8 अक्टूबर 2020 को नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) ने रांची से 83 वर्षीय फादर स्टैन स्वामी को भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किया (स्टैन स्वामी के जीवन और उनकी गिरफ्तारी पर संक्षिप्त नोट संलग्न है)। गिरफ्तारी से दो दिन पूर्व स्टैन स्वामी ने अपने वक्त्व्य में में सभी आरोपों और उनके विरूद्ध एनआईए द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज का स्पष्ट खंडन किया।
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एक महीने पहले, 7-8 सितंबर को सांस्कृतिक कार्यकर्ता सागर गोरखे, रमेश गाईचोर और ज्योति जगताप (कबीर कला मंच के सदस्य) को भी इस मामले में गिरफ्तार किया था। 2018 से अभी तक 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, कई लोगों के घरों में पर छापे मारे गए हैं और अनेकों को परेशान किया गया है। ये ऐसे मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, सांस्कृतिक कार्यकर्ता या बुद्धिजीवी हैं जो दशकों से आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यकों और वंचितों के अधिकारों के लिए संघर्षरत रहे हैं।
भीमा कोरेगांव मामले को बहाना बनाकर पहले महाराष्ट्र पुलिस ने और अब एनआईए एक राष्ट्रव्यापी माओवादी पहल की कहानी रच रहीहै और देश के विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं को इससे जोड़ रहे हैं। जबकि भीमा कोरेगांव हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों- हिंदुत्व संगठनों के नेताओं- के विरूद्ध कार्यवाई नहीं की गई।
इल मामले में हाल में हुई गिरफ्तारियों और देश में मतभेद के अधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों पर लगातार हमले के विरूद्ध पीयूसीएल 21 अक्टूबर को प्रेसवार्ता का आयोजन कर रहा है। प्रेस वार्ता को कई विशिष्ट सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकील व राजनैतिक नेताओं द्वारा संबोधित किया जाएगा।
क्या है भीमा-कोरेगांव षडयंत्र मामला
1 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में हिंसा फैलाने के फर्जी आरोपों पर आज देश के 16 जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी जेल में बंद है। इस मामले को बहाना बनाकर जनविरोधी नीतियों पर सवाल करने वाले देश के विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों पर छापे मारे, परेशान किया जा रहा है और पूछताछ से परेशान किया जा रहा है।
1818 में पेशवा सेना के विरुद्ध दलित सैनिकों की जीत मनाने के लिए महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हर साल 1 जनवरी को दलित बहुजन एकत्रित होते हैं। 1 जनवरी 2018 को इस घटना की 200 वर्ष होने के उत्सव में हजारों दलित बहुजन एकत्रित हुए थे।
31 दिसंबर 2017 को भीमा कोरेगांव से 30 किमी दूर पुणे शहर में एल्गार परिषद का आयोजन हुआ था जिसमें देश की बढ़ती सांप्रदायिकता, हिंदुत्व ताकतों और सरकार की जनविरोधी नीतियों की कड़ी निंदा हुई थी और लोगों ने संविधान की रक्षा करने की शपथ ली थी। एल्गार परिषद में 200 से अधिक दलित, बहुजन, अन्य अंबेडकरवादी और विभिन्न जनसंगठनों ने हिस्सा लिया था और हजारों की संख्या में लोग आए थे। इस परिषद का समन्वयन सर्वोच्च न्यायालय के रिटायर्ड न्यायाधीश पी.बी. सावंत और कोलसे पाटिल ने किया था।
1 जनवरी 2018 को हिंदुत्व संगठनों ने भीमा-कोरेगांव में आए दलितों के विरुद्ध हिंसा की। इसके विरुद्ध महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में प्रदर्शन हुए और 3 जनवरी को प्रकाश अंबेडकर व अन्य दलित नेताओं द्वारा राज्यव्यापी बंद का ऐला किया गया। बंद में बड़ी संख्या में दलित, मराठा और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने भाग लिया। जैसा आजकल लगातार हो रहा है, यहां भी दलित पीड़ितों के विरुद्ध ही 600 से अधिक प्राथमिकी दर्ज कर दी गयी।
कई स्वतंत्र तथ्यान्वेषणों में पाया गया है कि भीमा-कोरेगांव में हिंसा की पहले से तैयारी थी और संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोते के नेतृत्व में हिंदुत्व संगठनों ने हिंसा की थी। इसके बावजूद इन लोगों के विरुद्ध पर्याप्त कार्रवाई नहीं की गयी।
वहीं दूसरी ओर इस मामले में हिंदुत्ववादी संगठन के करीबी तुषार दामगुड़े द्वारा की गई प्राथमिकी को महाराष्ट्र पुलिस ने एक षडयंत्र का रूप दिया और यह कहानी रची कि एल्गार परिषद और उस दौरान हुई हिंसा माओवादियों ने कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर आयोजित की थी। इस प्राथमिकी के विधि विरुद्ध क्रिया कलाप (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) और देशद्रोह की धाराओं को जोड़कर देश के कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों व बुद्धिजीवियों को आरोपी और संदिग्ध बना दिया। अभी तक इस मामले में अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं से पूछताछ की गई है और कई लोगों के घर पर छापा मारा गया है।
अभी तक स्टैन स्वामी समेत 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया है जिसमें निम्न मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, सांस्कृतिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी शामिल हैं: आनंद तेलतुंबड़े, अरुण फरेरा, गौतम नवलखा, हनी बाबु, महेस राउत, सुरेंद्र गाडलिंग, सुधा भारद्वाज, शोमा सेन, सुधीर धावले, रोना विल्सन, वर्नन गोंजल्वेस, वरावरा राव और कबी कला मंच से जुड़े रमेश गैचोर, सागर गोरखे और ज्योति जगताप। ये सभी ऐसे व्यक्ति हैं जो दसकों से आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यकों और वंचितों के अधिकारों के लिए संघर्षरत रहे हैं। मजेदार बात यह है कि एल्गार परिषद व भीमा कोरेगांव के समारोह में इनमें से अधिकांश व्यक्ति उपस्थित भी नहीं थे।
इसी बीच भाजपा के करीबी मीडिया चैनल रिपब्लिक टीवी और जी न्यूज ने कुछ पत्रों का खुलासा किया जिनमें आरोपियों और माओवादियों के बीच संबंध का जिक्र था। यही नहीं, उन्होंने यह भी दावा किया कि 'राजीव गांधी हत्या की तरह ही' 'मोदी राज' खत्म करने की साजिश पर भी पत्र मिला है। पुणे पुलिस ने कुछ ऐसे पत्रों को मीडिया में भी जारी किया। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने इस मामले से जुड़े केस में अपनी मतभेद निर्णय में पुलिस को ऐसा मीडिया ट्रायल करने व नियम अनुसार अनुसंधान न करने के लिए डांटा और यह भी कहा कि इन पत्रों की सत्यता पर ही सवाल है।
महाराष्ट्र में नवंबर 2019 में बनी गैर भाजपा सरकार ने जैसे ही इन फर्जी मामलों को वापस लेने की चर्चा शुरू की, वैसे ही केंद्र सरकार ने इन मामलों को एनआईए के हवाले कर दिया। एनआईए ने भी कई गिरफ्तारियां की और कई लोगों से घंटों पूछताछ की। इस मामले में ऐसी चार्जशीट बनाई गयी कि कोई भी सामाजिक कार्यकर्ता, जो जनता के पक्ष में आवाज उठाता है, उसे फंसाया जा सकता है।
चार्जशीट व सूबत
गिरफ्तार किए गए पहले पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरुद्ध पुणे पुलिस ने पहला चार्जशीट नवंबर 2018 में दायर किया। 21 फरवरी 2019 में पुणे पुलिस ने और चार सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरुद्ध सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की। चार्जशीट लगभग 8000 पेज का है लेकिन संदिग्ध लोगों के विरुद्ध स्पष्ट आरोप नहीं हैं और न ही उनका भीमा कोरेगांव मामले में हिंसा से संबंध स्पष्ट होता है। एनआईए ने हाल में ही फिर से 10000 पन्नों का नया चार्जशीट दायर किया है जिसे अभी पढ़ा जा रहा है।
ऐसी भारी और लंबी चार्जशीट के बावजूद मामले में आरोपियों के विरुद्ध प्रस्तु अधिकांश सबूत टाइप/प्रिंट की हुई चिट्ठियां हैं जो प्रेस में 31 अगस्त 2018 को 'लीक' किए गए थे। पुलिस ने यह कहानी रची कि एल्गार परिषद और उस दौरान हुई हिंसा माओवादियों ने कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर आयोजित की थी और यह देश के विरुद्ध माओंवादियों के राष्ट्रीय षडयंत्र का हिस्सा है। चार्जशीट मुख्यत: बिना हस्ताक्षर के एवं असत्यापित व असंपुष्ट चिट्ठियों (जो तथाकथित रूप से आरोपियों के हार्डड्राइव से मिले हैं) पर आधारित हैं। मजेदार बात यह है कि ये चिट्टियां आरोपियों के उन कंप्यूटर में बनायी भी नहीं गयी हैं जिनसे इन्हें निकालने का दावा किया गया है। यह तो स्पष्ट है कि किसी भी न्यायिक ट्रायल में इन चिट्ठियों को सबूत के रूप में पेश नहीं किया जा सकता है लेकिन यूएपीए के तहत आरोपियों को जमानत न देने के लिए पर्याप्त हैं।
गिरफ्तारी के पहले कबीर कला मंच के रमेश गाईचोर और सागर गोरखे ने एक वीडियो वक्तव्य जारी कर कहा था कि एनआईए गिरफ्तारी का डर दिखाकर उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने गलत वक्तव्य और सबूत देने के लिए दबाव दे रहा है लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं हुए और गिरफ्तार होना स्वीकार किए। उन्होंने इस बात को दोहराया जब उन्हें एनआईए कोर्ट में प्रस्तुत किया गया। इसके पहले हनी बाबु ने भी अपने परिवारवालों को यह बात कही थी कि गिरफ्तारी का डर दिखाकर उन्हें गलत वक्तव्य देने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। अब यह देखना है कि न्यायालय इन बातों पर सही से विचार करती है या नहीं।
पीयूसीएल की मांगें-
* स्टेन स्वामी को तुरंत रिहा किया जाए और उन्हें उनकी स्वास्थ्य और उम्र की आवश्यकताओं के अनुसार रहने के स्थान को तय करने का अधिकार दिया जाए।
* भीमा कोरेगांव केस में गिरफ्तार किए गए सभी 16 लोगों को तुरंत रिहा किया जाए और इस केस को बंद किया जाए।
* यूएपीए को रद्द किया जाए
यह मीटिंग सभी मानवाधिकार संगठनों, नागरिक संगठनों और राजनैतिक दलों को आह्वाहन देती है कि यूएपीए और एनआई को रद्द करने के लिए मिलकर एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया जाए।
भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार हुए लोगों का विवरण
सुधा भारद्वाज : छत्तीसगढ़ में कार्यरत ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता व वकील। छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मजदूर कार्यकर्ता समिति) के साथ जुड़ी हुई। पीयूसीएल की राष्ट्रीय सचिव और अखिल भारतीय जन वकील संगठन की उपाध्यक्ष, गिरफ्तारी -28 अगस्त 2018
वरावर राव : हैदराबाद में रहने वाले कवि और रिटायर्ड कॉलेज शिक्षक। स्रुजुना नाम साहित्यिक पत्रिका के पूर्व संपादक एवं विरासम (क्रांतिकारी लेखक संघ) के एक संस्थापक। माओवाद विचारक। कई बार गिरफ्तार किए लेकिन हमेशा बरी हुए हैं। गिरफ्तारी 28 अगस्त 2018
आनंद तेलतुंबड़े : जाने-माने दलित लेक और शोधकर्ता। इंजीनियर एवं इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (अहमदाबाद) से स्नातक। आईआईटी (खड़गपुर) के पूर्व शिक्षक और वर्तमान में गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में वरिष्ठ प्रोफेसर। गिरफ्तारी-14 अप्रैल 2018
सुरेंद्र गाडलिंग : नागपुर में रहने वाले प्रसिद्ध दलित एक्टिविस्ट और वकील। अखिल भारतीय जन वकील संगठन के महासचिव, जीएन साईबाबा, सुधीर धावले, अरूण फरेरा और वर्नोन गोंसाल्वेस के पक्ष में केस लड़े हैं। गिरफ्तारी 6 जून 2018
सुधीर धावले : मुंबई में रहने वाले लेखक और जाति विरोधी एक्टिविस्ट। विद्रोही पत्रिका का संपादन। रिपब्लिक पैंथर्स पार्टी के सदस्य। 2011 में गिरफ्तार हुए थे और चार साल बाद बरी हो गए थे। गिरफ्तारी-6 जून 2018
महेश राउत : गढ़चिरौली में रहने वाले आदिवासी अधिकारों पर संघर्षरत एक्टिविस्ट। भारत जन आंदोलन से जुड़े हुए। टीआईएसएस मुंबई से पढ़ाई की और गढ़चिरौली में प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास फेलो के रूप में काम किया। विस्थापन के विरुद्ध संघर्षरत मंच, विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के सह संयोजक। गिरफ्तारी- 6 जून 2018
रोना विल्सन : दिल्ली में रहते हैं। राजनीतिक कैदियों के मुद्दे पर संघर्षरत। कमिटी फॉर रिलीज पॉलिटीकल प्रिजनर्स के जनसंपर्क सचिव जीएन साईंबाबा की रिहाई के लिए काम किया और यूएपीए व एनएसए जैसे दमनकारी कानूनों के विरुद्ध संघर्षत। गिरफ्तारी-6 जून 2018
शोमा सेन : नागपुर में रहने वाली एक प्रसिद्ध शैक्षिक एव दलित और महिला अधिारों पर संगर्षत एक्टिविस्ट। नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष थी। वे कमिटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स में सक्रिय रूप से जुड़ी थी। गिरफ्तारी- 6 जून 2018
अरूण फरेरा : ठाणे में रहने वाले लेखक, कार्टूनिस्ट और वकील। वे 2007 में गिरफ्तार हुए थे और तबसे बरी होते ही तुरंत फिर से गिरफ्तार किए गए। लगभग पांच साल जेल में ते और फिर सभी मामलों में बरी हुए। उन्होंने जेल के अनुभव पर एक जेल डायरी लिखा जो 'कलर्स ऑफ द केज' के नाम से छपी है। गिरफ्तारी- अगस्त 2018
वर्नोन गोंसाल्वेस : चंद्रपुर, महाराष्ट्र के रहने वाले एक लेखक, अनुवादक और असंगठित मजदूरों के पूर्व ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता। मुंबई विश्वविद्यालय से कॉमर्स में गोल्ड मैडल प्राप्त छात्र। कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ ट्रेड यूनियन से जुड़ गए। 2013 में 18 मामलों में बरी होने से पहले लगभग 6 साल जेल में गुजारा। एक मामले में दोषी पाए गए थे जिसके विरुद्ध बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील की गयी है एवं एक अन्य मामले में गुजरात हाईकोर्ट में डिस्चार्ज आवेदन लंबित है। गिरप्तारी- 28 अगस्त 2018
हनी बाबु : दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर। वे भाषाविद हैं एवं जाति और भाषाओं पर शोधकर्ता हैं। वे आरक्षण के पक्ष और विश्वविद्यालय में अन्य सामाजिक न्याय आंदोलनों से सक्रिय रूप से जुड़े रहे हैं। गिरफ्तारी-28 जुलाई 2020
रमेश गाईचोर, सागर गोरखे और ज्योति जगताप: ये सभी कबीर कला मंच से जुड़े कवि और गायक हैं। कबीर कला मंच पुणे का एक दलित और मार्क्सवादी विचारधारा आधारित संगठन है। 2013 में भी रमेश और सागर गिरफ्तार हुए थे और तीन सालों तक जेल में रहे थे। फिर सुप्रीम कोर्ट से उन्हें जमानत मिली थी। गिरफ्तारी- रमेश गाईचोर और सागर गोरखे-8 सितंबर 2020 को गिरफ्तार हुए और ज्योति जगताप 9 सितंबर 2020
स्टैन स्वामी : स्टैन झारखंड के एक जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वे चार दशकों से राज्य के आदिवासी व अन्य वंचित समूहों के अधिकारों के लिए संघर्षरत रहे हैं। उन्होंने विशेष रूप से विस्थापन, संसाधनों की कंपनियों द्वारा लूट, विचारधीन कैदियों व पेसा कानून पर काम किया है। स्टैन ने समय पर भाजपा सरकार की भूमि अधिग्रहण कानूनों में संशोधन करने के प्रयासों की आलोचना की है। साथ ही, वे वन अधिकार अधिनियम, पेसा व संबंधित कानूनों के समर्थक हैं। गिरफ्तारी- 8 अक्टूबर 2020
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एक महीने पहले, 7-8 सितंबर को सांस्कृतिक कार्यकर्ता सागर गोरखे, रमेश गाईचोर और ज्योति जगताप (कबीर कला मंच के सदस्य) को भी इस मामले में गिरफ्तार किया था। 2018 से अभी तक 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, कई लोगों के घरों में पर छापे मारे गए हैं और अनेकों को परेशान किया गया है। ये ऐसे मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, सांस्कृतिक कार्यकर्ता या बुद्धिजीवी हैं जो दशकों से आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यकों और वंचितों के अधिकारों के लिए संघर्षरत रहे हैं।
भीमा कोरेगांव मामले को बहाना बनाकर पहले महाराष्ट्र पुलिस ने और अब एनआईए एक राष्ट्रव्यापी माओवादी पहल की कहानी रच रहीहै और देश के विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं को इससे जोड़ रहे हैं। जबकि भीमा कोरेगांव हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों- हिंदुत्व संगठनों के नेताओं- के विरूद्ध कार्यवाई नहीं की गई।
इल मामले में हाल में हुई गिरफ्तारियों और देश में मतभेद के अधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों पर लगातार हमले के विरूद्ध पीयूसीएल 21 अक्टूबर को प्रेसवार्ता का आयोजन कर रहा है। प्रेस वार्ता को कई विशिष्ट सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकील व राजनैतिक नेताओं द्वारा संबोधित किया जाएगा।
क्या है भीमा-कोरेगांव षडयंत्र मामला
1 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में हिंसा फैलाने के फर्जी आरोपों पर आज देश के 16 जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी जेल में बंद है। इस मामले को बहाना बनाकर जनविरोधी नीतियों पर सवाल करने वाले देश के विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों पर छापे मारे, परेशान किया जा रहा है और पूछताछ से परेशान किया जा रहा है।
1818 में पेशवा सेना के विरुद्ध दलित सैनिकों की जीत मनाने के लिए महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हर साल 1 जनवरी को दलित बहुजन एकत्रित होते हैं। 1 जनवरी 2018 को इस घटना की 200 वर्ष होने के उत्सव में हजारों दलित बहुजन एकत्रित हुए थे।
31 दिसंबर 2017 को भीमा कोरेगांव से 30 किमी दूर पुणे शहर में एल्गार परिषद का आयोजन हुआ था जिसमें देश की बढ़ती सांप्रदायिकता, हिंदुत्व ताकतों और सरकार की जनविरोधी नीतियों की कड़ी निंदा हुई थी और लोगों ने संविधान की रक्षा करने की शपथ ली थी। एल्गार परिषद में 200 से अधिक दलित, बहुजन, अन्य अंबेडकरवादी और विभिन्न जनसंगठनों ने हिस्सा लिया था और हजारों की संख्या में लोग आए थे। इस परिषद का समन्वयन सर्वोच्च न्यायालय के रिटायर्ड न्यायाधीश पी.बी. सावंत और कोलसे पाटिल ने किया था।
1 जनवरी 2018 को हिंदुत्व संगठनों ने भीमा-कोरेगांव में आए दलितों के विरुद्ध हिंसा की। इसके विरुद्ध महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में प्रदर्शन हुए और 3 जनवरी को प्रकाश अंबेडकर व अन्य दलित नेताओं द्वारा राज्यव्यापी बंद का ऐला किया गया। बंद में बड़ी संख्या में दलित, मराठा और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने भाग लिया। जैसा आजकल लगातार हो रहा है, यहां भी दलित पीड़ितों के विरुद्ध ही 600 से अधिक प्राथमिकी दर्ज कर दी गयी।
कई स्वतंत्र तथ्यान्वेषणों में पाया गया है कि भीमा-कोरेगांव में हिंसा की पहले से तैयारी थी और संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोते के नेतृत्व में हिंदुत्व संगठनों ने हिंसा की थी। इसके बावजूद इन लोगों के विरुद्ध पर्याप्त कार्रवाई नहीं की गयी।
वहीं दूसरी ओर इस मामले में हिंदुत्ववादी संगठन के करीबी तुषार दामगुड़े द्वारा की गई प्राथमिकी को महाराष्ट्र पुलिस ने एक षडयंत्र का रूप दिया और यह कहानी रची कि एल्गार परिषद और उस दौरान हुई हिंसा माओवादियों ने कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर आयोजित की थी। इस प्राथमिकी के विधि विरुद्ध क्रिया कलाप (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) और देशद्रोह की धाराओं को जोड़कर देश के कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों व बुद्धिजीवियों को आरोपी और संदिग्ध बना दिया। अभी तक इस मामले में अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं से पूछताछ की गई है और कई लोगों के घर पर छापा मारा गया है।
अभी तक स्टैन स्वामी समेत 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया है जिसमें निम्न मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, सांस्कृतिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी शामिल हैं: आनंद तेलतुंबड़े, अरुण फरेरा, गौतम नवलखा, हनी बाबु, महेस राउत, सुरेंद्र गाडलिंग, सुधा भारद्वाज, शोमा सेन, सुधीर धावले, रोना विल्सन, वर्नन गोंजल्वेस, वरावरा राव और कबी कला मंच से जुड़े रमेश गैचोर, सागर गोरखे और ज्योति जगताप। ये सभी ऐसे व्यक्ति हैं जो दसकों से आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यकों और वंचितों के अधिकारों के लिए संघर्षरत रहे हैं। मजेदार बात यह है कि एल्गार परिषद व भीमा कोरेगांव के समारोह में इनमें से अधिकांश व्यक्ति उपस्थित भी नहीं थे।
इसी बीच भाजपा के करीबी मीडिया चैनल रिपब्लिक टीवी और जी न्यूज ने कुछ पत्रों का खुलासा किया जिनमें आरोपियों और माओवादियों के बीच संबंध का जिक्र था। यही नहीं, उन्होंने यह भी दावा किया कि 'राजीव गांधी हत्या की तरह ही' 'मोदी राज' खत्म करने की साजिश पर भी पत्र मिला है। पुणे पुलिस ने कुछ ऐसे पत्रों को मीडिया में भी जारी किया। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने इस मामले से जुड़े केस में अपनी मतभेद निर्णय में पुलिस को ऐसा मीडिया ट्रायल करने व नियम अनुसार अनुसंधान न करने के लिए डांटा और यह भी कहा कि इन पत्रों की सत्यता पर ही सवाल है।
महाराष्ट्र में नवंबर 2019 में बनी गैर भाजपा सरकार ने जैसे ही इन फर्जी मामलों को वापस लेने की चर्चा शुरू की, वैसे ही केंद्र सरकार ने इन मामलों को एनआईए के हवाले कर दिया। एनआईए ने भी कई गिरफ्तारियां की और कई लोगों से घंटों पूछताछ की। इस मामले में ऐसी चार्जशीट बनाई गयी कि कोई भी सामाजिक कार्यकर्ता, जो जनता के पक्ष में आवाज उठाता है, उसे फंसाया जा सकता है।
चार्जशीट व सूबत
गिरफ्तार किए गए पहले पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरुद्ध पुणे पुलिस ने पहला चार्जशीट नवंबर 2018 में दायर किया। 21 फरवरी 2019 में पुणे पुलिस ने और चार सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरुद्ध सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की। चार्जशीट लगभग 8000 पेज का है लेकिन संदिग्ध लोगों के विरुद्ध स्पष्ट आरोप नहीं हैं और न ही उनका भीमा कोरेगांव मामले में हिंसा से संबंध स्पष्ट होता है। एनआईए ने हाल में ही फिर से 10000 पन्नों का नया चार्जशीट दायर किया है जिसे अभी पढ़ा जा रहा है।
ऐसी भारी और लंबी चार्जशीट के बावजूद मामले में आरोपियों के विरुद्ध प्रस्तु अधिकांश सबूत टाइप/प्रिंट की हुई चिट्ठियां हैं जो प्रेस में 31 अगस्त 2018 को 'लीक' किए गए थे। पुलिस ने यह कहानी रची कि एल्गार परिषद और उस दौरान हुई हिंसा माओवादियों ने कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर आयोजित की थी और यह देश के विरुद्ध माओंवादियों के राष्ट्रीय षडयंत्र का हिस्सा है। चार्जशीट मुख्यत: बिना हस्ताक्षर के एवं असत्यापित व असंपुष्ट चिट्ठियों (जो तथाकथित रूप से आरोपियों के हार्डड्राइव से मिले हैं) पर आधारित हैं। मजेदार बात यह है कि ये चिट्टियां आरोपियों के उन कंप्यूटर में बनायी भी नहीं गयी हैं जिनसे इन्हें निकालने का दावा किया गया है। यह तो स्पष्ट है कि किसी भी न्यायिक ट्रायल में इन चिट्ठियों को सबूत के रूप में पेश नहीं किया जा सकता है लेकिन यूएपीए के तहत आरोपियों को जमानत न देने के लिए पर्याप्त हैं।
गिरफ्तारी के पहले कबीर कला मंच के रमेश गाईचोर और सागर गोरखे ने एक वीडियो वक्तव्य जारी कर कहा था कि एनआईए गिरफ्तारी का डर दिखाकर उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने गलत वक्तव्य और सबूत देने के लिए दबाव दे रहा है लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं हुए और गिरफ्तार होना स्वीकार किए। उन्होंने इस बात को दोहराया जब उन्हें एनआईए कोर्ट में प्रस्तुत किया गया। इसके पहले हनी बाबु ने भी अपने परिवारवालों को यह बात कही थी कि गिरफ्तारी का डर दिखाकर उन्हें गलत वक्तव्य देने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। अब यह देखना है कि न्यायालय इन बातों पर सही से विचार करती है या नहीं।
पीयूसीएल की मांगें-
* स्टेन स्वामी को तुरंत रिहा किया जाए और उन्हें उनकी स्वास्थ्य और उम्र की आवश्यकताओं के अनुसार रहने के स्थान को तय करने का अधिकार दिया जाए।
* भीमा कोरेगांव केस में गिरफ्तार किए गए सभी 16 लोगों को तुरंत रिहा किया जाए और इस केस को बंद किया जाए।
* यूएपीए को रद्द किया जाए
यह मीटिंग सभी मानवाधिकार संगठनों, नागरिक संगठनों और राजनैतिक दलों को आह्वाहन देती है कि यूएपीए और एनआई को रद्द करने के लिए मिलकर एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया जाए।
भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार हुए लोगों का विवरण
सुधा भारद्वाज : छत्तीसगढ़ में कार्यरत ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता व वकील। छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मजदूर कार्यकर्ता समिति) के साथ जुड़ी हुई। पीयूसीएल की राष्ट्रीय सचिव और अखिल भारतीय जन वकील संगठन की उपाध्यक्ष, गिरफ्तारी -28 अगस्त 2018
वरावर राव : हैदराबाद में रहने वाले कवि और रिटायर्ड कॉलेज शिक्षक। स्रुजुना नाम साहित्यिक पत्रिका के पूर्व संपादक एवं विरासम (क्रांतिकारी लेखक संघ) के एक संस्थापक। माओवाद विचारक। कई बार गिरफ्तार किए लेकिन हमेशा बरी हुए हैं। गिरफ्तारी 28 अगस्त 2018
आनंद तेलतुंबड़े : जाने-माने दलित लेक और शोधकर्ता। इंजीनियर एवं इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (अहमदाबाद) से स्नातक। आईआईटी (खड़गपुर) के पूर्व शिक्षक और वर्तमान में गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में वरिष्ठ प्रोफेसर। गिरफ्तारी-14 अप्रैल 2018
सुरेंद्र गाडलिंग : नागपुर में रहने वाले प्रसिद्ध दलित एक्टिविस्ट और वकील। अखिल भारतीय जन वकील संगठन के महासचिव, जीएन साईबाबा, सुधीर धावले, अरूण फरेरा और वर्नोन गोंसाल्वेस के पक्ष में केस लड़े हैं। गिरफ्तारी 6 जून 2018
सुधीर धावले : मुंबई में रहने वाले लेखक और जाति विरोधी एक्टिविस्ट। विद्रोही पत्रिका का संपादन। रिपब्लिक पैंथर्स पार्टी के सदस्य। 2011 में गिरफ्तार हुए थे और चार साल बाद बरी हो गए थे। गिरफ्तारी-6 जून 2018
महेश राउत : गढ़चिरौली में रहने वाले आदिवासी अधिकारों पर संघर्षरत एक्टिविस्ट। भारत जन आंदोलन से जुड़े हुए। टीआईएसएस मुंबई से पढ़ाई की और गढ़चिरौली में प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास फेलो के रूप में काम किया। विस्थापन के विरुद्ध संघर्षरत मंच, विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के सह संयोजक। गिरफ्तारी- 6 जून 2018
रोना विल्सन : दिल्ली में रहते हैं। राजनीतिक कैदियों के मुद्दे पर संघर्षरत। कमिटी फॉर रिलीज पॉलिटीकल प्रिजनर्स के जनसंपर्क सचिव जीएन साईंबाबा की रिहाई के लिए काम किया और यूएपीए व एनएसए जैसे दमनकारी कानूनों के विरुद्ध संघर्षत। गिरफ्तारी-6 जून 2018
शोमा सेन : नागपुर में रहने वाली एक प्रसिद्ध शैक्षिक एव दलित और महिला अधिारों पर संगर्षत एक्टिविस्ट। नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष थी। वे कमिटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स में सक्रिय रूप से जुड़ी थी। गिरफ्तारी- 6 जून 2018
अरूण फरेरा : ठाणे में रहने वाले लेखक, कार्टूनिस्ट और वकील। वे 2007 में गिरफ्तार हुए थे और तबसे बरी होते ही तुरंत फिर से गिरफ्तार किए गए। लगभग पांच साल जेल में ते और फिर सभी मामलों में बरी हुए। उन्होंने जेल के अनुभव पर एक जेल डायरी लिखा जो 'कलर्स ऑफ द केज' के नाम से छपी है। गिरफ्तारी- अगस्त 2018
वर्नोन गोंसाल्वेस : चंद्रपुर, महाराष्ट्र के रहने वाले एक लेखक, अनुवादक और असंगठित मजदूरों के पूर्व ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता। मुंबई विश्वविद्यालय से कॉमर्स में गोल्ड मैडल प्राप्त छात्र। कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ ट्रेड यूनियन से जुड़ गए। 2013 में 18 मामलों में बरी होने से पहले लगभग 6 साल जेल में गुजारा। एक मामले में दोषी पाए गए थे जिसके विरुद्ध बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील की गयी है एवं एक अन्य मामले में गुजरात हाईकोर्ट में डिस्चार्ज आवेदन लंबित है। गिरप्तारी- 28 अगस्त 2018
हनी बाबु : दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर। वे भाषाविद हैं एवं जाति और भाषाओं पर शोधकर्ता हैं। वे आरक्षण के पक्ष और विश्वविद्यालय में अन्य सामाजिक न्याय आंदोलनों से सक्रिय रूप से जुड़े रहे हैं। गिरफ्तारी-28 जुलाई 2020
रमेश गाईचोर, सागर गोरखे और ज्योति जगताप: ये सभी कबीर कला मंच से जुड़े कवि और गायक हैं। कबीर कला मंच पुणे का एक दलित और मार्क्सवादी विचारधारा आधारित संगठन है। 2013 में भी रमेश और सागर गिरफ्तार हुए थे और तीन सालों तक जेल में रहे थे। फिर सुप्रीम कोर्ट से उन्हें जमानत मिली थी। गिरफ्तारी- रमेश गाईचोर और सागर गोरखे-8 सितंबर 2020 को गिरफ्तार हुए और ज्योति जगताप 9 सितंबर 2020
स्टैन स्वामी : स्टैन झारखंड के एक जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वे चार दशकों से राज्य के आदिवासी व अन्य वंचित समूहों के अधिकारों के लिए संघर्षरत रहे हैं। उन्होंने विशेष रूप से विस्थापन, संसाधनों की कंपनियों द्वारा लूट, विचारधीन कैदियों व पेसा कानून पर काम किया है। स्टैन ने समय पर भाजपा सरकार की भूमि अधिग्रहण कानूनों में संशोधन करने के प्रयासों की आलोचना की है। साथ ही, वे वन अधिकार अधिनियम, पेसा व संबंधित कानूनों के समर्थक हैं। गिरफ्तारी- 8 अक्टूबर 2020