करतारपुर की नींव पर शांति व दोस्ती स्थापित करने का मौका

लगातार पाकिस्तान के विरोध में पहले लोक सभा चुनाव के दौरान व फिर कश्मीर पर निर्णय लेने के बाद नरेन्द्र मोदी द्वारा बोलने के बाद सिख तीर्थ-यात्रियों हेतु पाकिस्तान में करतारपुर तक 4.7 किलोमीटर का गलियार खोल देने के लिए इमरान खान की तारीफ करना सुन कर अच्छा लगा। इस बात का पूरा श्रेय इमरान खान को जाता है कि प्रधान मंत्री की शपथ लेते ही करतारपुर गलियारा खोलने के निर्णय से वे डिगे नहीं इसके बावजूद कि भारत लगातार उनके कार्यकाल में आक्रामक भूमिका में रहा है। हालांकि उनका दल इस मुद्दे पर उनके साथ नहीं खड़ा रहा लेकिन इसमें नवजोत सिंह सिद्धू की इमरान खान से मैत्री की भी एक भूमिका है और सिद्धू भी गलियारे खोलने के पक्ष में अपनी भूमिका पर बने रहे इसके बावजूद कि इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी सेना के प्रमुख को गले लगाने पर भारत में उनकी काफी आलोचना हुई। अभी तक के इतिहास में पाकिस्तान ज्यादा आक्रमक तेवर दिखाता रहा है और भारत शांति की बात करता रहा है। लेकिन यह पहली बार हो रहा कि पाकिस्तान शांति चाह रहा है और भारत से उसे अनुकूल प्रतिक्रिया नहीं मिल रही। अन्यथा भारत-पाकिस्तान रिश्ते में एक दूसरे के निर्णय की नकल करने की अथवा ईंट का जवाब पत्थर से देने की परम्परा के अनुसार तो नरेन्द्र मोदी को करतारपुर गलियारे के उद्घाटन के अवसर पर पाकिस्तान के नागरिकों हेतु अजमेर शरीफ दरगाह आने के लिए राजस्थान के रास्ते एक गलियारा खोलने की घोषणा करनी चाहिए थी।



यह विडम्बना देखिए कि जिस दिन भारत अपने एक अल्पसंख्यक समुदाय को, जिस स्थान पर 1992 तक मस्जिद खड़ी थी, उस स्थान से वंचित कर रहा था उसी दिन पाकिस्तान एक अन्य अल्पसंख्यक समुदाय सिक्ख को अपने यहां बिना पासपोर्ट-वीजा के आकर एक धार्मिक स्थल के दर्शन हेतु खुले दिल से स्वागत कर रहा था।

जो सिक्ख करतारपुर में दरबार साहब गुरुद्वारा होकर आए उनके अनुभव से प्रतीत होता है कि पाकिस्तान ने उनका स्वागत करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। इमरान खान ने अपने इस एक काम से भारतवासियों का दिल जीत लिया है। हलांकि यह बेहतर होगा कि पाकिस्तान पहचान के रूप में पासपोर्ट की जरूरत खत्म कर दे क्योंकि बहुत सारे गरीब भारतीयों के पास पासपोर्ट नहीं होता। जैसे एक साधनविहीन आदमी ने सीमा इस पार कहा, आधार कार्ड को पहचान का दस्तावेज बनाया जा सकता है। 2005 में दिल्ली से मुलतान अपनी भारतीय हिस्से की पदयात्रा में हमारा अनुभव रहा कि बहुत सारे सामान्य नागरिक पाकिस्तान जाने की इच्छा रखते हैं किंतु जब उन्हें यह बताया गया कि पासपोर्ट बनवाकर वीजा लेना पड़ेगा तो वे बहुत निराश हुए। 20 डाॅलर का सेवा शुल्क भी अधिक है। पाकिस्तान को इसे माफ कर देना चाहिए ताकि गरीब से गरीब इंसान भी गुरु नानक के निर्वाण स्थल दर्शन हेतु जा सके। इसी गलियारे से गलियारे व गुरुद्वारे की देखरेख हेतु अन्य तरीकों से संसाधन जुटाए जा सकते हैं।

2005 में दिल्ली से मुल्तान जो पदयात्रा, जिसमें पाकिस्तान में पैदल चलने की अनुमति न मिलने के कारण वाहनों का भी इस्तेमाल करना पड़ा, आयोजित की गई थी उसके तीन उद्देश्य थे। पहला, भारत व पाकिस्तान के बीच जो भी विवाद हैं वह बातचीत से सुलझाया जाएं, जम्मू व कश्मीर का मामला वहां के लोगों की राय के मुताबिक हल हो, दूसरा, भारत व पाकिस्तान अपने नाभिकीय शस्त्र तुरंत खत्म करें और रक्षा बजट कम करें ताकि महत्वपूर्ण संसाधनों को दोनों ओर की गरीब जनता के विकास में लगाया जा सके, तीसरा, पासपोर्ट-वीजा की अनिवार्यता समाप्त कर आने-जाने का रास्ता खोल दिया जाए। यह तीसरी मांग ऐसी थी जिस पर गांवों में तालियां बजतीं व शहरी शिक्षित वर्ग शंका व्यक्त करता था। जब हम जलंधर पहुंच रहे थे तो पीछे से एक गुरुद्वारे में ताड़ी कीर्तन गाने वाला साइकिल चलाता आया व हमें रोक कर सुझाव दिया कि हमारी मांग क्रम संख्या तीन असल में संख्या एक पर होनी चाहिए। हम उसका तर्क सुनकर चकित हुए बिना न रह सके। उसने कहा यदि आपकी मांग संख्या तीन मान ली जाती है तो ऊपर की दो मांगों को मानना आसान हो जाएगा। एक आम आदमी सड़क पर हमें शिक्षा दे रहा था। हमारे ऊपर इस व्यक्ति ने वह छाप छोड़ी है जितना हमें किसी विश्वविद्यालय की कक्षाओं में बंद चार दिवारों के अंदर किसी प्रोफेसर ने प्रभावित नहीं किया।

2005 यात्रा की मुल्तान में अगवानी पाकिस्तान के वर्तमान विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने की थी जो वहां स्थित बहाउद्दीन जाकरिया मजार के सज्जादा नशीं भी हैं। यात्रा से ऐसा भाईचारे का माहौल निर्मित हुआ था कि उस दिन शाह महमूद कुरैशी ने मुल्तान की भरी सभा में वह बात कही जिसे हिन्दुस्तान में तो कहना आसान है लेकिन पाकिस्तान में कठिन कि जिस तरह दो जर्मनी एक हो गए उसी तरह एक दिन जरूर भारत व पाकिस्तान भी एक हो जाएंगे।

वैसे भी देखा जाए तो जिस दिन नरेन्द्र मोदी भारत से 562 सिक्ख तीर्थयात्रियों को भारत से रवाना कर रहे थे व सीमा पार इमरान खान उनका स्वागत कर रहे थे तो दोनों तरफ के नेतृत्व के बीच की पारम्परिक कड़ुवाहट जादू की तरह खत्म हो गई थी। हमारा पाकिस्तान की कुछ यात्राओं का अनुभव यह है कि दोनों सरकारों के बीच जो कृत्रिम दुश्मनी का माहौल बना कर रखा जाता है, जो अनुकूल परिस्थितियों में गर्मजोशी व सद्भावना में तब्दील हो जाता है, वह नीचे स्तर पर जनता तक नहीं जाता। जनता तो दोनों तरफ एक ही है, एक ही भाषा बोलती है।

यदि दोनों सरकारें थोड़ी दरियादिली दिखाएं तो सरकारों के बीच दुश्मनी का माहौल देखते ही देखते पिघल सकता है। भारत पाकिस्तान की ताजा पहल को संशय की दृष्टि से देख रहा है। उसे लगता है कि पाकिस्तानी सेना अथवा खुफिया एजेंसी इस पहल के माध्यम से खालिस्तानी उग्रवादियों को बढ़ावा देना चाह रही है ताकि वे हिन्दुस्तान में अस्थिरता पैदा कर सकें। यदि ऐसा है भी तो यह देखना भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का काम है। किंतु यह बात भारत व पाकिस्तान के बीच करतारपुर पहल को नींव बना कर दोस्ती व शांति स्थापित करने के प्रयासों में रोड़ा नहीं बननी चाहिए। यदि हम एक दूसरे के प्रति हमेशा सशंकित ही रहेंगे तो अच्छे रिश्ते की शुरुआत कैसे होगी? शांति व दोस्ती में इतने लोगों का हित जुड़ा हुआ है और इतने सारे लोगों का जीवन आसान हो जाएगा कि इसके लिए हमें कुछ खतरा भी मोल लेना पड़े तो लेना चाहिए। पंजाब के मुख्य मंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा है कि वे प्रधान मंत्री से बात करेंगे कि वे पाकिस्तानी सरकार से बात कर वहां स्थित अन्य ऐतिहासिक गुरुद्वारों का भी मार्ग खुलवाएं। अतः दोनों देशों के औपचारिक रिश्ते जैसे भी हों सीमा पार आने-जाने के मार्ग खुलें ये तो, खासकर सीमा से सटे इलाकों में, एक लोकप्रिय मांग है।

भारत सरकार की यह जिद्द कि जब तक पाकिस्तान सरकार पूरी तरह से भारत के खिलाफ सीमा पार से होने वाली आतंकवादी घटनाओं पर रोक नहीं लगाती तब तक वह उससे बातचीत नहीं करेगी अव्यवहारिक है। यह उसी तरह है जैसे यदि केन्द्र सरकार योगी आदित्यनाथ सरकार से कहे कि जब तक वह उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी इकाई के अंदर सभी आपराधिक प्रवृति व बलात्कार के आरोपी नेताओं से छुटकारा नहीं पा लेती तब तक उसका उत्तर प्रदेश सरकार से कोई लेना-देना नहीं होगा। इमरान खान के खिलाफ अभी हाल में पाकिस्तान में जिस किस्म के प्रदर्शन हुए, इसकी सम्भावना प्रबल है कि वहां कट्टरपंथी शक्तियां पुनः हावी हो सकती हैं। दोस्ती व शांति की प्रकिया को मजबूत करने के लिए पाकिस्तान में इमरान खान व शाह महमूद कुरैशी से बेहतर नेतृत्व मिलना कठिन ही है। भारत को यह मौका गंवाना नहीं चाहिए।

नरेन्द्र मोदी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में जिस किस्म का प्रशिक्षण हुआ है उसमें पाकिस्तान व मुसलमान को दुश्मन ही माना गया है। यदि वे इस बात पर विचार करें कि दोनों देशों व समुदायों में दोस्ती व शांति की बात कर लोगों के अंदर की अच्छी भावनाओं के आधार पर अपनी राजनीति करें तो भी उतने ही लोगों को लामबंद किया जा सकता है जितना दुश्मनी व नफरत की राजनीति करके। 9 नवम्बर को सीमा इस पार और उस पार जो माहौल बना था उससे उन्हें इस वैकल्पिक विचार की ताकत का अंदाजा मिला होगा।

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