किसानों की खट्टर सरकार को चेतावनी- वापस लें कृषि अधिनियम, वरना होगा बड़ा राज्यव्यापी आंदोलन

Written by sabrang india | Published on: September 12, 2020
चंडीगढ़। हरियाणा की खट्टर सरकार को एक साल होने को आ गया है। इसके साथ ऐसा लग रहा है कि सरकार के लिए अब चुनौतियों भरा दौर शुरू हो गया है दरअसल कृषि अधिनियम पर प्रदेश भर के किसान लामबंद हो गए हैं। किसानों ने सरकार को सीधी चेतावनी दी है कि यदि अधिनियम वापस न लिया तो वह राज्यस्तरीय आंदोलन चलाने पर मजबूर हो जाएंगे।



किसानों का यह विरोध प्रदर्शन ऐसे समय में चल रहा है जब हरियाणा के बरोदा विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव की घोषणा किसी भी वक्त हो सकती है। यहां के विधायक कृष्ण मूर्ति का पिछले दिनों निधन हो गया था। कृष्ण मूर्ति कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव जीते थे। बरोदा विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह से ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र है। यहां 80 प्रतिशत मतदाता कृषि से जुड़ा हुआ है।

अब जिस तरह से किसान एकजुट हो गए हैं, इसका असर बरोदा सीट पर भी पड़ सकता है। यही कारण है कि किसान आंदोलन को लेकर सरकार चिंतित है। गुरुवार को एक बार तो सरकार ने आंदोलन पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन किसानों की बढ़ती भीड़ को देखते हुए सरकार को यह निर्णय वापस लेना पड़ा। सरकार ने किसानों को रैली करने की इजाजत दी।

किसानों के आंदोलन को पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और इनेलो के नेता अभय सिंह चौटाला ने भी समर्थन दिया है। इस तरह से कुछ समय पहले तक जहां खट्टर सरकार के खिलाफ एक भी आवाज नहीं उठ रही थी, वहीं अब किसान आंदोलन से सरकार को घेर लिया है। धान का सीजन शुरु होने वाला है। ऐसे में सरकार के सामने इन हालात से पार पाना मुश्किल काम हो रहा है।

भारतीय किसान यूनियन के प्रधान गुरनाम सिंह चढ़नी ने बताया कि सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन किया है। इस वजह से अब अब व्यापारी जितना चाहे खाद्य पदार्थ स्टोर कर सकता है। विरोध करने वालों का तर्क है कि इससे जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा। मुनाफा कमाने के चक्कर में व्यापारी इस तरह से सप्लाई करेगा कि डिमांड ज्यादा रहे, लेकिन आवाक कम।

भारतीय किसान यूनियन के प्रधान गुरनाम सिंह चढ़नी ने बताया कि सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन किया है। इस वजह से अब अब व्यापारी जितना चाहे खाद्य पदार्थ स्टोर कर सकता है। विरोध करने वालों का तर्क है कि इससे जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा। मुनाफा कमाने के चक्कर में व्यापारी इस तरह से सप्लाई करेगा कि डिमांड ज्यादा रहे, लेकिन आवाक कम।

पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना के रजिस्ट्रार बीएस ढिल्लन ने बताया कि फसल कटायी के सीजन में किसानों से व्यापारी फसल खरीद कर स्टोर कर लेंगे। दूसरी ओर वह उन राज्यों में उजप बेचेंगे जहां इसका उत्पादन कम है। इस तरह से वह तो डबल मुनाफा कमा लेंगे, लेकिन किसान और खरीददार दोनों नुकसान में रह सकते हैं।

युवा किसान संघ के प्रधान प्रमोद चौहान ने बताया कि इसी तरह से सरकार ने कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 के तहत प्रावधान किया कि व्यापारी मंडी से बाहर भी किसानों से उपज खरीद सकता है। प्रमोद चौहान ने बताया कि यह बहुत ही खतरनाक निर्णय है क्योंकि इसकी आड़ में जहां सरकार व्यापारियों को लाभ पहुंचाना चाह रही है, वहीं मंडी सिस्टम को चुपचाप खत्म करने की कोशिश कर रही है क्योंकि मंडी के माध्मय से यदि किसान फसल खरीदता है तो उसे इस पर टैक्स देना होगा। लेकिन यदि वह मंडी के बाहर फसल खरीदता है तो उसका टैक्स भी बच जाएगा। प्रमोद चौहान ने बताया कि सरकार बहुत ही चालाकी से काम कर ही है। वह व्यापारियों को प्रोत्साहित कर ही है कि वह मंडी के बाहर ही फसल खरीद लें।

इस तरह से जब मंडी में फसल आएगी नहीं तो आहिस्ता-आहिस्ता मंडी खत्म हो जाएगी। जब मंडी खत्म हो जाएगी तो किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य की जो मांग सरकार से करता है, वह मांग कर ही नहीं पाएगा। प्रमोद चौहान ने बताया कि बिहार में 2006 में मंडी सिस्टम खत्म कर दिया था। वहां किसानों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 2015-16 के नाबार्ड सर्वे के मुताबिक, बिहार के एक किसान परिवार की औसत आय 7,175 रुपये प्रति महीने है। वहीं पंजाब के किसान परिवार की औसत आय 23,133 रुपये और हरियाणा के किसान परिवार की आय 18,496 रुपये है क्योंकि पंजाब व हरियाणा में मंडी सिस्टम है, इसलिए यहां किसान की औसतन आय बिहार के कासान से ज्यादा है।

तीसरा, केंद्र ने एक और नया कानून- मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश, 2020– पारित किया है, जो कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को कानूनी वैधता प्रदान करता है ताकि बड़े बिजनेस और कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट पर जमीन लेकर खेती कर सकें। लेकिन इसका विरोध करने वालों का तर्क है कि पंजाब में 30 सालों से किसान पेप्सिको के साथ आलू और टमाटर उगाने के लिए समझौते किए है। लेकिन इससे फायदा तो कंपनी का है। यूं भी इस अधिनियम में दिक्कत यह है कि किसानों के हितों की बजाय कंपनी के हितों को ध्यान में रखा गया है।

कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं कि जिसे हम रिफॉर्म कह रहे है वो अमेरिका और यूरोप में कई दशकों से लागू है और इसके बावजूद वहां के किसानों की आय में कमी आई है.उन्होंने कहा, अमेरिका कृषि विभाग के मुख्य अर्थशास्त्री का कहना है कि 1960 के दशक से किसानों की आय में गिरावट आई है। इन सालों में यहां पर अगर खेती बची है तो उसकी वजह बड़े पैमाने पर सब्सिडी है। कमोडिटी ट्रेडिंग और मल्टी-ब्रांड रिटेल के बावजूद अमेरिकन फार्म ब्यूरो फेडरेशन ने 2019 में कहा कि 91 प्रतिशत अमेरिकी किसान दिवालिया हैं और 87 प्रतिशत किसानों का कहना है कि उनके पास खेती छोड़ने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है।

शर्मा ने कहा कि यदि सरकार किसानों के हित को सोचती है तो उसे एक और अध्यादेश लाना चाहिए जो किसानों को एमएसपी का कानूनी अधिकार दे दे, जो ये सुनिश्चित करेगा कि एमएसपी के नीचे किसी से खरीद नहीं होगी। बहरहाल यहीं वजह है कि इस मसले पर हरियाणा के किसान एकजुट हो गए हैं। उन्हे विपक्ष का साथ भी मिल गया है। ऐसे में आने वाले दिनों में किसान सरकार की परेशानी बढ़ा सकते हैं।

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