11 साल से चल रहे मुकदमें पर दो मिनट में आया फैसला, उधेड़ दीं न्याय की धज्जियां
सरकारी वकील की लिखित बहस और नजीरें आने की तरीख पर जज ने सुनाया फैसला
कभी एक फिल्म आई थी रुका हुआ फैसला लेकिन आज जो मेरे सामने गुजरा- बहस की तारीख पर आया एक लिखा हुआ फैसला। आतंकवाद के मामलों में मुकदमें लड़ने वाले अधिवक्ता मुहम्मद शुऐब ने अचरज के साथ यह बात कही। वे कहते हैं कि 16 अगस्त 2018 को जेल कोर्ट लखनऊ में तारिक कासमी और मोहम्मद अख्तर का मुकदमा सुनवाई के लिए लगा था। अपनी बहस जारी रखते हुए अभियोजन पक्ष ने लिखित बहस और नजीर पेश करने के लिए समय मांगा था। न्यायालय ने 23 अगस्त 2018 की तारीख नियत की थी।
हर तारीख पर पीठासीन अधिकारी 11 से साढ़े 11 बजे तक अदालत में आ जाती थीं, लेकिन आज 23 अगस्त को वह लगभग 3 बजकर 35 मिनट पर जेल में स्थित अपने चेंबर में आईं। जबकि अभियोजन पक्ष, दोनों अभियुक्त और मैं पूरे दिन जेल कोर्ट में उनका इंतजार करते रहे। लगभग 4 बजे वो अपने विश्राम कक्ष से बाहर आईं और दो मिनट में फैसला सुनाकर विश्राम कक्ष में वापस चली गईं।
फैसले में अभियुक्तों के विरुद्ध दोष सिद्ध मानते हुए सजा पर बहस के लिए 27 अगस्त की तिथि नियत कर दी। पता रहे कि इस मुकदमें में लखनऊ जेल कोर्ट में गुरुवार के अतिरिक्त किसी और दिन की तिथि नहीं लगाई जाती थी।
पीठासीन अधिकारी ने यह भी नहीं बताया कि वह बहस जेल कोर्ट में सुनेंगी या जिला न्यायालय परिसर में। हैरानी इस बात की है जो जज बहस पूरी होने से पहले मुल्जिमान को दोष सिद्ध मान सकता है वो सजा भी मनमाने तरीके से देगा। जो मुकदमा लगभग 11 साल से चल रहा है उस पर दो मिनट में सुनाए गए इस फैसले ने न्याय की धज्जियां उधेड़ दीं।
मुहम्मद शुऐब कहते हैं कि उनके जैसा न्यायप्रिय व्यक्ति इस नतीजे पर पहुंचा है कि बहस कुछ भी की जाए लेकिन फैसला जज में मन मुताबिक ही आना है। अंधे के आगे रोकर अपना दीदा खोने से कोइ फायदा नहीं है। वहीं इस मामले में अपै्रल 2018 में बहस पूरी हो जाने के बाद तत्कालीन न्यायाधीश का स्थानांतरण कर दिया गया था।
मुकदमें के स्थानांतरण के कारण अभियुक्तगण की ओर से सेशन जज लखनऊ के समक्ष प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करके निर्णय हेतु मुकदमें का स्थाानांतरण बहस सुन चुके जज के सामने करने का प्रार्थना पत्र दिया गया था। जिस पर सेशन जज ने पूरे एक महीने की तारीख लगा दी और फिर अगली तारीख पर बगैर कुछ सुने दोबारा एक महीने के लिए बढ़ा दिया। जिसकी सुनवाई 10 अगस्त 2018 को होनी थी।
इसी दौरान मीडिया में खबरें आईं की नाभा जेल जैसी कोई बड़ी वारदात ये करना चाहते थे और इसलिए इनके जेलों का स्थानांतरण किया जाएगा। जबकि अभियुक्तगण लगातार जेल में हो रहे उत्पीड़न की शिकायत कर रहे थे।
गौरतलब है कि 23 नवंबर 2007 को लखनऊ कचहरी में हुई वारदात के बाद तारिक कासमी, खालिद मुजाहिद, सज्जादुर्ररहमान, अख्तर वानी, आफताब आलम अंसारी की गिरफ्तारी हुई थी। जिसमें आफताब आलम अंसारी के खिलाफ साक्ष्य न मिलने पर विवेचना अधिकारी ने उन्हें 22 दिन में क्लीनचिट दे दिया था। वहीं सज्जादुर्ररहमान को जेल कोर्ट ने 14 अपै्रल 2011 को बरी कर दिया था।
तारिक और खालिद की गिरफ्तारी पर आरडी निमेष आयोग ने 2012 में अपनी रिपोर्ट में यूपी एसटीएफ द्वारा की गई गिरफ्तारी को संदिग्ध कहते हुए दोषी पुलिस वालों पर कार्रवाई की सिफारिश की थी। जिसके बाद खालिद की हिरासत में हत्या कर दी गई थी। तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह, एडीजी लॉ एण्ड आर्डर बृजलाल जैसे बड़े अधिकारियों समेत आईबी पर हत्या का मुकदमा पंजीकृत हुआ था।
सरकारी वकील की लिखित बहस और नजीरें आने की तरीख पर जज ने सुनाया फैसला
कभी एक फिल्म आई थी रुका हुआ फैसला लेकिन आज जो मेरे सामने गुजरा- बहस की तारीख पर आया एक लिखा हुआ फैसला। आतंकवाद के मामलों में मुकदमें लड़ने वाले अधिवक्ता मुहम्मद शुऐब ने अचरज के साथ यह बात कही। वे कहते हैं कि 16 अगस्त 2018 को जेल कोर्ट लखनऊ में तारिक कासमी और मोहम्मद अख्तर का मुकदमा सुनवाई के लिए लगा था। अपनी बहस जारी रखते हुए अभियोजन पक्ष ने लिखित बहस और नजीर पेश करने के लिए समय मांगा था। न्यायालय ने 23 अगस्त 2018 की तारीख नियत की थी।
हर तारीख पर पीठासीन अधिकारी 11 से साढ़े 11 बजे तक अदालत में आ जाती थीं, लेकिन आज 23 अगस्त को वह लगभग 3 बजकर 35 मिनट पर जेल में स्थित अपने चेंबर में आईं। जबकि अभियोजन पक्ष, दोनों अभियुक्त और मैं पूरे दिन जेल कोर्ट में उनका इंतजार करते रहे। लगभग 4 बजे वो अपने विश्राम कक्ष से बाहर आईं और दो मिनट में फैसला सुनाकर विश्राम कक्ष में वापस चली गईं।
फैसले में अभियुक्तों के विरुद्ध दोष सिद्ध मानते हुए सजा पर बहस के लिए 27 अगस्त की तिथि नियत कर दी। पता रहे कि इस मुकदमें में लखनऊ जेल कोर्ट में गुरुवार के अतिरिक्त किसी और दिन की तिथि नहीं लगाई जाती थी।
पीठासीन अधिकारी ने यह भी नहीं बताया कि वह बहस जेल कोर्ट में सुनेंगी या जिला न्यायालय परिसर में। हैरानी इस बात की है जो जज बहस पूरी होने से पहले मुल्जिमान को दोष सिद्ध मान सकता है वो सजा भी मनमाने तरीके से देगा। जो मुकदमा लगभग 11 साल से चल रहा है उस पर दो मिनट में सुनाए गए इस फैसले ने न्याय की धज्जियां उधेड़ दीं।
मुहम्मद शुऐब कहते हैं कि उनके जैसा न्यायप्रिय व्यक्ति इस नतीजे पर पहुंचा है कि बहस कुछ भी की जाए लेकिन फैसला जज में मन मुताबिक ही आना है। अंधे के आगे रोकर अपना दीदा खोने से कोइ फायदा नहीं है। वहीं इस मामले में अपै्रल 2018 में बहस पूरी हो जाने के बाद तत्कालीन न्यायाधीश का स्थानांतरण कर दिया गया था।
मुकदमें के स्थानांतरण के कारण अभियुक्तगण की ओर से सेशन जज लखनऊ के समक्ष प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करके निर्णय हेतु मुकदमें का स्थाानांतरण बहस सुन चुके जज के सामने करने का प्रार्थना पत्र दिया गया था। जिस पर सेशन जज ने पूरे एक महीने की तारीख लगा दी और फिर अगली तारीख पर बगैर कुछ सुने दोबारा एक महीने के लिए बढ़ा दिया। जिसकी सुनवाई 10 अगस्त 2018 को होनी थी।
इसी दौरान मीडिया में खबरें आईं की नाभा जेल जैसी कोई बड़ी वारदात ये करना चाहते थे और इसलिए इनके जेलों का स्थानांतरण किया जाएगा। जबकि अभियुक्तगण लगातार जेल में हो रहे उत्पीड़न की शिकायत कर रहे थे।
गौरतलब है कि 23 नवंबर 2007 को लखनऊ कचहरी में हुई वारदात के बाद तारिक कासमी, खालिद मुजाहिद, सज्जादुर्ररहमान, अख्तर वानी, आफताब आलम अंसारी की गिरफ्तारी हुई थी। जिसमें आफताब आलम अंसारी के खिलाफ साक्ष्य न मिलने पर विवेचना अधिकारी ने उन्हें 22 दिन में क्लीनचिट दे दिया था। वहीं सज्जादुर्ररहमान को जेल कोर्ट ने 14 अपै्रल 2011 को बरी कर दिया था।
तारिक और खालिद की गिरफ्तारी पर आरडी निमेष आयोग ने 2012 में अपनी रिपोर्ट में यूपी एसटीएफ द्वारा की गई गिरफ्तारी को संदिग्ध कहते हुए दोषी पुलिस वालों पर कार्रवाई की सिफारिश की थी। जिसके बाद खालिद की हिरासत में हत्या कर दी गई थी। तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह, एडीजी लॉ एण्ड आर्डर बृजलाल जैसे बड़े अधिकारियों समेत आईबी पर हत्या का मुकदमा पंजीकृत हुआ था।