गुजरात की राजकोट पुलिस ने दिव्य भास्कर अखबार के चार पत्रकारों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। बता दें कि दिव्य भास्कर दैनिक भास्कर समूह का ही अखबार है।
अंग्रेजी समाचार पत्र द इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि इन चारों पत्रकारों ने राजकोट तालुका पुलिस स्टेशन में एक स्टिंग ऑपरेशन किया था और उसके आधार पर एक रिपोर्ट प्रकाशित कर दावा किया था कि राजकोट के एक निजी अस्पताल में आग लगने के संबंध में गिरफ्तार तीन लोगों को वीआईपी सुविधाएं मुहैया कराई गईं।
हेड कॉन्स्टेबल जिग्नेश गढ़वी द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर पुलिस ने राजकोट में पत्रकार- महेंद्र सिंह जडेजा, प्रदीप सिंह गोहिल, प्रकाश रवरानी और इमरान होथी के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की है।
एफआईआर में कहा गया है कि पत्रकारों ने पुलिस बल को बदनाम करने का प्रयास किया और मामले में जांच को प्रभावित किया। हालांकि, दिव्य भास्कर के प्रदेश संपादक देवेंद्र भटनागर ने कहा कि पत्रकार पत्रकारिता धर्म का पालन कर रहे थे।
रिपोर्ट के मुताबिक भटनागर ने कहा, ‘अगर सरकार या पुलिस उन आरोपियों को बचा रही है, उन्हें सुविधा दे रही है और हम उन्हें बेनकाब कर रहे हैं तो हम केवल पत्रकारिता के धर्म का पालन कर रहे हैं। प्राथमिकी में कहा गया है कि हमने जो समाचार रिपोर्ट प्रकाशित की है वह गलत है।’
संपादक के अनुसार, उन्होंने (पुलिस) एफआईआर में जो बताया है वह यह है कि पत्रकारों ने उनके काम, उनके गुप्त काम में बाधा डाली। कब से पुलिस स्टेशन एक गुप्त स्थान बन गया? हमारी कानूनी टीम इस पर गौर कर रही है और हम कानूनी तरीके से जवाब देंगे।
महेंद्र सिंह जडेजा अखबार के क्राइम रिपोर्टर हैं जबकि प्रदीप सिंह गोहिल सिटी रिपोर्टिंग के हेड हैं। प्रकाश रवरानी फोटोग्राफर हैं और इमरान होथी इंवेस्टिगेटिव प्रोजेक्ट्स पर काम करते हैं।
उनके खिलाफ आईपीसी धारा 186 (लोकसेवक के कार्यों में बाधा डालना), 114 (अपराध किए जाते समय उकसाने वाले की मौजूदगी) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 72 ए (कानूनन अनुबंध के उल्लंघन में सूचना के प्रकटीकरण के लिए सजा), 84बी (अपराध के लिए उकसाना), 84सी (अपराध करने का प्रयास) व अन्य के तहत मामला दर्ज किया गया है।
अपनी शिकायत में गढ़वी ने कहा कि 1 दिसंबर को पत्रकार सुबह के करीब 5 बजे पुलिस स्टेशन आए। उन्होंने खुद को दिव्य भास्कर का पत्रकार बताया और लॉकअप में बंद लोगों की जानकारी मांगने लगे। इसके बाद वे लॉकअप और पुलिस स्टेशन में बंद लोगों की वीडियो बनाने और फोटो खींचने लगे।
शिकायत में कहा गया, ‘जब उन्हें बताया गया कि उन्हें पुलिस स्टेशन के अंदर फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करने की मंजूरी नहीं है, क्योंकि वहां आरोपी और असलहा रखे हैं तब उन्होंने (पत्रकारों) ने कहा कि वे अपना काम कर रहे हैं और हमसे अपना काम करने के लिए कहा।’
शिकायत में कहा गया कि पत्रकार बिना अनुमति के पुलिस स्टेशन के पहले तल पर जांच कर्मचारियों के कमरे में घुस गए और दो कॉन्स्टेबल से पूछने लगे वे क्या कर रहे हैं, आरोपी कहां हैं और क्या बयान दर्ज किए गए हैं। इससे पुलिसकर्मियों की आधिकारिक ड्यूटी में बाधा पहुंची।
शिकायत के अनुसार, राजकोट तालुका पुलिस के इंस्पेक्टर जेवी ढोला ने भी पत्रकारों से फोटो और वीडियो नहीं लेने के लिए कहा लेकिन वे ऐसा करते रहे। 2 दिसंबर को दर्ज एफआईआर के अनुसार, दिव्य भास्कर ने अग्निकांड के संबंध में एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें दावा किया गया कि डॉ। प्रकाश मोढा और दो अन्य डॉक्टरों को पुलिस स्टेशन में वीआईपी ट्रीटमेंट दिया गया और लॉकअप में रखे जाने के बजाय उन्हें जांचकर्मियों के कमरे में सोने की मंजूरी दी गई।
एफआईआर में कहा गया कि अखबार ने पुलिस स्टेशन के लॉकअप, उसके ऑफिस रूम और पूछताछ के दौरान आरोपियों की फोटो प्रकाशित की। बता दें कि बीते 26 नवंबर को उदय शिवानंद कोविड-19 अस्पताल में आग लगने के मामले में पुलिस ने 1 दिसंबर को डॉ। मोढा, उनके बेटे विशाल और डॉ। तेजस करमाता को गिरफ्तार किया था, जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई थी।
राजकोट सिटी पुलिस कमिश्नर मनोज अग्रवाल ने कहा कि पत्रकार पुलिस स्टेशन के उस हिस्से में भी दाखिल हो गए थे जिसकी जानकारी सूचना के अधिकार के तहत भी साझा नहीं की जाती है।
अग्रवाल ने कहा, ‘जहां पीएसओ (पुलिस स्टेशन अधिकारी) बैठता है, यदि आप वहां एक स्टिंग ऑपरेशन करते हैं तो यह ठीक है, लेकिन वे जांच कक्ष के अंदर और हमारे निगरानी दस्ते के कमरे में गए और वहां एक स्टिंग किया। यह जांच क्षेत्र है जिसके बारे में आरटीआई अधिनियम धारा 8 जी के तहत भी खुलासा नहीं किया जा सकता है।’
बता दें कि गुजरात के राजकोट शहर में बीते 26 नवंबर को उदय शिवानंद कोविड-19 अस्पताल के आईसीयू में आग लगने से पांच मरीजों की मौत हो गई थी और छह अन्य घायल हो गए थे। इस घटना के दौरान अस्पताल में कुल 33 मरीज भर्ती थे, जिनमें से सात उस समय आईसीयू में भर्ती थे। इसके बाद मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 1 दिसंबर को गुजरात सरकार की रिपोर्ट पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा था कि तथ्यों को छिपाने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए।
अंग्रेजी समाचार पत्र द इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि इन चारों पत्रकारों ने राजकोट तालुका पुलिस स्टेशन में एक स्टिंग ऑपरेशन किया था और उसके आधार पर एक रिपोर्ट प्रकाशित कर दावा किया था कि राजकोट के एक निजी अस्पताल में आग लगने के संबंध में गिरफ्तार तीन लोगों को वीआईपी सुविधाएं मुहैया कराई गईं।
हेड कॉन्स्टेबल जिग्नेश गढ़वी द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर पुलिस ने राजकोट में पत्रकार- महेंद्र सिंह जडेजा, प्रदीप सिंह गोहिल, प्रकाश रवरानी और इमरान होथी के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की है।
एफआईआर में कहा गया है कि पत्रकारों ने पुलिस बल को बदनाम करने का प्रयास किया और मामले में जांच को प्रभावित किया। हालांकि, दिव्य भास्कर के प्रदेश संपादक देवेंद्र भटनागर ने कहा कि पत्रकार पत्रकारिता धर्म का पालन कर रहे थे।
रिपोर्ट के मुताबिक भटनागर ने कहा, ‘अगर सरकार या पुलिस उन आरोपियों को बचा रही है, उन्हें सुविधा दे रही है और हम उन्हें बेनकाब कर रहे हैं तो हम केवल पत्रकारिता के धर्म का पालन कर रहे हैं। प्राथमिकी में कहा गया है कि हमने जो समाचार रिपोर्ट प्रकाशित की है वह गलत है।’
संपादक के अनुसार, उन्होंने (पुलिस) एफआईआर में जो बताया है वह यह है कि पत्रकारों ने उनके काम, उनके गुप्त काम में बाधा डाली। कब से पुलिस स्टेशन एक गुप्त स्थान बन गया? हमारी कानूनी टीम इस पर गौर कर रही है और हम कानूनी तरीके से जवाब देंगे।
महेंद्र सिंह जडेजा अखबार के क्राइम रिपोर्टर हैं जबकि प्रदीप सिंह गोहिल सिटी रिपोर्टिंग के हेड हैं। प्रकाश रवरानी फोटोग्राफर हैं और इमरान होथी इंवेस्टिगेटिव प्रोजेक्ट्स पर काम करते हैं।
उनके खिलाफ आईपीसी धारा 186 (लोकसेवक के कार्यों में बाधा डालना), 114 (अपराध किए जाते समय उकसाने वाले की मौजूदगी) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 72 ए (कानूनन अनुबंध के उल्लंघन में सूचना के प्रकटीकरण के लिए सजा), 84बी (अपराध के लिए उकसाना), 84सी (अपराध करने का प्रयास) व अन्य के तहत मामला दर्ज किया गया है।
अपनी शिकायत में गढ़वी ने कहा कि 1 दिसंबर को पत्रकार सुबह के करीब 5 बजे पुलिस स्टेशन आए। उन्होंने खुद को दिव्य भास्कर का पत्रकार बताया और लॉकअप में बंद लोगों की जानकारी मांगने लगे। इसके बाद वे लॉकअप और पुलिस स्टेशन में बंद लोगों की वीडियो बनाने और फोटो खींचने लगे।
शिकायत में कहा गया, ‘जब उन्हें बताया गया कि उन्हें पुलिस स्टेशन के अंदर फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करने की मंजूरी नहीं है, क्योंकि वहां आरोपी और असलहा रखे हैं तब उन्होंने (पत्रकारों) ने कहा कि वे अपना काम कर रहे हैं और हमसे अपना काम करने के लिए कहा।’
शिकायत में कहा गया कि पत्रकार बिना अनुमति के पुलिस स्टेशन के पहले तल पर जांच कर्मचारियों के कमरे में घुस गए और दो कॉन्स्टेबल से पूछने लगे वे क्या कर रहे हैं, आरोपी कहां हैं और क्या बयान दर्ज किए गए हैं। इससे पुलिसकर्मियों की आधिकारिक ड्यूटी में बाधा पहुंची।
शिकायत के अनुसार, राजकोट तालुका पुलिस के इंस्पेक्टर जेवी ढोला ने भी पत्रकारों से फोटो और वीडियो नहीं लेने के लिए कहा लेकिन वे ऐसा करते रहे। 2 दिसंबर को दर्ज एफआईआर के अनुसार, दिव्य भास्कर ने अग्निकांड के संबंध में एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें दावा किया गया कि डॉ। प्रकाश मोढा और दो अन्य डॉक्टरों को पुलिस स्टेशन में वीआईपी ट्रीटमेंट दिया गया और लॉकअप में रखे जाने के बजाय उन्हें जांचकर्मियों के कमरे में सोने की मंजूरी दी गई।
एफआईआर में कहा गया कि अखबार ने पुलिस स्टेशन के लॉकअप, उसके ऑफिस रूम और पूछताछ के दौरान आरोपियों की फोटो प्रकाशित की। बता दें कि बीते 26 नवंबर को उदय शिवानंद कोविड-19 अस्पताल में आग लगने के मामले में पुलिस ने 1 दिसंबर को डॉ। मोढा, उनके बेटे विशाल और डॉ। तेजस करमाता को गिरफ्तार किया था, जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई थी।
राजकोट सिटी पुलिस कमिश्नर मनोज अग्रवाल ने कहा कि पत्रकार पुलिस स्टेशन के उस हिस्से में भी दाखिल हो गए थे जिसकी जानकारी सूचना के अधिकार के तहत भी साझा नहीं की जाती है।
अग्रवाल ने कहा, ‘जहां पीएसओ (पुलिस स्टेशन अधिकारी) बैठता है, यदि आप वहां एक स्टिंग ऑपरेशन करते हैं तो यह ठीक है, लेकिन वे जांच कक्ष के अंदर और हमारे निगरानी दस्ते के कमरे में गए और वहां एक स्टिंग किया। यह जांच क्षेत्र है जिसके बारे में आरटीआई अधिनियम धारा 8 जी के तहत भी खुलासा नहीं किया जा सकता है।’
बता दें कि गुजरात के राजकोट शहर में बीते 26 नवंबर को उदय शिवानंद कोविड-19 अस्पताल के आईसीयू में आग लगने से पांच मरीजों की मौत हो गई थी और छह अन्य घायल हो गए थे। इस घटना के दौरान अस्पताल में कुल 33 मरीज भर्ती थे, जिनमें से सात उस समय आईसीयू में भर्ती थे। इसके बाद मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 1 दिसंबर को गुजरात सरकार की रिपोर्ट पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा था कि तथ्यों को छिपाने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए।