भाषा कारण है तो किशोरचंद्र ही नहीं मोदी-शाह,अविनाश अनगिनत लोगों पर रासुका लग जाएगा

Written by Ravish Kumar | Published on: December 29, 2018
मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांग्खेम को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत एक साल की सज़ा हुई है। NSA का एक सलाहकार बोर्ड होता है। 11 दिसंबर को राज्य सरकार ने पत्रकार के खिलाफ लगाए गए आरोपों को इसके सामने पेश किया। 13 दिसंबर को बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी और NSA के तहत गिरफ्तारी को मंज़ूरी दे दी बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आरोपी की पिछली गतिविधियों पर विचार किया गया है। यह देखा गया है कि उसकी गतिविधियों से राज्य की सुरक्षा और कानून व्यवस्था को लेकर कोई ख़तरा तो पैदा नहीं हो सकता है। आशंका है कि जेल से छूटते ही आरोपी पूर्वाग्रही गतिविधियों को जारी रखेगा,इसलिए इसे अधिकतम 12 महीने के लिए हिरासत में रखा जाए।



किशोरचंद्र मणिपुर के ISTV के एंकर रिपोर्टर हैं। 21 नवंबर को पुलिस ने गिरफ्तार का था। उन्होंने एक वीडियो अपलोड किया था जिसमें बीजेपी सरकार की आलोचना की थी। मैतेई भाषा में राज्य के मुख्यमंत्री एम बीरेन सिंह की कड़ी आलोचना की थी। मुख्यमंत्री ने राना झांसी के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित किया था और उसे मणिपुर में स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ दिया था। किशोरचंद्र ने इसी बात की आलोचना की थी। बताया गया है कि उन्होंने बीजेपी सरकार, संघ के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग किया था। सरकार को गिरफ़्तार करने की चुनौती दी थी।

गिरफ्तार किए गए और 25 नवंबर को ज़मानत पर रिहा हो गए। अदालत ने माना कि उन्होंने बस सार्वजनिक हस्ती की सड़क की भाषा में आलोचना भर की थी। अदालत ने अपने फैसले में लिखा है कि नहीं लगता कि दो समुदायों के बीच शत्रुता पैदा करने की कोशिश की गई है। न ही इनकी बातों में नफ़रत फैलाने की कोई बात नज़र आती है। लेकिन NSA बोर्ड के फैसले के बाद फिर से गिरफ्तार कर लिया गया।

हर तरफ इस फैसले की आलोचना हुई है। भाषा शालीन होनी चाहिए लेकिन क्या इसके लिए किसी को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत बंद कर देना चाहिए? फिर तो सोशल मीडिया पर नेहरू के प्रति अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में न जाने कितने लोग जेल में बंद हो गए होते, न जाने कितने नेता मंत्री जेल में होते। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह सार्वजनिक व्यक्ति हैं। उनकी आलोचना होगी। उनकी आलोचना की क्या भाषा होगी वो किसी कानून से तय नहीं हो सकता।

ख़राब भाषा और हिंसक भाषा की हमेशा आलोचना होगी लेकिन इसे ठीक करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का इस्तमाल होगा, यह उचित नहीं है। इस हिसाब से तो प्रधानमंत्री और अमित शाह दोनों कई बार भाषा की मर्यादा तोड़ जाते हैं। उनके विरोधी भी उनके ख़िलाफ़ भाषा की मर्यादा तोड़ जाते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री के बारे में टिप्पणी करने पर उनके कार्यकाल में दर्जनों लोग अलग-अलग जगहों पर गिरफ्तार किए गए हैं। यूपी में भी ऐसी कई घटना हो चुकी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की आलोचना की तो केस हो गया।

क्या प्रधानमंत्री वाकई इन चीज़ों पर ध्यान नहीं देते? मामूली बातों पर ट्वीट करने का टाइम होता है मगर इन बातों की कभी आलोचना करते नहीं देखा। क्या उनकी और मुख्यमंत्रियों की आलोचना करने पर जेल होना चाहिए? क्या वाकई आपको लगता है कि किशोरचंद्र की भाषा के कारण मणिपुर की कानून व्यवस्था को ख़तरा है? इन सब बातों को ध्यान में रखा कीजिए, वरना बोलने के तमाम दरवाज़े बंद हो जाएंगे और एक दिन आपके घर के दरवाज़े बंद किए जाएंगे।

हाल ही में अनारकली ऑफ आरा फिल्म निर्देशक अविनाश के खिलाफ़ लखनऊ के थाने में केस दर्ज किया गया है। मुख्यमंत्री का एक फोटोशाप बयान चल रहा था जिसे अविनाश ने अनजाने में ट्वीट करते हुए जूता मारने की बात लिख दी।अविनाश ने इसके लिए माफी मांगने से इंकार कर दिया है। भाषा की आलोचना हो सकती है मगर क्या पुलिस को इन सब मामलों में पड़ना चाहिए? जूते मारने से लेकर पुतले फूंकने के न जाने कितने नारे लगते हैं, क्या अब यह सब अपराध हैं? फिर पुलिस हर प्रदर्शनों में हथकड़ियां लेकर जाए, नारा लगाने वालों को पहनाती रहे। उसकी हथकड़ियां कम पड़ जाएंगी।

और अगर यही सही है तो एकतरफा क्यों हो रहा है, क्या वही थाना प्रभारी मुख्यमंत्री की भाषा को लेकर केस दर्ज कर सकता है? ख़ुद प्रधानमंत्री नोटबंदी के दौरान चौराहे पर जूते मारने की बात कर चुके हैं। जूते मारने की बात हमारी भाषा की सामंती और ख़राब विरासत है। इस कारण असहमति का अंजाम क्या केस मुकदमा और थाना-पुलिस होगा? मैं तो पुतला फूंके जाने का भी विरोधी हूं, और जूते मारने का भी लेकिन इस मामले में पुलिस के पड़ने का भी विरोधी हूं।

असम से लोकसभा में सांसद बदरूद्दीनअजमल का व्यवहार भी अभद्र था। उन्होंने माफी मांग ली है। प्रेस कांफ्रेंस में बीजेपी को लाभ पहुंचाने के सवाल पर भड़क गए और धमकी देने लगे। उन्होंने माफी मांगते हुए कहा कि मीडिया चौथा स्तंभ है। मुझे हमेशा मीडिया का सम्मान करना चाहिए। अच्छा हुआ सदबुद्धि आ गई वर्ना वे पत्रकार का सर तोड़ देने की बात कर रहे थे। मीडिया और सोशल मीडिया में जब अजमल की आलोचना हुई तब उन्हें समझ आया कि क्या ग़लत किया है। अच्छा होता कि ख़ुद से समझ जाते और प्रायश्चित करते।

आप मीडिया से उम्मीद करते हैं तो आप देखें कि मीडिया आपके साथ क्या व्यवहार कर रहा है, आप यह भी देखिए कि सरकार मीडिया के साथ क्या व्यवहार करती है? आप मीडिया के साथ क्या व्यवहार कर रहे हैं?

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