महुआ मोइत्रा की स्पीच में व्यावधान के लिए नागरिकों ने पीठासीन सभापति रमा देवी के आचरण की निंदा की

Written by Sabrangindia Staff | Published on: February 9, 2022
नागरिकों ने टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा के भाषण में रुकावट और पीठासीन सभापति रमा देवी की मोइत्रा को 'प्यार से बात करने' की सलाह पर चिंता जताई


 
कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज के सदस्यों ने एक संयुक्त बयान जारी किया है, जिसमें पीठासीन सभापति रमा देवी द्वारा 4 फरवरी के संचालन पर सवाल उठाया गया है। नागरिकों ने आपत्ति तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा को टोकने को लेकर उठाई है जब वे संसद के संयुक्त सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर बोल रही थीं। "सुश्री मोइत्रा संसद की संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में भाग ले रही थीं, पीठासीन सभापति रमा देवी ने उन्हें टोका और उनसे 'क्रोध' नहीं 'प्यार' से बोलने के लिए कहा। इस पर आपत्ति जताते हुए नागरिकों ने कहा कि यह, हमारे विचार में राजनीतिक विपक्ष की आवाज को दबाने का एक स्पष्ट प्रयास है।" 
 
बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में शिल्प कार्यकर्ता और डिजाइनर लैला तैयबजी, मजदूर किसान शक्ति संगठन से अरुणा रॉय, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, पत्रकार और मानवाधिकार रक्षक तीस्ता सीतलवाड़, गीतकार जावेद अख्तर, अभिनेता नसीरुद्दीन शाह और शबाना आज़मी, लेखक कार्यकर्ता जावेद आनंद शामिल हैं। सोशल साइंटिस्ट राजीव भार्गव और शिक्षाविदों, पत्रकारों, पूर्व नौकरशाहों और नागरिक समाज के सदस्यों की एक लंबी फेहरिस्त इस बयान के समर्थन में है।
 
भाषण के दौरान मोइत्रा को कई बार टोका गया। भाषण के बाद जो कुछ हुआ, उसकी निंदा करते हुए उन्होंने कहा, "यह पीठासीन अधिकारी का मौलिक कर्तव्य है कि वह न केवल सभी प्रकार के राजनीतिक विचारों की अनुमति दें बल्कि यह सुनिश्चित करें कि वे बहुसंख्यकवाद के क्रूर प्रदर्शन से प्रभावित न हों।"
 
नागरिकों ने आगे कहा, "हम भारत के मुखर नागरिक के रूप में अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा संवैधानिक विशेषाधिकार का आह्वान करने और सुश्री मोइत्रा के खिलाफ कार्रवाई की धमकी देने के प्रयासों का विरोध और निंदा करना चाहते हैं। पीठासीन अधिकारी, सुश्री रमा देवी वास्तव में अध्यक्ष की कुर्सी को दिए गए विशेषाधिकार का उल्लंघन करने के लिए जिम्मेदार हैं। यह अनिवार्य है कि सभी आवाजों और राजनीतिक विचारों को भारतीय संसद में अभिव्यक्ति का सम्मानजनक स्थान मिले।"  
 
पूरा बयान यहां पढ़ा जा सकता है:
तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा 4 फरवरी को भारत के अंदर की स्थिति की तीखी आलोचना करने वाले उनके 13 मिनट के भाषण के दौरान बार-बार टोके जाने के बाद, भारतीय संसद में एक विवाद खड़ा हो गया। सुश्री मोइत्रा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव चर्चा में भाग ले रही थीं। संसद की संयुक्त बैठक में पीठासीन सभापति रमा देवी ने उन्हें रोका और उनसे 'क्रोध' नहीं 'प्यार' से बोलने के लिए कहा। यह, हमारे विचार में, राजनीतिक विपक्ष की आवाज को दबाने का एक स्पष्ट प्रयास है। इसके बाद, इस मामले को मोइत्रा द्वारा सोशल मीडिया पर साझा किया गया जिसमें वर्तमान सरकार के कामकाज की विस्तृत आलोचना को रोकने के इस प्रयास की तीखी आलोचना की।
 
हम भारत के मुखर नागरिक के रूप में अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा संवैधानिक विशेषाधिकार का आह्वान करने और सुश्री मोइत्रा के खिलाफ कार्रवाई की धमकी देने के प्रयासों का विरोध और निंदा करना चाहते हैं। पीठासीन अधिकारी, सुश्री रमा देवी वास्तव में अध्यक्ष की कुर्सी को दिए गए विशेषाधिकार का उल्लंघन करने के लिए जिम्मेदार हैं। अध्यक्ष (और इस उदाहरण में, पीठासीन सभापति) एक महत्वपूर्ण संवैधानिक पद है जो उस सदन की गरिमा और शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है जिसकी वह अध्यक्षता करता है। यह अपेक्षा की जाती है कि इस उच्च प्रतिष्ठा के पद का धारक पक्षपातपूर्ण विचारों से ऊपर उठकर सदन का संपूर्ण प्रतिनिधित्व करता है। पीठासीन अधिकारी का यह मौलिक कर्तव्य है कि वह न केवल सभी प्रकार के राजनीतिक विचारों की अनुमति दें बल्कि यह सुनिश्चित करें कि ये बहुसंख्यकवाद के क्रूर प्रदर्शनों से प्रभावित न हों। दुर्भाग्य से, 2014 के बाद से हम आवश्यक संवैधानिक आचरण और व्यवहार की रूपरेखा को पूरी तरह से धुंधला होते हुए देख रहे हैं। यह अनिवार्य है कि सभी आवाजों और राजनीतिक विचारों को भारतीय संसद में अभिव्यक्ति का सम्मानजनक स्थान मिले।
हस्ताक्षरकर्ता:
लैला तैयबजी, शिल्प कार्यकर्ता और डिजाइनर
नसीरुद्दीन शाह, अभिनेता
अरुणा रॉय, मजदूर किसान शक्ति संगठन
प्रशांत भूषण, वरिष्ठ अधिवक्ता
राजीव भार्गव, सोशल साइंटिस्ट
रंगनाथ पठारे, लेखक
पुरुषोत्तम अग्रवाल, शिक्षाविद् और लेखक
अमिताभ पांडे, पूर्व आईएएस, लेखक
पवन वर्मा, पूर्व आईएफएस और राजनीतिज्ञ-लेखक
शबाना आजमी, अभिनेत्री
शोमा चौधरी, वरिष्ठ पत्रकार और लेखिका
अंतरा देव सेन, वरिष्ठ संपादक
शोहिनी घोष, अकादमिक और मीडिया पेशेवर
फराह नकवी, सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका
नंदिनी सुंदर, समाजशास्त्र की प्रोफेसर
मुकुल केशवन, वरिष्ठ संपादक और टिप्पणीकार
मनीषा प्रियम, राजनीतिक टिप्पणीकार
शंकर सिंह, मजदूर किसान शक्ति संगठन
निखिल डे, मजदूर किसान शक्ति संगठन
विभूति पटेल, वरिष्ठ अकादमिक, नारीवादी
जावेद अख्तर, गीतकार, लेखक, तर्कवादी
जावेद आनंद, लेखक, कार्यकर्ता
तीस्ता सीतलवाड़, पत्रकार, कार्यकर्ता

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