NIA कोर्ट ने UAPA के आरोपियों को दी जमानत, आदेश में कहा- सरकार की नीतियों का विरोध करना संवैधानिक अधिकार

Written by sabrang india | Published on: September 12, 2020
केरल के कोच्चि की विशेष एनआईए अदालत ने राज्य पुलिस द्वारा 10 महीने पहले गिरफ्तार किए गए दो छात्रों को जमानत दे दी। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि माओवादी साहित्य होने, सरकार विरोधी प्रदर्शनों में शामिल होने या मजबूत राजनीतिक विचारधारा होने से किसी को आतंकी गतिविधियों में संलिप्त नहीं माना जा सकता।



केरल पुलिस और एनआईए का आरोप था कि दोनों छात्र- अल्लान शुहैब और ताहा फज़ल प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) से जुड़े हुए थे, जिसके बाद इन दोनों छात्रों पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया था। इन्हें बीते नौ सितंबर को जमानत दे दी गई। अदालत का कहना है कि अभियोजन पक्ष इन छात्रों के प्रतिबंधित संगठन से जुड़े होने के पक्ष में ठोस साक्ष्य पेश नहीं कर पाया।

एनआईए जज अनिल के भास्कर ने आदेश में कहा, ‘मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए दोनों याचिकाकर्ताओं की जमानत याचिका मंजूर की जाती है।’ इस मामले को पंथीरंकवु माओवादी मामले के नाम से भी जाता है। यह मामला पिछले साल नवंबर में उस समय सामने आया, जब कानून और पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे शुहैब (19) और फज़ल (23) को कोझिकोड पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। ये दोनों सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) से जुड़े हुए थे।

शुहैब और फजल को प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) संगठन का सक्रिय सदस्य बताते हुए इन पर केरल में संगठन को फिर से पुनर्जीवित करने की दिशा में माओवादी साहित्य बांटने का आरोप लगाया गया। पुलिस ने इन दोनों पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया।

पुलिस और एनआईए का यह भी आरोप था कि जब इनमें से एक ताहा के घर पर छापेमारी की गई, तो उन्होंने माओवादी समर्थक नारे भी लगाए थे। पुलिस और एनआईए ने उनके खिलाफ यह पूरा मामला दोनों छात्रों के घर से बरामद किए गए दस्तावेज, पोस्टर, डायरी, किताबें और अन्य राजनीतिक साहित्य के आधार पर तैयार किया।

यह मामला पिछले दिसंबर में एनआईए को ट्रांसफर किया गया था और शुहैब और फज़ल दोनों तभी से न्यायिक हिरासत में थे। इस अवधि के दौरान सत्र अदालत ने उनकी जमानत याचिका कई बार खारिज की थी। सत्तारूढ़ माकपा और केरल के एक बड़े वर्ग के बीच इस मामले को लेकर राजनीतिक विवाद हुआ। माकपा ने दोनों को गिरफ्तार किए जाने के तुरंत बाद दोनों को पार्टी से निलंबित कर दिया था।

इस बीच बुद्धिजीवियों और स्वतंत्र कार्यकर्ताओं ने राज्य पुलिस को खुली छूट देने और असहमति जताने वालों को माओवादी या आतंकी बताने के लिए पिनाराई विजयन सरकार की आलोचना की। इस मामले को लेकर कम्युनिस्ट पार्टी में अलग-अलग राय थी। विजयन का कहना है कि आरोपी माओवादी हैं, जबकि सीपीआई (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी, प्रकाश करात, एमए बेबी और थॉमस इसाक जैसे नेताओं ने दोनों आरोपियों का समर्थन किया है, जिससे वे प्रत्यक्ष तौर पर केरल की वाम मोर्चा सरकार के खिलाफ खड़े हो गए हैं।

मामले की सुनवाई नौ सितंबर को हुई। एनआईए अदालत ने चाव पक्ष के वकीलों इसाक संजय और तुषार निर्मले सारथी के तर्कों के बरक्स अभियोजन टीम द्वारा पेश साक्ष्यों की 12 श्रेणियों पर विचार किया, जिनमें से अधिकतर राजनीतिक पैम्फलेट और साहित्य से जुड़ी हुई थीं। अदालत को यह अजीब लगा कि दोनों आरोपी छात्रों के घर से जब्त किए गए दस्तावेजों का एक बड़ा हिस्सा, जिन्हें लेकर एनआईए का कहना है कि ये अपराध का इशारा करते हैं- वे स्वतंत्र रूप से पब्लिक डोमेन में हैं और इन पर व्यापक चर्चा भी हो चुकी है।

एनआईए ने जिन कुछ दस्तावेजों को बतौर साक्ष्य पेश किया, वे दरअसल पश्चिमी घाटों में पारिस्थितिकी को बचाने और आदिवासी हितों की सुरक्षा के लिए माधव गाडगिल समिति की रिपोर्ट को लागू करने की मांग वाले नोटिस, ग्रेट रशियन रिवोल्यूशन नाम की एक किताब, कम्युनिस्ट नेता माओ त्से तुंग और चे ग्वेरा की तस्वीरें, कश्मीर के अलगाववादी नेता एस ए एस  गिलानी और मार्क्सवादी और इस्लाम विचारधारा का प्रचार करने वाली किताबें हैं।

एनआईए कथित आपराधिक साहित्य कहते हुए अदालत के सामने कई पैम्फलेट- जो यूएपीए विरोधी, कुर्दों के खिलाफ तुर्की के युद्ध और भारत सरकार की कश्मीर में कार्रवाई को लेकर थे, पेश किए। उन्हें माओवादी संगठन से संबंधित बताते हुए एनआईए का कहना था कि दोनों छात्रों ने कुर्दों के खिलाफ, जिशा की हत्या के खिलाफ, नोटबंदी के खिलाफ और पुलिस अत्याचारों से जुड़े कई मामलों और बैठकों में हिस्सा लिया था।

एनआईए ने यह भी कहा कि उन्हें छात्रों के घर से माओवादी पार्टी के दस्तावेज, केंद्रीय समिति की रिपोर्टें और पार्टी के झंडे मिले हैं। अदालत ने यह कहते हुए कि इनमें से कोई भी सामग्री दोनों छात्रों द्वारा किसी तरह की हिंसक आतंकी गतिविधि की ओर इशारा नहीं करती, एजेंसी के दावे को ख़ारिज कर दिया। अदालत ने आदेश में कहा, ‘इनसे जुड़े मुद्दों पर राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में व्यापक चर्चा और बहस हुई है और सभी प्रदर्शन बिना किसी हिंसा के शांतिपूर्ण ढंग से हुए थे।’

आरोपियों के पास से माओवादी पार्टी के दस्तावेज पाए जाने पर अदालत ने कहा कि इनमें से अधिकतर दस्तावेज इंटरनेट पर मौजूद हैं। आदेश में एनआईए की आलोचना करते हुए कहा गया, ‘प्रथमदृष्टया इन दस्तावेजों से ऐसा नहीं लगता कि लोगों को सरकार के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन करने के प्रयास किए गए।

लोगों को (सीपीआई) माओवादी आंदोलन का समर्थन करने के लिए नहीं बुलाया गया बल्कि सिर्फ सरकार की गतिविधियों के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए लोगों का आह्वान किया गया था।’ अदालत ने कहा कि एनआईए ने सिर्फ एक ही दस्तावेज पेश किया है, जिसके बारे में कहा गया कि इसे (सीपीआई) माओवादी की ओर से फज़ल ने तैयार किया था, जो एक बैनर था, जिसे ‘जम्मू कश्मीर के स्वाधीनता संघर्ष के समर्थन में, जम्मू कश्मीर पर भारत सरकार के नियंत्रण के विरोध और हिंदू ब्राह्मण फासीवादी सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ने’ के लिए सार्वजनिक स्थानों पर लगाया गया था।

अदालत ने इस बैनर के संदर्भ में कहा, ‘इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि ये बैनर भारतीय संसद द्वारा भारतीय संविधान से अनुच्छेद 370 और 35(ए) को हटाने के बाद तैयार किए गए थे।’ जज भास्कर ने कहा, ‘विरोध करने का अधिकार संवैधानिक रूप से दिया गया है। सरकार की नीतियों और फैसलों के खिलाफ विरोध फिर चाहे वह गलत कारण के लिए ही क्यों न किया गया हो, उसे राजद्रोह नहीं कहा जा सकता।’
 

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