इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश के हाथरस गैंगरेप कांड के पीड़ित परिवार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को बताया कि उसका अंतिम संस्कार स्थानीय पुलिस द्वारा उसी रात किया गया, जो कि बिना परिवार की सहमति के किया गया था। पीड़ित परिवार ने केस को उत्तर प्रदेश से बाहर दिल्ली या मुंबई में ट्रांसफर करने का अनुरोध कोर्ट से किया है।
19 वर्षीय ने अपनी मौत से पहले में आरोप लगाया था कि 14 सितंबर को हाथरस में चार 'उच्च-जाति' के लोगों द्वारा उसके साथ बलात्कार किया गया था। पीड़िता को अलीगढ़ के एक अस्पताल में ले जाया गया और जब उसे 22 सितंबर को होश आया तो उसने एक मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराया, जिसके बाद बलात्कार की धाराओं को एफआईआर में जोड़ा गया।
इसके बाद किशोरी को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उसकी 29 सितंबर को मृत्यु हो गई, उसके शव को उसी रात हाथरस ले जाया गया और 30 सितंबर की देर रात करीब 3 बजे से पहले उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
मृतका के परिजन उसके शव को ले जा रही एम्बुलेंस के सामने विरोध करते हुए देखे गए जिसमें वह प्रशासन से निवेदन करते हैं कि उन्हें अंतिम संस्कार के लिए शव को अपने घर ले जाने की अनुमति दी जाए क्योंकि यह उनकी परंपरा है।
परिवार ने आरोप लगाया कि वह बेटी के पारंपरिक अंतिम संस्कार की रस्म अदा कर सकें इसके लिए उन्हें उसके शव को देखने तक की अनुमति नहीं दी गई। परिवार को निशाना बनाया गया और अधिकारियों को वीडियो में गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी देते हुए देखा गया और उन्हें बताया गया कि वे गलती कर रहे हैं।
प्रशासन विभिन्न 'उच्च जाति' के उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहा है जो आरोपियों के समर्थन में बैठकें और पंचायते आयोजित करते हैं और हाथरस में परिवार और दलित समुदाय को डराते हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मामले का विशेष रूप से जल्दबाजी में अंतिम संस्कार करने का संज्ञान लिया था और राज्य सरकार और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को 12 अक्टूबर को सुनवाई में उपस्थित रहने का निर्देश दिया था।
NDTV के अनुसार हाईकोर्ट ने इस मामले में जातीय विभाजन के बारे में भी सवाल उठाए। जबकि जिला प्रशासन और पुलिस ने दावा किया कि दाह संस्कार 'कानून और व्यवस्था की स्थिति के मद्देनजर' उसी रात किया गया था, अदालत ने सवाल किया है कि अगर लड़की गरीब परिवार की जगह अमीर परिवार से आयी होती तो इस क्या मामले को अलग तरह से माना जाता।
पीड़िता के परिवार के पक्ष की वकील सीमा कुशवाहा ने एनडीटीवी को बताया, 'कोर्ट ने जिलाधिकारी से पूछा- अगर यह अमीर परिवार की लड़ती होती तो क्या आप उसका उसी तरह से अंतिम संस्कार कर देते।' जिलाधिकारी प्रवीण कुमार अदालत की ओर से बुलाए गए अधिकारियों में से एक थे, उन्होंने आधी रात के बाद अंतिम के लिए जिम्मेदारी स्वीकार की थी।
हाईकोर्ट ने 1 अक्टूबर को कहा था कि मामला 'सार्वजनिक महत्व' का है क्योंकि इसमें राज्य के अधिकारियों पर 'भारी मनमानी' के आरोप शामिल हैं, जिससे न केवल मृतक पीड़िता बल्कि उसके परिवार के सदस्यों के भी बुनियादी और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
इंडिया टुडे के अनुसार, सीमा कुशवाहा ने कहा कि जस्टिस पंकज मिथल और राजन रॉय की बेंच ने मामले में प्रशासन के आचरण पर नाराजगी जताई और एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार से पूछा गया कि 'अगर आपकी बेटी होती तो क्या आप अंतिम संस्कार की अनुमति देते? उसके शरीर को देखे बिना?
हाईकोर्ट ने 1 अक्टूबर को कहा था कि मामला 'सार्वजनिक महत्व' का है क्योंकि इसमें राज्य के अधिकारियों पर 'भारी मनमानी' के आरोप शामिल हैं, जिससे न केवल मृतक पीड़िता बल्कि उसके परिवार के सदस्यों के भी बुनियादी और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
इंडिया टुडे के अनुसार, सीमा कुशवाहा ने कहा कि जस्टिस पंकज मिथल और राजन रॉय की बेंच ने मामले में प्रशासन के आचरण पर नाराजगी जताई और एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार से पूछा गया कि 'अगर आपकी बेटी होती तो क्या आप अंतिम संस्कार की अनुमति देते? उसके शरीर को देखे बिना? सीमा ने बताया कि वह हैरान और किसी भी सवाल का जवाब देने में असमर्थ थे। हाईकोर्ट की बेंच ने एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) के अलावा यूपी के अतिरिक्त मुख्य सचिव, डीजीपी, हाथरस डीएम और एसपी को तलब किया था।
पीड़ित परिवार कोर्ट में अपना बयान दर्ज करने के लिए भी उपस्थित हुए इस दौरान उन्होंने कोर्ट से कहा कि वे राज्य से बाहर का मामला स्थानांतरित कर दें क्योंकि उन्हें स्थानीय अधिकारियों पर भरोसा नहीं कर सकते। ़
उन्होंने न्यायिक प्रक्रिया के खत्म होने तक सुरक्षा कवर का भी अनुरोध किया और कहा कि सीबीआई की रिपोर्टों को गोपनीय रखा जाए। वकील सीमा कुशवाहा ने मीडिया से बातचीत में कहा कि परिवार की सुरक्षा एक बड़ी चिंता है क्योंकि उन्हें आरोपियों का समर्थन करने वाले विभिन्न समूहों से धमकी मिल रही हैं।
पीड़ित परिवार ने कहा कि जब अधिकारियों द्वारा पीड़िता का अंतिम संस्कार किया गया था, उस समय गाँव में पुलिस की भारी मौजूदगी थी और इस तरह कानून-व्यवस्था की स्थिति नियंत्रण से बाहर होने का कोई सवाल ही नहीं था।
इस बीच, हाथरस के जिला अधिकारी प्रवीण कुमार ने अपने बयान में कोर्ट को बताया कि उनके पास अगली सुबह कानून और व्यवस्था की समस्या के बारे में इनपुट थे, जिसके बाद उन्होंने दाह संस्कार करने का फैसला लिया। उन्होंने कोर्ट को बताया कि यह निर्णय (अधिकारियों द्वारा) स्थानीय स्तर पर लिया गया था, जिसमें वह भी शामिल हैं।
19 वर्षीय ने अपनी मौत से पहले में आरोप लगाया था कि 14 सितंबर को हाथरस में चार 'उच्च-जाति' के लोगों द्वारा उसके साथ बलात्कार किया गया था। पीड़िता को अलीगढ़ के एक अस्पताल में ले जाया गया और जब उसे 22 सितंबर को होश आया तो उसने एक मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराया, जिसके बाद बलात्कार की धाराओं को एफआईआर में जोड़ा गया।
इसके बाद किशोरी को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उसकी 29 सितंबर को मृत्यु हो गई, उसके शव को उसी रात हाथरस ले जाया गया और 30 सितंबर की देर रात करीब 3 बजे से पहले उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
मृतका के परिजन उसके शव को ले जा रही एम्बुलेंस के सामने विरोध करते हुए देखे गए जिसमें वह प्रशासन से निवेदन करते हैं कि उन्हें अंतिम संस्कार के लिए शव को अपने घर ले जाने की अनुमति दी जाए क्योंकि यह उनकी परंपरा है।
परिवार ने आरोप लगाया कि वह बेटी के पारंपरिक अंतिम संस्कार की रस्म अदा कर सकें इसके लिए उन्हें उसके शव को देखने तक की अनुमति नहीं दी गई। परिवार को निशाना बनाया गया और अधिकारियों को वीडियो में गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी देते हुए देखा गया और उन्हें बताया गया कि वे गलती कर रहे हैं।
प्रशासन विभिन्न 'उच्च जाति' के उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहा है जो आरोपियों के समर्थन में बैठकें और पंचायते आयोजित करते हैं और हाथरस में परिवार और दलित समुदाय को डराते हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मामले का विशेष रूप से जल्दबाजी में अंतिम संस्कार करने का संज्ञान लिया था और राज्य सरकार और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को 12 अक्टूबर को सुनवाई में उपस्थित रहने का निर्देश दिया था।
NDTV के अनुसार हाईकोर्ट ने इस मामले में जातीय विभाजन के बारे में भी सवाल उठाए। जबकि जिला प्रशासन और पुलिस ने दावा किया कि दाह संस्कार 'कानून और व्यवस्था की स्थिति के मद्देनजर' उसी रात किया गया था, अदालत ने सवाल किया है कि अगर लड़की गरीब परिवार की जगह अमीर परिवार से आयी होती तो इस क्या मामले को अलग तरह से माना जाता।
पीड़िता के परिवार के पक्ष की वकील सीमा कुशवाहा ने एनडीटीवी को बताया, 'कोर्ट ने जिलाधिकारी से पूछा- अगर यह अमीर परिवार की लड़ती होती तो क्या आप उसका उसी तरह से अंतिम संस्कार कर देते।' जिलाधिकारी प्रवीण कुमार अदालत की ओर से बुलाए गए अधिकारियों में से एक थे, उन्होंने आधी रात के बाद अंतिम के लिए जिम्मेदारी स्वीकार की थी।
हाईकोर्ट ने 1 अक्टूबर को कहा था कि मामला 'सार्वजनिक महत्व' का है क्योंकि इसमें राज्य के अधिकारियों पर 'भारी मनमानी' के आरोप शामिल हैं, जिससे न केवल मृतक पीड़िता बल्कि उसके परिवार के सदस्यों के भी बुनियादी और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
इंडिया टुडे के अनुसार, सीमा कुशवाहा ने कहा कि जस्टिस पंकज मिथल और राजन रॉय की बेंच ने मामले में प्रशासन के आचरण पर नाराजगी जताई और एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार से पूछा गया कि 'अगर आपकी बेटी होती तो क्या आप अंतिम संस्कार की अनुमति देते? उसके शरीर को देखे बिना?
हाईकोर्ट ने 1 अक्टूबर को कहा था कि मामला 'सार्वजनिक महत्व' का है क्योंकि इसमें राज्य के अधिकारियों पर 'भारी मनमानी' के आरोप शामिल हैं, जिससे न केवल मृतक पीड़िता बल्कि उसके परिवार के सदस्यों के भी बुनियादी और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
इंडिया टुडे के अनुसार, सीमा कुशवाहा ने कहा कि जस्टिस पंकज मिथल और राजन रॉय की बेंच ने मामले में प्रशासन के आचरण पर नाराजगी जताई और एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार से पूछा गया कि 'अगर आपकी बेटी होती तो क्या आप अंतिम संस्कार की अनुमति देते? उसके शरीर को देखे बिना? सीमा ने बताया कि वह हैरान और किसी भी सवाल का जवाब देने में असमर्थ थे। हाईकोर्ट की बेंच ने एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) के अलावा यूपी के अतिरिक्त मुख्य सचिव, डीजीपी, हाथरस डीएम और एसपी को तलब किया था।
पीड़ित परिवार कोर्ट में अपना बयान दर्ज करने के लिए भी उपस्थित हुए इस दौरान उन्होंने कोर्ट से कहा कि वे राज्य से बाहर का मामला स्थानांतरित कर दें क्योंकि उन्हें स्थानीय अधिकारियों पर भरोसा नहीं कर सकते। ़
उन्होंने न्यायिक प्रक्रिया के खत्म होने तक सुरक्षा कवर का भी अनुरोध किया और कहा कि सीबीआई की रिपोर्टों को गोपनीय रखा जाए। वकील सीमा कुशवाहा ने मीडिया से बातचीत में कहा कि परिवार की सुरक्षा एक बड़ी चिंता है क्योंकि उन्हें आरोपियों का समर्थन करने वाले विभिन्न समूहों से धमकी मिल रही हैं।
पीड़ित परिवार ने कहा कि जब अधिकारियों द्वारा पीड़िता का अंतिम संस्कार किया गया था, उस समय गाँव में पुलिस की भारी मौजूदगी थी और इस तरह कानून-व्यवस्था की स्थिति नियंत्रण से बाहर होने का कोई सवाल ही नहीं था।
इस बीच, हाथरस के जिला अधिकारी प्रवीण कुमार ने अपने बयान में कोर्ट को बताया कि उनके पास अगली सुबह कानून और व्यवस्था की समस्या के बारे में इनपुट थे, जिसके बाद उन्होंने दाह संस्कार करने का फैसला लिया। उन्होंने कोर्ट को बताया कि यह निर्णय (अधिकारियों द्वारा) स्थानीय स्तर पर लिया गया था, जिसमें वह भी शामिल हैं।