अयोध्याः मोदी-योगी की सरकारों के समर्थन के बावजूद फ्लॉप हो गया आयोजन

Written by Mohd Zahid | Published on: November 26, 2018
कल अयोध्या में विहिप और शिवसेना का नया ड्रामा फुस्स हो गया, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे तो अयोध्या पहुँचते ही मात्र कुछ शिवसैनिकों को वहाँ पहुँचे देख कर ही बिना कुछ किए अपनी वापसी का ऐलान कर दिए और "विश्व हिन्दू परिषद" का कार्यक्रम मात्र कुछ हज़ार लोगों के साथ फुस्स हो गया।



हमने इसी युग में विहिप के आह्वाहन फर लाखों लाख लोगों का अयोध्या जाते रैला देखा है जो इस बार कहीं किसी को नहीं दिखा , जबकि इस बार मीडिया पूरा टेंपो बनाने में लगी हुई थी और आज इस विफल आयोजन को सफल बताने की मीडिया कोशिश करेगी।

हकीकत यही है कि योगी-मोदी की दो दो सरकारों के समर्थन के बावजूद पूरा आयोजन फुस्स हो गया।

अयोध्या में वैसे भी प्रतिदिन कुछ हज़ार लोग धार्मिक पर्यटन करने नियमित रूप से आते ही हैं तो यदि उनकी भीड़ को घटा दिया जाए तो केवल विहिप के हुड़दंगी साधू संतों , उनके चेले चापड़ों और उनके कारों के काफिलों के अतिरिक्त वहाँ कुछ नहीं था।

मध्यप्रदेश और 4 अन्य राज्यों में ज़मीनी स्तर पर भाजपा और संघ को भारी पराजय की संभावना के मिले फीडबैक के कारण यह सारा ड्रामा रचा गया और इस बार संघ को अपनी दोहरी शक्ति विहिप-शिवसेना लगानी पड़ी।

परन्तु जब परिस्थीतियाँ बदलती हैं तो आपकी पूर्व की सभी सफल चालें एक एक करके विफल होने लगती हैं और भाजपा और संघ के साथ यही हो रहा है।

काठ की हाँडी चढ़ चुकी है और जल चुकी है , अब चूल्हे से जल कर राख हो गयी इस हाँडी को उतार कर फेंकने का कार्यक्रम इस देश में हो रहा है जिसका नेतृत्व ज़मीनी स्तर पर वामन मेश्राम-चंद्रशेखर रावण-जिग्नेश मवानी-तेजस्वी यादव-अल्पेश ठाकुर-हार्दिक पटेल जैसे लोग लगातार कर रहे हैं और संघ के विरुद्ध अपने अपने समाज को जागृत कर रहे हैं।

संघ को अपनी ही शैली में ऐसी चौतरफा चुनौती पहली बार मिल रही है और यही कारण है कि "लश्कर ए मीडिया" द्वारा सजा और बना दिए गये पूरे वातावरण के बावजूद पूरा आयोजन फुस्स हो गया।

ना तो ट्रेनें भर कर आती दिखीं, ना बिहार, गुजरात, पश्चिम उत्तर प्रदेश से लोगों का रैला आता दिखा ना ही दिखा शिवसेना-विहिप की दोहरी ताकत का कोई असर।

दरअसल उच्चतम वर्ग तथा उच्च जातियों द्वारा निर्देशित विहिप और संघ के हिंसक या अहिंसक आंदोलनों में जो भीड़ जाती है वह उच्चतम वर्ग या उच्च जातियों की भीड़ नहीं होती, ब्रहमन या अन्य मेरिट वाले लोग तो आईएएस पीसीएस और अन्य परिक्षाओं को पास करने की तैय्यारी में लगे होते हैं , यह भीड़ होती है पिछड़ी जाति और दलितों की जिनको मंदिर में घुसाने और बड़के ब्राम्हण पुजारी के साथ बैठाने की वैधता की लालच में दंगों या हिंसक आंदोलनों में झोंक दिया जाता है।

वामन मेश्राम-चंद्रशेखर रावण-जिग्नेश मवानी-तेजस्वी यादव-अल्पेश ठाकुर-हार्दिक पटेल जैसे लोग ज़मीनी स्तर पर संघ की इसी ताकत को खत्म कर रहे हैं , बाकी राजनैतिक आक्रमण का नेतृत्व राहुल गाँधी कर रहे हैं।

जब अपनी कोई गतिविधियाँ दुश्मनों को फायदा पहुँचाए तो ऐसी गतिविधियाँ स्वयं बन्द कर देनी चाहिए , मुसलमानों या उनके एक दो भड़काऊ नेताओं को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए और कुछ दिन तक खामोशी ही अख्तियार कर लेना चाहिए।

उसका उदाहरण है कल की इनकी विफलता , जिसको लेकर मुस्लिम समाज या उस समाज के सभी नेता खामोश ही रहे , अभी यदि हैदराबादी बयान या अन्य मौलानाओं की प्रतिक्रिया आ जाती तो निश्चित रूप से कल के आयोजन में कुछ भीड़ और बढ़ जाती।

मौलाना महमूद मदनी ने जो बयान दिया था वह इसी समझदारी से दिया था जिसे कुछ लोग समझ ना सके और ऊल जुलूल टिप्पणी करने लगे।

संघ को खतम करना है तो मुसलमानों को वामन मेश्राम-चंद्रशेखर रावण-जिग्नेश मवानी-तेजस्वी यादव-अल्पेश ठाकुर-हार्दिक की सभाओं में बस भीड़ बन कर चुपचाप खड़े हो जाना चाहिए।

संघ स्वयं खत्म हो जाएगा।

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