नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 'बच्चा पांडेय बनाम बिहार सरकार केस' में राज्य के पुलिस महानिदेशक और पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से जवाब मांगते हुए पूछा है कि दहेज के आरोपी को गिरफ्तार करने में 21 साल क्यों लग गये?
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दरअसल यह मामला 2 फरवरी साल 1999 का है जब मृतका के भाई ने एक एफआईआर दर्ज करायी थी। इस एफआईआर में उन्होंने आरोप लगाया था कि मृतका के पति और ससुराल वालों ने दहेज के लिए उसका उत्पीड़न किया था। शिकायतकर्ता का आरोप था कि मृतका के पति और उसके परिवारवालों ने महिला के शव का अंतिम संस्कार उन लोगों (मृतका के परिजनों) को सूचित किए बिना ही कर दिया था।
इस मामले में नामजद सभी आरोपियों के खिलाफ दस साल पर चार्जशीट दायर की गयी थी। अंतिम रिपोर्ट में कहा गया है कि 'प्राथमिकी के सभी नामजद अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट के लिए पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध कराये जा चुके हैं।
इस वर्ष के शुरू में हाईकोर्ट ने उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसने कहा था कि केस डायरी के अनुसार, मृतका की बिसरा जांच में अत्यधिक जहरीले पदार्थ का पता चला था। अभियुक्त को सात जून 2020 को गिरफ्तार किया गया था। पहले सत्र अदालत ने और फिर बाद में हाईकोर्ट ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच ने आरोपी पति की ओर से दायर अपील पर विचार करते हुए कहा, 'एक युवती की हत्या से जुड़े गम्भीर अपराध के सिलसिले में जांच किये जाने में और अभियुक्त के खिलाफ अभियोग शुरू करने में स्पष्ट देरी बहुत ही परेशान करने वाली है और इसका कारण स्पष्ट भी नहीं है।'
कोर्ट ने कहा कि यह 'काफी चिंताजनक' है कि पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। बेंच ने कहा कि रिकॉर्ड में लाये गये साक्ष्य चौंकाने वाली स्थिति को दर्शाते हैं।
बेंच ने अभियुक्त की जमानत याचिका खारिज करते हुए बिहार के पुलिस महानिदेशक और पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी किये। कोर्ट ने उन्हें मुकदमे के विवरण को लेकर एक रिपोर्ट पेश करने और इस तरह की अत्यधिक देरी का कारण बताने का निर्देश दिया है।
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दरअसल यह मामला 2 फरवरी साल 1999 का है जब मृतका के भाई ने एक एफआईआर दर्ज करायी थी। इस एफआईआर में उन्होंने आरोप लगाया था कि मृतका के पति और ससुराल वालों ने दहेज के लिए उसका उत्पीड़न किया था। शिकायतकर्ता का आरोप था कि मृतका के पति और उसके परिवारवालों ने महिला के शव का अंतिम संस्कार उन लोगों (मृतका के परिजनों) को सूचित किए बिना ही कर दिया था।
इस मामले में नामजद सभी आरोपियों के खिलाफ दस साल पर चार्जशीट दायर की गयी थी। अंतिम रिपोर्ट में कहा गया है कि 'प्राथमिकी के सभी नामजद अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट के लिए पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध कराये जा चुके हैं।
इस वर्ष के शुरू में हाईकोर्ट ने उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसने कहा था कि केस डायरी के अनुसार, मृतका की बिसरा जांच में अत्यधिक जहरीले पदार्थ का पता चला था। अभियुक्त को सात जून 2020 को गिरफ्तार किया गया था। पहले सत्र अदालत ने और फिर बाद में हाईकोर्ट ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच ने आरोपी पति की ओर से दायर अपील पर विचार करते हुए कहा, 'एक युवती की हत्या से जुड़े गम्भीर अपराध के सिलसिले में जांच किये जाने में और अभियुक्त के खिलाफ अभियोग शुरू करने में स्पष्ट देरी बहुत ही परेशान करने वाली है और इसका कारण स्पष्ट भी नहीं है।'
कोर्ट ने कहा कि यह 'काफी चिंताजनक' है कि पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। बेंच ने कहा कि रिकॉर्ड में लाये गये साक्ष्य चौंकाने वाली स्थिति को दर्शाते हैं।
बेंच ने अभियुक्त की जमानत याचिका खारिज करते हुए बिहार के पुलिस महानिदेशक और पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी किये। कोर्ट ने उन्हें मुकदमे के विवरण को लेकर एक रिपोर्ट पेश करने और इस तरह की अत्यधिक देरी का कारण बताने का निर्देश दिया है।