यौम-ए-अली (13 रजब, हज़रत अली के जन्मदिन) मेरे दो शब्द : अमीर रिज़वी

Written by Amir Rizvi | Published on: April 11, 2017

आदाब,

आज मुंबई की मुग़ल मस्जिद में आयोजित यौम-ए-अली (13 रजब, हज़रत अली के जन्मदिन) पर मुझे दो शब्द कहने का अवसर देने के लिए शुक्रिया.

Mughal masjid

मैं न ही धर्म का जानकार हूँ, न ही मेरी इल्म इतनी है कि मैं बाब-ए-इल्म (इल्म के द्वार)1 के बारे में कुछ कह सकूं.

मैं इक्कीसवीं सदी का आम भारतीय नागरिक हूँ, जिसकी लगभग वही समस्याएं हैं जो किसी अन्य भारतीय की हैं. रोटी, रोज़ी, कपड़ा, मकान, बच्चों की पढ़ाई, उनकी सुरक्षा, महिलाओं की सुरक्षा, महिलाओं के अधिकार, छात्रों की समस्या, समाज में असामाजिक तत्वों से परेशानी इत्यादि.

और जब आज की समस्या से जूझता हुआ इंसान हज़रत अली (अ०) के जीवन के बारे में पढता है तो बहुत कुछ आज समाज में हो रहे उथल-पुथल, और हज़रत अली (अ०) के समय में हो रहे सामाजिक उपद्रव में समानता दिखाई देने लगती है.

जैसे कोई जरासीम (जीवाणु) इंसान के शरीर में घुस कर उसे खोखला बनाता है, वैसे ही धर्म का चोला ओढ़ कर धर्म की बुनियादी तालीम के विपरीत कुछ असामाजिक तत्व उसे बदनाम करने और खोखला करने में लग जाते हैं.

हज़रत अली (अ०) के ज़माने में भी एक मुहिम के तहत धार्मिक दिखने वाले लोग इस्लाम की बुनियाद को हिलाने में लगे थे. धर्म के नाम पर अत्याचार, नफ़रत, हिंसा से त्राही त्राहि मचा रहे थे. बार बार समझाने पर भी वे जब लोग नहीं माने तो हज़रत अली (अ०) ने उस असामाजिक गुट को धर्म से ही ख़ारिज कर दिया (निकाल दिया). वह निष्कासित गुट "ख़ारिजी" गुट कहलाता है.

मुहम्मद साहब (स०) ने ऐसे ही लोगों के लिए कहा था कि "एक समय आएगा जब एक से बढ़कर एक धार्मिक दिखने वाले लोग, जिनकी इबादत देख कर आपको अपनी नमाज़ पर शर्म आने लगेगी, जिनकी तिलावत (क़ुरान पढने) शानदार होगी, परन्तु वो उनके गले से नीचे तक नहीं उतरेगी, वे इस्लाम के विरुद्ध काम करेंगे और इस्लाम की बुनियाद से ऐसे भागेंगे जैसे कमान से छूता हुआ तीर हो." 2

आज जब इन्टरनेट का ज़माना है, सोशल मीडिया हर किसी को जोड़ रहा है तो ऐसे में वैसी ही उपद्रवी असामाजिक विचारधारा वाले लोग, अलग अलग धर्म का चोला ओढ़ के, फ़ेक आईडी बना के, समाज को तोड़ने वाले पोस्ट कर रहे हैं. हजारों साल से एक साथ मिलकर रहने वाला समाज आज ऐसी समस्या से जूझ रहा है जैसे मुसलमानों ने कभी हिन्दुओं को देखा ही नहीं हो, या हिन्दुओं ने मुसलमानों को कभी जाना ही नहीं हो. अजीब-ओ-ग़रीब पोस्ट हर ओर से फैलाये जा रहे हैं, जिस से सामाजिक तानाबाना बर्बाद हो जाये.

ये वही इस्लाम है, जिसकी तारीफ़ करते हुए एक पत्र में स्वामी विवेकानंद ने अपने मित्र सरफ़राज़ हुसैन से कहा कि मैं ऐसे भारत का सपना देखता हूँ जो हिन्दू और मुसलमानों से बना हुआ जीवित शरीर हो.3   ये वही हज़रत अली (अ०) हैं जिनके मार्ग से गुरु नानक जी ने प्रेरणा ली और इसी भारत में ऐसा भी समय था जब सिख पहलवान कुश्ती के अखाड़े में आता था तो या अली मदद का नारा लगाता था.4

और आज उसी भारत में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री राम का नाम लेकर लोग मर्यादा से गिरी हुई हरकत कर रहे हैं. अपनी निजी नफ़रत को इस्लाम का नाम दे रहे हैं. कुछ खुलकर समाज तोड़ रहे हैं, कुछ छुप छुप कर फ़ेक आई डी बना कर समाज में हिंसा फैला रहे हैं.

समय आ गया है, कि अपने अपने समाज से नफ़रत फैलाने वाले तत्वों को अलग किया किया जाय, और इल्म/ज्ञान/विद्या पर ध्यान देते हुए अपने अपने समाज को सक्षम करें कि वे किसी के बहकावे न आयें.

क्योकि मैं शिया समाज से हूँ तो मुझे इसमें बहुत कुछ सुधार की आवश्यकता दिखाई देती है, जैसे लखनऊ, पटना, छपरा, इलाहबाद, हैदराबाद इत्यादि में काफी पैसों से अलग अलग मदरसे चलाये जा रहे हैं, किसी में 10 छात्र हैं तो किसी में केवल दो, एक ही शहर में ऐसे कई मदरसे मिल जायेंगे. क्यों न मिलकर एक मदरसा अच्छी तरह से चलाया, सब मिलकर उतने ही पैसों में अच्छी शिक्षा अच्छे अध्यापक इकठ्ठा कर सकते हैं. ये एक छोटी सी झलक है, परन्तु ऐसे कई मुद्दे हैं जिसपर हमें विचार करना है.

हर समाज में सुधार के अवसर हैं, लोगों को अपने अपने स्तर पर अपने समाज को शिक्षित करना आवश्यक है, ताकि आजकल अनेकता में एकता पर दिन प्रतिदिन बढ़ते प्रहार से हमलोग मुकाबला कर सकें. समाज को शांति और प्रगति की ओर अग्रसर कर सकें.

हज़रत अली (अ०) एक व्यक्ति विशेष ही नहीं बल्कि एक विचारधारा का नाम है, जो सिखाती है कि यदि  शक्तिशाली हो तो उस शक्ति का इस्तेमाल कैसे किया जाय, जब सत्ता में हो तो समाज के लोगों के प्रति क्या ज़िम्मेदारी है. ये नहीं कि कमज़ोर को प्रताड़ित करें, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करें, धर्म का इस्तेमाल शोषण के लिए करें.

इतना कह कर मैं इजाज़त लेता हूँ,

यदि मुझसे अनजाने में या इल्म की कमी के कारण कोई ग़लती हो गई हो तो, मा'ज़रत चाहता हूँ.

इतने मुक़द्दस मंच पर बुला कर मुझे बातें रखने अवसर देने के लिए आप सभी का शुक्रिया.

अमीर रिज़वी
 

1. मुहम्मद साहब (स०) ने कहा था "अना मदीनतुल इल्म व अलीयुन बाबोहा" मैं शहर-ए-इल्म हूँ, और अली (अ०) इस ज्ञान के शहर के द्वार हैं  (अ०) = अलैहिस्सलाम (स०) सल्लाहु अलैही वसल्लम

2. Sahih Al-Bukhari Hadith - 6.578

3. Swami Vivekanand's Letter To Mohammed Sarfaraz Husain of Naini Tal, ALMORA, 10th June, 1898. http://www.vivekananda.net/KnownLetters/1898.html

4. Kunwar Mohinder Singh Bedi Sahar, 16th generation of Guru Nanak Dev Ji, https://youtu.be/zCDb9IBRCJk

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