इस साल 26 मार्च को इंडिपेंडेंट वेब न्यूज पोर्टल कोबरापोस्ट ने देश के नामचीन समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों पर स्टिंग कर सनसनी फैला दी थी. इसे ऑपरेशन 136 का नाम दिया गया था. इस स्टिंग में इंडिया टुडे, टाइम्स ऑफ इंडिया, एबीपी न्यूज, दैनिक जागरण समेत कई मीडिया संस्थान पैसे के एवज में हिंदुत्व का एजेंडा को आगे बढ़ाने और मतदाताओं के ध्रुवीकरण करने को तैयार दिखे थे. इसी दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने दैनिक भास्कर समूह के खिलाफ बनी डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण पर रोक लगा दी थी. लेकिन अब शुक्रवार को कोर्ट ने कोबरापोस्ट की डॉक्यूमेंट्री को सार्वजनिक करने से रोकने वाले वाले एक आदेश को रद्द कर दिया है.

जस्टिस एस रविंद्र भट्ट और जस्टिस एके चावला की पीठ ने कहा कि दैनिक भास्कर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (डीबी कॉर्प) की याचिका पर पूरे मुकदमे के लंबित रहने के दौरान एकतरफा रोक लगाने का आदेश न्यायसंगत नहीं था.
पीठ ने कहा, ‘जब तक शुरुआत में ही यह नहीं साबित हो जाता है कि कथित अपमानजनक सामग्री दुर्भावनापूर्ण या स्पष्ट रूप से झूठी है, तब तक वह भी एकतरफा रोक का आदेश और वो भी बिना कोई कारण दर्ज किये नहीं दिया जाना चाहिये.’
हालांकि, पीठ ने पक्षों के दलीलों के आधार पर अंतरिम राहत देने के प्रश्न पर विचार करने के लिए मामले को फिर से एकल न्यायाधीश वाली पीठ को भेजते हुए कहा कि डीबी कॉर्प को अंतरिम राहत देने वाली याचिका पर दोबारा विचार किया जाना चाहिए.
पीठ ने दोनों पक्षों से 3 अक्टूबर को एकल न्यायाधीश वाली पीठ के सामने मौजूद रहने को कहा है.
हाईकोर्ट ने यह भी कहा, ‘इस बात में कोई शक नहीं है कि नए ज़माने का मीडिया, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इंटरनेट अधिक चुनौतीपूर्ण है. इसके लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी के महत्वपूर्ण अधिकार को कम नहीं किया जा सकता, जो लोकतंत्र के लिए ज़रूरी है.
कोर्ट ने एकतरफा तरीके से रोक लगाने के मामले पर कहा, ‘फ्री स्पीच से जुड़ा स्थापित सिद्धांत यही है कि किसी तरह की कथित मानहानि या निंदा का दावा करने वाले प्रतिष्ठित लोगों और सार्वजनिक संस्थानों को किसी तरह की रोक या निषेध पाने के लिए एक बड़े मानक को पूरा करना चाहिए.’
दैनिक भास्कर कॉरपोरेशन ने बीते 24 मई को दिल्ली हाईकोर्ट से कोबरापोस्ट की उस डॉक्यूमेंट्री के प्रदर्शन पर रोक लगवाने में कामयाबी हासिल की थी।
इस आदेश के खिलाफ कोबरापोस्ट अदालत पहुंचा था और इसके पत्रकारों ने इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी से जुड़ा हुआ बताते हुए इस रोक के फैसले को चुनौती दी थी.
दैनिक भास्कर कोबरापोस्ट द्वारा लगाए गए आरोपों को गलत बताते हुए कहा था कि यह उन्हें बदनाम करने की दुर्भावना पर आधारित हैं. उन्होंने कहा था कि अगर डॉक्यूमेंट्री को जारी करने पर रोक नहीं लगायी गयी, तो इससे अखबार को ‘कभी न भरपाई करनेवाला नुकसान’ पहुंचेगा.
हालांकि कोबरापोस्ट ने यह स्टिंग जारी किया, लेकिन उसमें से दैनिक भास्कर वाला हिस्सा निकाल दिया गया था.
गौरतलब है कि इसी साल 26 मार्च को जारी हुई कोबरापोस्ट के खुलासे, जिसे ‘ऑपरेशन 136’ नाम दिया गया है, की पहली किश्त में देश के कई नामचीन मीडिया संस्थान सत्ताधारी दल के लिए चुनावी हवा तैयार करने के लिए राजी होते नजर आए थे.

जस्टिस एस रविंद्र भट्ट और जस्टिस एके चावला की पीठ ने कहा कि दैनिक भास्कर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (डीबी कॉर्प) की याचिका पर पूरे मुकदमे के लंबित रहने के दौरान एकतरफा रोक लगाने का आदेश न्यायसंगत नहीं था.
पीठ ने कहा, ‘जब तक शुरुआत में ही यह नहीं साबित हो जाता है कि कथित अपमानजनक सामग्री दुर्भावनापूर्ण या स्पष्ट रूप से झूठी है, तब तक वह भी एकतरफा रोक का आदेश और वो भी बिना कोई कारण दर्ज किये नहीं दिया जाना चाहिये.’
हालांकि, पीठ ने पक्षों के दलीलों के आधार पर अंतरिम राहत देने के प्रश्न पर विचार करने के लिए मामले को फिर से एकल न्यायाधीश वाली पीठ को भेजते हुए कहा कि डीबी कॉर्प को अंतरिम राहत देने वाली याचिका पर दोबारा विचार किया जाना चाहिए.
पीठ ने दोनों पक्षों से 3 अक्टूबर को एकल न्यायाधीश वाली पीठ के सामने मौजूद रहने को कहा है.
हाईकोर्ट ने यह भी कहा, ‘इस बात में कोई शक नहीं है कि नए ज़माने का मीडिया, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इंटरनेट अधिक चुनौतीपूर्ण है. इसके लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी के महत्वपूर्ण अधिकार को कम नहीं किया जा सकता, जो लोकतंत्र के लिए ज़रूरी है.
कोर्ट ने एकतरफा तरीके से रोक लगाने के मामले पर कहा, ‘फ्री स्पीच से जुड़ा स्थापित सिद्धांत यही है कि किसी तरह की कथित मानहानि या निंदा का दावा करने वाले प्रतिष्ठित लोगों और सार्वजनिक संस्थानों को किसी तरह की रोक या निषेध पाने के लिए एक बड़े मानक को पूरा करना चाहिए.’
दैनिक भास्कर कॉरपोरेशन ने बीते 24 मई को दिल्ली हाईकोर्ट से कोबरापोस्ट की उस डॉक्यूमेंट्री के प्रदर्शन पर रोक लगवाने में कामयाबी हासिल की थी।
इस आदेश के खिलाफ कोबरापोस्ट अदालत पहुंचा था और इसके पत्रकारों ने इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी से जुड़ा हुआ बताते हुए इस रोक के फैसले को चुनौती दी थी.
दैनिक भास्कर कोबरापोस्ट द्वारा लगाए गए आरोपों को गलत बताते हुए कहा था कि यह उन्हें बदनाम करने की दुर्भावना पर आधारित हैं. उन्होंने कहा था कि अगर डॉक्यूमेंट्री को जारी करने पर रोक नहीं लगायी गयी, तो इससे अखबार को ‘कभी न भरपाई करनेवाला नुकसान’ पहुंचेगा.
हालांकि कोबरापोस्ट ने यह स्टिंग जारी किया, लेकिन उसमें से दैनिक भास्कर वाला हिस्सा निकाल दिया गया था.
गौरतलब है कि इसी साल 26 मार्च को जारी हुई कोबरापोस्ट के खुलासे, जिसे ‘ऑपरेशन 136’ नाम दिया गया है, की पहली किश्त में देश के कई नामचीन मीडिया संस्थान सत्ताधारी दल के लिए चुनावी हवा तैयार करने के लिए राजी होते नजर आए थे.