कैराना पर भाजपा नेताओं के दावे बिलकुल गलत हैं, बात खत्म!

Published on: June 15, 2016
सुबह के दस बजे हैं. शामली जिले के कैराना में पत्रकारों का आना जारी है. दिल्ली से लगभग दो सौ किलोमीटर दूर बसे उत्तर प्रदेश के इस कस्बे में आज कई राष्ट्रीय चैनलों की ओबी वैन नज़र आ रही हैं. ये तमाम चैनल भाजपा नेता और कैराना से सांसद हुकुम सिंह के बयान को जांचने के लिए यहां पहुंच रहे हैं. हुकुम सिंह ने हाल ही में बयान दिया है कि कैराना में बढ़ती मुस्लिम आबादी और उसकी दबंगई के चलते यहां के हिंदू परिवार पलायन को मजबूर हो गए हैं. भाजपा सांसद के इस बयान के बाद कुछ राष्ट्रीय चैनल कैराना की तुलना जम्मू-कश्मीर से भी कर रहे हैं. इन चैनलों का मानना है कि यहां के हिंदुओं की स्थिति आज ठीक वैसी ही हो गई है जैसी 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों की हो गई थी.

कैराना की गौशाला रोड के पास एक घर पर ताला लटका है और दीवार पर लिखा है ‘यह घर बिकाऊ है.’ इसी के सामने खड़े होकर एक टीवी रिपोर्टर हुकुम सिंह के बयान को सही बता रही हैं. वे कैमरे पर बोल रही हैं कि इस घर में रहने वाला हिंदू परिवार भी कैराना छोड़कर जा चुका है और अब अपना घर भी बेचना चाहता है. वैसे इस घर के ठीक पिछली गली में अब्दुल जमा का घर भी इसी स्थिति में है. उस पर भी ऐसे ही ताला लटका है और ‘घर बिकाऊ है’ लिखा है. लेकिन फिलहाल अधिकतर चैनलों का ध्यान सिर्फ हिंदुओं के खाली पड़े घरों तक ही सीमित है.

सूची में शामिल कुल दस में से छह लोग ऐसे हैं जिनकी हत्या कम से कम 15 साल पहले हुई थी. कुछ की तो लगभग आज से 25 साल पहले. इनके अलावा अधिवक्ता सुबोध जैन की हत्या साल 2009 में हुई थी और इसका आरोप अमित विश्वकर्मा नाम के एक हिंदू पर ही था.

सांसद हुकुम सिंह के बयानों को इसलिए भी सुर्खियां मिल रही हैं क्योंकि उनके आरोप यदि सच हैं तो वाकई बहुत भयावह हैं. उन्होंने अपने बयानों की पुष्टि के लिए दो सूचियां भी जारी की हैं. पहली सूची में कुल 346 नाम दर्ज हैं और इस सूची का शीर्षक है, ‘कैराना से पलायन करने वाले हिंदू परिवारों की सूची.’ हुकुम सिंह का आरोप है कि सूची में शामिल ये सभी लोग मुस्लिमों के बढ़ते वर्चस्व के चलते कैराना छोड़ने को विवश हुए हैं. उनके द्वारा जारी की गई दूसरी सूची में दस मृतकों के नाम हैं. कहा गया है कि ‘इन सभी हिंदुओं की सांप्रदायिक कारणों के चलते हत्या कर दी गई है.’

दस हिंदू लोगों की सांप्रदायिक कारणों से हत्या का सच

हम हुकुम सिंह द्वारा जारी की गई दूसरी सूची की पड़ताल पहले करते हैं. इस सूची में शामिल नाम हैं: विनोद कुमार, शिव कुमार, राजेंद्र कुमार, मफतलाल, सत्यप्रकाश जैन, जसवंत वर्मा, श्रीचंद जैन, सुबोध जैन, सुशील गर्ग और डॉक्टर संजय शर्मा. इस सूची की शुरुआती पड़ताल ही हुकुम सिंह के दावों को खोखला साबित कर देती है. उनके दावों से उलट ये हत्याएं न तो सांप्रदायिक हैं और न ही हाल के समय में हुई हैं. सूची में शामिल कुल दस लोगों में से छह लोग ऐसे हैं जिनकी हत्या कम से कम 15 साल पहले हुई थी. कुछ की तो लगभग आज से 25 साल पहले. इनके अलावा अधिवक्ता सुबोध जैन की हत्या साल 2009 में हुई थी और इसका आरोप अमित विश्वकर्मा नाम के एक हिंदू पर ही था.

इस सूची में शामिल सिर्फ शुरूआती तीन नाम ही ऐसे हैं जिनकी हत्या हाल के सालों - 2014 - में हुई. इन हत्याओं का आरोप मुस्लिम आरोपितों पर है जिसके चलते सांसद हुकुम सिंह के दावों को कुछ बल मिल सकता है. साथ ही सैकड़ों हिंदू परिवारों के कैराना से पलायन का जो दावा हुकुम सिंह कर रहे हैं उसमें भी इन तीन हत्याओं की अहम भूमिका रहे हैं. इसलिए इन हत्याओं को थोड़ा विस्तार से समझते हैं.

बचपन से शामली में पले-बढ़े वैज्ञानिक डॉक्टर उमर सैफ बताते हैं, ‘शामली हमेशा से आपराधिक गतिविधियों के लिए कुख्यात रहा है. लूट, हत्याएं, बलात्कार, फिरौती जैसे अपराध यहां आए दिन की घटनाओं में शामिल रहे हैं. 90 के दशक के अंत में इन अपराधों में तब जरूर कमी आई थी जब पुलिस के तत्कालीन उच्चाधिकारियों ने यहां दर्जनों कुख्यात बदमाशों का एनकाउंटर करवा दिया था और सैकड़ों बदमाशों को जेल भिजवाया था.’

2014 में मुकीम गैंग ने कैराना में कुल सात लोगों की हत्या की थी. इन सात लोगों में तीन वे थे जिनकी जानकारी हुकुम सिंह ने मृतकों की सूची में सबसे ऊपर दी है. जो जानकारी उन्होंने नहीं दी वह यह है कि मुकीम गैंग ने इसी साल कैराना के चार मुस्लिम लोगों की भी हत्या की थी.

वे आगे कहते हैं, ‘लेकिन 2010 के करीब यहां आपराधिक गतिविधियां फिर से तेज हुईं. तब एक मुस्तफा उर्फ़ कग्गा गैंग तेजी से उभरा था. कग्गा के एनकाउंटर के बाद मुकीम इस गैंग का सरगना हुआ और 2014 आते-आते तो उसने यहां कोहराम मचा दिया. तब सच में कई लोग शामली और कैराना छोड़कर कहीं बाहर जा बसे थे.’ हुकुम सिंह द्वारा जारी की गई मृतकों की सूची में जो शुरुआती तीन नाम हैं, उनकी हत्या इसी मुकीम गैंग द्वारा की गई थी.

सांसद हुकुम सिंह का आरोप है कि ये हत्याएं सांप्रदायिक कारणों से की गई थीं. लेकिन उनके इस आरोप को न सिर्फ आंकड़े झूठा घोषित करते हैं बल्कि कैराना के तमाम हिंदू-मुस्लिम नागरिक भी स्वीकार नहीं करते. पहले नज़र डालते हैं कुछ आंकड़ों पर. 2014 में मुकीम गैंग ने कैराना में कुल सात लोगों की हत्या की थी. इन सात लोगों में तीन वे थे जिनकी जानकारी हुकुम सिंह ने मृतकों की सूची में सबसे ऊपर दी है. जो जानकारी उन्होंने नहीं दी वह यह है कि मुकीम गैंग ने इसी साल कैराना के चार मुस्लिम लोगों की भी हत्या की थी. विनोद कुमार, शिव कुमार और राजेंद्र कुमार के अलावा 2014 में मुकीम गैंग द्वारा फुरकान, कल्लू (निवासी खुर्गान), उसका भाई और एक अन्य मुस्लिम युवक की भी हत्या की गई थी. यानी कि इनमें से कोई भी हत्या सांप्रदायिक या धार्मिक कारणों के चलते नहीं बल्कि फिरौती और रंजिश के चलते हुई थी.

2014 में कैराना में हुई सभी हत्याओं के बारे में अन्य जानकारी लेने के लिए हम कैराना थाने पहुंचते हैं. यहां रखे 2014 के रजिस्टर को खंगालने पर मालूम चलता है कि उस साल कैराना थाने में हत्या के 19 मामले दर्ज हुए थे. इनमें से तीन मामले ऐसे भी थे जिनमें दो-दो व्यक्तियों की हत्याएं हुई थीं. यानी 2014 में यहां कुल 22 लोगों की हत्या हुई थी. इनमें से सात हिंदू थे जबकि 14 मुस्लिम और एक मृतक की पहचान ‘अज्ञात’ दर्ज की गई थी. इन सभी हत्याओं में आरोपितों के नाम जांचने पर यह भी सामने आता है कि मुकीम गैंग द्वारा की गई तीन व्यापारियों की हत्या के अलावा अन्य सभी हिंदुओं की हत्याओं में आरोपित भी हिंदू धर्म के ही लोग थे.

इन आंकड़ों से इतर कैराना के स्थानीय लोग भी इस बात की गवाही देते हैं कि इनमें से कोई भी हत्या सांप्रदायिक कारणों से नहीं हुई थी. कैराना में मार्केटिंग का काम करने वाले संदीप जैन बताते हैं, ‘बदमाशों का एक ही धर्म होता है और वह है पैसा. पैसों के चलते ही बदमाशों ने शिव कुमार और राजेंद्र कुमार नाम के व्यापारी भाइयों की हत्या की थी. जब ये हत्याएं हुई थीं तो विरोध में सबसे पहले स्थानीय मुसलमानों ने ही अपनी दुकानें बंद की थीं. उन्हीं लोगों ने बाजार बंद करवाया था और हत्यारों के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठाई थी. हिंदू व्यापारी तो तब भी यह तर्क दे रहे थे कि दुकान नहीं खोलेंगे तो खाएंगे क्या.’

कथित रूप से पलायन कर चुके लोगों की इस सूची में सबसे पहला नाम ईश्वरचंद उर्फ़ बिल्लू का है. सूची के अनुसार उनका पता ‘चौक बाज़ार कैराना’ है. जब हम इस पते पर पहुंचते हैं तो ईश्वरचंद हमें अपनी दुकान पर बैठे मिलते हैं.

कैराना से पलायन करने वाले हिंदू परिवारों की सूची का सच

सांसद हुकुम सिंह द्वारा लगाए गए सांप्रदायिक हत्याओं के आरोपों को हर तरह से निराधार पाने के बाद हम उनके अन्य आरोपों की पड़ताल शुरू करते हैं. इनमें मुख्य वह सूची है जिसके आधार पर वे कहते हैं कि 346 हिंदू परिवार कैराना से सांप्रदायिक तनाव के चलते पलायन कर गए हैं. इस सूची की पहली खामी तो यही है कि इसमें 346 व्यक्तियों को 346 परिवारों के रूप में दर्शाया गया है. उदाहरण के लिए, क्रम संख्या 159 से 162 तक जिन चार लोगों के नाम सूची में दर्ज हैं, वे चारों श्री मांगेराम के चार बेटे हैं जिन्हें अलग-अलग चार परिवारों के रूप में दर्शाया गया है. ऐसे दर्जनों अन्य नाम इस सूची में शामिल हैं.

कथित रूप से पलायन कर चुके लोगों की इस सूची में सबसे पहला नाम ईश्वरचंद उर्फ़ बिल्लू का है. सूची के अनुसार उनका पता ‘चौक बाज़ार कैराना’ है. जब हम इस पते पर पहुंचते हैं तो ईश्वरचंद हमें अपनी दुकान पर अपने बेटे नितिन मित्तल के साथ बैठे हुए मिलते हैं. वे बताते हैं, ‘मैं सच में दो साल पहले यहां से पलायन कर चुका हूं. अब सिर्फ कभी-कभार ही काम के सिलसिले में यहां आता हूं.’ कैराना छोड़ कर जाने के बारे में ईश्वरचंद बताते हैं कि 16 अगस्त 2014 को कैराना में विनोद कुमार नाम के व्यापारी की फिरौती न देने के कारण हत्या कर दी गई थी. जिस मुकीम उर्फ़ फुरकान गैंग ने यह हत्या की थी उसी गैंग ने ठीक इसी दिन ईश्वरचंद से भी 20 लाख रुपयों की फिरौती मांगी थी.


अपने पुत्र नितिन मित्तल के साथ ईश्वरचंद

ईश्वरचंद बताते हैं, ‘तब मैंने कई लोगों से मदद की गुहार लगाई. लेकिन तीन दिनों तक जब कोई भी मदद को सामने नहीं आया तो 19 अगस्त की रात मैं अपने पूरे परिवार को लेकर यहां से चला गया था. कई दिनों तक तो मैं वृंदावन में शरण लेकर रहा. उसके बाद हरियाणा के एक शहर में मैंने किराए का कमरा लिया और फिर वहीं बस गया.’ जिस दौर में ईश्वरचंद से फिरौती मांगी गई थी और वे अपना सब कुछ छोड़कर कैराना से भागने को मजबूर हो गए थे उस दौर में भी हुकुम सिंह इस क्षेत्र के सांसद थे. बल्कि वे कैराना विधानसभा सीट से त्यागपत्र देकर ही सांसद बने थे. उनके द्वारा खाली की गई विधानसभा सीट पर भी तब तक उपचुनाव नहीं हुआ था. इसलिए हुकुम सिंह ही उस दौर में ईश्वरचंद के एकमात्र चुने हुए प्रतिनिधि थे. लेकिन न तो वे तब ईश्वरचंद के किसी काम ही आए और न ही उन्होंने तब यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर उठाया.

यह पूछने पर कि क्या उन्हें हिंदू होने के चलते कैराना छोड़ना पड़ा था, ईश्वरचंद कहते हैं, ‘यह बात बिलकुल गलत है. मैं इतना जानता हूं कि तब जो भी यहां संपन्न था, उसे फिरौती देनी ही पड़ती थी. इसमें कोई सांप्रदायिक पहलू नहीं था. बल्कि तब मेरे पास कुल 26 लोग काम किया करते थे जिनमें से 22 लोग मुस्लिम थे. आज भी जो एकमात्र आदमी यहां मेरा काम संभालता है, वह एक मुस्लिम ही है.’

सूची में क्रम संख्या 258 और 259 पर दर्ज देवी सिंह रोड और मीर सिंह रोड आज भी कैराना में ही रहते हैं. कैराना में ही वकालत करने वाले उनके रिश्तेदार महेंद्र सिंह रोड बताते हैं, ‘देवी सिंह और मीर सिंह ने तो अब खेतों के बीच में अपनी कोठियां बना ली हैं. उन्हें किसका डर है जो यहां से छोड़कर जाएंगे.’

ईश्वरचंद की तरह ही इस सूची में शामिल जितने भी लोगों से हमने संपर्क किया, उनमें से एक भी ऐसा नहीं था जिसने सांप्रदायिक कारणों के चलते कैराना से पलायन किया हो. बल्कि सूची में सुबोध जैन और सुशील कुमार जैसे कुछ लोग तो ऐसे हैं जिनकी कई साल पहले ही मृत्यु हो चुकी है. साथ ही कई लोग ऐसे भी हैं जो आज भी कैराना में ही रहते हैं फिर भी उन्हें पलायन कर चुके लोगों की इस सूची में दर्शाया गया है.

सूची में क्रम संख्या 258 और 259 पर दर्ज देवी सिंह रोड और मीर सिंह रोड आज भी कैराना में ही रहते हैं. कैराना जिला न्यायालय में वकालत करने वाले उनके रिश्तेदार अधिवक्ता महेंद्र सिंह रोड हमें बताते हैं, ‘देवी सिंह और मीर सिंह ने तो अब खेतों के बीच में अपनी कोठियां बना ली हैं. उन्हें किसका डर है जो यहां से छोड़कर जाएंगे?’ क्रम संख्या 271 और 272 पर दर्ज अरुण कुमार रोड और मनोज कुमार के बारे महेंद्र कहते हैं, ‘अरुण ने आज से लगभग दस साल पहले ही करनाल में अपनी डेरी खोल ली थी इसलिए वो वहां रहता है और मनोज सरकारी शिक्षक है जो लगभग 16 साल पहले से बाहर नौकरी कर रहा है. उनके भाई और अन्य रिश्तेदार आज भी कैराना में ही रहते हैं और बहुत आराम से रहते हैं.’

इस सूची में क्रम संख्या 33 पर अनिल जैन का नाम दर्ज है. वे बताते हैं, ‘आठ साल पहले से मैं शामली में व्यापार कर रहा हूं. मेरे बच्चे भी शामली में ही पढ़ते हैं. मुझे और बच्चों को रोज़ कैराना से शामली आना पड़ता था इसलिए चार साल पहले से मैं यहीं रहने लगा हूं. कैराना में आज भी हमारा पुश्तैनी मकान है और हम लगातार जाते हैं. मुझे नहीं पता मेरा नाम कैसे और किसने इस सूची में शामिल कर दिया.’

कैराना में वकालत कर रहे अधिवक्ता नसीम अहमद बताते हैं, ‘मैं पिछले 17 साल से वकालत कर रहा हूं. अधिवक्ता पंकज मित्तल मेरे वकील बनने से भी पहले से पानीपत में वकालत करते हैं. उनका नाम भी सांप्रदायिक कारणों से हाल में कैराना छोड़ने वालों की सूची में दर्शाया गया है. ऐसे ही साधुराम सैनी का नाम भी सूची में है. जबकि साधुराम बीमारी के चलते हरिद्वार में नौकरी कर रहे अपने बेटे के पास रहते हैं. उसके भाई तो आज भी यहीं कैराना में हैं.’ इस सूची में सुरेश चन्द्र, ओमकार स्वरुप जैसे कई ऐसे लोग भी शामिल हैं जो नौकरी से रिटायर होने के बाद कहीं बाहर नौकरी कर रहे अपने बच्चों के साथ रहने चले गए हैं.

कैराना के हजारों बच्चे अच्छी शिक्षा के लिए रोजाना शामली या पानीपत जाते हैं. इसलिए जो नजदीकी शहरों में बस जाने में सक्षम है, वह बस रहा है. इसमें हिंदू नहीं मुस्लिम भी शामिल हैं.

शामली निवासी मोहम्मद उस्मान बताते हैं, ‘आज के दौर में आप किसी भी छोटे शहर में चले जाइये. हर घर से कोई व्यक्ति किसी बड़े शहर जा चुका होगा. जो लोग ज्यादा संपन्न होंगे वे तो पूरे परिवार सहित ही बड़े शहरों में बस चुके होंगे. वही स्थिति कैराना की भी है.’ वे आगे कहते हैं, ‘पूरे कैराना में एक भी महिला एमबीबीएस डॉक्टर नहीं है. इसलिए अधिकतर डिलीवरी के मामलों में लोग या तो पानीपत भागते हैं या शामली. यहां के हजारों बच्चे अच्छी शिक्षा के लिए रोजाना शामली या पानीपत जाते हैं. इसलिए जो नजदीकी शहरों में बस जाने में सक्षम है, वह बस रहा है. इसमें हिंदू नहीं मुस्लिम लोग भी हैं. हुकुम सिंह जी के ही पैमानों पर यदि कैराना से पलायन कर गए मुस्लिमों की भी सूची जारी की जाए तो उनकी संख्या सैकड़ों में नहीं बल्कि हजारों में होगी.’

कैराना में एक दिन बिताने पर ही यह साफ़ हो जाता है कि सांसद हुकुम सिंह द्वारा लगाए गए दोनों आरोप पूरी तरह से गलत और झूठे हैं. कैराना से न तो सांप्रदायिक कारणों के चलते हिंदू पलायन कर रहे हैं और न ही यहां ऐसे किसी कारण के चलते हत्याएं हुई हैं. बल्कि अपने आरोपों की पुष्टि के लिए जो सूचियां उन्होंने जारी की थीं, वही उनके दावों की पोल भी खोल कर रख देती हैं. उनकी सूची में शामिल कुछ लोग तो ऐसे हैं जो कभी कैराना छोड़कर गए ही नहीं, कुछ की कई साल पहले ही मृत्यु हो गई और कुछ व्यापार या अन्य कारणों के किसी दूसरी जगह रह रहे हैं. ईश्वरचंद जैसे कुछ लोग ऐसे जरूर हैं जिन्हें बढ़ती आपराधिक गतिवधियों और रंगदारी के डर से कैराना छोड़ना पड़ा, लेकिन इनके पीछे कोई भी सांप्रदायिक कारण नहीं है. कैराना में फिरौती और रंगदारी का जितना शिकार हिंदू व्यापारी होते रहे हैं, उतना ही मुस्लिम व्यापारी भी हुए हैं.

यहां ध्यान देने वाली एक बात यह भी है कि इतनी बार कैराना से विधायक और सांसद रहने वाले हुकुम सिंह ने यहां हद से ज्यादा बढ़ चुके अपराधों के मामले में तो कभी कुछ किया नहीं और अब वे उन्हीं अपराधों को अपने राजनीतिक फायदे के लिए भुनाने का प्रयास कर रहे हैं.

मुकीम और उसके गैंग के अधिकतर सदस्य आज जेल में हैं. लेकिन कैराना में आसानी से ऐसे कई व्यापारी मिल जाते हैं जिन्होंने कुछ समय पहले ही लाखों रुपयों की रंगदारी इन कुख्यातों को चुकाई है. इनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों ही व्यापारी शामिल हैं. गोपनीयता की शर्त पर एक स्थानीय व्यापारी बताते हैं, ‘आज भले ही इस क्षेत्र के कुख्यात अपराधी जेलों में हों लेकिन उनके गुर्गों द्वारा आज भी रंगदारी मांगी जाती है. कुछ समय पहले ही हमने लाखों रुपये चुकाकर अपनी जान छुड़ाई थी. संजीव जीवा, विनोद बावला, सत्येन्द्र बरवाला, सुशील मूछ, सुनील राठी जैसे कई कुख्यातों को आज भी यहां के व्यापारी रुपये देने को लाचार हैं. हम लोग तो अब इस पैसे को ‘गुंडा टैक्स’ कहते हैं जिससे कोई भी व्यापारी बच नहीं सकता.’

संदीप जैन की तरह ही कैराना के कई अन्य हिंदुओं में भी अल्पसंख्यक होने का डर देखा जा सकता है. यह वैसा ही जैसे अधिकतर हिंदू बहुल क्षेत्रों में मुस्लिम अल्पसंख्यकों को होता है. कैराना में कुछ लोगों का यह डर इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि मुजफ्फरनगर दंगों के बाद यहां मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी है.

कैराना के संबध में सांसद हुकुम सिंह के सांप्रदायिक हत्याओं और पलायन के बयान भले ही खोखले और आधारहीन हैं लेकिन उनका यह बयान जरूर कुछ हद तक सही है कि कैराना में हिंदू समुदाय के लोग डरे हुए हैं. यहां के बिसातियान मोहल्ले में रहने वाले संदीप जैन बताते हैं, ‘यहां आज तक कोई भी सांप्रदायिक हिंसा नहीं हुई. मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान भी जब आस-पास के सारे इलाके जल रहे थे तो कैराना में शांति का माहौल था. लेकिन अल्पसंख्यक होने के चलते यह डर हिंदुओं में जरूर है कि यदि कभी कोई सांप्रदायिक दंगा होता है तो लगभग 80 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या वाले इस क्षेत्र में 20 प्रतिशत हिंदू कैसे बच सकेंगे.’

संदीप जैन की तरह ही कैराना के कई अन्य हिंदुओं में भी अल्पसंख्यक होने का डर देखा जा सकता है. यह वैसा ही जैसे अधिकतर हिंदू बहुल क्षेत्रों में मुस्लिम अल्पसंख्यकों को होता है. कैराना में कुछ लोगों का यह डर इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि मुजफ्फरनगर दंगों के बाद यहां मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी है. दंगों के दौरान बड़ी संख्या में मुसलमानों का पलायन हुआ था. इनमें से हजारों मुस्लिम परिवारों ने कैराना में शरण ली थी. आज भी कपड़े और थैलियों के जीर्ण-शीर्ण टेंट्स में हजारों मुस्लिम कैराना में शरणार्थी बनकर रह रहे हैं. इन लोगों की स्थिति दिखाते हुए स्थानीय निवासी मोहम्मद उस्मान कहते हैं, ‘यदि सच में कैराना के हिंदुओं को सांप्रदायिक कारणों से पलायन करना पड़ता तो वे भी कहीं इसी तरह रह रहे होते. लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि हिंदुओं के पलायन की बात पूरी तरह झूठी है.’ उस्मान सवाल करते हुए कहते हैं, ‘आपको लगता है कि ये लोग किसी को डरा सकते हैं? हां, जिन हालात में ये लोग जिंदगी गुजार रहे हैं वे हालात जरूर किसी को भी डरा सकते हैं.’

मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान एक तरफ जहां इस क्षेत्र के लांख, बावड़ी, लिस्हाड़, फुगाना और सिम्हाल्खा जैसे गांवों से मुस्लिम जनसंख्या लगभग समाप्त हो गई, वहीँ कैराना जैसे कुछ इलाकों में इसमें बढ़ोतरी हुई. जनसंख्या के इसी हेर-फेर का इस्तेमाल सांसद हुकुम सिंह अपने और भाजपा के हित साधने के लिए कर रहे हैं. वे अपने संसदीय क्षेत्र के उन इलाकों का नाम तो बताते हैं जहां मुस्लिम जनसंख्या बढ़ी है लेकिन, अपने ही क्षेत्र के उन इलाकों का जिक्र नहीं करते जहां से यह मुस्लिम जनसंख्या कैराना पहुंची और जहां अब एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है.

कई जानकारों का मानना है कि कैराना का मामला भाजपा ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत उछाला है. उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. इसलिए भाजपा को एक ऐसा मुद्दा चाहिए जो लोगों को सांप्रदायिक ध्रुवों में बांट सके. पिछले दो साल से केंद्र में सरकार होने के कारण भाजपा राम मंदिर, समान नागरिक संहिता और अनुछेद 370 जैसे अपने सनातन चुनावी मुद्दों से भी हाथ धो बैठी. ऐसे में कैराना भाजपा को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की एकदम नई जमीन तैयार करके दे सकता है.

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के हालिया बयान को देखते हुए यह संभावनाएं और भी मजबूत हो जाती हैं. उन्होंने कैराना पर किसी भी तरह की रिपोर्ट आने से पहले ही इसका चुनावी प्रयोग शुरू भी कर दिया है. इलाहाबाद की हालिया रैली में शाह का कहना था कि, ‘उत्तर प्रदेश वालों को कैराना हल्के में नहीं लेना चाहिए, हिंदुओं का वहां से पलायन करना बेहद चौंकाने वाला है. लोगों को यह ध्यान रखना होगा कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को सिर्फ भाजपा ही हरा सकती है.’


Source: Scroll/Satyagraha

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