भारत संतोषियों का देश है। जो न मिला उसके लिए अपने आप को समझा लेते हैं की बेटा भगवान ने इस वस्तु को हमारे लिए नहीं बनाया था। ईश्वरवादी होने का एक फायदा यह भी है कि जब चीजें अपने विपरीत हो रही हों तो दिल को बहलाने के लिए कह लो- शायद ऊपर वाला यही चाहता है।
ग़ालिब की भाषा में कहें तो-
दिल को बहलाने का यह भी खयाल अच्छा है।
संतोष के मामले में जानवर भी बहुत आगे हैं। इस देश की लोमड़ी भी संतोषी होती है। अंगूर न मिलने पर कह बैठी - वे खट्टे हैं। उसने दिल को बहला लिया। थोड़ा और कोशिश कर लेती, मेहनत कर लेती, जुगाड़ लगा लेती, अंगूर पा लेती तो दिल को न बहलाना पड़ता। कम से कम लोमड़ी की मेहनत से समाज को एक नकारात्मक मुहावरा तो न झेलना पड़ता।
अक्सर सुनने में आता है- दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम। यह कहावत संतोष की पराकाष्ठा है। एक जनाब ने दुकान से गुलाबजामुन लिया। मुंह मे रखने गए तो वह जमीन पर गिर गया। वे बचाने लपके पर चासनी खुद पर गिरा बैठे। अफसोस में कहने लगे- दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम।
बगल में ही खड़े युवक ने कहा- जनाब, नाम तो आपका ही लिखा था पर लापरवाही की वजह से आप खा नहीं पाए। वे झेंप गए। इधर-उधर ताकने लगे।
कभी-कभी इसके विपरीत हो जाता है। नाम तो किसी और का लिखा होता है पर किसी कु मक्कारी से वह दूसरे के पेट में चले जाता है।
गांव में ही एक तीन बच्चों वाली विधवा औरत रहती है। एक दिन वो घर चावल मांगने आयी। 7 तारीख आ गयी थी। उसे हर महीनें 5 तारीख तक उत्तर प्रदेश खाद्य विभाग से 24 किलो चावल और पंद्रह किलो गेहूं गरीबी रेखा के नीचे होने के कारण मिल जाते थे। माँ ने कहा- अभी 5 को ही तो राशन मिला होगा !! इतनी जल्दी खत्म हो गया ?
उस औरत ने कहा- बहिन, इस बार राशन नहीं मिला।
मम्मी ने पूछा , 'क्यों ?' वह बोली- इस बार समय से नहीं पहुँच पायी । कटाई मड़ाई में मजदूरी करते रहने से समय ही नहीं मिल पाया। आज गयी तो कोटेदार ने कहा कि राशन खत्म हो गया।
मैं वहीँ बगल में बैठा सुन रहा था। मैंने कहा-चाची , आपके राशन पर आपका हक़ है। आप का राशन कोई नहीं ले सकता। आप जाकर प्रधान से बात करिये।
वह बोली- बेटा, दाने दाने पर लिखा होता है खाने वाले का नाम।
सुनकर मैं चकित रह गया। इतना संतोषी तो मैंने कभी नही देखा। मैं परेशान था। आखिर कौन इतना बेरोजगार और फुरसत में बैठा है जो दाने दाने पर यह लिख रहा है कि इसे किस व्यक्ति के मुंह मे जाना है ?मैंने फिर कहा- चाची, यह तो आप अपना मन रखने के लिए कह रही हैं।
वह भाउक होकर बोली- हाँ , तो इसके अलावा कर भी क्या सकते हैं। साल में दो या तीन बार ऐसा हो जाता है। कोटेदार राशन रहने पर भी नहीं देता। प्रधान से कहने जाओ तो कहता है BDO से मिलो। अब तुम ही बताओ मजूरी करने वाली काम छोड़कर कहाँ BDO को ढूंढती फिरूं? कोटेदार सारा राशन ब्लैक में बेच देता है। कालाबाजारी करता है सब को पता है। पचीस किलो निर्धारित वजन है चावल का जिसमें भी 24 किलो देता है। कुछ कहो तो कहता है, जो बोरी से झड़ के गिर जाता है लाने में वह क्या घर से भरें। कितनी चीजें हैं जिनकी सुनवाई नहीं हो रही है। इन सब मुसीबत में यही कहकर दिल बहला लेते हैं- दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम।
मैं हैरान था। आखिर सब जानते हुए भी चाची कैसे संतोष कर ले रही हैं। फिर सोचता हूँ, उनका कहना भी तो सही है। वे मजदूरी करें कि सब से लड़ती फिरें!
मैंने कई मामले देखे हैं। प्रधान से बहस के चक्कर में कितनों का राशनकार्ड गरीबी रेखा के नीचे होने के बावजूद गरीबी रेखा के ऊपर का बना दिया गया बिचारे मिलने वाले राशन से भी हाथ धो बैठे। इन सब को देखते हुए एक विधवा महिला का संतोष कर लेना ठीक ही तो है।
एक बात समझ मे आ गयी। गरीब खाने के लिए मर रहे हैं। आधार कार्ड नहीं है तो कोटेदार अनाज नहीं देगा चाहे किसी का बच्चा मरे चाहे पति। जिन दानों पर गरीबों का हक है उसपर कोटेदार , प्रधान , BDO मिलकर दूसरे का नाम गोद रहे हैं।
संतोषियों का देश है हमारा। एक चचा शिकायत करने लगे - एक ही नल से एक किलोमीटर के क्षेत्र के लोग पानी भरते हैं। गांव से बाज़ार को जोड़ने वाली सड़क बारिश में बह गई।
मैंने कहा- विधायक से कहो।
वे बोले- अरे यार विधायक अपने बिरादरी का है। क्या उसके पास शिकायत लेकर जायें।
मैंने कहा- वोट भी तो बिरादरी देखकर दिया था न !! वैसे भी कौन सा वे खेत बेचकर तुम्हारी मदद करेंगे। रहेगा तो सरकारी पैसा न !!
वे बोले- अरे यार बिरादरी में नाम खराब होगा की फलाने नल के लिए कहने आये थे।
मैं सोच में पड़ गया- कितना संतोषी आदमी है। बिरादरी में इज्जत के लिए एक किलोमीटर दूर से पानी लाता है। टूटी सड़क पर चलता है। लेकिन अगली पंचवर्षीय में फिर उसी बिरादर को वोट देगा। आखिर भारत संतोषियों का देश है।
ग़ालिब की भाषा में कहें तो-
दिल को बहलाने का यह भी खयाल अच्छा है।
संतोष के मामले में जानवर भी बहुत आगे हैं। इस देश की लोमड़ी भी संतोषी होती है। अंगूर न मिलने पर कह बैठी - वे खट्टे हैं। उसने दिल को बहला लिया। थोड़ा और कोशिश कर लेती, मेहनत कर लेती, जुगाड़ लगा लेती, अंगूर पा लेती तो दिल को न बहलाना पड़ता। कम से कम लोमड़ी की मेहनत से समाज को एक नकारात्मक मुहावरा तो न झेलना पड़ता।
अक्सर सुनने में आता है- दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम। यह कहावत संतोष की पराकाष्ठा है। एक जनाब ने दुकान से गुलाबजामुन लिया। मुंह मे रखने गए तो वह जमीन पर गिर गया। वे बचाने लपके पर चासनी खुद पर गिरा बैठे। अफसोस में कहने लगे- दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम।
बगल में ही खड़े युवक ने कहा- जनाब, नाम तो आपका ही लिखा था पर लापरवाही की वजह से आप खा नहीं पाए। वे झेंप गए। इधर-उधर ताकने लगे।
कभी-कभी इसके विपरीत हो जाता है। नाम तो किसी और का लिखा होता है पर किसी कु मक्कारी से वह दूसरे के पेट में चले जाता है।
गांव में ही एक तीन बच्चों वाली विधवा औरत रहती है। एक दिन वो घर चावल मांगने आयी। 7 तारीख आ गयी थी। उसे हर महीनें 5 तारीख तक उत्तर प्रदेश खाद्य विभाग से 24 किलो चावल और पंद्रह किलो गेहूं गरीबी रेखा के नीचे होने के कारण मिल जाते थे। माँ ने कहा- अभी 5 को ही तो राशन मिला होगा !! इतनी जल्दी खत्म हो गया ?
उस औरत ने कहा- बहिन, इस बार राशन नहीं मिला।
मम्मी ने पूछा , 'क्यों ?' वह बोली- इस बार समय से नहीं पहुँच पायी । कटाई मड़ाई में मजदूरी करते रहने से समय ही नहीं मिल पाया। आज गयी तो कोटेदार ने कहा कि राशन खत्म हो गया।
मैं वहीँ बगल में बैठा सुन रहा था। मैंने कहा-चाची , आपके राशन पर आपका हक़ है। आप का राशन कोई नहीं ले सकता। आप जाकर प्रधान से बात करिये।
वह बोली- बेटा, दाने दाने पर लिखा होता है खाने वाले का नाम।
सुनकर मैं चकित रह गया। इतना संतोषी तो मैंने कभी नही देखा। मैं परेशान था। आखिर कौन इतना बेरोजगार और फुरसत में बैठा है जो दाने दाने पर यह लिख रहा है कि इसे किस व्यक्ति के मुंह मे जाना है ?मैंने फिर कहा- चाची, यह तो आप अपना मन रखने के लिए कह रही हैं।
वह भाउक होकर बोली- हाँ , तो इसके अलावा कर भी क्या सकते हैं। साल में दो या तीन बार ऐसा हो जाता है। कोटेदार राशन रहने पर भी नहीं देता। प्रधान से कहने जाओ तो कहता है BDO से मिलो। अब तुम ही बताओ मजूरी करने वाली काम छोड़कर कहाँ BDO को ढूंढती फिरूं? कोटेदार सारा राशन ब्लैक में बेच देता है। कालाबाजारी करता है सब को पता है। पचीस किलो निर्धारित वजन है चावल का जिसमें भी 24 किलो देता है। कुछ कहो तो कहता है, जो बोरी से झड़ के गिर जाता है लाने में वह क्या घर से भरें। कितनी चीजें हैं जिनकी सुनवाई नहीं हो रही है। इन सब मुसीबत में यही कहकर दिल बहला लेते हैं- दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम।
मैं हैरान था। आखिर सब जानते हुए भी चाची कैसे संतोष कर ले रही हैं। फिर सोचता हूँ, उनका कहना भी तो सही है। वे मजदूरी करें कि सब से लड़ती फिरें!
मैंने कई मामले देखे हैं। प्रधान से बहस के चक्कर में कितनों का राशनकार्ड गरीबी रेखा के नीचे होने के बावजूद गरीबी रेखा के ऊपर का बना दिया गया बिचारे मिलने वाले राशन से भी हाथ धो बैठे। इन सब को देखते हुए एक विधवा महिला का संतोष कर लेना ठीक ही तो है।
एक बात समझ मे आ गयी। गरीब खाने के लिए मर रहे हैं। आधार कार्ड नहीं है तो कोटेदार अनाज नहीं देगा चाहे किसी का बच्चा मरे चाहे पति। जिन दानों पर गरीबों का हक है उसपर कोटेदार , प्रधान , BDO मिलकर दूसरे का नाम गोद रहे हैं।
संतोषियों का देश है हमारा। एक चचा शिकायत करने लगे - एक ही नल से एक किलोमीटर के क्षेत्र के लोग पानी भरते हैं। गांव से बाज़ार को जोड़ने वाली सड़क बारिश में बह गई।
मैंने कहा- विधायक से कहो।
वे बोले- अरे यार विधायक अपने बिरादरी का है। क्या उसके पास शिकायत लेकर जायें।
मैंने कहा- वोट भी तो बिरादरी देखकर दिया था न !! वैसे भी कौन सा वे खेत बेचकर तुम्हारी मदद करेंगे। रहेगा तो सरकारी पैसा न !!
वे बोले- अरे यार बिरादरी में नाम खराब होगा की फलाने नल के लिए कहने आये थे।
मैं सोच में पड़ गया- कितना संतोषी आदमी है। बिरादरी में इज्जत के लिए एक किलोमीटर दूर से पानी लाता है। टूटी सड़क पर चलता है। लेकिन अगली पंचवर्षीय में फिर उसी बिरादर को वोट देगा। आखिर भारत संतोषियों का देश है।