नई दिल्ली। कांग्रेस पार्टी का अंदरूनी घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। विवाद बढ़ता जा रहा है और नए-नए लोग जुड़ते जा रहे हैं। ताज़ा घटनाक्रम में पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने अंसतुष्ट धड़ा जी-23 पर क़रारा हमला करते हुए उनके नाम एक खुला खत लिखा है।
उन्होंने पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र का हवाला देते हुए कहा कि हज़ारों कांग्रेस कार्यकर्ता हैं जिन्हें पार्टी से कुछ नहीं मिला है या बहुत ही कम मिला है, वे भी लोकतंत्र में यकीन करते हैं। उन्होंने असंतुष्टों को निशाने पर लेते हुए उन्हें दिलाया कि पार्टी के आंतरिक चुनाव सही समय पर कराए जाएंगे यह उन्हें पता है, वे कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष और बाद में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में इस पर राजी हो चुके हैं। लेकिन उन्होंने समय देख कर गोलपोस्ट बदल दिया, पार्टी के प्रति असहमति दिखाने के लिए जम्मू में जमा हो गए और वे ऐसा ही हरियाणा में करने वाले हैं।
सलमान खुर्शीद ने जी-23 के नेताओं को याद दिलाया कि कांग्रेस पार्टी का पिछले 50 सालों का इतिहास बहुत ही जटिलताओं से भरा रहा है और अब उसे बीजेपी-आरएसएस की विभाजनकारी राजनीति का सामना करना है। उन्होंने कहा कि पार्टी दो पाटों के बीच फँसी है, कुछ लोग यह मानते हैं कि कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता पर कोई समझौता कर ही नहीं सकती और कुछ लोग यह मानते हैं कि उसने धर्मनिरपेक्षता का फ़ायदा नहीं उठाया है।
सलमान खुर्शीद ने अंसतुष्ट धड़े को लिखी चिट्ठी में कहा है कि सांप्रदायिक ताक़तों के बढ़ते प्रभाव की वजह से कांग्रेस कुछ ज्यादा ही चौकन्नी हो गई है। उन्होंने तंज करते हुए कहा कि कांग्रेस अपने नायकों की 'गल़तियों' को स्वीकार करने लगी है क्योंकि वह समय की माँग बन गई है।
सलमान खुर्शीद ने ज़ोर देकर कहा है कि ऐसे में वस्तुस्थिति और अवधारणा, रणनीति और विचारधारा के बीच संतुलन बनाना ज़रूरी है। ऐसे में कांग्रेस को हर तरह के लोगों-युवा व बुजुर्ग, खुश-नाखुश, सिद्धांतकार और व्यक्तिगत आकांक्षा वाले, उन्हें जिन्हें तरजीह दी गई और उन्हें जिनकी उपेक्षा की गई है, सबकी ज़रूरत है। ऐसे में आंतरिक कलह और सचमुच के और काल्पनिक कमियों पर बहस करने की ज़रूरत नहीं है।
किसी समय सोनिया गांधी के नज़दीक रहे खुर्शीद ने कहा कि लोकतंत्र एक प्रक्रिया है, वह समय पर रुक जाने वाली चीज नहीं है। सलमान खुर्शीद ने असंतुष्टों को फटकार लगाते हुए सवाल किया है कि क्या यह उचित है कि जिस सीढ़ी पर चढ़ कर आप ऊँचाई पर पहुँचे हैं, जहाँ से ज़ोर से बोलना आसान है, उस सीढ़ी को ही झटक दिया जाए।
उन्होंने पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र का हवाला देते हुए कहा कि हज़ारों कांग्रेस कार्यकर्ता हैं जिन्हें पार्टी से कुछ नहीं मिला है या बहुत ही कम मिला है, वे भी लोकतंत्र में यकीन करते हैं। उन्होंने असंतुष्टों को निशाने पर लेते हुए उन्हें दिलाया कि पार्टी के आंतरिक चुनाव सही समय पर कराए जाएंगे यह उन्हें पता है, वे कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष और बाद में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में इस पर राजी हो चुके हैं। लेकिन उन्होंने समय देख कर गोलपोस्ट बदल दिया, पार्टी के प्रति असहमति दिखाने के लिए जम्मू में जमा हो गए और वे ऐसा ही हरियाणा में करने वाले हैं।
सलमान खुर्शीद ने जी-23 के नेताओं को याद दिलाया कि कांग्रेस पार्टी का पिछले 50 सालों का इतिहास बहुत ही जटिलताओं से भरा रहा है और अब उसे बीजेपी-आरएसएस की विभाजनकारी राजनीति का सामना करना है। उन्होंने कहा कि पार्टी दो पाटों के बीच फँसी है, कुछ लोग यह मानते हैं कि कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता पर कोई समझौता कर ही नहीं सकती और कुछ लोग यह मानते हैं कि उसने धर्मनिरपेक्षता का फ़ायदा नहीं उठाया है।
सलमान खुर्शीद ने अंसतुष्ट धड़े को लिखी चिट्ठी में कहा है कि सांप्रदायिक ताक़तों के बढ़ते प्रभाव की वजह से कांग्रेस कुछ ज्यादा ही चौकन्नी हो गई है। उन्होंने तंज करते हुए कहा कि कांग्रेस अपने नायकों की 'गल़तियों' को स्वीकार करने लगी है क्योंकि वह समय की माँग बन गई है।
सलमान खुर्शीद ने ज़ोर देकर कहा है कि ऐसे में वस्तुस्थिति और अवधारणा, रणनीति और विचारधारा के बीच संतुलन बनाना ज़रूरी है। ऐसे में कांग्रेस को हर तरह के लोगों-युवा व बुजुर्ग, खुश-नाखुश, सिद्धांतकार और व्यक्तिगत आकांक्षा वाले, उन्हें जिन्हें तरजीह दी गई और उन्हें जिनकी उपेक्षा की गई है, सबकी ज़रूरत है। ऐसे में आंतरिक कलह और सचमुच के और काल्पनिक कमियों पर बहस करने की ज़रूरत नहीं है।
किसी समय सोनिया गांधी के नज़दीक रहे खुर्शीद ने कहा कि लोकतंत्र एक प्रक्रिया है, वह समय पर रुक जाने वाली चीज नहीं है। सलमान खुर्शीद ने असंतुष्टों को फटकार लगाते हुए सवाल किया है कि क्या यह उचित है कि जिस सीढ़ी पर चढ़ कर आप ऊँचाई पर पहुँचे हैं, जहाँ से ज़ोर से बोलना आसान है, उस सीढ़ी को ही झटक दिया जाए।