने वाले रहे हैं
नागिन: इसकी नायिका एक सुन्दर कन्या है जो इच्छाधारी नागिन है, और खलनायिकाएं भी इच्छाधारी नागिन हैं, इन्होने बदला लेने के लिए जन्म लिया है और आज के बिलकुल मॉडर्न परिवार में नागिन जब चाहती है, जो चाहती है, बन जाती है. पूजा-पाठ, झाड़-फूँक बेवकूफी इत्यादि से भरा ये सीरियल इतना चला कि लोग अब माऊनि रॉय को नागिन के नाम से ही जानते हैं.
ये मोहब्बतें: टीवी पर सबसे लोकप्रिय जोड़ी, रमण और इशिता के जीवन में तब उथल पुथल मच जाती है, जब शगुन की आत्मा इशिता के शरीर में प्रवेश कर लेती है. फिर शुरू हो जाता है जादू-टोना, पूजा-पाठ, झाड़-फूँक का चक्कर.
काला टीका: ये सीरियल नाम से ही अंधविश्वास वाला है, काली और गौरी की अंधविश्वास की सीमा को अलग उंचाई तक ले जाने वाली ये कहानी भी बड़ी लोकप्रिय रही.
कुबूल है: ये एक मुसलमान परिवार की कहानी है अब इसमें मुसलमानों के भूत-प्रेत जो जिन्न-जिन्नात, डायन इत्यादि कहलाते हैं, उनके चक्कर शुरू हो जाते हैं.
एक डायन नायिका के परिवार बरबाद करने पर तुली हुई है, अब दुआ-ताबीज़ झाड़-फूँक यहाँ भी एकमात्र उपाय बन कर उभरता है.
डर्र सबको लगता है: बिपाशा बासु का ये डरावना शत-प्रतिशत अंधविश्वास भूत-प्रेत वाला सीरियल बहुत ही लोकप्रिय रहा.
फीयर फाइल्स- श्रद्धा vs शैतान: इसका नाम ही काफी है! ये समझने के लिए कि सीरियल कैसा रहा होगा, समाज में अफवाहों और अंधविश्वास पर पूरा विश्वास दिलवाने के लिए इस सीरियल ने कोई कसर नहीं छोड़ी.
अभी जो नए सीरियल शुरू हुए हैं वे भी इन्ही रास्तों पर अग्रसर हो रहे हैं.
महाकाली: देवी-देवताओं की खून खराबे वाली पौराणिक कथाओं में जोड़-तोड़ करती हुई कहानियाँ.
चंद्रकांता: चुड़ैल, डायन, भूत प्रेत, जादू टोना, चमत्कार से भरी कहानी.
आरंभ: एक और देवगाथा, देवताओं की कहानिया, हिंसा और चमत्कार से भरी हुई !
अब तो सीरियल पर आधारित समाचार भी दिखाए जाते हैं, और कई समाचार वाले चैनल मनोरंजन वाले प्रतीत होने लग गए हैं. यही नहीं, समाचार पढ़ने वाले पत्रकार, विज्ञान के विरुद्ध कार्यक्रम दिखा-दिखा कर लोगों में भ्रम और अंधश्रद्धा बढ़ा रहे हैं. पढ़े लिखे लोग बता रहे हैं कि पशु, कार्बन डाइऑक्साइड पर जीवित है, और ऑक्सीजन छोड़ने लगा है, गोबर तो अब परमाणु युद्ध का बंकर बन चुका है. ऐसा प्रतीत होता है जैसे धार्मिक टीवी, समाचार वाले चैनल, मनोरंजन वाले सीरियल और आज की लोकप्रिय राजनितिक पार्टी में एक दूसरे के प्रति सहजीवी रिश्ता है. मानो सब ने भारत में अज्ञान का अन्धकार बिखेरने का बीड़ा उठा लिया हो.
अधिकतर सीरियल लोगों को सत्य से दूर, काल्पनिक दुनिया में ले जाता है, जहाँ कानून नाम की कोई चीज़ नहीं है, कोई भी किसी को मार देता है, भीड़ द्वारा हत्या को ऐसी घटना दिखाते हैं जैसे कि ये अपराध नहीं कर्तव्य हो, धर्म, पुराण और आज की साम्प्रदायिक राजनीती के जो भी प्रतिरूप है, उन्हें लोकप्रिय बनाया जा रहा है. आधुनिक मोदी परिवार की आदर्श नारी त्रिशूल लेकर किसी का वध कर देती है, और दर्शक खुश होते हैं, कोई भी संविधान या कानून नाम की चीज़ नहीं दिखाई जाती है.
इच्छाधारी नागिन की खलनायिका अपराध कर के कोई और रूप धारण कर लेती है, करोड़ों लोग इस सीरियल को देखते हैं, ऐसे में भारत के नागरिक एक बिल्ली को चोटी काटने वाली चुड़ैल समझ कर नहीं मारेंगे तो और क्या करेंगे?
धर्म में बताया गया पाप और पुण्य जब दर्शकों के मस्तिष्क पर सवार हो जाता है, तो आगरा में किसी विधवा को पाप करने के जुर्म में भीड़ सज़ा दे देती है. भीड़ ने तो देखा है कि सीरियल के नायक इसी प्रकार चुड़ैल और डायन से मुकाबला करते हैं.
अगर सही मानो में इन सब सीरियलों का विश्लेषण किया जाय तो अधिकतर लोकप्रिय सीरियल और टीवी पर आनेवाले कार्यक्रम, भारत के संविधान के विरुद्ध साबित होंगे, और वे महाराष्ट्र के अंधविश्वास विरोधी और काला जादू अधिनियम के अंतर्गत सरासर अपराध साबित हैं.