कासगंज दंगा : नौशाद से अब तक न कोई मिलने आया, न ही मुवाअज़ा मिला है

Published on: February 6, 2018
कासगंज : ‘कासगंज साम्प्रदायिक हिंसा में घायल नौशाद से अब तक पुलिस प्रशासन या सरकार की ओर से न कोई मिलने आया और न ही उसे कोई मदद या मुआवज़ा दिया गया है.’



ये जानकारी जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय यानी एनएपीएम  की टीम ने कासगंज के दौरे से लौटकर अपने फैक्ट फाईडिंग रिपोर्ट में दी है.

बता दें कि घायल 33 वर्षीय नौशाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के जनरल वार्ड में है. वो अपने चार भाईयों के साथ नरोत्तम की दुकान पर पिछले 15 वर्षों से पत्थर ढोने का काम करते हैं. उसकी जांघ में गोली लगी थी. एनएपीएम के इस फैक्ट फाईडिंग टीम में उत्तराखंड के राष्ट्रीय समन्वयक विमल भाई,  उत्तर प्रदेश की सुधा व अफ़रोज़ जहां और दिल्ली के रिषित शामिल थे.

एनएपीएम की ये टीम बुडूनगर के एक मज़दूर इरफ़ान खान से भी मिली, जो गुजरात में काम करता है. इरफ़ान खान के बेटे को पुलिस ने दंगे में दोषी बताकर गिरफ्तार कर लिया. यह ख़बर सुनकर इरफ़ान गुजरात से कासगंज आया, लेकिन पुलिस के भय और पुलिस स्टेशन के हिंदू एरिया में होने के कारण वह शिकायत दर्ज कराने नहीं जा पा रहा है. पुलिस से उसको न्याय की उम्मीद बहुत कम नज़र आती है. बुडूनगर से काफ़ी युवा हत्या, दंगा-फ़साद, शांति भंग के आरोप लगाकर गिरफ्तार किए गए हैं.

रशीद को भी उसके भाई और पिता के साथ गिरफ्तार किया गया था और बाद में धारा-151 लगाकर छोड़ा गया है.

यहां के स्थानीय निवासी बहुत दबाव में हैं और चिंचित में हैं कि भविष्य में क्या होगा. ज़्यादातर लोग या तो मज़दूर हैं या निम्न आय वर्ग से संबंध रखते  हैं.

दंगों के 3-4 दिन के दौरान 45 मुस्लिम दुकानें जलाई व लूटी गई. कई मस्जिदें धराशाही की गई. वहीं पुलिस द्वारा दंगा फ़ैलाने का आरोप लगाकर एक उन्नत व्यापारी को उनके परिवार के अन्य सदस्यों सहित गिरफ्तार भी कर लिया गया है.

इस फैक्ट फाईंडिंग टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि यहां माहौल बहुत डरा सहमा और जनजीवन पूरी तरह असामान्य है.

ये रिपोर्ट यह भी बताती है कि 29 जनवरी को डी जी क़ानून व्यवस्था द्वारा कासगंज के नगर पालिका हॉल में एक शांति बैठक बुलाई गई. दैनिक जीवन व व्यापार व्यवस्था को सामान्य करने का आश्वासन दिया गया, परन्तु बाद में जब कुछ व्यापारी अपनी दुकानें खोल रहे थे, तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, जिसमें प्रमुख रूप से मुस्लिम समुदाय के लोग ही शामिल हैं. 

ये रिपोर्ट यह भी कहती है कि, एक तरफ़ मुस्लिम इलाक़ों में भारी हथियारबंद सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं तो दूसरी तरफ़ शहर में छोटे-बड़े और प्रमुख मुस्लिम व्यापारियों की दुकानें जलाई गई.  प्रशासन की ओर से सुरक्षा का डर दूर करने का कोई वास्तविक कार्य अभी भी नज़र नहीं आ रहा है. वहीं शांति स्थापित करने और लोगों का विश्वास जीतने के लिए अब तक प्रशासन की तरफ़ से कोई कार्य नहीं किया गया. ना ही फेसबुक और वाट्सअप के ज़रिए नफ़रत फ़ैलाने वाले संदेशों को रोकने के लिए कोई क़दम उठाया गया. इस बीच कासगंज से बीजेपी सांसद का “खून के बदले खून” जैसा बयान लोगों में नफ़रत और डर फैला रहा है.

इस टीम ने हम कासगंज के अधिकारियों से मांग की है कि, राज्य सरकार चंदन गुप्ता की हत्या, दुकान जलाने और मस्जिदों पर हुए हमले की निष्पक्ष जांच के लिए न्यायिक जांच समिति गठित करे. साथ ही किसी भी समुदाय के प्रति पूर्वाग्रह रखे बिना पुलिस तुरंत हिंसा करने वालों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दाखिल करें. साथ ही उन मासूमों को तुरंत छोड़े, जिन्हें बिना किसी निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया के तहत गिरफ्तार किया गया है.

उत्तर प्रदेश सरकार से अपील करते हुए इस टीम ने कहा है कि  तुरंत सभी पीड़ितों का और जिनकी संपत्ति जलाई गई, बर्बाद की गई, उन्हें बिना किसी देरी के मुआवजा दिया जाए.

वहीं युवाओं से अपील करते हुए ये रिपोर्ट कहती है कि, वह सामाजिक समरसता और स्थाई विकास बेरोज़गारी जैसे महत्वपूर्ण ज्वलंत विषय पर अपना ध्यान दें ना कि भ्रमित राष्ट्रवाद और झूठी ख़बरों पर.

Courtesy: Two Circles
 

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