दिल्ली: सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा की मांग को लेकर ट्रांसपोर्ट वर्करों ने निकाला विरोध मार्च

Written by मुकुंद झा | Published on: February 22, 2023
पल्लेदारों की मांगों के साथ देशभर के मेहनतकश लोगों की मांग को लेकर 5 अप्रैल को दिल्ली का घेराव करने की योजना है।



सोमवार को पूर्वी दिल्ली के गांधीनगर में ट्रांसपोर्ट एजेंसियों के अंर्तगत काम करने वाले पल्लेदारों ने एक विरोध मार्च निकाला। ये मार्च 'दिल्ली ट्रांसपोर्ट कर्मचारी लाल झंडा यूनियन' संबद्ध सीटू के बैनर तले कैलाश नगर लाल बत्ती से शुरू कर गांधी नगर के पुश्ता रोड़, श्मशान घाट गीता कॉलोनी लाल बत्ती से होते हुए बुद्ध बाजार, मेन रोड़ गांधी नगर से कैलाश नगर लाल बत्ती पर पहुंचा। इसमें गांधी नगर, कैलाश नगर, झील और गांधी नगर रेडिमेड गारमेंटस मार्केट में विभिन्न ट्रांसपोर्ट एजेंसियों के अंर्तगत काम करने वाले पल्लेदारों ने हिस्सा लिया।

इस मार्च में सैकड़ों की संख्या में पल्लेदारों ने भाग लिया। ये पल्लेदार दुकानों से समान उठाकर ट्रांसपोर्ट तक ले जाने का काम करते हैं। वे एक तरीके से लोडिंग और उन लोडिंग का काम करते हैं। ये एक ऐसा तबका है जिनके काम के कोई रेट तय नहीं है। जबकि इनके काम में जोखिम लगातार बना रहता है। इन्हें एक से लेकर ढाई किवंटल तक वजन का नग (समान का एक बॉक्स या पेटी) उठाना पड़ता है। इस दौरान कई हादसे भी होते है जबकि इन्हें एक नग का 15 से 30 रुपए ही मिलता है जो कि इस महंगाई में काफी कम है। इन्हें महीने में 12से 16 हजार तक कमाने के लिए दस से बारह घंटे तक काम करना पड़ता है।



यूनियन के सचिव कृपाल चैहान ने न्यूजक्लिक से बात करते हुए कहा कि हम सड़क पर है क्योंकि हमारे पास कोई सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा नहीं है। मालिक अपनी मर्जी से काम कराते हैं। रेट तय नहीं है। अपनी मर्जी से कुछ भी पैसा देते है। हम चाहते हैं सरकार इन्हें सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा दे और इनके काम का रेट तय हो।

उन्होंने कहा इन्हें एक क्विंटल से भी भारी नग के लिए केवल 10-15 रुपये मिलते हैं जोकि अमानवीय है। इसलिए हम कम से कम 60 रुपए प्रति नग करने की मांग कर रहे हैं। इसके साथ ही नग का भार भी बहुत अधिक होता है जिससे हादसे होता हैं। इसलिए हम किसी भी नग का भार एक किवंटल से अधिक नहीं करने की मांग करते हैं।



अधिकतर पल्लेदार प्रवासी मजदूर हैं। इनमें भी अधिकांश मज़दूर जम्मू-कश्मीर और बिहार से हैं। हालांकि बाकी राज्यों के भी मज़दूर हैं लेकिन उनकी संख्या कम है।

बिहार के शिव नारायण यादव भरी दोपहरी में यूनियन का झंडा लिए खड़े थे। उन्होंने न्यूजक्लिक से बात करते हुए कहा कि महंगाई रोज बढ़ रही है लेकिन हमारा रेट दस साल से वही है। आटा, दूध, सब्जी से लेकर हर चीज के दाम कई गुण बढ़ गए लेकिन हमारी आमदनी वही है।



इसी तरह बिहार के ही 35 वर्षीय राम चंद्र यादव दस सालों से गांधी नगर के मार्केट में पल्लेदारी का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा हम लोग इतना भी पैसा नहीं काम पाते है कि ढंग की जगह पर रह पाए। हम लोग दिन में रिक्शा से माल ढुलाई करते हैं और रात में उसी पर कंबल डालकर सड़क किनारे सो जाते हैं।

इनमें से अधिकतर वो लोग हैं जिनके पास अपने अपने गृह राज्य में कोई आय का साधन नहीं है। ये अधिकतर भूमिहीन किसान परिवार से या फिर बहुत ही कम जोत वाले किसान हैं। इसलिए इन्हें दिल्ली में आकार रहना पड़ता है।

ये मामला किसी एक रामचंद्र की नहीं बल्कि ऐसे सैकड़ों पल्लेदार मिले जो बिना मकान के रह रहे हैं। वो या तो अपने ठेले पर रात बिताते हैं या फिर किसी फैक्ट्री या ट्रांसपोर्ट के भीतर ही रात गुजारते हैं। जबकि बड़ी संख्या में मज़दूर एक कमरा किराए पर लेते हैं और एक कमरे में आठ से दस लोग रहने को मजबूर हैं।



जम्मू के रहने वाले सुनील सिंह ने बताया वो 10 x 12 के एक कमरे में आठ लोगों के साथ रहते हैं। ये अकेले सुनील या उनके दोस्तों की कहानी नहीं है। बल्कि ऐसे मजदूरों की संख्या राजधानी में काफी अधिक है। ये सभी किसी तरह पैसा बचाकर गांव में रहने वाले परिवार को भेजते हैं ताकि उनका गुजारा चल सके। वे इतना पैसा नहीं कमा पाते हैं जिससे कि वे किसी अच्छे मकान में रह सकें और अच्छा खाना खा सकें।

संतोष नाम के पल्लेदार ने कहा कि पांच साल पहले दूध 20 -22 रुपये थैली था और आज 33 रुपए का है। ऐसे ही आटा जो 14 रुपए था वो अब 25 रुपए का मिलता है। हर चीज के दाम बढ़े हैं। हमारा रिक्शा पहले 6 हजार का मिलता था जो अब 15 हजार का मिलता है। पंक्चर लगाने के पैसे भी डबल हो गए है लेकिन हमारा रेट वही है। आप ही बताएं हम क्या करें।

पल्लेदारों के मार्च से पहले सभा को यूनियन के नेताओं ने संबोधित किया। जिसमें सीटू राज्य कमेटी सदस्य पुष्पेंद्र सिंह, सीटू राज्य महासचिव अनुराग सक्सेना, लाल झंडा यूनियन के सचिव कृपाल चैहान और गांधी नगर यूनिट के अध्यक्ष शाहिद ने संबोधित किया।

अनुराग सक्सेना ने कहा कि हम सरकार से बस मज़दूर होने का हक मांग रहे है। सरकार से काम के दौरान सुरक्षा की मांग कर रहे है। जैसा की निर्माण मजदूरों के लिए जैसे हर राज्य में वेलफेयर बोर्ड है वैसे ही हम इन असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए भी ऐसे ही वेलफेयर बोर्ड बनाने की मांग कर रहे है जिसमें उन्हें सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मिल सके।

उन्होंने दवा किया कि हम कोई अनोखी मांग नहीं कर रहे हैं। इस तरह के बोर्ड तमिलनाडु और केरल में है। इसलिए हम चाहते है राजधानी में भी इस तरह का बोर्ड बनाए जाएं।

पुष्पेंद्र सिंह ने कहा कि हम पल्लेदारों की मांगों के साथ देशभर के मेहनतकश लोगों की मांग को लेकर 5 अप्रैल को दिल्ली का घेराव करने जा रहे हैं। इसमें बड़ी संख्या में ये पल्लेदार और ट्रांसपोर्ट वर्कर भाग लेंगे।

शाहिद ने बताया कि यहां रोजाना हादसे होते हैं। दो महीने पहले ही लोडिंग करते वक्त दुर्घटना हो गई और दो मजदूरों का पैर टूट गया। लेकिन किसी ने भी उनकी मदद नहीं की तब हम सारे पल्लेदारों ने मिलकर चंदा किया और 30 हजार रुपये की मदद की थी। ऐसे छोटे हादसे तो आम बात हैं कभी किसी का कुंडी से हाथ कट जाता है तो कभी किसी पर भारी नग गिर जाता है। ऐसे एक हादसे में दो साल पहले दो मजदूरों की मौत हो गई थी। लेकिन इन घटनाओं की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता है। मालिक कहते हैं हम तो नग के रेट के हिसाब से काम करते है इसलिए हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है।

यूनियन के नेताओं ने ट्रांसपोर्टरों से प्रति नग व प्रति क्विंटल मंहगाई अनुसार दाम बढ़ाने की मांग रखी। साथ ही काम पर घायल होने पर पल्लेदार को क्षति पूर्ति इलाज का खर्च, मृत्यु होने पर मालिक द्वारा मुआवजा देने की बात को जोर-शोर उठाया गया।

साथ-साथ इन सभी असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों/पल्लेदार, जिनका ई-श्रम कार्ड भी बन चुका है, उनके लिए सामाजिक सुरक्षा वेलफेयर बोर्ड गठन की मांग को भी उठाया गया। सर्वसम्मति से तय किया गया कि पल्लेदारों का मांग पत्र जल्द ही ट्रांसपोर्ट मालिकों को दिया जाएगा और उनसे मांगों पर वार्ता कर जल्द समाधान के लिए कहा जाएगा।

Courtesy: Newsclick

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