जयपुर। पीयूसीएल राजस्थान ने मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुर में दर्शनशास्त्र की प्रोफ़ेसर डॉ सुधा चौधरी के ख़िलाफ़ एबीवीपी द्वारा किये जा रहे दुष्प्रचार एवं मिथ्या आरोपों की निंदा की। साथ ही संगठन ने कहा कि विश्विद्यालय की अकादमिक स्वायत्तता के हनन के सभी प्रयासों के विरुद्ध अपनी एकजूटता प्रदर्शित करता है।
इस संबंध में पीयूसीएल से विज्ञप्ति जारी कर कहा कि 29 जनवरी, 2021 की मीडिया रिपोर्ट्स से ज्ञात हुआ कि विश्वविद्यालय की एबीवीपी इकाई ने डॉ. सुधा चौधरी पर किसान आन्दोलन का समर्थन करने और गणतंत्र दिवस पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है। साथ ही उन पर पूर्व में सीएए-एनआरसी के विरुद्ध ‘सड़क पर नारेबाजी करने’ और धारा 370, 35ए पर सेमीनार करने का भी आरोप लगाया है। ये सभी आरोप हास्यास्पद हैं। गणतंत्र दिवस पर राजधानी में हिंसा किसने भड़काई, यह जांच का विषय है और उदयपुर में बैठे एक व्यक्ति पर इसका आरोप लगाना किसी व्हाट्सएप विश्वविद्यालय के ही दिमाग की कौड़ी हो सकता है। किसान आंदोलन का समर्थन या एनआरसी का विरोध– ये दोनों ही नितांत व्यक्तिगत वैचारिक मसले हैं और इस देश के प्रत्येक नागरिक को इस सन्दर्भ में राय रखने, उसे प्रकट करने और संवैधानिक तरह से किसी प्रदर्शन में शामिल होने का पूरा हक़ है। रही सेमीनार की बात– तो वह विश्वविद्यालय का काम है! देश-दुनिया के तमाम महत्त्वपूर्ण मसलों पर गहन मंथन कर व्यस्वस्थापिका-कार्यपालिका को किसी दिशा के अभिमुखन में मदद करना उच्चतर शैक्षिक एवं शोध संस्थानों का कर्तव्य है।
पीयूसीएल राजस्थान इसे विश्वविद्यालय की अकादमिक स्वायत्तता के हनन के प्रयासों की शुरुआत के रूप में देखता है और यही कारण है कि हम प्रारंभ में ही इसका कड़ा विरोध कर अपनी प्रतिबद्धता सुधा जी के साथ प्रकट करते हैं। एक सच्चे लोकतंत्र में व्यवस्थापिका-कार्यपालिका-न्यायपालिका-पत्रकारिता-शैक्षिक शोध संस्थान सभी एक बड़े स्तंभ की मजबूत महराब होते हैं और किसी का भी पतन इसकी नींव को खोखला करता है। साथ ही, लोकतंत्र सभी नागरिकों की सक्रिय सहभागिता से महबूत होता है और हम प्रत्येक नागरिक के इस अधिकार की रक्षा के लिए सदैव सन्नद्ध रहेंगे।
{द्वारा जारी- कविताश्रीवास्तव (अध्यक्ष), अनंत भटनागर (महासचिव)
राज्य कार्यकारिणी सदस्य: भंवर मेघवंशी, अरुण व्यास, रमेश नंदवाना, मीता सिंह, निसार अहमद, तारा अहलुवालिया, भंवर लाल कुमावत, मधुलिका, प्रज्ञा जोशी, राधाकांत सक्सेना, डी.एल. त्रिपाठी, ममता जेतली, राजेंद्र कुंतल, अखिल चौधरी, अरुण व्यास, अश्वनी पालीवाल, हरकेश बुगालिया, कैलाश मीणा मधुलिका, मुकेश निर्वासित, निशात हुसैन, पत्रस डोडियार, राकेश शर्मा, सिस्टर गीता करोल, शुभा जिंदल, वीरेंद्र विद्रोही, कांति लाल, जवाहर सिंह, दिनेश दिवेदी, अजेय सक्सेना}
इस संबंध में पीयूसीएल से विज्ञप्ति जारी कर कहा कि 29 जनवरी, 2021 की मीडिया रिपोर्ट्स से ज्ञात हुआ कि विश्वविद्यालय की एबीवीपी इकाई ने डॉ. सुधा चौधरी पर किसान आन्दोलन का समर्थन करने और गणतंत्र दिवस पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है। साथ ही उन पर पूर्व में सीएए-एनआरसी के विरुद्ध ‘सड़क पर नारेबाजी करने’ और धारा 370, 35ए पर सेमीनार करने का भी आरोप लगाया है। ये सभी आरोप हास्यास्पद हैं। गणतंत्र दिवस पर राजधानी में हिंसा किसने भड़काई, यह जांच का विषय है और उदयपुर में बैठे एक व्यक्ति पर इसका आरोप लगाना किसी व्हाट्सएप विश्वविद्यालय के ही दिमाग की कौड़ी हो सकता है। किसान आंदोलन का समर्थन या एनआरसी का विरोध– ये दोनों ही नितांत व्यक्तिगत वैचारिक मसले हैं और इस देश के प्रत्येक नागरिक को इस सन्दर्भ में राय रखने, उसे प्रकट करने और संवैधानिक तरह से किसी प्रदर्शन में शामिल होने का पूरा हक़ है। रही सेमीनार की बात– तो वह विश्वविद्यालय का काम है! देश-दुनिया के तमाम महत्त्वपूर्ण मसलों पर गहन मंथन कर व्यस्वस्थापिका-कार्यपालिका को किसी दिशा के अभिमुखन में मदद करना उच्चतर शैक्षिक एवं शोध संस्थानों का कर्तव्य है।
पीयूसीएल राजस्थान इसे विश्वविद्यालय की अकादमिक स्वायत्तता के हनन के प्रयासों की शुरुआत के रूप में देखता है और यही कारण है कि हम प्रारंभ में ही इसका कड़ा विरोध कर अपनी प्रतिबद्धता सुधा जी के साथ प्रकट करते हैं। एक सच्चे लोकतंत्र में व्यवस्थापिका-कार्यपालिका-न्यायपालिका-पत्रकारिता-शैक्षिक शोध संस्थान सभी एक बड़े स्तंभ की मजबूत महराब होते हैं और किसी का भी पतन इसकी नींव को खोखला करता है। साथ ही, लोकतंत्र सभी नागरिकों की सक्रिय सहभागिता से महबूत होता है और हम प्रत्येक नागरिक के इस अधिकार की रक्षा के लिए सदैव सन्नद्ध रहेंगे।
{द्वारा जारी- कविताश्रीवास्तव (अध्यक्ष), अनंत भटनागर (महासचिव)
राज्य कार्यकारिणी सदस्य: भंवर मेघवंशी, अरुण व्यास, रमेश नंदवाना, मीता सिंह, निसार अहमद, तारा अहलुवालिया, भंवर लाल कुमावत, मधुलिका, प्रज्ञा जोशी, राधाकांत सक्सेना, डी.एल. त्रिपाठी, ममता जेतली, राजेंद्र कुंतल, अखिल चौधरी, अरुण व्यास, अश्वनी पालीवाल, हरकेश बुगालिया, कैलाश मीणा मधुलिका, मुकेश निर्वासित, निशात हुसैन, पत्रस डोडियार, राकेश शर्मा, सिस्टर गीता करोल, शुभा जिंदल, वीरेंद्र विद्रोही, कांति लाल, जवाहर सिंह, दिनेश दिवेदी, अजेय सक्सेना}