अपनी फायरब्रांड इमेड और सोशल मीडिया पर सक्रियता से चर्चित आईएएस अधिकारी बी. चंद्रकला इन दिनों फिर से चर्चाओं में हैं। हाल ही में सीबीआई ने कथित अवैध खनन के पट्टे देने के मामले में उनके आवास पर छापे मारे हैं। दिल्ली समेत उत्तर प्रदेश के 12 जगहों पर छापे मारे गए जिसमें समाजवादी पार्टी नेता समेत चंद्रकला का लखनऊ स्थित आवास भी शामिल है। वहीं सीबीआई के छापे के बाद चंद्रकला की पहली प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होने सोशल नेटवर्किंग साइट लिंक्ड इन पर एक कविता के जरिए अपनी भावनाओं को साझा किया है। कविता में उन्होने इसे चुनावी हथकंडा बताया है।
पढ़िए उन्होने कविता में क्या कहा-
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको,
फलक से रंग, या मुझे रंग दे जमीं से ,
रे रंगरेज़! तू रंग दे कहीं से।।
छन-छन करती पायल से,
जो फूटी हैं यौवन के स्वर ;
लाल से रंग मेरी होंठ की कलियाँ,
नयनों को रंग, जैसे चमके बिजुरिया,
गाल पे हो, ज्यों चाँदनी बिखरी,
माथे पर फैली ऊषा-किरण,
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको,
यहाँ से रंग, या मुझे रंग दे, वहीं से,
रे रंगरेज़ तू रंग दे, कहीं से।।
कमर को रंग, जैसे, छलकी गगरिया,
उर,,,उठी हो, जैसे चढ़ती उमिरिया,
अंग-अंग रंग, जैसे, आसमान पर,
घन उमर उठी हो बन, स्वर्ण नगरिया।।
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको,
सांस-सांस रंग, सांस-सांस रख,
तुला बनी हो ज्यों , बाँके बिहरिया ,
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको ।।
पग- रज ज्यों, गोधुली बिखरी हो,
छन-छन करती नुपूर बजी हो,
फाग के आग से उठती सरगम,
ज्यों मकरंद सी महक उड़ी हो ।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको ,
खुदा सा रंग , या मुझे रंग दे हमीं से ,
रे रंगरेज़ तू रंग दे , कहीं से ।।
पलक हो, जैसे बावड़ी वीणा,
कपोल को चूमे, लट का नगीना,
तपती जमीं सा मन को रंग दे,
रोम-रोम तेरी चाहूँ पीना।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको,
बरस-बरस मैं चाहूँ जीना।। :: बी चंद्रकला ,,आई ए एस।।
,,चुनावी छापा तो पड़ता रहेगा ,,लेकिन जीवन के रंग को क्यों फीका किया जाय ,,दोस्तों।
आप सब से गुजारिश है कि मुसीबतें कैसी भी हो , जीवन की डोर को बेरंग ना छोड़ें।।
पढ़िए उन्होने कविता में क्या कहा-
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको,
फलक से रंग, या मुझे रंग दे जमीं से ,
रे रंगरेज़! तू रंग दे कहीं से।।
छन-छन करती पायल से,
जो फूटी हैं यौवन के स्वर ;
लाल से रंग मेरी होंठ की कलियाँ,
नयनों को रंग, जैसे चमके बिजुरिया,
गाल पे हो, ज्यों चाँदनी बिखरी,
माथे पर फैली ऊषा-किरण,
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको,
यहाँ से रंग, या मुझे रंग दे, वहीं से,
रे रंगरेज़ तू रंग दे, कहीं से।।
कमर को रंग, जैसे, छलकी गगरिया,
उर,,,उठी हो, जैसे चढ़ती उमिरिया,
अंग-अंग रंग, जैसे, आसमान पर,
घन उमर उठी हो बन, स्वर्ण नगरिया।।
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको,
सांस-सांस रंग, सांस-सांस रख,
तुला बनी हो ज्यों , बाँके बिहरिया ,
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको ।।
पग- रज ज्यों, गोधुली बिखरी हो,
छन-छन करती नुपूर बजी हो,
फाग के आग से उठती सरगम,
ज्यों मकरंद सी महक उड़ी हो ।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको ,
खुदा सा रंग , या मुझे रंग दे हमीं से ,
रे रंगरेज़ तू रंग दे , कहीं से ।।
पलक हो, जैसे बावड़ी वीणा,
कपोल को चूमे, लट का नगीना,
तपती जमीं सा मन को रंग दे,
रोम-रोम तेरी चाहूँ पीना।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको,
बरस-बरस मैं चाहूँ जीना।। :: बी चंद्रकला ,,आई ए एस।।
,,चुनावी छापा तो पड़ता रहेगा ,,लेकिन जीवन के रंग को क्यों फीका किया जाय ,,दोस्तों।
आप सब से गुजारिश है कि मुसीबतें कैसी भी हो , जीवन की डोर को बेरंग ना छोड़ें।।