फर्जी “चाणक्य” की चमचई में लगे हिंदी अखबारों के यहां से सीखना चाहिए

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: November 27, 2019
मैं जो अखबार देखता हूं उनमें द टेलीग्राफ को छोड़कर किसी भी अखबार ने आज यह शीर्षक नहीं लगाया है कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने की कोशिश में भाजपा पिट गई, ठुक गई या बेईज्जत हुई। और तो और, फडनवीस को कुर्सी छोड़नी पड़ी, उद्धव ही बनेंगे मुख्यमंत्री फ्लोर टेस्ट से पहले फडनवीस का इस्तीफा जैसा शीर्षक भी नहीं है। कहने को कहा जा सकता है कि अगर वैसा शीर्षक होता तो कहा जा सकता था कि ऐसा नहीं है। लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि भाजपा ने जो किया वह सर्वविदित है। सरकार बनाने की जल्दबाजी में उसे मुंह की खानी पड़ी है। तो यह तथ्य शीर्षक में क्यों नहीं?



सरकार बनने और आधी रात में चौकीदारों की मिलीभगत से शपथग्रहण करा देने को चाणक्य नीति और धोबी पछाड़ कहा जा सकता है तो चाणक्य नीति नहीं चली या पिट गई - क्यों नहीं? जो लोग रात के अंधेरे में चौकीदारों की बेईमानी और अनैतिकता को चाणक्य नीति बता रहे थे उन्हें क्यों नहीं बताया जाए कि उनका चाणक्य बुरी तरह पिट गया है। यह कैसे संभव है कि सभी अखबार एक जैसा शीर्षक लगाएं और एक खास तरह का शीर्षक नहीं लगाए। मेरा मानना है कि इससे पता चलता है कि ऐसे सभी अखबार जो सरकार या भाजपा के खिलाफ हो ही नहीं सकते, ऐसे मौकों पर भी नहीं हैं, वे दरअसल हर मौके पर सरकार के लिए ही बैटिंग करते हैं। सरकार के पक्ष में नहीं करें यह संभव हो तो हो, पर खिलाफ नहीं करेंगे।

शीर्षक से सबने यही बताया है कि उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री होंगे या फडणविस ने इस्तीफा दिया, उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनेंगे। नवभारत टाइम्स का शीर्षक है, फ्लोर टेस्ट से पहले जमीन खिसकी। जबकि कोई जमीन थी ही नहीं, जबरन कब्जे की कोशिश थी नहीं कर पाए। इसी तरह, हिन्दुस्तान का शीर्षक है, महाराष्ट्र की महाभारत में बाजी पलटी। इसे केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के उस बयान से जोड़कर पढ़िए कि चोर दरवाजे से वित्तीय राजधानी पर कब्जा करने का षडयंत्र था तो आप पाएंगे कि चौकीदारों की चोरी को कोई चोरी नहीं कह रहा है और चोर दरवाजे के कब्जे का षडयंत्र किसने किया। हिन्दुस्तान के आज के शीर्षक की जगह अगर, महाराष्ट्र में भाजपा सत्ता से बाहर तो क्या कोई फोन करके डांटता या विज्ञापन नहीं मिलता? अगर वाकई ऐसी स्थिति है तो बताया जाना चाहिए वरना सभी अखबार एक जैसा शीर्षक क्यों लगाते हैं?

दैनिक भास्कर का शीर्षक है, अबकी बार खो दी सरकार। इसकी जगह, अबकी बचा नहीं पाए सरकार, या साढ़े तीन दिन में ही गिर गई सरकार, फ्लोर टेस्ट की नौबत ही नहीं आई, रात के अंधेरे में बनी सरकार दिन दहाड़े गिर गई - ऐसा कोई शीर्षक क्यों नहीं? यह अलग बात है कि लीड के साथ अखबार में एक और खबर का शीर्षक है, पवार के अनुभव से हारा भाजपा का उतावला पन। यहां भी पवार को श्रेय दिया जा रहा है पर भाजपा ने विधायक खरीदने या तोड़फोड़ कर लेने की उम्मीद में ही सरकार बनाई थी और उसमें सफल रहती तो भी वह गलत होता। उसकी चर्चा नहीं करके पवार के कौशल को श्रेय दिया जा रहा है।

दैनिक जागरण का शीर्षक है, और आज यह खबर लीड है, महा-उलटफेर-2 :उद्धव ठाकरे ही होंगे महाराष्ट्र के सीएम। फिर पलटी बाजी- फ्लोर टेस्ट से पहले देवेन्द्र फडनवीस और अजीत पवार का इस्तीफा। अमर उजाला का शीर्षक है, उद्धव होंगे सीएम, कल शपथ ..... सुप्रीम फैसले बाद अजित ने मैदान छोड़ा, फडनवीस का 80 घंटे में इस्तीफा। इसमें तथ्यात्मक रूप से यह भले सही हो कि सुप्रीम फैसले के बाद अजीत ने मैदान छोड़ा और फडनवीस ने 80 घंटे में इस्तीफा दिया पर इसके साथ यह भी सही है कि अजित मुख्यमंत्री फडणवीस के साथ बैठक करने नहीं गए थे और यह खबर कल ही टाइम्स ऑफ इंडिया में थी। इसी तरह मुख्यमंत्री 80 घंटे कैसे पद पर रह पाए और पहले इस्तीफा क्यों नहीं दिया के साथ यह भी बताया जा सकता था कि उनके साथ बहुमत नहीं था और इस्तीफा नहीं देने का विकल्प यही होता कि शक्ति परीक्षण में हार जाते।

नवोदय टाइम्स का शीर्षक भी रूटीन ही है। भाजपा पस्त, उद्धव उदय में कुछ नया नहीं है। सौ सरकार की एक पवार की – बाकी अखबारों से जरूर अलग है। पर पवार की तारीफ का उद्देश्य भाजपा की निन्दा से बचना है। पवार ने अगर कुछ अच्छा किया है तो उसका फल उन्हें मिला है। भाजपा क्यों गच्चा खाई या सत्ता के दुरुपयोग पर कोई टीका-टिप्पणी नहीं होना अखबारों में बिना धार की सामग्री होना ही है। राजस्थान पत्रिका का शीर्षक है, उद्धव होंगे सीएम, फडणवीस का इस्तीफा। यह शीर्षक भी रूटीन ही है। इन सुर्खियों से एक बात और याद आई कि उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री होंगे यह कल भले तय हुआ, स्पष्ट बहुत पहले से है औऱ कुछ दिन पहले ही शीर्षक भी बन चुका है। चौकीदारों ने अगर आधी रात में चोरी, बेईमानी औऱ अनैतिकता नहीं की होती तो वही शीर्षक दोबारा छापने की स्थिति ही नहीं आती। पर इन सब बातों से अलग, अखबार घिसी-पिटी खबर दे रहे हैं और उसी को ताजा कहकर परोस दिया है। ज्यादातर अखबारों ने यह सब नहीं बताकर, गोल-मोल शीर्षक लगाया है और भाजपा को बचाते हुए नजर आ रहे हैं। मौके बेमौके जिसे चाणक्य बताते हैं उसके बुरी तरह नाकाम रहने पर चाणक्य नीति की भी चर्चा नहीं की है।

कहने की जरूरत नहीं है कि आज भी सबसे अलग शीर्षक द टेलीग्राफ का ही है और यह खबर के एक अलग हिस्से को हाईलाइट कर रहा है जो असल में खबर है और सबसे नया भी। प्रस्तुति का अंदाज भी। बचपन में यह कविता किसने नहीं पढ़ी होगी। पर उसका ऐसा उपयोग हर कोई नहीं कर सकता। पहले तो कविता की लाइनें याद कीजिए

Humpty Dumpty sat on a wall,
Humpty Dumpty had a great fall;
All the king's horses and all the king's men
Couldn't put Humpty together again.

फिर शीर्षक को समझिए
Humpty Dumpty - तो दो जनों के नाम हैं। पर शीर्षक में उपयुक्त Grumpy का मतलब होता है गुस्सैल। Nailed on Constitution Day का अर्थ आम बोलचाल में होगा - संविधान दिवस पर ठोंक दिए गए। और ठीक ही है कि इसमें राजा साब को भी नहीं बख्शा गया है। सही कहा गया है कि नेताओं की चमड़ी बहुत मोटी होती है। किसी ने कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं ली। कोई इस्तीफा नहीं। सफल रहते तो चाणक्य और ठुक गए तो एक छोटे चोर, माफ कीजिएगा चौकीदार से कहलवा दिया हमने खरीद फरोख्त नहीं की। इसलिए अखबार ने चाणक्य को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम को भी दूर कर दिया है, हमेशा के लिए। यही नहीं, अखबार ने एक चाणक्य सूत्र भी छापा है। अनुवाद कुछ इस तरह होगा, उचित प्रशासन की जड़ में आत्मसंयम होता है और आत्मसंयम की जड़ में होती है विनम्रता। काश कुछ और अखबार ऐसे हो पाते......
 

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