भारत की बैंकिंग व्यवस्था चरमराने को है। आरबीआई कह रहा है कि ग्रॉस एनपीए में काफी इजाफा होगा और यह बढ़कर 14.7 फीसदी तक जा सकता है। मार्च 2021 तक बैंकों का बैड लोन यानी एनपीए 8.5 फीसदी से बढ़कर 12.5 फीसदी हो सकता है।
2015 में जो एनपीए ढाई लाख करोड़ था वो 10 लाख करोड़ से ज्यादा कैसे हो गया। क्या इसके लिए सिर्फ यूपीए सरकार ज़िम्मेदार है या मौजूदा सरकार की भी कोई जवाबदेही है। कब तक ठीकरा आप यूपीए पर फोड़ते रहेंगे।
अब हम जल्द ही पिग्स से आगे पुहंच जाएंगे दरअसल एनपीए में सिर्फ यूरोपियन यूनियन के चार देश ही इस मोर्चे पर भारत से आगे हैं। इस लिस्ट में शामिल पुर्तगाल, इटली, आयरलैंड, ग्रीस और स्पेन को आम तौर पर पिग्स (PIIGS) कहा जाता है।
बैंकिंग के लिए अब समस्या तीन तरफा है बैंकों का ग्रॉस आंकड़े के मुताबिक 2019 की जनवरी में बैंकों के कर्ज उनके जमा अनुपात का 78.6 फीसदी हो गए। यह पिछले 45 सालों का सबसे बड़ा आंकड़ा है। सामान्य तौर पर इस बात को इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि इस समय बैकों के पास जमा कम हो रहा है, जबकि वह कर्ज तेजी से बांट रहे हैं। यह एक जोखिम की स्थिति है। जोखिम की स्थिति इसलिए क्योंकि अगर किसी वजह से उसके कर्ज बड़े पैमाने पर फंस जाते हैं तो उसके पास अपने जमाकर्ताओं को देने के लिए पैसे नहीं होंगे। यह बहुत खतरनाक स्थिति बन सकती है।
एक बड़ी समस्या और है बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ लगातार गिर रही है यानी कर्ज मांगने वालों की रफ्तार दिनो दिन कम हो रही है अब आम आदमी अर्थव्यवस्था की बदतर होती स्थिति को देखते हुए कर्ज लेने से बच रहा है यह बैंकों के लिए बहुत चिंता की बात है क्योकि बैंक के लाभ का मुख्य स्रोत कर्ज के उठान और उनकी समय पर वापसी ही है। ऐसे में कर्ज लेने की गिरती दर उनके लाभ को सीमित करेगी। यानी बैंक इस समय तिहरी मुसीबत से घिरे हैं।
पहली जमा दर लगातार कम हो रही है, जिससे बैंकों का पूंजी आधार सिकुड़ रहा है। दूसरे, पहले के फंसे हुए कर्ज वापस नहीं आने से उनके बही-खाते गड़बड़ाये हुए हैं।तीसरी दिक्कत यह है कि आर्थिक मंदी के चलते बैंक के कर्जों में गिरावट आ रही है। यानी आने वाले समय में कर्ज से बैंक का लाभ भी कम हो सकता है।
इन तीनो दिक्कतों से भारत का बैंकिंग ढांचा कभी भी चरमरा सकता है केंद्र सरकार ने पहले ही फैसला कर लिया था कि प्रमुख सरकारी बैंकों को अब बेलआउट पैकेज नहीं दिया जाएगा। बहुत ही जल्द अब बेल इन का भूत वापस आ जाएगा, यानी जमाकर्ताओं की रकम से बैंको के घाटे की पूर्ति।
2015 में जो एनपीए ढाई लाख करोड़ था वो 10 लाख करोड़ से ज्यादा कैसे हो गया। क्या इसके लिए सिर्फ यूपीए सरकार ज़िम्मेदार है या मौजूदा सरकार की भी कोई जवाबदेही है। कब तक ठीकरा आप यूपीए पर फोड़ते रहेंगे।
अब हम जल्द ही पिग्स से आगे पुहंच जाएंगे दरअसल एनपीए में सिर्फ यूरोपियन यूनियन के चार देश ही इस मोर्चे पर भारत से आगे हैं। इस लिस्ट में शामिल पुर्तगाल, इटली, आयरलैंड, ग्रीस और स्पेन को आम तौर पर पिग्स (PIIGS) कहा जाता है।
बैंकिंग के लिए अब समस्या तीन तरफा है बैंकों का ग्रॉस आंकड़े के मुताबिक 2019 की जनवरी में बैंकों के कर्ज उनके जमा अनुपात का 78.6 फीसदी हो गए। यह पिछले 45 सालों का सबसे बड़ा आंकड़ा है। सामान्य तौर पर इस बात को इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि इस समय बैकों के पास जमा कम हो रहा है, जबकि वह कर्ज तेजी से बांट रहे हैं। यह एक जोखिम की स्थिति है। जोखिम की स्थिति इसलिए क्योंकि अगर किसी वजह से उसके कर्ज बड़े पैमाने पर फंस जाते हैं तो उसके पास अपने जमाकर्ताओं को देने के लिए पैसे नहीं होंगे। यह बहुत खतरनाक स्थिति बन सकती है।
एक बड़ी समस्या और है बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ लगातार गिर रही है यानी कर्ज मांगने वालों की रफ्तार दिनो दिन कम हो रही है अब आम आदमी अर्थव्यवस्था की बदतर होती स्थिति को देखते हुए कर्ज लेने से बच रहा है यह बैंकों के लिए बहुत चिंता की बात है क्योकि बैंक के लाभ का मुख्य स्रोत कर्ज के उठान और उनकी समय पर वापसी ही है। ऐसे में कर्ज लेने की गिरती दर उनके लाभ को सीमित करेगी। यानी बैंक इस समय तिहरी मुसीबत से घिरे हैं।
पहली जमा दर लगातार कम हो रही है, जिससे बैंकों का पूंजी आधार सिकुड़ रहा है। दूसरे, पहले के फंसे हुए कर्ज वापस नहीं आने से उनके बही-खाते गड़बड़ाये हुए हैं।तीसरी दिक्कत यह है कि आर्थिक मंदी के चलते बैंक के कर्जों में गिरावट आ रही है। यानी आने वाले समय में कर्ज से बैंक का लाभ भी कम हो सकता है।
इन तीनो दिक्कतों से भारत का बैंकिंग ढांचा कभी भी चरमरा सकता है केंद्र सरकार ने पहले ही फैसला कर लिया था कि प्रमुख सरकारी बैंकों को अब बेलआउट पैकेज नहीं दिया जाएगा। बहुत ही जल्द अब बेल इन का भूत वापस आ जाएगा, यानी जमाकर्ताओं की रकम से बैंको के घाटे की पूर्ति।