कोई खुल कर बोल नही रहा है पर साफ समझ में आ रहा है कि प्रज्ञा ठाकुर को अचानक बीजेपी मे शामिल करना और उसके कुछ घंटे बाद ही भोपाल जैसी महत्वपूर्ण सीट से प्रत्याशी बना देने से यही संदेश जा रहा है कि, बीजेपी के पास इस 2019 के चुनाव को साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण करने के सिवाय कोई चारा नहीं बचा है।
मालेगांव विस्फोट मामले में विशेष अदालत ने जब प्रज्ञा सिंह ठाकुर की जमानत याचिका ख़ारिज की, तब विशेष अदालत ने NIA की ये कहते हुए खिंचाई की थी कि उसने प्रज्ञा से जुड़े मामले की जांच ठीक से नहीं की है।
बाद में पता चला कि प्रज्ञा ठाकुर जो आठ साल से मालेगांव बम धमाके के आरोप में जेल में बंद है, उस मामले में जांच कर रही NIA ने अपनी सप्लीमेंट्री चार्जशीट में प्रज्ञा ठाकुर समेत 6 आरोपियों को क्लीन चिट दे दी है।
रमजान के दौरान मालेगांव के अंजुमन चौक और भीखू चौक पर 29 सितंबर 2008 को सिलसिलेवार बम धमाके हुए जिसमें छह लोगों की मौत हुई जबकि 101 लोग घायल हुए थे। इन धमाकों की शुरुआती जांच महाराष्ट्र एटीएस ने की थी। उनके अनुसार धमाकों में एक मोटरसाइकिल प्रयोग की गई थी वो मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पर थी, इतना बड़ा सुबूत भी NIA ने नजरअंदाज कर दिया!
महाराष्ट्र का मालेगाँव एक मुस्लिम बाहुल्य कस्बा है जिसमें बड़े पैमाने पर परम्परागत रूप से मुस्लिम आबादी बुनकर है इस इलाके में अभिनव भारत नाम का एक संगठन सक्रिय होता है। यह वही अभिनव भारत है जिसकी स्थापना सावरकर ने 1904 में की। कहा जाता है कि यह संगठन ब्रिटिश शासन से लड़ने के लिए बनाया गया था। सन् 1952 में सावरकर ने खुद इस संस्था को विसर्जित कर दिया था।
लेकिन 2006 में इसे फिर से पुर्नजीवित किया जाता है और संगठन की कमान गोपाल गोडसे की बेटी और नाथूराम गोडसे की भतीजी हिमानी सावरकर के हाथों में दी जाती है। हिमानी विनायक दामोदर सावरकर की बहू भी है।
हिमानी कहती हैं कि सावरकर ने 1952 में यह कहते हुए संगठन भंग कर दिया था कि अंग्रेजों के चले जाने के साथ ही संगठन का उद्देश्य पूरा हो गया, लेकिन हिंदुओ पर अत्याचार को देखते हुए हमने इसे पुन: शुरू किया है। हिंदुओं के प्रति अन्याय के खिलाफ हम लड़ेंगे। हम किसी तरह के आतंकवाद को समर्थन नही देते। लेकिन लगे हाथ यह भी स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हिंदू अपने ऊपर हो रहे अत्याचार बर्दाश्त नही करेंगे। अगर ऐसी हिंदू विरोधी घटनाएं होती रहीं तो इसकी प्रतिक्रिया भी जरूर दिखेगी।
पुण्य प्रसून वाजपेयी ने अपने एक ब्लॉग में अभिनव भारत के पुनर्गठन पर लिखा है, '2006 में अभिनव भारत को दुबारा जब शुरु करने का सवाल उठा तो संघ के हिन्दुत्व को खारिज करने वाले हिन्दुवादी नेताओं की पंरपरा भी खुलकर सामने आयी। पुणे में हुई बैठक में , जिसमे हिमानी सावरकर भी मौजूद थीं, उसमें यह सवाल उठाया गया कि आरएसएस हमेशा हिन्दुओं के मुद्दे पर कोई खुली राय रखने की जगह खामोश रहकर उसका लाभ उठाना चाहता रहा है। बैठक में शिवाजी मराठा और लोकमान्य तिलक से हिन्दुत्व की पाती जोड़ कर सावरकर की फिलास्फी और गोडसे की थ्योरी को मान्यता दी गयी। बैठक में धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी से लेकर गोरक्षा पीठ के मंहत दिग्विजय नाथ और शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद के भक्तों की मौजूदगी थी। या कहें उनकी पंरपरा को मानने वालों ने इस बैठक में माना कि संघ के आसरे हिन्दुत्व की बात को आगे बढाने का कोई मतलब नहीं है।..............माना यह भी गया कि बीजेपी को आगे रख कर संघ अब अपनी कमजोरी छुपाने में भी ज्यादा वक्त जाया कर रहा है इसलिये नये तरीके से हिन्दुराष्ट्र का सवाल खड़ा करना है तो पहले आरएसएस को खारिज करना होगा। हालांकि, आरएसएस के भीतर यह अब भी माना जाता है कि कांग्रेस से ज्यादा नजदीकी हिन्दु महासभा की ही रही। 1937 तक तो जिस पंडाल में कांग्रेस का अधिवेशन होता था, उसी पंडाल में दो दिन बाद हिन्दु महासभा का अधिवेशन होता। और मदन मोहन मालवीय के दौर में तो दोनों अधिवेशनों की अध्यक्षता मालवीय जी ने ही की।'
कहा तो यह भी जाता है कि इस संगठन के पुनर्गठन का जिम्मा हिमानी सावरकर ने नहीं बल्कि कर्नल पुरोहित ने समीर कुलकर्णी के साथ मिलकर उठाया था। यह तथ्य एटीएस महाराष्ट्र को कर्नल पुरोहित के इंटेरोगेशन के जरिये मालूम हुआ था।
महाराष्ट्र एटीएस के मुखिया शहीद हेमंत करकरे इसे बहुत खतरनाक मानते थे। यह वही करकरे हैं जिन्हें मुंबई हमले में जान से हाथ धोना पड़ा था। महाराष्ट्र के पूर्व आईजी पुलिस एस एम् मुशरिफ ने अपनी किताब में यहां तक लिखा है कि हेमंत करकरे की हत्या हिन्दू आतंकवादियों ने की थी।
हेमंत करकरे की हत्या के बाद जब नरेंद्र मोदी हेमंत करकरे के घर मिलने पुहंचे थे तो उनकी पत्नी ने अपने घर से नरेंद्र मोदी को उल्टे पांव लौटा दिया था। यहाँ तक कि उन्होंने एक करोड़ रुपये की सरकारी सहायता लेने से भी इन्कार कर दिया था।
बहरहाल, लेफ्टिनेंट कर्नल पी एस पुरोहित ने अपने नार्को टेस्ट में बताया था कि भोपाल मीटिंग के दौरान मालेगांव ब्लास्ट की योजना तय हुई इस बैठक में प्रज्ञा ठाकुर सम्मिलित थी।
लेकिन यह प्रज्ञा ठाकुर पर इकलौता केस नही है, प्रज्ञा सिंह ठाकुर और आरएसएस के नेता इंद्रेश कुमार ओर सुनील जोशी पर 2007 के अजमेर दरगाह बम धमाके के आरोप भी लगे थे। इस बम धमाके में तीन लोग मारे गए और 17 घायल हुए थे। अजमेर धमाके के तुरंत बाद सुनील जोशी की हत्या कर दी गयी थी वह प्रज्ञा सिंह ठाकुर का काफी करीबी बताया जाता है। माना जाता है कि अजमेर दरगाह धमाकों के मुख्य आरोपी सुनील जोशी ने इन्द्रेश कुमार के दिशा निर्देश पर ही उक्त विस्फ़ोट किये थे।
प्रज्ञा ठाकुर अजमेर बम धमाकों के आरोप से तो बरी हो गई लेकिन मालेगांव केस उस पर आज भी चल रह है। कैंसर की बीमारी के इलाज का आधार पर उन्हें कोर्ट ने ज़मानत दी थी लेकिन वह बाहर आकर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रही है।
हमें यह ध्यान रखना होगा कि बम धमाकों के आरोपी रहे व्यक्ति को सत्तारूढ़ दल द्वारा एक महत्वपूर्ण सीट से टिकट दिए जाना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय लोकतंत्र पर लगे काले दाग के रूप में देखा जा सकता है।
मालेगांव विस्फोट मामले में विशेष अदालत ने जब प्रज्ञा सिंह ठाकुर की जमानत याचिका ख़ारिज की, तब विशेष अदालत ने NIA की ये कहते हुए खिंचाई की थी कि उसने प्रज्ञा से जुड़े मामले की जांच ठीक से नहीं की है।
बाद में पता चला कि प्रज्ञा ठाकुर जो आठ साल से मालेगांव बम धमाके के आरोप में जेल में बंद है, उस मामले में जांच कर रही NIA ने अपनी सप्लीमेंट्री चार्जशीट में प्रज्ञा ठाकुर समेत 6 आरोपियों को क्लीन चिट दे दी है।
रमजान के दौरान मालेगांव के अंजुमन चौक और भीखू चौक पर 29 सितंबर 2008 को सिलसिलेवार बम धमाके हुए जिसमें छह लोगों की मौत हुई जबकि 101 लोग घायल हुए थे। इन धमाकों की शुरुआती जांच महाराष्ट्र एटीएस ने की थी। उनके अनुसार धमाकों में एक मोटरसाइकिल प्रयोग की गई थी वो मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पर थी, इतना बड़ा सुबूत भी NIA ने नजरअंदाज कर दिया!
महाराष्ट्र का मालेगाँव एक मुस्लिम बाहुल्य कस्बा है जिसमें बड़े पैमाने पर परम्परागत रूप से मुस्लिम आबादी बुनकर है इस इलाके में अभिनव भारत नाम का एक संगठन सक्रिय होता है। यह वही अभिनव भारत है जिसकी स्थापना सावरकर ने 1904 में की। कहा जाता है कि यह संगठन ब्रिटिश शासन से लड़ने के लिए बनाया गया था। सन् 1952 में सावरकर ने खुद इस संस्था को विसर्जित कर दिया था।
लेकिन 2006 में इसे फिर से पुर्नजीवित किया जाता है और संगठन की कमान गोपाल गोडसे की बेटी और नाथूराम गोडसे की भतीजी हिमानी सावरकर के हाथों में दी जाती है। हिमानी विनायक दामोदर सावरकर की बहू भी है।
हिमानी कहती हैं कि सावरकर ने 1952 में यह कहते हुए संगठन भंग कर दिया था कि अंग्रेजों के चले जाने के साथ ही संगठन का उद्देश्य पूरा हो गया, लेकिन हिंदुओ पर अत्याचार को देखते हुए हमने इसे पुन: शुरू किया है। हिंदुओं के प्रति अन्याय के खिलाफ हम लड़ेंगे। हम किसी तरह के आतंकवाद को समर्थन नही देते। लेकिन लगे हाथ यह भी स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हिंदू अपने ऊपर हो रहे अत्याचार बर्दाश्त नही करेंगे। अगर ऐसी हिंदू विरोधी घटनाएं होती रहीं तो इसकी प्रतिक्रिया भी जरूर दिखेगी।
पुण्य प्रसून वाजपेयी ने अपने एक ब्लॉग में अभिनव भारत के पुनर्गठन पर लिखा है, '2006 में अभिनव भारत को दुबारा जब शुरु करने का सवाल उठा तो संघ के हिन्दुत्व को खारिज करने वाले हिन्दुवादी नेताओं की पंरपरा भी खुलकर सामने आयी। पुणे में हुई बैठक में , जिसमे हिमानी सावरकर भी मौजूद थीं, उसमें यह सवाल उठाया गया कि आरएसएस हमेशा हिन्दुओं के मुद्दे पर कोई खुली राय रखने की जगह खामोश रहकर उसका लाभ उठाना चाहता रहा है। बैठक में शिवाजी मराठा और लोकमान्य तिलक से हिन्दुत्व की पाती जोड़ कर सावरकर की फिलास्फी और गोडसे की थ्योरी को मान्यता दी गयी। बैठक में धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी से लेकर गोरक्षा पीठ के मंहत दिग्विजय नाथ और शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद के भक्तों की मौजूदगी थी। या कहें उनकी पंरपरा को मानने वालों ने इस बैठक में माना कि संघ के आसरे हिन्दुत्व की बात को आगे बढाने का कोई मतलब नहीं है।..............माना यह भी गया कि बीजेपी को आगे रख कर संघ अब अपनी कमजोरी छुपाने में भी ज्यादा वक्त जाया कर रहा है इसलिये नये तरीके से हिन्दुराष्ट्र का सवाल खड़ा करना है तो पहले आरएसएस को खारिज करना होगा। हालांकि, आरएसएस के भीतर यह अब भी माना जाता है कि कांग्रेस से ज्यादा नजदीकी हिन्दु महासभा की ही रही। 1937 तक तो जिस पंडाल में कांग्रेस का अधिवेशन होता था, उसी पंडाल में दो दिन बाद हिन्दु महासभा का अधिवेशन होता। और मदन मोहन मालवीय के दौर में तो दोनों अधिवेशनों की अध्यक्षता मालवीय जी ने ही की।'
कहा तो यह भी जाता है कि इस संगठन के पुनर्गठन का जिम्मा हिमानी सावरकर ने नहीं बल्कि कर्नल पुरोहित ने समीर कुलकर्णी के साथ मिलकर उठाया था। यह तथ्य एटीएस महाराष्ट्र को कर्नल पुरोहित के इंटेरोगेशन के जरिये मालूम हुआ था।
महाराष्ट्र एटीएस के मुखिया शहीद हेमंत करकरे इसे बहुत खतरनाक मानते थे। यह वही करकरे हैं जिन्हें मुंबई हमले में जान से हाथ धोना पड़ा था। महाराष्ट्र के पूर्व आईजी पुलिस एस एम् मुशरिफ ने अपनी किताब में यहां तक लिखा है कि हेमंत करकरे की हत्या हिन्दू आतंकवादियों ने की थी।
हेमंत करकरे की हत्या के बाद जब नरेंद्र मोदी हेमंत करकरे के घर मिलने पुहंचे थे तो उनकी पत्नी ने अपने घर से नरेंद्र मोदी को उल्टे पांव लौटा दिया था। यहाँ तक कि उन्होंने एक करोड़ रुपये की सरकारी सहायता लेने से भी इन्कार कर दिया था।
बहरहाल, लेफ्टिनेंट कर्नल पी एस पुरोहित ने अपने नार्को टेस्ट में बताया था कि भोपाल मीटिंग के दौरान मालेगांव ब्लास्ट की योजना तय हुई इस बैठक में प्रज्ञा ठाकुर सम्मिलित थी।
लेकिन यह प्रज्ञा ठाकुर पर इकलौता केस नही है, प्रज्ञा सिंह ठाकुर और आरएसएस के नेता इंद्रेश कुमार ओर सुनील जोशी पर 2007 के अजमेर दरगाह बम धमाके के आरोप भी लगे थे। इस बम धमाके में तीन लोग मारे गए और 17 घायल हुए थे। अजमेर धमाके के तुरंत बाद सुनील जोशी की हत्या कर दी गयी थी वह प्रज्ञा सिंह ठाकुर का काफी करीबी बताया जाता है। माना जाता है कि अजमेर दरगाह धमाकों के मुख्य आरोपी सुनील जोशी ने इन्द्रेश कुमार के दिशा निर्देश पर ही उक्त विस्फ़ोट किये थे।
प्रज्ञा ठाकुर अजमेर बम धमाकों के आरोप से तो बरी हो गई लेकिन मालेगांव केस उस पर आज भी चल रह है। कैंसर की बीमारी के इलाज का आधार पर उन्हें कोर्ट ने ज़मानत दी थी लेकिन वह बाहर आकर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रही है।
हमें यह ध्यान रखना होगा कि बम धमाकों के आरोपी रहे व्यक्ति को सत्तारूढ़ दल द्वारा एक महत्वपूर्ण सीट से टिकट दिए जाना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय लोकतंत्र पर लगे काले दाग के रूप में देखा जा सकता है।