वैसे तो आज आम जनता से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण खबर है जीएसटी कौंसिल की बैठक में लिए गए निर्णय और दैनिक भास्कर ने इसे कायदे से लीड के रूप में पेश किया है। अन्य दूसरी जानकारी प्रमुखता से दी है। दैनिक जागरण का शीर्षक है, आधार नंबर से हो जाएगा जीएसटी पंजीकरण - बताता कम उलझाता ज्यादा है। य चलताऊ प्रस्तुति है। कारोबार के लिए जीएसटी का पंजीकरण कारोबारी सबूतों से होना चाहिए आधार से व्यक्तिगत जीएसटी पंजीकरण हो ही सकता है। वैसे भी, कारोबार के लिए जीएसटी का पंजीकरण आधार कार्ड से क्यों होना चाहिए? कायदे से तो छोटे-मोटे कारोबार के लिए पंजीकरण की आवश्यकता ही नहीं होनाी चाहिए पर आधार से हो जाएगा पंजीकरण ऐसे पेश किया गया है जैसे जीएसटी बहुत आसान हो गया हो। अमर उजाला ने इसे सिंगल कॉलम में निपटा दिया है और कई अखबारों में पहले पन्ने पर है ही नहीं। इसलिए आज दैनिक जागरण की एक खबर की चर्चा करता हूं।
दैनिक जागरण में आज पहले पन्ने पर एएनआई की एक खबर है, बालाकोट एयरस्ट्राइक का नाम था ‘ऑपरेशन बंदर’। 26 फरवरी को किए गए इस हमले की सफलता पर उंगली उठती रही है क्योंकि इससे हुए नुकसान के बारे में आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया। ऐसे हमले का कोड नाम ऑपरेशन बंदर था यह जानकर आप-हम आज चार महीने बाद क्या करेंगे? अमूमन मैं ऐसी खबर पढ़ता नहीं हूं। ना ही अब कुछ लिखने के लिए पढ़ने लगा हूं। दरअसल कल शुक्रवार, 21 जून को राजस्थान पत्रिका में खबर थी कि संसद के संयुक्त सदन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में एयरस्ट्राइक का जिक्र किया तो सबने मेजें थपथपाकर स्वागत किया। मैं नहीं जानता कि उन्होंने क्या जिक्र किया - सिर्फ हमले का या 250 से लेकर 400 आतंकवादियों के मारे जाने का और अगर कोई मरा नहीं तो हमले के मकसद और उसे पूर्ण होने पर कुछ कहा कि नहीं। टेलीविजन पर संसद की कार्यवाही मैं नहीं देख पाया। किसी अखबार में छपा होता तो पढ़ लेता, जान लेता। कल के अखबार पढ़ने के बाद यह जिज्ञासा रह ही गई थी कि एयरस्ट्राइक की चर्चा राष्ट्रपति ने किसलिए, किस तरह की?
दैनिक जागरण में पहले पन्ने पर यह खबर देखकर मुझे लगा कि शायद उसी की कोई चर्चा हो। इसलिए मैं पूरी खबर को एक सांस में पढ़ गया। यह तो नहीं समझ में आया कि खबर पहले पन्ने पर इतनी प्रमुखता से क्यों है पर इसमें एक सूचना है - बता दें कि भारतीय वायु सेना ‘ऑपरेशन बंदर’ में शामिल रहे अपने पायलटों को उनकी बहादुरी के लिए वायु सेना मेडल से नवाजे जाने की तैयारी में है। यह खबर या सूचना दैनिक जागरण में छपी है तो आप समझेंगे कि दैनिक जागरण बता रहा है। लेकिन खबर एएनआई की है तो असल में यह जानकारी समाचार एजेंसी एएनआई दे रही है। अब मुद्दा यह है कि सरकार अपने जांबांज वायुसैनिकों को पुरस्कृत करे, उसकी तैयारी करे पर उसकी सूचना एक गैर सरकारी एजेंसी क्यों दे रही है? और दे रही है तो क्या यह खबर नहीं है? यह दूसरे अखबारों में क्यों नहीं है? खबर लिखने छापने की सामान्य समझ बताती है कि नई सूचना (या काम से कम जो आकर्षित करे) वह पहले होनी चाहिए और यही शीर्षक भी होना चाहिए। पर यहां उल्टा है। मामूली चूक या इरादतन?
इसे राष्ट्रपति के अभिभाषण में बालाकोट हमले के जिक्र की खबर से जोड़कर देखिए। राजस्थान पत्रिका ने कल लिखा था, .... इसपर सोनिया गांधी अपने हाथ मेज थपथपाने से रोक नहीं पाईं। ... अलबत्ता मेज की ओर बढ़ रहे मां सोनिया गांधी के हाथ को उन्होंने (राहुल गांधी ने) रोकने की कोशिश भी की, लेकिन सोनिया नहीं मानीं। इस पर अमर उजाला ने लिखा है, सोनिया ने छह बार मेज थपथपाई। राष्ट्रपति के भाषण के दौरान सोनिया गांधी ने छह बार मेज थपथपाकर अभिवादन किया। सोनिया ने राहुल को कई बार इशारा भी किया, लेकिन वह समझ नहीं पाए। अब आप बताइए - क्या हुआ आप क्या समझे? राजस्थान पत्रिका ने सही लिखा है या अमर उजाला ने? सोनिया ने राहुल तो मेज थपथपाने का इशारा किया वे नहीं समझे या राहुल ने सोनिया को मेज थपथपाने से रोकने की कोशिश और राहुल नहीं माने (या समझे)। वैसे तो य़ह रिपोर्टिंग की चूक है पर अब जब एक विवादस्पद हमले के लिए (जो चुनाव जीतने की कोशिश का हिस्सा भी हो सकता है) पायलट को पुरस्कृत करने की तैयारी गैर सरकारी सूत्रों से आ रही है तो क्या इसे जबरन प्रशंसा करने पाने की कोशिश माना जाए?
राजस्थान पत्रिका ने कल यह भी लिखा था, .... पहली पंक्ति में ही बैठे कांग्रेस के एक और नेता गुलाम नबी आजाद ने भी मेजें थपथपाई। लेकिन उनके ठीक बगल में बैठे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को यह रास नहीं आया। उन्होंने एक बार भी सरकार का उत्साहवर्धन नहीं किया। ....। इन तमाम बातों से मुझे लग रहा है कि बालाकोट हमले को अनावश्यक बड़ी सफलता के रूप में पेश किया जा रहा है। ऐसा कल और आज की खबरों से लग रहा है। इसका कारण चाहे जो हो – मामला अटपटा जरूर है। आइए, अब आज की खबर पढ़ें। भारतीय वायु सेना के जाबांज पायलटों ने बालाकोट में जब जैश-ए-मुहम्मद के आतंकी शिविरों को तबाह किया था, तब पाकिस्तान को कानों-कान खबर तक नहीं लगी थी। पाकिस्तान ही नहीं, इस योजना की किसी को भनक तक नहीं लगे इसका भी वायुसेना ने बहुत ख्याल रखा था। इसी मकसद से 26 फरवरी को हुए हवाई हमले को ‘ऑपरेशन बंदर’ कोड नाम दिया गया था। 14 फरवरी को पुलवामा में आतंकी हमले के जवाब में भारत ने यह हवाई हमला किया था। हमला हुआ था, भारतीय विमान सुरक्षित आ गए इसका मतलब यही है जो इस खबर से अब चार महीने बाद बताया जा रहा है।
शीर्ष रक्षा सूत्रों ने कहा, ‘गोपनीयता बरतने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि योजना लीक ना हो, बालाकोट ऑपरेशन को ऑपरेशन बंदर कोड नाम दिया गया था।’ हालांकि, सूत्रों ने यह नहीं बताया कि ‘ऑपरेशन बंदर’ नाम रखने के पीछे कारण क्या था, लेकिन यह जरूर कहा कि भारत की सांस्कृतिक लड़ाइयों में बंदर का हमेशा से अहम स्थान रहा है। प्रसिद्ध महाकाव्य रामायण में भी कहा गया है कि माता सीता को जब लंका का राजा रावण हरण कर ले गया था, तब भगवान राम का दूत बनकर हनुमान जी चुपके से लंका में घुसे थे। उन्होंने रावण की सोने की लंका में आग लगाकर उसे खाक कर दिया था। मुझे लगता है कि इस ऑपरेशन को हनुमान नाम इसीलिए नहीं दिया गया और जानबूझकर बंदर रखा गया होगा क्योंकि हनुमान से पता चल जाता कि कोई वीर और तबाही मचाने वाली योजना है। बंदर और हनुमान में यही अंतर है।
इस साल 26 फरवरी को भी वायु सेना के 12 मिराज विमान भी चुपके से (विमान चुपके से कैसे घुसे होंगे राम जानें। विमान का इंजन बंद कर दिया गया होगा या शोर नहीं करने वाले विशेष विमान थे यह नहीं बताया गया है) पाकिस्तान की सीमा में घुसे और बालाकोट में आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के कैंप को तबाह कर दिया। वायुसेना के पायलटों ने पांच स्पाइस 2000 बम गिराए थे। इनमें से चार बम उन भवनों पर गिरे थे, जहां आतंकी गहरी नींद में सो रहे थे। वायु सेना के जाबांज पायलटों ने इस ऑपरेशन को तड़के 3.30 बजे अंजाम दिया था। पाकिस्तान को जब तक इसकी भनक लगती, वायु सेना के सभी विमान सुरक्षित अपने अड्डे पर आ गए थे। इस ऑपरेशन को वायु सेना के स्क्वाड्रन सात और आठ के विमानों ने अंजाम दिया था, जिसमें बिना अपग्रेड किए विमान भी शामिल थे (जो शोर नहीं करते हैं?)।
वायु सेना ने इस ऑपरेशन को बहुत ही चालाकी से अंजाम दिया था। 12 मिराज विमानों से कुछ विमानों ने जैश के आतंकी ठिकाने को निशाना बनाया था, तो कुछ मिराज और सुकोई-30 एमकेआई विमानों ने पाकिस्तानी वायु सेना का ध्यान बंटाने के लिए दूसरी दिशा में उड़ान भरी थी, ताकि वह जवाबी हमला नहीं करने पाए। इस ऑपरेशन के बाद वायु सेना की तरफ से सरकार को बताया गया था कि 80 फीसद बमों का निशाना सही रहा। ये बम सही लक्ष्य पर गिरे थे और वहां भारी तबाही मचाई थी। ‘ऑपरेशन बंदर’ के दौरान वायु सेना ने अपने गरुण टीम को भी सतर्क मुद्रा में रखा था, ताकि किसी भी तरह के आपात हालात से तुरंत निपटा जा सके। मुझे नहीं पता इसमें कौन सी सूचना नई है। और अब किसलिए दी गई है वह भी पहले पन्ने पर। मुझे तो यह रक्षा मामले की गोपनीय सूचना देने जैसी एक्सक्लूसिव खबर लग रही है पर वह एएनआई क्यों देगी?
ऐसा नहीं है कि यह खबर यूं ही किसी रिपोर्टर को मिली और उसने लिख दी जो छप गई। टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी इसे पहले पन्ने पर छापा है। हालांकि खबर छोटी है और विस्तार अंदर होने की सूचना है पर अंदर भी खबर छोटी ही है। ढूंढ़ने पर यह खबर टेलीग्राफ में भी मिली। इसलिए, यह खबर छपवाई गई लगती है। यह अलग बात है कि यह सेवा हिन्दी के एक बड़े अखबार के राष्ट्रीय संस्करण के जरिए मुहैया कराई गई है। एजेंसी की यह खबर कायदे से डेस्क पर संपादित भी हुई होगी। फिर भी ऐसी है तो अनुमान लगाइए कि कैसी होगी और किसलिए है – समझने की कोशिश करता हूं। आप भी कीजिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)
दैनिक जागरण में आज पहले पन्ने पर एएनआई की एक खबर है, बालाकोट एयरस्ट्राइक का नाम था ‘ऑपरेशन बंदर’। 26 फरवरी को किए गए इस हमले की सफलता पर उंगली उठती रही है क्योंकि इससे हुए नुकसान के बारे में आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया। ऐसे हमले का कोड नाम ऑपरेशन बंदर था यह जानकर आप-हम आज चार महीने बाद क्या करेंगे? अमूमन मैं ऐसी खबर पढ़ता नहीं हूं। ना ही अब कुछ लिखने के लिए पढ़ने लगा हूं। दरअसल कल शुक्रवार, 21 जून को राजस्थान पत्रिका में खबर थी कि संसद के संयुक्त सदन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में एयरस्ट्राइक का जिक्र किया तो सबने मेजें थपथपाकर स्वागत किया। मैं नहीं जानता कि उन्होंने क्या जिक्र किया - सिर्फ हमले का या 250 से लेकर 400 आतंकवादियों के मारे जाने का और अगर कोई मरा नहीं तो हमले के मकसद और उसे पूर्ण होने पर कुछ कहा कि नहीं। टेलीविजन पर संसद की कार्यवाही मैं नहीं देख पाया। किसी अखबार में छपा होता तो पढ़ लेता, जान लेता। कल के अखबार पढ़ने के बाद यह जिज्ञासा रह ही गई थी कि एयरस्ट्राइक की चर्चा राष्ट्रपति ने किसलिए, किस तरह की?
दैनिक जागरण में पहले पन्ने पर यह खबर देखकर मुझे लगा कि शायद उसी की कोई चर्चा हो। इसलिए मैं पूरी खबर को एक सांस में पढ़ गया। यह तो नहीं समझ में आया कि खबर पहले पन्ने पर इतनी प्रमुखता से क्यों है पर इसमें एक सूचना है - बता दें कि भारतीय वायु सेना ‘ऑपरेशन बंदर’ में शामिल रहे अपने पायलटों को उनकी बहादुरी के लिए वायु सेना मेडल से नवाजे जाने की तैयारी में है। यह खबर या सूचना दैनिक जागरण में छपी है तो आप समझेंगे कि दैनिक जागरण बता रहा है। लेकिन खबर एएनआई की है तो असल में यह जानकारी समाचार एजेंसी एएनआई दे रही है। अब मुद्दा यह है कि सरकार अपने जांबांज वायुसैनिकों को पुरस्कृत करे, उसकी तैयारी करे पर उसकी सूचना एक गैर सरकारी एजेंसी क्यों दे रही है? और दे रही है तो क्या यह खबर नहीं है? यह दूसरे अखबारों में क्यों नहीं है? खबर लिखने छापने की सामान्य समझ बताती है कि नई सूचना (या काम से कम जो आकर्षित करे) वह पहले होनी चाहिए और यही शीर्षक भी होना चाहिए। पर यहां उल्टा है। मामूली चूक या इरादतन?
इसे राष्ट्रपति के अभिभाषण में बालाकोट हमले के जिक्र की खबर से जोड़कर देखिए। राजस्थान पत्रिका ने कल लिखा था, .... इसपर सोनिया गांधी अपने हाथ मेज थपथपाने से रोक नहीं पाईं। ... अलबत्ता मेज की ओर बढ़ रहे मां सोनिया गांधी के हाथ को उन्होंने (राहुल गांधी ने) रोकने की कोशिश भी की, लेकिन सोनिया नहीं मानीं। इस पर अमर उजाला ने लिखा है, सोनिया ने छह बार मेज थपथपाई। राष्ट्रपति के भाषण के दौरान सोनिया गांधी ने छह बार मेज थपथपाकर अभिवादन किया। सोनिया ने राहुल को कई बार इशारा भी किया, लेकिन वह समझ नहीं पाए। अब आप बताइए - क्या हुआ आप क्या समझे? राजस्थान पत्रिका ने सही लिखा है या अमर उजाला ने? सोनिया ने राहुल तो मेज थपथपाने का इशारा किया वे नहीं समझे या राहुल ने सोनिया को मेज थपथपाने से रोकने की कोशिश और राहुल नहीं माने (या समझे)। वैसे तो य़ह रिपोर्टिंग की चूक है पर अब जब एक विवादस्पद हमले के लिए (जो चुनाव जीतने की कोशिश का हिस्सा भी हो सकता है) पायलट को पुरस्कृत करने की तैयारी गैर सरकारी सूत्रों से आ रही है तो क्या इसे जबरन प्रशंसा करने पाने की कोशिश माना जाए?
राजस्थान पत्रिका ने कल यह भी लिखा था, .... पहली पंक्ति में ही बैठे कांग्रेस के एक और नेता गुलाम नबी आजाद ने भी मेजें थपथपाई। लेकिन उनके ठीक बगल में बैठे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को यह रास नहीं आया। उन्होंने एक बार भी सरकार का उत्साहवर्धन नहीं किया। ....। इन तमाम बातों से मुझे लग रहा है कि बालाकोट हमले को अनावश्यक बड़ी सफलता के रूप में पेश किया जा रहा है। ऐसा कल और आज की खबरों से लग रहा है। इसका कारण चाहे जो हो – मामला अटपटा जरूर है। आइए, अब आज की खबर पढ़ें। भारतीय वायु सेना के जाबांज पायलटों ने बालाकोट में जब जैश-ए-मुहम्मद के आतंकी शिविरों को तबाह किया था, तब पाकिस्तान को कानों-कान खबर तक नहीं लगी थी। पाकिस्तान ही नहीं, इस योजना की किसी को भनक तक नहीं लगे इसका भी वायुसेना ने बहुत ख्याल रखा था। इसी मकसद से 26 फरवरी को हुए हवाई हमले को ‘ऑपरेशन बंदर’ कोड नाम दिया गया था। 14 फरवरी को पुलवामा में आतंकी हमले के जवाब में भारत ने यह हवाई हमला किया था। हमला हुआ था, भारतीय विमान सुरक्षित आ गए इसका मतलब यही है जो इस खबर से अब चार महीने बाद बताया जा रहा है।
शीर्ष रक्षा सूत्रों ने कहा, ‘गोपनीयता बरतने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि योजना लीक ना हो, बालाकोट ऑपरेशन को ऑपरेशन बंदर कोड नाम दिया गया था।’ हालांकि, सूत्रों ने यह नहीं बताया कि ‘ऑपरेशन बंदर’ नाम रखने के पीछे कारण क्या था, लेकिन यह जरूर कहा कि भारत की सांस्कृतिक लड़ाइयों में बंदर का हमेशा से अहम स्थान रहा है। प्रसिद्ध महाकाव्य रामायण में भी कहा गया है कि माता सीता को जब लंका का राजा रावण हरण कर ले गया था, तब भगवान राम का दूत बनकर हनुमान जी चुपके से लंका में घुसे थे। उन्होंने रावण की सोने की लंका में आग लगाकर उसे खाक कर दिया था। मुझे लगता है कि इस ऑपरेशन को हनुमान नाम इसीलिए नहीं दिया गया और जानबूझकर बंदर रखा गया होगा क्योंकि हनुमान से पता चल जाता कि कोई वीर और तबाही मचाने वाली योजना है। बंदर और हनुमान में यही अंतर है।
इस साल 26 फरवरी को भी वायु सेना के 12 मिराज विमान भी चुपके से (विमान चुपके से कैसे घुसे होंगे राम जानें। विमान का इंजन बंद कर दिया गया होगा या शोर नहीं करने वाले विशेष विमान थे यह नहीं बताया गया है) पाकिस्तान की सीमा में घुसे और बालाकोट में आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के कैंप को तबाह कर दिया। वायुसेना के पायलटों ने पांच स्पाइस 2000 बम गिराए थे। इनमें से चार बम उन भवनों पर गिरे थे, जहां आतंकी गहरी नींद में सो रहे थे। वायु सेना के जाबांज पायलटों ने इस ऑपरेशन को तड़के 3.30 बजे अंजाम दिया था। पाकिस्तान को जब तक इसकी भनक लगती, वायु सेना के सभी विमान सुरक्षित अपने अड्डे पर आ गए थे। इस ऑपरेशन को वायु सेना के स्क्वाड्रन सात और आठ के विमानों ने अंजाम दिया था, जिसमें बिना अपग्रेड किए विमान भी शामिल थे (जो शोर नहीं करते हैं?)।
वायु सेना ने इस ऑपरेशन को बहुत ही चालाकी से अंजाम दिया था। 12 मिराज विमानों से कुछ विमानों ने जैश के आतंकी ठिकाने को निशाना बनाया था, तो कुछ मिराज और सुकोई-30 एमकेआई विमानों ने पाकिस्तानी वायु सेना का ध्यान बंटाने के लिए दूसरी दिशा में उड़ान भरी थी, ताकि वह जवाबी हमला नहीं करने पाए। इस ऑपरेशन के बाद वायु सेना की तरफ से सरकार को बताया गया था कि 80 फीसद बमों का निशाना सही रहा। ये बम सही लक्ष्य पर गिरे थे और वहां भारी तबाही मचाई थी। ‘ऑपरेशन बंदर’ के दौरान वायु सेना ने अपने गरुण टीम को भी सतर्क मुद्रा में रखा था, ताकि किसी भी तरह के आपात हालात से तुरंत निपटा जा सके। मुझे नहीं पता इसमें कौन सी सूचना नई है। और अब किसलिए दी गई है वह भी पहले पन्ने पर। मुझे तो यह रक्षा मामले की गोपनीय सूचना देने जैसी एक्सक्लूसिव खबर लग रही है पर वह एएनआई क्यों देगी?
ऐसा नहीं है कि यह खबर यूं ही किसी रिपोर्टर को मिली और उसने लिख दी जो छप गई। टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी इसे पहले पन्ने पर छापा है। हालांकि खबर छोटी है और विस्तार अंदर होने की सूचना है पर अंदर भी खबर छोटी ही है। ढूंढ़ने पर यह खबर टेलीग्राफ में भी मिली। इसलिए, यह खबर छपवाई गई लगती है। यह अलग बात है कि यह सेवा हिन्दी के एक बड़े अखबार के राष्ट्रीय संस्करण के जरिए मुहैया कराई गई है। एजेंसी की यह खबर कायदे से डेस्क पर संपादित भी हुई होगी। फिर भी ऐसी है तो अनुमान लगाइए कि कैसी होगी और किसलिए है – समझने की कोशिश करता हूं। आप भी कीजिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)