नई दिल्ली. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में 282 सीटें जीत कर सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार सुर्खियों में छाए रहे. नोटबंदी और जीएसटी जैसे जनता को परेशान करने वाले फैसलों के बाद भी मीडिया मोदी गान में मस्त रही लेकिन समय बीतने के साथ साथ कथित लहर फीकी पड़ती रही और मीडिया ने ऐहसास भी नहीं होने दिया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लोकतंत्र और विपक्ष को ख़त्म करने के आरोप भी लगे. इस सबसे बेपरवाह मोदी अपनी उपलब्धियां गिनाते रहे. लेकिन भीतर ही भीतर पीएम मोदी से एनडीए गठबंधन की पार्टियां कटने लगीं. उसी का नतीजा है कि टीडीपी मोदी एनडीए से अलग होकर मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन कर रही है.
मोदी सरकार बनने के बाद बीजेपी ने भले ही जोड़ तोड़ के साथ कई राज्यों में गठबंधन की सरकार बना ली हो लेकिन मोदी लहर का तिलिस्म शुरूआत से ही टूटता नजर आया. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 282 सीटें मिली थीं लेकिन उपचुनावों में लगातार हार के कारण अब सिर्फ 273 सीटें बची हैं.
शायद अब भाजपा की सहयोगी पार्टियों को भी यह अहसास हो चला है कि मोदी के अगुवाई में अब जल्द जहाज़ डूबने वाली है. इसलिए मोदी के ख़िलाफ़ टीडीपी ने साथ छोड़ दिया है वहीं शिवसेना भी कभी भी साथ छोड़ सकती है.
चार साल के भीतर हुए उपचुनावों में बीजेपी के हाथ से सात सीटें निकल गईं. इनमें चार सीटों पर कांग्रेस, दो पर समाजवादी पार्टी और एक सीट पर लालू यादव की पार्टी राजद से बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी. जबकि तीन अन्य सीटें दूसरे कारणों से बीजेपी की झोली से निकल गई हैं.
इसमें कैराना (यूपी), पालघर (महाराष्ट्र) में सीट पार्टी के सांसदों के निधन के कारण खाली हैं, तो गोंदिया (महाराष्ट्र) से बीजेपी सांसद नानाभाऊ पटेल इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. इस प्रकार देखें तो अब बीजेपी के पास बहुमत के आंकड़े 272 से सिर्फ एक सीट ज्यादा 273 है, जबकि 2014 में बीजेपी के पास 282 सांसद थे.
जब भाजपा मोदी लहर पर सवार होकर केंद्र की सत्ता में पहुंची तो उसके डेढ़ साल के भीतर ही मध्य प्रदेश से बड़ा झटका लगा. यहां पार्टी सांसद दिलीप सिंह की मौत के बाद खाली हुई रतलाम सीट के उपचुनाव में कांग्रेस ने बाजी मारी. यह हाल तब रहा जबकि 2014 में राज्य की 29 में से 27 सीटें बीजेपी को मिली थीं. इसके बाद दूसरा झटका पंजाब के गुरुदासपुर सीट पर लगा, जब बीजेपी अपने सांसद विनोद खन्ना के निधन के बाद सीट बचा नहीं पाई. उपचुनाव में इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार सुनील सिंह जाखड़ की जीत हुई.
2014 के लोकसभा चुनाव में सभी 25 सीट गंवाने वाली कांग्रेस ने इस साल हुए उपचुनाव में राजस्थान की दोनों सीटों अलवर और अजमेर पर कब्जा जमाया. राजस्थान की दोनों सीटें बीजपी सांसदों के निधन पर खाली हुई थीं. अब जाकर बीजेपी यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर सीट भी नहीं बचा पाई.
वहीं, बिहार में हुए अररिया लोकसभा सीट के उपचुनाव में भी बीजेपी को राजद से हार का सामना करना पड़ा. सांसद तसलीमुद्दीन के निधन पर खाली हुई सीट को राजद ने बेटे को लड़ाकर सुरक्षित रखा. हालांकि, बीजेपी सभी चुनाव नहीं हारी है.
नोटबंदी के बाद हुए मध्य प्रदेश के शहडौल के नतीजे बीजेपी के पक्ष में गए थे. इसके अलावा मोदी की ओर से छोड़ी गई वडोदरा सीट, असम में सर्बानंद सोनवाल की सीट और महाराष्ट्र की सीटों के उपचुनाव में भी बीजेपी को जीत मिल चुकी है. गोपीनाथ मुंडे की मौत के बाद उनकी बेटी बीजेपी के टिकट पर बीड उपचुनाव जीत चुकी हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लोकतंत्र और विपक्ष को ख़त्म करने के आरोप भी लगे. इस सबसे बेपरवाह मोदी अपनी उपलब्धियां गिनाते रहे. लेकिन भीतर ही भीतर पीएम मोदी से एनडीए गठबंधन की पार्टियां कटने लगीं. उसी का नतीजा है कि टीडीपी मोदी एनडीए से अलग होकर मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन कर रही है.
मोदी सरकार बनने के बाद बीजेपी ने भले ही जोड़ तोड़ के साथ कई राज्यों में गठबंधन की सरकार बना ली हो लेकिन मोदी लहर का तिलिस्म शुरूआत से ही टूटता नजर आया. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 282 सीटें मिली थीं लेकिन उपचुनावों में लगातार हार के कारण अब सिर्फ 273 सीटें बची हैं.
शायद अब भाजपा की सहयोगी पार्टियों को भी यह अहसास हो चला है कि मोदी के अगुवाई में अब जल्द जहाज़ डूबने वाली है. इसलिए मोदी के ख़िलाफ़ टीडीपी ने साथ छोड़ दिया है वहीं शिवसेना भी कभी भी साथ छोड़ सकती है.
चार साल के भीतर हुए उपचुनावों में बीजेपी के हाथ से सात सीटें निकल गईं. इनमें चार सीटों पर कांग्रेस, दो पर समाजवादी पार्टी और एक सीट पर लालू यादव की पार्टी राजद से बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी. जबकि तीन अन्य सीटें दूसरे कारणों से बीजेपी की झोली से निकल गई हैं.
इसमें कैराना (यूपी), पालघर (महाराष्ट्र) में सीट पार्टी के सांसदों के निधन के कारण खाली हैं, तो गोंदिया (महाराष्ट्र) से बीजेपी सांसद नानाभाऊ पटेल इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. इस प्रकार देखें तो अब बीजेपी के पास बहुमत के आंकड़े 272 से सिर्फ एक सीट ज्यादा 273 है, जबकि 2014 में बीजेपी के पास 282 सांसद थे.
जब भाजपा मोदी लहर पर सवार होकर केंद्र की सत्ता में पहुंची तो उसके डेढ़ साल के भीतर ही मध्य प्रदेश से बड़ा झटका लगा. यहां पार्टी सांसद दिलीप सिंह की मौत के बाद खाली हुई रतलाम सीट के उपचुनाव में कांग्रेस ने बाजी मारी. यह हाल तब रहा जबकि 2014 में राज्य की 29 में से 27 सीटें बीजेपी को मिली थीं. इसके बाद दूसरा झटका पंजाब के गुरुदासपुर सीट पर लगा, जब बीजेपी अपने सांसद विनोद खन्ना के निधन के बाद सीट बचा नहीं पाई. उपचुनाव में इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार सुनील सिंह जाखड़ की जीत हुई.
2014 के लोकसभा चुनाव में सभी 25 सीट गंवाने वाली कांग्रेस ने इस साल हुए उपचुनाव में राजस्थान की दोनों सीटों अलवर और अजमेर पर कब्जा जमाया. राजस्थान की दोनों सीटें बीजपी सांसदों के निधन पर खाली हुई थीं. अब जाकर बीजेपी यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर सीट भी नहीं बचा पाई.
वहीं, बिहार में हुए अररिया लोकसभा सीट के उपचुनाव में भी बीजेपी को राजद से हार का सामना करना पड़ा. सांसद तसलीमुद्दीन के निधन पर खाली हुई सीट को राजद ने बेटे को लड़ाकर सुरक्षित रखा. हालांकि, बीजेपी सभी चुनाव नहीं हारी है.
नोटबंदी के बाद हुए मध्य प्रदेश के शहडौल के नतीजे बीजेपी के पक्ष में गए थे. इसके अलावा मोदी की ओर से छोड़ी गई वडोदरा सीट, असम में सर्बानंद सोनवाल की सीट और महाराष्ट्र की सीटों के उपचुनाव में भी बीजेपी को जीत मिल चुकी है. गोपीनाथ मुंडे की मौत के बाद उनकी बेटी बीजेपी के टिकट पर बीड उपचुनाव जीत चुकी हैं.