आज पूरे देश के दलित एकजुट होकर अपने अधिकार और आरक्षण संबंधित मांगों के लिए सामने आकर विरोध कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर की प्रतीमा को गिराकर माहौल खराब करने की कोशिश की जा रही है. यह घटना है उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले की, जहां शनिवार, 7 अप्रैल, को अम्बेडकर जी की प्रतिमा को न केवल क्षतिग्रस्त किया, बल्कि सोमवार, 9 अप्रैल, को नीले रंग वाली मूर्ती की जगह भगवा रंग वाली मूर्ती स्थापित कर दी गई.
इसके बाद फिर विवाद खड़ा हुआ और बहुजन समाज पार्टी के एक नेता ने उस मूर्ती को वापस नीले रंग से रंगवा दिया.
भगवाकरण की राजनीति: मूर्ती को भगवा रंगे में रंगने के बाद मासूम बनकर कहा जा रहा है कि रंग से क्या फर्क पड़ता है? यह आम जनता के विवेक का मजाक उड़ाने के अलावा और कुछ नहीं है, इसमें कोई शक नहीं है कि यह सरकार रंगों की राजनीति खेल रही है. और रंगों का राजनीतिकरण हो चुका है. खासकर उत्तर प्रदेश में. क्योंकि पिछले साल ही उत्तर प्रदेश सरकार ने कई संस्थाओं को भगवा रंग में रंग दिया था. अधिकतर स्कूलों, किताबों, यूनिफार्म और सरकारी बसों को भी भगवा रंग से पोता जा चुका है. यहाँ तक कि हज हाउस की दीवारों पर भी भगवा रंग चढ़ा कर विवाद खड़ा कर दिया गया था, और अपनी बदनामी होता देख आनन-फ़ानन रंग बदल भी दिया.
गौरतलब है, कि जो राज्य दलितों पर हो रहे अत्याचार के मामलों में सबसे ऊपर हो, वहां अम्बेडकर को सम्मानित किया जाना महज़ ढोंग ही हो सकता है. यह सरकार इस भगवाकरण से अपने हिंदुत्व-वादी दबंगई का घिनौना खेल खेल रही है.
इसके बाद फिर विवाद खड़ा हुआ और बहुजन समाज पार्टी के एक नेता ने उस मूर्ती को वापस नीले रंग से रंगवा दिया.
भगवाकरण की राजनीति: मूर्ती को भगवा रंगे में रंगने के बाद मासूम बनकर कहा जा रहा है कि रंग से क्या फर्क पड़ता है? यह आम जनता के विवेक का मजाक उड़ाने के अलावा और कुछ नहीं है, इसमें कोई शक नहीं है कि यह सरकार रंगों की राजनीति खेल रही है. और रंगों का राजनीतिकरण हो चुका है. खासकर उत्तर प्रदेश में. क्योंकि पिछले साल ही उत्तर प्रदेश सरकार ने कई संस्थाओं को भगवा रंग में रंग दिया था. अधिकतर स्कूलों, किताबों, यूनिफार्म और सरकारी बसों को भी भगवा रंग से पोता जा चुका है. यहाँ तक कि हज हाउस की दीवारों पर भी भगवा रंग चढ़ा कर विवाद खड़ा कर दिया गया था, और अपनी बदनामी होता देख आनन-फ़ानन रंग बदल भी दिया.
गौरतलब है, कि जो राज्य दलितों पर हो रहे अत्याचार के मामलों में सबसे ऊपर हो, वहां अम्बेडकर को सम्मानित किया जाना महज़ ढोंग ही हो सकता है. यह सरकार इस भगवाकरण से अपने हिंदुत्व-वादी दबंगई का घिनौना खेल खेल रही है.