मनुवाद के संघी रथ को रोकने के लिए और भी प्रासंगिक हो गए हैं वीपी सिंह और बीपी मण्डल

Written by Chandra Bhushan Singh Yadav | Published on: June 25, 2018
25 जून 1931 को पूर्व प्रधानमंत्री स्मृतिशेष श्री वीपी सिंह जी का जन्म दिन है। कोई भी व्यक्ति एक बार जन्म लेता है और एक निश्चित समय पूर्ण कर एक बार मर जाता है लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो जन्म तो एकबार ही लेते हैं पर मरते कभी नहीं है। वीपी सिंह जी इन्ही विशेष लोगो मे से हैं जो जन्म तो 25 जून 1931 को लिए लेकिन वे अब मरने वाले नहीं हैं क्योकि उन्होंने इस देश की लगभग 60 फीसद आबादी को एक झटके में चेतनशील बना दिया और उन्हें एकाएक मरे से जिंदा कर दिया।



1980 में बीपी मण्डल साहब ने द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशें जिन्हें "मण्डल आयोग की सिफारिशें" कहा गया भारत सरकार को सौंपी थीं। इन्हें 1990 तक लागू नहीं किया गया। इंदिरा गांधी जी व राजीव गांधी जी इन सिफारिशों को अपनी आलमारी में बंद किये रहे।

1989 में जब जनता दल की सरकार बनी तो उसने अपने घोषणा पत्र के अनुसार तथा तात्कालिक राजनैतिक घटनाक्रमों को दृष्टिगत रखते हुए 7 अगस्त 1990 को इन मण्डल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर दिया। वीपी सिंह जी ने बतौर प्रधानमंत्री इन सिफारिशों को लागू किया जिसके बाद देश जल उठा। आरक्षण का विरोध होने लगा।

वीपी सिंह जी को "मानसिंह की औलाद" से लेकर "राजा नहीं रंक है, देश का कलंक है" तक कहा जाने लगा क्योकि वीपी सिंह जी ने चाहे जो भी कारण रहा हो देश से एक कलंक को मिटाने का प्रयास किया था जिससे इस देश की 60 फीसद आबादी मुख्य धारा में सम्मिलित हो सके।

वीपी सिंह जी अगड़ी जातियों से आते हैं। उन्हें तो पिछड़ी जातियों से कोई मतलब नहीं होना चाहिए था। वे प्रधानमंत्री बन इतिहास भी बना चुके थे। उन्हें पता था कि गठबंधन की राजनीति का अंत हो रहा है। भाजपा अब साथ रहने वाली नहीं है, देवीलाल जी बगावत कर सरकार ढहाने ही वाले हैं लेकिन इन तमाम झंझावातों को दृष्टिगत रखते हुए श्री शरद यादव जी व श्री रामविलास पासवान जी की राय को तवज्जो देते हुए वीपी सिंह जी ने मण्डल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर दिया और पूरे देश मे भूचाल आ गया।

हकमार लोग जिन्होंने हजारो वर्षो से पिछडो को पिछड़ा बना रखा था वे आंदोलित हो गए। देश की सम्पत्ति जलाई व तोड़ी जाने लगी। देश के 60 प्रतिशत आबादी के लोग मूक दर्शक बने रहे और अल्पजन लोग देश को आंदोलित कर फूंक डाले। वीपी सिंह जी को क्षत्रिय न होकर "सुतपुत्र" घोषित कर डाला गया। वीपी सिंह जी गालियां सुनने के बाद भी विचलित न हुए तथा कहे कि "हमने मण्डल रूपी बच्चा माँ के पेट से बाहर निकाल दिया है अब कोई माई का लाल इसे माँ के पेट मे नहीं डाल सकता है। यह बच्चा अब प्रोग्रेस ही करेगा।"

वीपी सिह जी द्वारा मण्डल कमीशन लागू करने के बाद हिंदुत्व भी उफान मारने लगा। मनुवादियो की छाती पर सांप लोट गया कि कैसे पिछड़े वर्ग के लोग सँवैधानिक अधिकार पा जाएंगे। श्रीमान आडवाणी जी राममंदिर बनाने हेतु रथ लेकर निकल पड़े। मण्डल का विरोध और मन्दिर का निर्माण भाजपा का एजेंडा हो गया। गुजरात के नरेंद्र भाई मोदी जी मण्डल विरोधी रथ के एक सवार बन गए। आडवाणी जी के इस मण्डल विरोधी अभियान को लालू जी ने बिहार में रोका लेकिन वीपी सिंह जी की सरकार गिर गयी।

वीपी सिंह जी आजीवन देश के अभिजात्य जनो की गाली के पात्र बन रहे। उन्हें पिछडो ने भी सवर्ण होने के नाते मुलायम सिंह यादव जी, लालू प्रसाद यादव जी, नीतीश कुमार जी आदि को नेता मानते हुए नकार ही दिया। वीपी सिंह जी जीते जी किसी के द्वारा सम्मान न पा सके लेकिन वे आजीवन अपने ट्रेंड को न बदले। पिछड़े/दलित नेता अपने सुविधानुसार अपने को बदलते रहे लेकिन वीपी सिंह जी ने खुद को मरने तक मण्डल समर्थक बनाये रखा।

वीपी सिंह जी और वीपी मण्डल जी होना बहुत बड़ा मायने रखता है। वीपी मण्डल जी एक क्रांति की चिनगारी हैं तो वीपी सिंह जी उस चिनगारी को ज्वालामुखी बनाने वाले एक समर्थ वंचित समर्थक नेता। वीपी सिंह जी ने मण्डल कमीशन की सिफारिशें लागू करके देश मे एक बहुत बड़ा काम किया कि सो रहे पिछडो में एक हलचल ला दिया। वह समुदाय जिसे कोड़े पड़ते रहे लेकिन कभी भी उफ नहीं किया था वह लाठी ले करके मण्डल कमीशन पर बहस करने लगा यह बहुत बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन था।

आज एक बार फिर देश की परिस्थितियां बड़ी भयावह दौर में है। सँविधान, आरक्षण, साम्प्रदायिक सद्भावना खतरे में है। जाति व धर्म के नाम पर दलित, मुसलमान गाजर-मूली की तरह काटे व मारे जा रहे हैं। अघोषित मनुवाद फन फैलाये विषवमन कर रहा है। वीपी सिंह जी की तरह कलेजा मजबूत करके सड़क पर उतरने की सख्त जरूरत है आज। बहुजन समाज व इसका नेतृत्व एक बार फिर मण्डल, आरक्षण, भागीदारी, जातिवार जनगणना आदि वंचित समर्थक मुद्दों पर आंदोलित हो यही समय की मांग है।

रामलहर की तरह कथित मोदी लहर/हिंदुत्व लहर लहरा रहा है जिसे सिर्फ व सिर्फ वीपी सिंह जी का फार्मूला और बीपी मण्डल जी की रिपोर्ट ही परास्त कर सकती है। अब बहुजन एकता मजबूत बनाने की दरकार है। बहुत स्पष्ट है कि जब-जब अगड़ों के हित पर चोट आने को हुवा है वे धर्म को आगे कर धर्मभीरु पिछडो को आगे कर देते हैं और खुद हट जाते हैं। गोली-लाठी खा-खा करके ये पिछड़े अपने वर्गीय हित का गला घोंटते हुए सवर्ण परस्ती को खूब प्रचारित करते हैं और अपने पीढ़ियों को गुलाम बनाने के दस्तावेजों पर दस्तखत बनाते रहते हैं।

आज जब हिंदुत्व को सामने कर पिछड़े/दलित के अधिकार बेहोश कर दिए गए हैं तो वीपी सिंह जी व वीपी मण्डल जी की प्रासंगिकता पहले से और भी ज्यादा दिखती है। 25 जून वीपी सिंह जी की जयंती पर नमन है और अपने समाज के नेतृत्वकर्ताओं से अनुरोध है कि जब एक सवर्ण वीपी सिंह जी पिछड़े हित, देश हित व सँविधान बचाने हेतु अपने आपको आहूत कर सकते हैं तो वे खुद को इस हेतु क्यो नहीं तैयार कर सकते हैं? आज बहुजन कांसेप्ट को मजबूत बनाते हुए खुद भी मजबूत बनने की आवश्यकता है वरना तो इतिहास में हम सभी का नाम कायरों व खुद के अधिकारों को खत्म करने हेतु खुद का गला घोंटने वालो के रुप में दर्ज होने वाला ही है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। चंद्रभूषण सिंह यादव 'सोशलिस्ट फैक्टर' पत्रिका के कंट्रीब्यूटिंग एडिटर हैं।)

बाकी ख़बरें