बात जब लोकसभा चुनाव 2019 की हो तब महाराष्ट्र को कैसे अनदेखा किया जा सकता है। एक ओर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे सभी शिकायतें भूल बीजेपी से गठबंधन कर महाराष्ट्र में अपना समर्थन दे रहे हैं। तो वहीं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता राज ठाकरे इसी निर्णय पर तंज कसते हुए काँग्रेस- एनसीपी के गठबंधन का समर्थन कर रहे हैं। बिना चुनाव में उतरे ही राज ठाकरे शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं।
राज ठाकरे जगह जगह जनसभा कर रहे हैं और उनकी सभाएं सफल भी हो रही हैं। दक्षिण मुंबई और उत्तर पूर्वी मुंबई लोकसभा सीटों पर उनकी सभाएं बेहद सफल रही हैं। इतना ही नहीं राज ठाकरे मुंबई सहित सतारा, नांदेड़, शोलापुर, कोल्हापुर, महाड़, पुणे, रायगढ़, पनवेल, नासिक जैसे महाराष्ट्र के तमाम दूसरे हिस्सों में भी जनसभाएं कर रहे हैं।
राज ठाकरे कभी जीएसटी और नोटबंदी जैसे निर्णयों को लेकर मोदी सरकार की आलोचना करते हैं। तो कभी विपक्ष का साथ देते हुए पुलवामा हमले और बालाकोट एयर स्ट्राइक की बात कर प्रधानमंत्री मोदी को सवालों के घेरे में खड़ा करते नज़र आ रहे हैं। बात साफ है कि जब तीर प्रधानमंत्री मोदी पे साधा है तो निशाने पर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी होंगे और उनसे बाला साहेब की विरासत सहित शिवसेना को छीनने और अपनी खोई जमीन वापस पाने का इरादा भी होगा।
पहले उद्धव ठाकरे जिस तरह अपने मुद्दों को अपने मुखपत्र “सामना” के जरिये या सभा के दौरान उठाया करते थे उससे शिवसेना के कार्यकर्ता जोश से भर जाते थे। आज बीजेपी से समझौता होने के बाद शिवसेना का बीजेपी के प्रति नरम रुख से कार्यकर्ता शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से नाराज हैं। राज ठाकरे इस बात को समझते हुए अपनी सभाओं में उन्हीं मुद्दों को उठाते नजर आते हैं। जिसके बाद शिवसेना प्रमुख से नाराज कार्यकर्ताओं का रुझान राज ठाकरे के प्रति बढ़ रहा है। राज ठाकरे की सभा में ज्यादातर शिवसेना के समर्थक और कार्यकर्ता होते हैं। राज ठाकरे ने भले ही चुनाव में अपना नामांकन न दिया हो पर वह इसे अपने लिए महाराष्ट्र में नए मौके के तौर पर देख रहे हैं। उनकी माने तो प्रधानमंत्री मोदी ने देश से 5 साल मांगे थे जो देश ने देकर उन्हें जांचा परखा तो अब राहुल गांधी को भी एक मौका क्यों नहीं देना चाहिए।
महाराष्ट्र की राजनीति को सालों से देखते हुए आ रहे पत्रकार अनुराग चतुर्वेदी ने इस पर अपना नजरिया सामने रखा। उनकी माने तो पूर्व लोकसभा और विधानसभा चुनाव हारने के बाद राज ठाकरे कहीं गायब होते जा रहे थे पर उनके लिए यह दोबारा अपना पांव जमाने का नया मौका है। एक वक्त था जब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे किसान के असंतोष, नोटबंदी- जीएसटी से हुई परेशानी, बेरोजगारी और बढ़ती पेट्रोल की कीमतों के कारण से मोदी सरकार का विरोध करते नहीं थकते थे। और वहीं अचानक गठबंधन के बाद बीजेपी की तरफ शिवसेना के नेताओं का नरम रुख से कार्यकर्ता एवं समर्थक बहुत आहत पहुंची है। चतुर्वेदी की मानें तो इससे शिवसेना के जनाधार के मराठी स्वाभिमान को काफी ठेस पहुंची है।
पत्रकार अभिलाश अवस्थी का भी ऐसा ही मानना है। उनके मुताबिक शिवसेना की मुंबई में राजनीति ही दक्षिण भारत और गुजरात के वर्चस्व के खिलाफ शुरु हुई थी। ऐसे में संयोग से बीजेपी के दो प्रमुख नेता (प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह) गुजरात से हैं। हालांकि राज ठाकरे अपने भाषण में सीधे गुजरातियों को कुछ न कह मोदी– शाह पर तंज कसकर जनाधार में दबी इसी भावना को उबारने का प्रयास कर रहे हैं। अवस्थी इसे राज ठाकरे के लिए बड़ा अवसर मान रहे हैं क्योंकि बिना चुनाव मैदान में उतरे उनका यूँ तीर छोड़ना जनाधारों को अपनी ओर बेहद आकर्षित कर रहा है।
फिलहाल राज ठाकरे बहुत ही आक्रामक रूप से बीजेपी- शिवसेना के गठबंधन का विरोध कर रहे हैं। और महाराष्ट्र में जगह जगह सभा कर काँग्रेस– एनसीपी का समर्थन भी कर रहे हैं। साथ ही अपनी सभाओं में गठबंधन से पूर्व शिवसेना के ही मुद्दों को उठाकर शिवसेना के जनाधारों को अपनी ओर आकर्षित कर पा रहे हैं।
एक ओर राज ठाकरे के नए अंदाज की चारों ओर चर्चा हो रही है वहीं दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे की रातों की नींद भी उड़ती नज़र आ रही है। अंततः यह कहना गलत नहीं होगा कि यहाँ सब नामुमकिन मुमकिन है, यह लोकसभा चुनाव 2019 है।
राज ठाकरे जगह जगह जनसभा कर रहे हैं और उनकी सभाएं सफल भी हो रही हैं। दक्षिण मुंबई और उत्तर पूर्वी मुंबई लोकसभा सीटों पर उनकी सभाएं बेहद सफल रही हैं। इतना ही नहीं राज ठाकरे मुंबई सहित सतारा, नांदेड़, शोलापुर, कोल्हापुर, महाड़, पुणे, रायगढ़, पनवेल, नासिक जैसे महाराष्ट्र के तमाम दूसरे हिस्सों में भी जनसभाएं कर रहे हैं।
राज ठाकरे कभी जीएसटी और नोटबंदी जैसे निर्णयों को लेकर मोदी सरकार की आलोचना करते हैं। तो कभी विपक्ष का साथ देते हुए पुलवामा हमले और बालाकोट एयर स्ट्राइक की बात कर प्रधानमंत्री मोदी को सवालों के घेरे में खड़ा करते नज़र आ रहे हैं। बात साफ है कि जब तीर प्रधानमंत्री मोदी पे साधा है तो निशाने पर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी होंगे और उनसे बाला साहेब की विरासत सहित शिवसेना को छीनने और अपनी खोई जमीन वापस पाने का इरादा भी होगा।
पहले उद्धव ठाकरे जिस तरह अपने मुद्दों को अपने मुखपत्र “सामना” के जरिये या सभा के दौरान उठाया करते थे उससे शिवसेना के कार्यकर्ता जोश से भर जाते थे। आज बीजेपी से समझौता होने के बाद शिवसेना का बीजेपी के प्रति नरम रुख से कार्यकर्ता शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से नाराज हैं। राज ठाकरे इस बात को समझते हुए अपनी सभाओं में उन्हीं मुद्दों को उठाते नजर आते हैं। जिसके बाद शिवसेना प्रमुख से नाराज कार्यकर्ताओं का रुझान राज ठाकरे के प्रति बढ़ रहा है। राज ठाकरे की सभा में ज्यादातर शिवसेना के समर्थक और कार्यकर्ता होते हैं। राज ठाकरे ने भले ही चुनाव में अपना नामांकन न दिया हो पर वह इसे अपने लिए महाराष्ट्र में नए मौके के तौर पर देख रहे हैं। उनकी माने तो प्रधानमंत्री मोदी ने देश से 5 साल मांगे थे जो देश ने देकर उन्हें जांचा परखा तो अब राहुल गांधी को भी एक मौका क्यों नहीं देना चाहिए।
महाराष्ट्र की राजनीति को सालों से देखते हुए आ रहे पत्रकार अनुराग चतुर्वेदी ने इस पर अपना नजरिया सामने रखा। उनकी माने तो पूर्व लोकसभा और विधानसभा चुनाव हारने के बाद राज ठाकरे कहीं गायब होते जा रहे थे पर उनके लिए यह दोबारा अपना पांव जमाने का नया मौका है। एक वक्त था जब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे किसान के असंतोष, नोटबंदी- जीएसटी से हुई परेशानी, बेरोजगारी और बढ़ती पेट्रोल की कीमतों के कारण से मोदी सरकार का विरोध करते नहीं थकते थे। और वहीं अचानक गठबंधन के बाद बीजेपी की तरफ शिवसेना के नेताओं का नरम रुख से कार्यकर्ता एवं समर्थक बहुत आहत पहुंची है। चतुर्वेदी की मानें तो इससे शिवसेना के जनाधार के मराठी स्वाभिमान को काफी ठेस पहुंची है।
पत्रकार अभिलाश अवस्थी का भी ऐसा ही मानना है। उनके मुताबिक शिवसेना की मुंबई में राजनीति ही दक्षिण भारत और गुजरात के वर्चस्व के खिलाफ शुरु हुई थी। ऐसे में संयोग से बीजेपी के दो प्रमुख नेता (प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह) गुजरात से हैं। हालांकि राज ठाकरे अपने भाषण में सीधे गुजरातियों को कुछ न कह मोदी– शाह पर तंज कसकर जनाधार में दबी इसी भावना को उबारने का प्रयास कर रहे हैं। अवस्थी इसे राज ठाकरे के लिए बड़ा अवसर मान रहे हैं क्योंकि बिना चुनाव मैदान में उतरे उनका यूँ तीर छोड़ना जनाधारों को अपनी ओर बेहद आकर्षित कर रहा है।
फिलहाल राज ठाकरे बहुत ही आक्रामक रूप से बीजेपी- शिवसेना के गठबंधन का विरोध कर रहे हैं। और महाराष्ट्र में जगह जगह सभा कर काँग्रेस– एनसीपी का समर्थन भी कर रहे हैं। साथ ही अपनी सभाओं में गठबंधन से पूर्व शिवसेना के ही मुद्दों को उठाकर शिवसेना के जनाधारों को अपनी ओर आकर्षित कर पा रहे हैं।
एक ओर राज ठाकरे के नए अंदाज की चारों ओर चर्चा हो रही है वहीं दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे की रातों की नींद भी उड़ती नज़र आ रही है। अंततः यह कहना गलत नहीं होगा कि यहाँ सब नामुमकिन मुमकिन है, यह लोकसभा चुनाव 2019 है।