झारखंड: डुमरी में आदिवासियों की लिंचिंग मामले में पुलिस की संग्दिध भूमिका के विरोध में प्रदर्शन

Written by sabrang india | Published on: June 1, 2019
डुमरी। 10 अप्रैल 2019 को, गुमला के डुमरी प्रखंड के जुरमु गाँव के रहने वाले 50 वर्षीय आदिवासी प्रकाश लकड़ा को पड़ोसी जैरागि गाँव के लोगों की भीड़ ने पीट-पीट कर मार दिया था। जुरमू के तीन अन्य पीड़ित- पीटर केरकेट्टा, बेलारियस मिंज और जेनेरियस मिंज भीड़ द्वारा पिटाई के कारण गंभीर रूप से घायल हो गए थे। 

इस हिंसा एवं पुलिस की भूमिका के विरुद्ध केंद्रीय जन संघर्ष समिति द्वारा 31 मई 2019 को डुमरी में विरोध सभा का आयोजन किया गया। सभा में गुमला, लातेहार व रांची से 5000 लोगों ने भाग लिया। इसमें राज्य के कई मानवाधिकार कार्यकर्ता भी शामिल हुए। 

सभा को संबोधित कर रही जन संघर्ष समिति की सरोज हेम्ब्रम ने कहा कि उनके एवं अन्य कई मानवाधिकार संगठनों द्वारा इस घटना की जांच की गयी। जांच में यह स्पष्ट हुआ था कि जुरमू के एक व्यक्ति का बैल मर गया था जिसने पीड़ितों और अन्य ग्रामीणों से मरे हुए बैल को उठाकर ले जाने तथा मांस व खाल निकालने के लिए बोला था। जब पीड़ित मरे हुए बैल की खाल निकाल रहे थे तभी उनपर जैरागी गाँव के लगभग 35- 40 लोगों की भीड़ ने हमला कर दिया। 

भीड़ ने पीड़ितों को लगभग तीन घंटे तक पीटने के बाद आधी रात को डुमरी पुलिस थाने के सामने छोड़ दिया। पीड़ितों को तुरंत अस्पताल पहुंचाने के बजाए, पुलिस ने लगभग चार घंटों तक उन्हें ठंड में बाहर इंतजार करवाया। जब तक उन्हें स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, तब तक प्रकाश ने दम तोड़ दिया था। सरोज हेम्ब्रम ने लोगों को याद दिलाया कि झारखंड में पिछले चार वर्षों में 11 व्यक्तियों को पीट-पीटकर मारा गया है, जिसमें 9 लोग मुसलमान थे और बाकी दो आदीवासी।

केंद्रीय जन संगठन समिति के जेरोम कुजूर ने प्रतिरोध में आए लोगों को प्रकाश लकड़ा की मृत्यु में पुलिस की भूमिका के बारे में बताया। जांच में गए मानवाधिकार कार्यकर्ता जेम्स हेरेंज ने कहा कि उन्हें इस बात का भी बहुत दुःख है कि अखबार में यह खबर छपी कि जुरमू गांव के लोग आपस में मांस बाँटते बाँटते लड़ने लगे, जिसके कारण प्रकाश लकडा की मृत्यु हो गयी। ज्यां द्रेज़ ने, जो इस मामले में SP से बात करने गए, कहा कि जुर्मू में जो हुआ, वह सीधा सीधा ह्त्या थी, जो पुलिस व राज्य सरकार की शह से हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी घटना झारखंड में ही नहीं, पर पूरे देश में बार-बार हो रही हैं, जिसके पीछे देश में बढ़ता हिंदुत्व है। अशोक वर्मा ने कहा कि भारत में एक सांझा संस्कृति रही है जिसमें लोग एक दूसरे के विचारों व धर्मों को सम्मान करता है। पर देश में एक संगठन है जो इस देश को एक हिन्दू राष्ट्र बनाने की चाह में देश में साम्प्रदायिकता फैला रहा है। 

इस हिंसा के अपराधियों पर तुरंत कार्यवाई करने के बजाए पुलिस ने आदिवासी पीड़ितों पर ही गौ हत्या की फ़र्ज़ी प्राथमिकी दर्ज की दी। अभी तक सब अपराधियों को पकड़ा भी नहीं गया है।

इस जघन्य घटना को कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा अंजाम दिया गया। जिसकी केंद्रीय जन संघर्ष समिति निंदा करती है। समिति पूरे इलाके में अमन चाहती है। परन्तु इस घटना ने पूरे इलाके में दहशत का माहौल खड़ा कर दिया है। घटना के इतने दिनों बाद भी दोषियों की गिरफ्तारी में देरी पुलिस की असंवेदनशीलता का परिचय दे रही है। विरोध सभा के अंत में प्रतिनिधियों ने प्रखंड कार्यालय में राज्यपाल के नाम ज्ञापन देकर निम्न मांगें रखीं।।। 

1। जुरमू के आदिवासियों के खिलाफ दर्ज गौ हत्या की फर्जी प्राथमिकी को निरस्त किया जाए। 

2। भीड़ द्वारा की गई हिंसा में शामिल सभी अपराधियों को गिरफ्तार करें एवं उनपर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत केस दर्ज किया जाए। 

3। स्थानीय पुलिस के खिलाफ पीड़ितों के लिए चिकित्सा उपचार में देरी एवं गौ हत्या का झूठा मुक़दमा दायर करने के लिए कारवाई करें। 

4। मृतक प्रकाश लकडा के परिवार को 15 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। 

5। घायलों को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। 

6। लिंचिंग पर सर्वोच्च न्यायालय के हाल के फैसले का पूर्ण अनुपालन करें।  
 

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