'वैलेंटाइन डे का विरोध दमनकारी राजनीति का हिस्सा, उदारवाद और बहुवाद को खत्म करना मकसद'

Written by Ram Puniyani | Published on: February 17, 2023


भारतीय संस्कृति विविधवर्णी और बहुवादी है और धर्मों व भौगोलिक सीमाओं से ऊपर उठकर विविधता को मान्यता और स्वीकार्यता देकर स्वयं को समृद्ध करती आई है. हमारी संस्कृति द्वारा विविधता की स्वीकार्यता हमारे जीवन के सभी पक्षों में देखी जा सकती है, फिर चाहे वे खान-पान की आदतें हों, वेशभूषा, कला या वास्तुकला हो या सामाजिक व धार्मिक परंपराएं और रीति-रिवाज. किसी भी खुले और जिंदा समाज को ऐसा ही होना चाहिए. परन्तु साम्प्रदायिकता के उदय के साथ, हमारी संस्कृति को संकीर्ण और असहिष्णु बनाने की कोशिशें हो रहीं हैं. कुछ धार्मिक समुदायों को ‘अलग’ या ‘दूसरा’ बताया जा रहा है और हमारे सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर ‘हमारा’ और ‘विदेशी’ के लेबल चस्पा किये जा रहे हैं. इस सिलसिले में कई सांप्रदायिक संगठन अति-सक्रिय हैं. धर्म के नाम पर राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है और कुछ प्रतीकों को धार्मिक राष्ट्रवाद से जोड़ा जा रहा है.   

भारतीय पशु कल्याण बोर्ड का हालिया आव्हान भी इसी अभियान का हिस्सा है. बोर्ड ने बाकायदा परिपत्र जारी कर कहा कि 14 फरवरी (जिस दिन वैलेंटाइन्स डे मनाया जाता है) को ‘काऊ हग डे’ (गाय को गले लगाओ दिवस) मनाया जाए. बोर्ड का कहना था कि “गाय को गले लगाने से भावनात्मक समृद्धि आएगी और व्यक्तिगत व सामूहिक प्रसन्नता को बढावा मिलेगा.”

इस नवोन्मेषी प्रस्ताव का समर्थन करने हुए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने 9 फरवरी 2023 को कहा कि हर व्यक्ति को गाय से प्रेम करना चाहिए. इस कवायद के दो लक्ष्य थे – एक, गाय से जुड़ी प्रतीकात्मकता को बढ़ावा देना और दो, वैलेंटाइन्स डे को नकारना. गाय, हिन्दू राष्ट्रवाद का एक प्रमुख भावनात्मक प्रतीक है और इस विचारधारा में यकीन रखते वाले वैलेंटाइन्स डे को विदेशी और अनैतिक मानते हैं.  

गाय को केंद्र में रखने वाली राजनीति पिछले कुछ वर्षों में तेजी से आक्रामक हुई है. निसंदेह कुछ हिन्दू गाय को पवित्र मानते हैं परन्तु अब इस मसले में सरकार भी कूद पड़ी है. कई राज्यों में गौवध का निषेध करने वाले कड़े कानून लागू किये गए हैं. इसी मुद्दे के चलते मुसलमानों और कुछ दलितों की लिंचिंग की अनेक घटनाएं देश भर में हुई हैं. इसी को लेकर गुजरात के ऊना में चार दलितों की बेरहमी से पिटाई की गई थी. 

भारत सरकार पंचगव्य (गाय के दूध, दही, घी, गोबर और गौमूत्र का मिश्रण) पर शोध के लिए धन उपलब्ध करवा रही है. यहाँ यह महत्वपूर्ण है कि पशु चिकित्सा और जैवरसायनिक विज्ञान, विभिन्न पशु उत्पादों पर पर्याप्त शोध और अध्ययन बहुत पहले कर चुके हैं.   

सन 2021 में ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ने ‘कामधेनु गौ विज्ञान प्रचार प्रसार परीक्षा’ प्रस्तावित थी. कड़े विरोध के बाद इस परीक्षा के आयोजन का प्रस्ताव रद्द कर दिया गया. बाद में इस बोर्ड को ही भंग कर दिया गया.

काऊ हग डे के आव्हान का सोशल मीडिया पर जम कर मज़ाक उड़ाया गया. एक वीडियो भी सामने आया जिसमें एक भाजपा नेता गाय को सहलाने का प्रयास पर रहे हैं और गाय पलट कर उन पर हमलावर हो रही है. कई लोगों ने पूछा कि क्या गाय अनजान लोगों के ‘हग’ को स्वीकार करेगी. क्या वह उन पर हमला नहीं करेगी? गाय के प्रति प्रेम को अभिव्यक्त करने के इन बचकाने और हास्यास्पद प्रयासों के बीच यह भी जानना दिलचस्प होगा कि भारत, इस इस समय पूरी दुनिया में बीफ का सबसे बड़ा निर्यातक बनने की राह पर है. 

इस बीच मालेगांव बम धमाके मामले में ज़मानत पर रिहा प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने यह सलाह दी है कि गाय को उसकी त्वचा के बालों की दिशा में सहलाने से रक्तचाप कम होता है. निश्चित रूप से भारत सरकार इस दिशा में शोध करेगी! 

हिन्दू राष्ट्रवादी समूह वैलेंटाइन्स डे पर प्रेमीजनों के एक-दूसरे के प्रति प्रेम का इज़हार करने और एक-दूसरे को भेंट देने के रिवाज़ का हिंसक विरोध करते आ रहे हैं. बजरंग दल और प्रमोद मुत्तालिक की श्रीराम सेने, इस दिन सार्वनिक स्थानों पर प्रेमी जोड़ों की पिटाई करने को अपना पावन कर्त्तव्य मानते हैं. गुंडों के ये समूह, प्रेमी युगलों को तो परेशान करते ही हैं वे उपहार बेचने वाली दुकानों पर भी हमले करते हैं. इनमें से अनेक को सरकार का संरक्षण प्राप्त है.

ऐसा दावा किया जा रहा है कि प्रेम की सार्वजनिक अभिव्यक्ति ‘हमारी संस्कृति’ और हिन्दू मूल्यों के खिलाफ है. शायद ये महानुभाव वात्सायन के ‘कामसूत्र’ के बारे में नहीं जानते और ना ही उन्होंने खजुराहो और कोणार्क के वे मंदिर देखें हैं जिनमें भावनात्मक प्रेम के अलावा कामोत्तेजना को खुल कर दर्शाने वाली कलाकृतियों की भरमार है. हम सबको अत्यंत सफल ‘पिंक चड्डी’ अभियान याद है, जिसे पूर्व आरएसएस प्रचारक प्रमोद मुत्तालिक के संगठन द्वारा मंगलौर के एक पब में लड़कियों की पिटाई की प्रतिक्रिया स्वरुप शुरू किया गया था. मुत्तालिक को बड़ी संख्या में पिंक चड्डीयां भेजी गयीं थीं. ऐसा भी नहीं है कि इस तरह की तंग सोच रखने वाले समूह केवल भारत में है. उस समय सऊदी अरब में भी श्रीराम सेने के कई क्लोन थे.   

ये सभी समूह एक दमनकारी, सांप्रदायिक राजनीति का प्रतिनिधित्व करते हैं जो किसी को भी, विशेषकर युवाओं को, चुनने का अधिकार नहीं देना चाहते. उनकी यह असहिष्णुता उनके उस व्यापक एजेंडा का भाग है जिसमें वे उदारवाद और बहुवाद को समाप्त कर देना चाहते है और देश के प्रजातान्त्रिक चरित्र को भी. आसाराम बापू, जिन्होंने 14 फरवरी को ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव किया था, इन दिनों बलात्कार के आरोप में जेल की हवा खा रहे हैं. उनके इस प्रस्ताव का कई धार्मिक राष्ट्रवादियों ने समर्थन किया था परन्तु यह टांय-टांय फिस्स हो गया.  

प्रेम की अभिव्यक्ति के दिन के रूप में वैलेंटाइन्स डे पूरी दुनिया में मनाया जाता है. यह केवल रूमानी और शारीरिक प्रेम तक सीमित नहीं है. वैलेंटाइन्स डे मनाने की परंपरा दूसरी शताब्दी में शुरू हुई थी. संत वैलेंटाइन के बारे में कई कहानियां हैं और इनमें से कुछ की पुष्टि इतिहास भी करता है. ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन ईसाई चर्च में इस नाम के कम से कम दो संत थे. एक कथा के अनुसार, रोम के सम्राट क्लौडिअस द्वितीय ने 200 ईस्वी के आसपास युवाओं के विवाह करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था क्योंकि वह अन्य देशों पर विजय प्राप्त करना चाहता था और उसका ख्याल था कि अविवाहित पुरुष बेहतर सैनिक होते हैं. उस समय वैलेंटाइन नाम के एक संत ने राजा के आदेश की अवज्ञा करते हुए, युवा जोड़ों के विवाह संपन्न करवाए थे.

एक अन्य कथा के अनुसार, वैलेंटाइन एक प्राचीन ईसाई संत थे जो बच्चों से बेहद प्यार करते थे. उन्होंने रोमन देवताओं की आराधना करने से इंकार कर दिया और इस कारण उन्हें जेल में डाल दिया गया. उनके प्रेम और स्नेह से वंचित बच्चे, अपने प्यार भरे सन्देश लिखकर उन्हें जेल के सीखचों के पीछे फ़ेंक दिया करते थे. ऐसा कहा जाता है कि उन्हें 14 फरवरी के दिन मौत के घाट उतार दिया गया था. बाद में राजाओं के अमानवीय आदेशों की खिलाफत करने में उन्होंने जिस साहस का प्रदर्शन किया था उसकी याद में लोग इस दिन अपने प्रिय लोगों को प्रेम के सन्देश और शुभकामनाएं भेजने लगे. बहरहाल, वैलेंटाइन्स डे कैसे शुरू हुआ इसका इतिहास बहुत स्पष्ट नहीं है. इसके अलावा अलग-अलग देशों में इसने स्थानीय रंग अख्तियार कर लिया है. 

जब पूरी दुनिया एक वैश्विक गाँव का रूप ले रही है तब हम दूसरे देशों के लोगों के उत्सवों का इस तरह से मज़ाक नहीं बना सकते. यह अच्छा ही है कि व्यापक आलोचना के बाद, पशु कल्याण बोर्ड ने काऊ हग डे मानाने का अपना आव्हान वापस ले लिया है.  

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

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