मैं हर बार गणतंत्र दिवस पर कहीं उत्सव में जाने से बचता हूँ, पर संयोगवश पहुंच जाता हूँ। ऐसा नहीं है कि मैं गणतंत्र दिवस की खुशियां मनाना पसंद नहीं करता या मुझे इसे मानते लोग पसंद नहीं। दरअसल इन समारोहों में जिस तरह के चोंचले होते हैं, उन्हें झेलना बड़ा मुश्किल हो जाता है।
Representation Image / The Hindu
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इस बार के गणतंत्र दिवस पर भी कुछ ऐसा ही हो गया। मैं घर से किसी कारणवश निकला। आगे स्कूल के मैदान में इकट्ठा हुए छोटे बच्चों को देखकर अनायास ही रुक गया। कितना सम्मोहक दृश्य होता है जब हम बहुत सारे बच्चों को तिरंगा हाथ में लिए लहराते देखते हैं।
स्कूल के गेट पर गेटकीपर एक महिला से उलझा पड़ा था। वह महिला अंदर जाना चाहती थी पर कपड़ा थोड़ा मटमैला होने की वजह से गेटकीपर ने उसे रोक रखा था। उसका बच्चा अंदर था। वह अभी काम से लौटी थी और उससे मिलना चाहती थी। ऊपर गेट पर बड़े बैनर पर गांधी, नेहरू, अम्बेडकर की फोटो लगी थी। नीचे लिखा था- "गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर सभी नागरिकों का हार्दिक स्वागत है" फिर भी गेटकीपर ने उसे रोक रखा था। मेरे कई बार आग्रह करने पर गेटकीपर ने उसे अंदर जाने दिया। ऐसी चीजें देखकर मन बड़ा दुखी होता है।
स्कूल में झंडारोहण होने वाला था। बड़ा स्टेज सजा हुआ था। एक व्यक्ति ने मंच पर माइक संभालते हुए कहा- अब हमारे मुख्य अतिथि जो कि फलानी पार्टी से हैं और लगातार तीन बार से इस क्षेत्र के विधायक होते आ रहे हैं, उनका ध्वजारोहण के लिए स्वागत करूंगा और आग्रह करूंगा कि वे दो शब्द हमारे बीच कहें।
ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के नाम पर पता नहीं कितने स्कूल कुकुरमुत्ते की तरह उग आए हैं, जो प्रायः चंदा लेने के लिए नेताओं को इस तरह के कार्यक्रमों में आमंत्रित करते रहते हैं।
विधायक जी आये। मैं स्तब्ध हुआ। वह व्यक्ति जिसके ऊपर हत्या से लेकर बलात्कार तक के केस चल रहे हैं उसे कोई ध्वजारोहण के लिए स्कूल में कैसे आमंत्रित कर सकता है ! पर थोड़ी देर में मैं नार्मल हो गया। इसमें स्तब्ध होने जैसा कुछ नहीं था। यह भारत है यहाँ दंगाई, हत्यारे, बलात्कारी ही संसद और विधानसभा में भेजे जाते हैं। जनता उन्हें चुनती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, या सुरक्षा के नाम पर कभी कोई वोट नहीं करता। सबको अपनी जाति या धर्म वाला ही चाहिए। चाहे वह कितने भी संगीन आरोपों से घिरा हो।
माइक संभाले व्यक्ति ने कहा- विधायक जी का स्वागत एक बार जोरदार तालियों के साथ होना चाहिए।
सभी तालियां बजा रहे थे। सामने बैठे बच्चे भी तालियां पीट रहे थे। मैं सोचता हूँ, इन बच्चों को बताया जाए कि जिनके स्वागत में वे तालियां पीट रहे हैं दरअसल वह एक नंबर का धूर्त इंसान है तो क्या बच्चें तालियां पीटेंगे ? शायद नहीं।
विधायक जी ने मंच पर आकर झंडा फहरा दिया। तालियां बजी। विधायक जी ने लोगों को संबोधित करना शुरू किया। 'मेरे प्यारे बच्चों' से शुरू हुआ उनका भाषण सरकार की उपलब्धियां गिनाने में कब व्यस्त हो गया, पता न चला। छोटे बच्चे ऊब रहे थे। पांच साल के बच्चों को सरकारी उपलब्धियों से क्या काम !! भाषण के अंत में विधायक जी ने कुछ डोनेशन देने का वादा किया और आगे बढ़ गए।
कार्यक्रम आगे बढ़ा। कुछ बच्चों ने देशभक्ति के गीत प्रस्तुत किये। एक करीब आठ नौ साल के बच्चे को गणतंत्र दिवस पर भाषण देने के लिए बुलाया गया। मैं बड़ा उत्सुक था कि आखिर इतना छोटा बच्चा क्या बोलेगा !! वह आया और कुछ देर इधर उधर की सुनाने के बाद अचानक पाकिस्तान को ललकारने लगा। 'सुन ले पाकिस्तान' यदि भारत की तरफ देखा तो आंखे निकाल लेंगे............दुश्मन मुल्क.... गद्दार..... .... चूर चूर हो जाएगा।
इस तरह के न जाने कितने शब्दों से तीन मिनट के भाषण में वह पाकिस्तान को ललकारता रहा। उसे दुश्मन देश घोषित करता रहा। उसके कहने के लहजे और स्पीड से पता चल रहा था कि वह इस भाषण को कई दिनों से रट रहा होगा। लोग खूब तालियां पीट रहे थे। मुझसे झेला न गया। मैं आगे बढ़ गया।
दिमाग सुन्न था। रास्ते भर यही सोचता रहा कि कौन लोग इन मासूम बच्चों के मन में एक देश और विशेष समुदाय के प्रति जहर भर रहे हैं। किसी बच्चे के लिए इतने नफरतों से भरा भाषण लिखता कौन हैं ? जो बच्चा शायद ठीक से अपनी बात कहना भी नहीं जानता है उससे इस तरह के भाषण दिलवाकर किसको क्या हासिल होगा ! उस बच्चे को तो पता भी नहीं होगा कि वह क्या बोलकर आया है।
बच्चे तो गीली मिट्टी हैं। जो रूप दे दो वही बन जाएंगे। इन मासूमों में जहर भरकर किसका भला होगा ? पता नहीं इस तरह के कितने सवाल थे जो मन मे गूंज रहे थे । मन उस नेहरू को खोज रहा था जो बच्चों में घुलकर बच्चा बन जाते थे। जो बच्चों में देश का भविष्य देखते थे और उन्हें संवारने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे।