CAA: गैर मुस्लिम शरणार्थियों से नागरिकता के आवेदन मांगने के खिलाफ IUML ने SC का रुख किया

Written by Sabrangindia Staff | Published on: June 3, 2021
याचिका में कहा गया है कि केंद्र ने यह आदेश पारित करके सीएए के तहत परिकल्पित अपने दुर्भावनापूर्ण मंसूबों को लागू करने की मांग की है



नई दिल्ली। गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा और पंजाब के 13 जिलों में रह रहे अफगानिस्तान, बांग्लादेश तथा पाकिस्तान के गैर-मुस्लिमों से भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन मंगाने संबंधी केंद्र की अधिसूचना को चुनौती देने के लिए इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया है।

अंतरिम आवेदन में दलील दी गई है कि केंद्र इस संबंध में शीर्ष अदालत को दिए गए उस आश्वासन के विरोधाभासी कदम उठा रहा है, जो उसने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), 2019 के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए आईयूएमएल द्वारा दायर लंबित याचिका के संबंध में दिया था।

आवेदन में कहा गया कि केंद्र ने आश्वासन दिया था कि सीएए के नियम अभी तय नहीं हुए हैं, इसलिए उस पर स्थगन लगाना जरूरी नहीं है। सीएए में 31 दिसंबर, 2014 तक अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक आधार पर प्रताड़ना सहने की वजह से भारत आए गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों, जिनमें हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शामिल हैं, को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है।

ताजा आवेदन में कहा गया है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शुक्रवार (28 मई) को नागरिकता कानून 1955 और 2009 में कानून के तहत बनाए गए नियमों के अनुरूप आदेश के इस संबंध में तत्काल क्रियान्वयन के लिए एक अधिसूचना जारी की थी, वहीं 2019 में लागू सीएए के तहत नियमों को गृह मंत्रालय ने अभी तक तैयार नहीं किया है। याचिका के अनुसार, यह गैरकानूनी है और कानून के प्रावधानों के विरोधाभासी है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागरिकता कानून 1955 और 2009 में कानून के अंतर्गत बनाए गए नियमों के तहत आदेश के तत्काल कार्यान्वयन के लिए इस आशय की एक अधिसूचना जारी की है।

गृह मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया है, ‘नागरिकता कानून 1955 की धारा 16 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए केंद्र सरकार ने कानून की धारा पांच के तहत यह कदम उठाया है। इसके अंतर्गत उपरोक्त राज्यों और जिलों में रह रहे अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और इसाई अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकृत करने के लिए निर्देश दिया गया है।’

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने अपनी याचिका में कहा कि केंद्र ने सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली उसकी याचिका की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत के समक्ष आश्वासन देते हुए कहा था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम पर रोक लगाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि नागरिकता संशोधन अधिनियम के नियम नहीं बनाए गए हैं।

याचिका में कहा गया है कि याचिका के लंबित रहने के दौरान भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने आगे बढ़कर 28 मई को आदेश जारी किया है जो स्पष्ट रूप से गैर-कानूनी है और अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है। याचिका में जब तक सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका अदालत में लंबित है, केंद्र को गृह मंत्रालय द्वारा जारी 28 मई के आदेश पर रोक लगाने का निर्देश देने की मांग की गई है।

शीर्ष अदालत ने फरवरी 2020 में सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था। उससे पहले शीर्ष अदालत ने 18 दिसंबर, 2019 को सीएए के संचालन पर रोक लगाने से इनकार करते हुए इसकी संवैधानिक वैधता की जांच करने का फैसला किया था। याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने 22 जनवरी, 2020 को यह स्पष्ट कर दिया था कि सीएए के संचालन पर रोक नहीं लगाई जाएगी और सरकार को सीएए को चुनौती देने वाली याचिकाओं का जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया था। जब 2019 में सीएए अधिनियमित किया गया था, तो देश के विभिन्न हिस्सों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे और यहां तक कि इन विरोधों के मद्देनजर 2020 की शुरुआत में दिल्ली में भी दंगे हुए थे।

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