'कोरोना' पर कविता : 'सूरज मुझे आज देख मंद-मंद मुस्काया है..'

Written by | Published on: April 1, 2020
सूरज मुझे आज देख मंद मंद मुस्काया है
नील गगन बहुत दिनों बाद मुझसे आँख मिलाया है



हो गए हैं फासले हम दोनों के दरमियां दूर
प्रदूषण को कोरोना ने जो दूर भगाया है

एक ज़रा सी चीज़ तुम जल्लादों पे भारी पड़ गई
अब तुम्हारी वो इतराती चमक और अंगड़ाई कहाँ गई

पर अब कोरोना को भी रोना आ गया है
और तुम इंसानो से शरमा गया है

खुद की ज़ात और कारनामो पे खूब पछताया
और ये बोल रो पड़ा: मै इस धरती पे क्यों आया ?

मुझको कहाँ रहबसर आज आया हूँ कल हो जाएगा मेरा भी क्रियाकर्म

कोरोना ये सोच झेंप सा गया कि मैं
इन स्वार्थियों के बीच बेकार ही आया

पहले ही दीवाने बास्ते हैं यहाँ आदमफरोश
जो ग़रीबो के ना हुए कभी दोगले बर्दाफरोश    

आदमी आदमी को बेच खा रहा
इंसानियत का बोलबाला मुरझा रहा

                                         - सादिया हाशमी (जामिया मिलिया इस्लामिया )

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