मीडिया विरोधी सरकार के ‘अच्छे’ प्रधानमंत्री

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: March 8, 2020
द टेलीग्राफ ने आज खबर दी है कि दो मलयालम चैनल का प्रसारण रोकने के अपने फैसले को सरकार ने वापस ले लिया है और दोनों चैनल का प्रसारण 48 घंटे की मियाद खत्म होने से पहले, शनिवार को शुरू हो गया। एशियानेट का प्रसारण रात डेढ़ बजे शुरू हुआ जबकि मीडिया वन का प्रसारण सवेरे साढ़े नौ बजे शुरू हुआ। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावेडकर ने यह संकेत देने का प्रयास किया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री मोदी ने भी चिन्ता जताई और अब मैं निश्चित रूप में इस मामले को विस्तार से देखूंहा तथा कुछ गलत हुआ तो आवश्यक कार्रवाई करूंगा।



द टेलीग्राफ ने अपने विशेष संवाददाता की खबर में लिखा है, मीडिया को दबाने के मामले में इस तरह की कार्रवाई मोदी सरकार के काम काज का सामान्य तरीका बन गया है। एक या दो चैनल को रोकने और जब विवाद बढ़ता लगे तो अपना हाथ खींच लेने की उभरती शैली से सवाल उठता है कि क्या सरकार ऐसी कार्रवाई से सभी मीडिया संस्थानों को निशाना बनाना चाहती है। कार्रवाई और उसे वापस लिए जाने से ऐसा लग रहा है कि मुख्य मकसद मीडिया संस्थानों को धमकाना और डराना था कि दंगे जैसी स्थिति में सरकार की भूमिका पर जांच और उसकी प्रतिक्रिया पर ऊंगली उठाने से पहले कई बार सोच लिया जाए।

आप जानते हैं कि दोनों चैनल के खिलाफ कार्रवाई करते हुए जावेडकर के मंत्रालय ने कल उनके प्रसारण पर रोक लगा दी थी जबकि दोनों ने सरकारी नोटिस के जवाब में अपने कवरेज को सही बताया था। प्रभावित चैनल में से एक, मीडिया वन ने कहा है कि वह सरकारी आदेश को केरल हाईकोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में था तो दूसरी ओर, जावेडकर ने रिपोर्टर्स से कहा, हमलोगों ने तुरंत पता किया कि असल में क्या हुआ है और मैंने तुरंत चैनल का प्रसारण बहाल कराया। चैनल मालिकों में से एक ने मुझसे बात की। रात में ही उनका चैनल एशियानेट (भाजपा सांसद राजीव चंद्रेशखेर के नियंत्रण वाली कंपनी) प्रसारण करने लगा था। और मीडिया वन भी सुबह से प्रसारण कर रहा है। .....

... आपको याद होगा कि नवंबर 2016 में मोदी सरकार ने एनडीटीवी इंडिया को 24 घंटे के लिए प्रतिबंधित किया था पर जल्दी ही निर्देश बदल दिया था। अप्रैल 2018 में सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने फर्जी खबरों के प्रसारण पर मान्यताप्राप्त पत्रकारों को काली सूची में डालने का निर्देश दिया था पर बाद में आदेश वापस ले लिया। दोनों ही मामलों में मीडिया में जोरदार प्रतिक्रिया हुई थी। 2018 में भी सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा था कि प्रधानमंत्री ने मामले में हस्तक्षेप किया और आदेश वापस कराया। इस तरह उन्हें मीडिया की आजादी के संरक्षण के रूप में पेश किया गया। वैसे अब यह राज की बात नहीं है कि इस सरकार में उनकी सहमति के बिना शायद ही कुछ होता है।

इस बार भी मीडिया में तुरंत प्रतिक्रिया हुई। केरल में पत्रकार शुक्रवार की सड़क पर उतर आए। दिल्ली में भी विरोध प्रदर्शन हुआ। मीडिया संगठनों ने सख्त शब्दों में एतराज किया और बयान जारी किए। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने इस हमले को सरकार अनुदार रुख का सबूत बताया .... जिससे सेंसरशिप के प्रति पूर्वग्रह दिखता है। एक संबद्ध बयान में न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट रजत शर्मा ने मंत्रालय के निर्णय की निन्दा की और प्रधानमंत्री द्वारा दिखाई गई चिन्ता तथा उसके बाद प्रतिबंध वापस लिए जाने की प्रशंसा की। नुकसान को नियंत्रित करने के लिए सरकार कार्रवाई करती उससे पहले कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने मांग की थी कि प्रतिबंध को तत्काल हटाया जाए।

दो दिन मैंने आपको बताया कि कैसी खबरें हिन्दी अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं होती हैं। आज मेरा अनुमान था कि यह खबर पहले पन्ने पर होनी चाहिए क्योंकि प्रधानमंत्री की छवि बनाने की कार्रवाई है। नवभारत टाइम्स में समाचार एजेंसी भाषा की यह खबर पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है, लेकिन है। इस खबर के मुताबिक, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने इस पूरे मुद्दे पर चिंता जाहिर की है। हमारी सरकार प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन करती है।’ केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के एक सूत्र के मुताबिक एशियानेट न्यूज पर लगा बैन देर रात डेढ़ बजे जबकि मीडिया वन पर लगी रोक सुबह साढ़े नौ बजे हटा ली गई। साथी ही उन्होंने यह भी कहा कि हर किसी को यह स्वीकार करना चाहिए कि स्वतंत्रता के साथ कुछ जिम्मेदारी भी होती हैं।

 

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