किसान आंदोलन के 6 माह: काले कपड़े, झंडे और पगड़ी पहनकर मनाया ब्लैक डे

Written by Navnish Kumar | Published on: May 26, 2021
आज किसान आंदोलन के 6 महीने व किसान विरोधी मोदी सरकार के 7 साल पूरे हो गए हैं। ऐसे में किसान नेताओं ने आज के दिन को ब्लैक डे यानी काला दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया है। जगह-जगह किसान काले कपड़े, झंडे और पगड़ी पहनकर काला दिवस मना रहे हैं। 



पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड आदि सभी प्रदेशों में गांव-गांव, घर-घर किसानों ने 'ब्लैक डे' के रूप में अपने घरों, ट्रैक्टरों और मोटरसाइकिलों पर काले झंडे लगा रखे हैं। काफी लोग काली पगड़ी पहनकर विरोध जता रहे हैं। यही नहीं, कई जगहों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और काले कानूनों के पुतले भी फूंके जा रहे हैं।  

दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है। इस मौके पर प्रदर्शनकारी काले कपड़े, झंडे और पगड़ी पहनकर काला दिवस मना रहे हैं। 29 जनवरी को किसान नेता राकेश टिकैत के भावुक होने पर हजारों किसान फिर से यूपी गेट पर जमा हो गए। गन्ना और गेहूं कटाई के चलते घरना स्थल से भीड़ घट गई थी। कोरोना संक्रमण का भी असर आंदोलन स्थल पर दिखा। तंबुओं का दायरा भी सिमट गया था लेकिन किसानों का हौंसला एक पल के लिए भी कभी कम नहीं हुआ। 

अब जब आंदोलन को माह पूरे हो गए हैं तो किसान संगठनों ने आंदोलन तेज करने को नई रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। इससे पहले किसानों ने एक बार फिर से बातचीत की गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दी हैं। दरअसल, पीएम मोदी ने कहा था कि सरकार बातचीत के लिए एक फोन कॉल की दूरी पर हैं लेकिन 4 माह से ज्यादा समय से बातचीत बंद है। किसान फोन नम्बर मांगते रहे लेकिन अब किसानों ने बाकायदा चिट्ठी लिखकर मोदी सरकार को वार्ता शुरू करने की पहल की है। हालांकि मोदी सरकार पूरी तरह मौन है जिससे भी किसानों का हौसला बुलंद है। 

पिछले साल 26 नवंबर से किसानों का आंदोलन शुरू हुआ था। बीते 6 महीनों में किसान आंदोलन के कई रंग देखने को मिले। 26 जनवरी 2021 का दिन भारत में कभी नहीं भूलाया जा सकता। जब पूरी दिल्ली मार्च में हजारों ट्रैक्टर दौड़े थे। आज 6 माह होने पर किसान और आंदोलन को समर्थन कर रहे सभी जनसंगठन, ट्रेड यूनियन और ट्रांसपोर्टर्स के कार्यकर्ता भी अपने मकानों, दुकानों, ट्रकों और दूसरे वाहनों पर काले झंडे लगाकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।

किसान आंदोलन से जुड़े 40 संगठनों के समूह संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से एक बयान जारी करके पिछले हफ्ते कहा था कि किसान 26 मई को काला दिवस मनाएंगे। उस दिन किसानों ने लोगों से अपने घरों पर काले झंडे लगाने की अपील की थी। किसान संगठनों ने कहा था कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला भी जलाएंगे। 

खास है कि 26 मई को किसान आंदोलन के छह महीने पूरे होने जा रहे हैं और 2014 से दिन, महीने और साल जोड़ कर देखें तो मोदी सरकार के सात साल भी उसी दिन पूरे होने जा रहे हैं। वैसे 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी नयी पारी की शुरुआत 30 मई को की थी। किसानों और मोदी सरकार के बीच आखिरी दौर की बातचीत 22 जनवरी को हुई थी और वो 11वें दौर की बातचीत थी लेकिन वो भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी थी।

किसान नेताओं के साथ सरकार की तरफ से बातचीत की अगुवाई कर रहे कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बातचीत के दौरान 12 संशोधनों के साथ साथ तीनों कृषि कानूनों को 18 महीने तक होल्ड करने के लिए तैयार दिखे थे। लेकिन लगे हाथ ये भी साफ कर दिया था कि सरकार के पास इससे बेहतर कोई प्रस्ताव नहीं है।

अब 21 मई, 2021 को 40 किसान संगठनों के समूह संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी और तत्काल किसानों के साथ संवाद दोबारा शुरू करने को कहा।

चिट्ठी में लिखा है, "सरकार की ओर से की गई बातचीत में किसानों ने पूरा सहयोग किया लेकिन फिर भी सरकार हमारी न्यूनतम मांगों और चिंताओं का हल निकालने में असफल रही है। कोई भी लोकतांत्रिक सरकार अब तक इन कानूनों को वापस ले चुकी होती जिससे किसानों में इतना असंतोष है, जिनके नाम पर ये क़ानून लाया गया है। 

संयुक्त किसान मोर्चा नेता दर्शनपाल सिंह कहते हैं, "26 मई को हम बुद्ध पूर्णिमा की पूजा से शुरुआत करेंगे, जो जहां भी प्रदर्शन चल रहा है वहां सरकार के इस कानून के खिलाफ़ काले झंडे फहराएगा। कहा कि पंजाब में रैली निकाल रहे हैं लेकिन दिल्ली में कोरोना के हालात देखते हुए हम रैली या परेड नहीं निकालेंगे।

"हमने अपनी मांग सरकार के सामने कई बार रख दी है, अब नरेंद्र तोमर (कृषि मंत्री) कहते हैं कि हम कोई अल्टरनेटिव लेकर आएँ, सरकार आपकी है, ये काम आपका है, हमने अपनी मांग रखी है और अपनी मांगों के साथ डटे हुए हैं। हमारी पीढ़ियों का भविष्य दांव पर है, 18 महीने की रोक से कुछ नहीं होगा"।

भारतीय किसान यूनियन के धर्मेंद्र मलिक कहते हैं, "हमने कोरोना को देखते हुए किसानों को यहां गाजीपुर बॉर्डर आने से मना किया है लेकिन इस बार ये काले झंडे गांवों-गांवों में फहराएँगे।

संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य बलवीर सिंह राजेवाल, दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढूनी, हनान मुला, जगजीत सिंह दल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उगराहा, युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव, अभिमन्यु कोहाड़ की तरफ से मोदी सरकार को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि जिस तरह से कोरोना महामारी चल रही है ऐसे में सरकार बातचीत कर किसानों की समस्या का समाधान करे तो वे आराम से अपने घर चले जाएंगे। इसके साथ ही शर्त रखी गई है कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को रद्द करे और फसलों की खरीद के लिए एमएसपी का कानून बनाए। 

किसान नेताओं का कहना है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के नाते सरकार को बड़ा दिल कर किसानों की मांगों पर विचार करना चाहिए। इसके साथ ही सरकार से गांवों में संक्रमण को फैलने से रोकने के प्रभावी कदम उठाए जाने की मांग की गई है।

आगे की रणनीति के तौर पर खास यह है कि पश्चिम बंगाल के बाद अब किसान यूपी और उत्तराखंड में भाजपा के विरोध में अभियान छेड़ेंगे। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अगले साल चुनाव होने हैं। इसलिए संयुक्त किसान मोर्चा ने दोनों राज्यों में अभियान शुरू करने का फैसला लिया है। इसमें देश भर के किसान संगठनों व उन्नतशील किसानों को साथ लेकर रैलियों के साथ ही बैठक की जाएगी। 

किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने शनिवार को केंद्र सरकार पर बातचीत फिर से शुरू नहीं करने का आरोप लगाते हुए दावा किया कि किसानों ने केंद्रीय कृषि कानूनों (Farm Laws) पर बातचीत करने से कभी इनकार नहीं किया। राजेवाल ने यहां संवाददाताओं से कहा, 22 जनवरी के बाद से केंद्र सरकार द्वारा कोई बैठक नहीं बुलाई गई है. सरकार की ओर से बातचीत के लिए आगे का रास्ता रोक दिया गया है। हमने बातचीत करने से कभी इनकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि बातचीत फिर से शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भी लिखा गया है।

गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से किसान आंदोलन में किसानों की मौजूदगी कुछ कम हो गई थी। लेकिन अब फसलों की बुवाई के बाद किसान फिर आंदोलन की जगहों पर लौटने लगे हैं। यही नहीं, देश में कहर बरपाने वाली कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर जैसे-जैसे कमजोर पड़ती जा रही है, वैसे ही 'किसान आंदोलन' सक्रिय हो गया है। रविवार को 2 दिन पहले ही बड़ी संख्या में किसानों का जत्था सिंघू बॉर्डर पर पहुंचा। हिसार की घटना से आंदोलित होकर भी किसानों ने बड़ी संख्या में दिल्ली की सीमा पर पहुंचना शुरू किया है। 

वहीं, इस बीच देश के 12 प्रमुख विपक्षी दलों ने किसानों के 26 मई को काला दिवस मनाने के फैसले का समर्थन किया है और देश भर में होने वाले प्रदर्शन का साथ देने का ऐलान किया है। विपक्षी पार्टियों की ओर से जारी एक साझा बयान में यह जानकारी दी गई है। बयान पर सोनिया गांधी, एचडी देवेगौड़ा, शरद पवार, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, एमके स्टालिन, हेमंत सोरेन, फारूक अब्दुल्ला, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, डी राजा और सीताराम येचुरी ने दस्तखत किए हैं।

विपक्षी पार्टियों के साझा बयान में कहा गया है हम किसानों के शांतिपूर्ण आंदोलन के छह महीने पूरे होने के मौके पर 26 मई को संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से देश भर में होने ले प्रदर्शन को अपना समर्थन देते हैं। इसमें आगे कहा गया है केंद्र सरकार को अड़ियल रवैया छोड़ कर इन मुद्दों पर संयुक्त किसान मोर्चा से फिर से वार्ता शुरू करनी चाहिए। बयान में कहा गया है। हमने 12 मई को संयुक्त रूप से प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा था, महामारी का शिकार बन रहे हमारे लाखों अन्नदाताओं को बचाने के लिए कृषि कानून निरस्त किए जाएं, ताकि वे अपनी फसलें उगाकर भारतीय जनता का पेट भर सकें।

उधर कर्मचारी संगठन भी किसानों के समर्थन में आए हैं। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ 'एआईडीईएफ' के महासचिव सी श्रीकुमार कहते हैं, केंद्र सरकार ने किसानों का मजाक बनाकर रख दिया है। सरकार दोधारी तलवार की तरह काम कर रही है। एक तरफ किसानों को बर्बाद करने पर तुली है तो दूसरी ओर लाभ में चल रहे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को निजी हाथों में सौंप रही है। श्रीकुमार कहते हैं कि सरकार की इन नीतियों के खिलाफ हल्लाबोल किया जाएगा। देश के कर्मचारी संगठन, किसानों के साथ खड़े हैं। जब तक तीनों काले कृषि कानूनों को रद्द नहीं किया जाता, तब तक सरकार के खिलाफ आंदोलन करते रहेंगे।

ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के अध्यक्ष सत्यवान बताते हैं कि केंद्र सरकार अब किसानों की मांगों को लेकर आपराधिक प्रवृति की राह पर चल पड़ी है। यानी वह चाहती है कि ये आंदोलन लंबा खिंचता रहे और किसी तरह खुद ही बदनाम हो जाए। सरकार पहले भी ऐसे प्रयास कर चुकी है।

सत्यवान कहते हैं, इस बार किसान आंदोलन नए रूप और नए तौर तरीकों के साथ लोगों के सामने आ रहा है। दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन चलता रहेगा, उसके अलावा ऐसी रणनीति बनाई गई कि ये आंदोलन देश के सभी जिलों में शुरू हो। सोशल मीडिया के माध्यमों के जरिए किसान अपनी बात राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाएंगे। 26 मई को किसान संगठन और सेंट्रल ट्रेड यूनियन मिलकर 'काला दिवस' मनाएंगी।

ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के अध्यक्ष सत्यवान के अनुसार, इस बार हमारा प्रयास है कि किसान आंदोलन देश के हर हिस्से में मजबूती के साथ खड़ा हो। पिछली बार सरकार यह कहती रही कि ये तो ढाई प्रदेशों के किसानों का आंदोलन है। इस बार सरकार का यह वहम तोड़ा जाएगा। सरकार के खिलाफ जनमत तैयार करने की रणनीति बनाई गई है। इस मुहिम में युवा, कामगार और महिलाएं शामिल रहेंगी। दो बातें अहम रहेंगी। एक, भाजपा नेताओं का उनके सार्वजनिक कार्यक्रमों के दौरान काला झंडा दिखाकर घेराव किया जाएगा। दूसरा, देश के हर जिले में बीस, पचास या सौ युवाओं की ऐसी टोली तैयार की जाएंगी, जो भाजपा के मंत्रियों व पदाधिकारियों का पुतला फूंक सकें।


इसके साथ ही शहरों में किसान आंदोलन की दस्तक होगी। पंजाब और हरियाणा के शहरों में किसान आंदोलन का व्यापक असर देखने को मिला है। इसी तर्ज पर दूसरे राज्यों में आंदोलन का विस्तार होगा। सत्यवान बताते हैं, किसान संगठनों के नेताओं ने पश्चिम बंगाल में केंद्र सरकार की पोल खोली थी। वहां के लोगों ने किसानों की बात को ध्यान से सुना है। नतीजा आपके सामने है। अब लोगों को यह अहसास हो गया है कि भाजपा जनविरोधी नीतियों पर चल रही है।

जिस तरह हाल ही में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को उनके गृह जिले में काले झंडे दिखा दिए गए, वैसे ही सभी मंत्रियों को अपने अपने क्षेत्रों में काले झंडे देखने को मिलेंगे। समाज के बौद्धिक वर्गों को साथ लिया जा रहा है। रोजाना फेसबुक पर प्रात: 11 बजे से एक बजे तक परिचर्चा हो रही है। नॉर्थ जोन और साउथ जोन में इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। उनमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को आमंत्रित किया जाता है। अलग अलग राज्यों के किसानों द्वारा अपनी बात रखी जाती है। किसान संगठन, कोविड 19 के नियमों को ध्यान में रखकर आंदोलन को आगे बढ़ाते रहेंगे।

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